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Showing posts from September, 2020

सतवां महीना लग गया

कल यानि पच्चीस तारीख़ से सतवां महीना शुरू हो गया है । किसका ? अरे कोरोना का और किसका । ☹️ देखते देखते और काम करते करते इतने महीने हो गये पर कोरोना रूकने का , जाने का नाम ही नहीं ले रहा है । सबकी नाक में दम कर रखा है । और जाना तो दूर उलटा दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से बढ़ता ही जा रहा है । 😡 ना घूमने की आज़ादी ना ही कहीं आने जाने की ।😒 वैसे छठां महीना अच्छा गुज़रा क्योंकि बर्तन और पोछे से निजात जो मिल गई थी , अरे मतलब पार्वती के आने से कम से कम इन दो कामों से तो छुटकारा मिल ही गया है । और बाक़ी काम तो हो ही जाते है । तो चलिये सातवें महीने को भी विभिन्न प्रकार के भोजन और मिठाई बनाकर बिताया जाये । क्योंकि कोरोना काल में सिर्फ़ एक यही काम है जो निरन्तर चल रहा है बिना किसी रुकावट के । और मनोरंजन का भी ये एक अच्छा साधन रहा है क्योंकि अगर चीज़ अच्छी बन जाये तो बढ़िया और ना बने तो एक और ट्रायल करो । 😜 वैसे भी कोरोना वो बला है जो गोद भराई के बाद चली जाये तो ग़नीमत समझो ।

मुआ कोरोना स्कूल रीयूनियन भी खा गया 😡

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इस साल सितम्बर बहुत ही सूना सूना और खाली खाली सा बीत रहा है । 😧 पिछले तीन सालों से हर साल सितम्बर में हम लोग स्कूल रीयूनियन करते थे । यानि स्कूल फ़्रेंड्स सितम्बर के महीने में चार पाँच दिन के लिये मिलते थे । २०१७ में जब चालीस साल बाद पहली बार हम लोगों ने इलाहाबाद में स्कूल रीयूनियन किया तो हम सभी में वही चपलता और शरारत थी जो स्कूल के ज़माने में स्कूल में थी । बल्कि थोड़ी ज़्यादा ही थी । 😜 पहली बार तो महीनों की तैयारी के बाद इलाहाबाद में पहला रीयूनियन किया गया था । और वहीं ये तय हुआ कि हर साल हम लोग कम से कम चार पाँच दिन सिर्फ़ अपनी स्कूल फ़्रेंड्स के साथ ही बितायेंगें । बिलकुल दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे स्टाइल में -- जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी । 😛 वो चार दिन हम सब घर गृहस्थी की चिन्ताओं को छोड़कर फ़ुल ऑन मस्ती मजा करते थे । और उसी का नतीजा था कि २०१८ में हम लोग दिल्ली में मिले और २०१९ में नैनीताल में हम लोगों ने स्कूल रीयूनियन किया । हर रीयूनियन में अगला रीयूनियन कहाँ होगा ये भी तय हो जाता था । और अगला रीयूनियन आने के महीनों पहले से ही तक जब तब ग्रुप पर चर्चा भी होत

बड़े काम की चीज़

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अब इस कोरोना काल के दौरान बहुत कुछ नया ट्राई किया और बहुत कुछ नई नई खाने की चीज़ें भी बनाई है । और उन्हीं ट्राई की हुई नई चीज़ है ये बेकर्स विप का विपिंग क्रीम पाउडर जिससे व्हिपड क्रीम बनाना और आइसिंग करना दोनों बहुत आसान हो गये है । 😝 अब यूँ तो हम केक हमेशा से बनाते रहें है पर कभी आइसिंग नहीं करते थे । क्यूँ ? बता रहें हैं । दरअसल इसके दो तीन कारण है । एक तो पहले कभी ज़रूरत नहीं महसूस हुई । क्योंकि ख़ास मौक़ों के लिये तो बाज़ार से ही केक आता था । और दूसरे हमें आइसिंग करना बड़ा झंझटी लगता था । पहले व्हिपड क्रीम मंगाओ । कभी मिले कभी ना मिले । तो उससे अच्छा है प्लेन केक खा लो । पर अब नहीं । क्योंकि अब हमें आइसिंग करना आसान लगने लगा है । हांलाकि अभी आइसिंग करने में हम पूरी तरह पक्के नहीं हुए है । 😁 असल में कुछ समय पहले हमारी दीदी ने हमें इस के बारे में बताया था तो हमने अमेजॉन से इसे मँगाया । असल में हमने केक के लिये बल्कि क्रीम रोल बनाने के लिये मँगाया था । 😃 चूँकि ये पाउडर है तो इससे क्रीम बनाने में मुश्किल से कुछ दो चार मिनट लगते है और बस आइसिंग के लिये क्रीम तैयार

