कबूतर ख़तरनाक भी हो सकते है ।
आजकल तो कबूतर कुछ ज़्यादा ही दिखने लगे है । अब पहले तो घर या खिड़की पर कबूतर का बैठना अच्छा नहीं माना जाता था । ऐसा माना जाता था कि कबूतर के बोलने से मनहूसियत आती है । पर अब हालात बदल गये है । हम चाहें या ना चाहें कबूतर घर की खिड़कियों ,ए.सी. ,और बालकनी में आ ही जाते है ।
जब हमने घर बदला और बड़े शान से गमले लगाये तब ये नहीं सोचा था कि कबूतरों से इतना नुक़सान भी हो सकता है । शुरू शुरू मे जब गमले में कबूतर ने अण्डा दिया तो हम लोग बड़े ख़ुश हुये और जब क़रीब बीस दिन बाद उसमें से सुनहरे रंग के बच्चे निकले तब तो हम बड़े ही रोमांचित हुये और फिर तो रोज़ हम उन्हें देखते और ऐसे ही कैसे धीरे धीरे वो बच्चे बड़े हो गये और एक दिन उड़ गये । और हम ये सोचकर कि चलो पौधा तो मर गया पर कबूतर के बच्चे बचे रहे । यहाँ ते ज़रूर बताना चाहेगें कि कई बार कौवे भी आते थे इन बच्चों को खाने के लिये पर तब हम उन्हें भगा दिया करते थे।
जब हमने घर बदला और बड़े शान से गमले लगाये तब ये नहीं सोचा था कि कबूतरों से इतना नुक़सान भी हो सकता है । शुरू शुरू मे जब गमले में कबूतर ने अण्डा दिया तो हम लोग बड़े ख़ुश हुये और जब क़रीब बीस दिन बाद उसमें से सुनहरे रंग के बच्चे निकले तब तो हम बड़े ही रोमांचित हुये और फिर तो रोज़ हम उन्हें देखते और ऐसे ही कैसे धीरे धीरे वो बच्चे बड़े हो गये और एक दिन उड़ गये । और हम ये सोचकर कि चलो पौधा तो मर गया पर कबूतर के बच्चे बचे रहे । यहाँ ते ज़रूर बताना चाहेगें कि कई बार कौवे भी आते थे इन बच्चों को खाने के लिये पर तब हम उन्हें भगा दिया करते थे।
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