लो भइया अब यूज़र चार्ज भी दो 😳

आज सुबह सुबह ये ख़बर पढ़ने को मिली कि अब से ट्रेन में यात्रा करने वालों को यूज़र चार्ज भी देना पड़ेगा । अब सिर्फ़ टिकट लेकर ही नहीं बल्कि ट्रेन और स्टेशन को यात्रा के लिये इस्तेमाल करने के लिये यूज़र चार्ज देना पड़ेगा । हद हो गई । वैसे यूज़र चार्ज लगाने के लिये कहा जा रहा है कि अगर अच्छी सुविधायें यात्रियों को देना है तो चूँकि ख़र्चा बढ़ेगा तो इसलिये चार्ज लगाना पड़ेगा । मतलब हर तरह से जनता को ही लूटना है । लगा लो यूज़र चार्ज हम लोग कर ही क्या सकते है सिवाय पैसा देने के । अब जो ना होय सो थोड़ा वाली बात हो गई ।

आरामे बंदिश 😝

इस महीने जब से हमने अपनी हैल्पर को बुलाना शुरू किया तो हमें आरामे बंदिश टाइप वाली फीलिंग आती रहती है । अरे मतलब उसके आने से जहाँ हमें बर्तन धोने से छुट्टी होने से आराम है तो वहीं उसके रहते हम पर बंदिश भी रहती है । किचन में मत जाओ ड्राइंग रूम या डाइनिंग रूम में जाने से परहेज़ करो । अब वो क्या है ना जब सुबह वो आती है तो जितनी देर वो काम करती है उतनी देर हम अपने कमरे में ही रहते है आराम फ़रमाते टाइप से । क्या करें छ फ़ीट की दूरी जो बनानी है लिहाज़ा जितनी देर वो किचन में बर्तन वग़ैरा धोती रहती है तो हम अंदर ही रहते है । और कभी कभी तो लगता है कि उफ़ क्या मुश्किल है कि उसके रहते हम किचन में चाय तक बनाने नहीं जा सकते है । मतलब अगर उसके काम करते चाय पीने का मन हो तो भी नहीं बना सकते है । उसके जाने का इंतज़ार करना पड़ता है । एक बंधन या यूँ कहें अपने ऊपर एक तरह की बंदिश लगी सी महसूस होती है । सुबह और शाम दोनों समय की चाय उसके आने के पहले ही बनाकर कमरे में आ जाते है और जब वो चली जाती है तब ही कमरे से बाहर निकलते है । और उसके रहते जितनी बार कमरे से निकलो तो मास्क से लैस होकर निकलो

चौदह सितम्बर यानि हिन्दी दिवस

हर साल सितम्बर महीने की चौदह तारीख़ को हिन्दी दिवस मनाया जाता है । तो हिन्दी दिवस की शुभकामनायें । यूँ तो हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है पर फिर भी हिन्दी बोलने में बहुत बार लोग झिझकते है । पर क्यों ? शायद कभी ज़रूरत तो कभी सिर्फ़ दिखावे के लिये । वैसे जब हमने २००७ में ब्लॉगिंग शुरू की थी उस ज़माने में बमुश्किल हिन्दी के दो चार सौ ब्लॉगर थे पर आज के समय में हिन्दी ब्लॉगर भी हज़ारों की संख्या में है । जिसे देखकर अच्छा लगता है । हिन्दी में जो एक सबसे अच्छी बात है कि अब इसमें अंग्रेज़ी के बहुत सारे शब्द भी हिन्दी रूपी हो गये है । मतलब अब उनका आम बोलचाल की भाषा में इतना प्रयोग होता है कि वो अंग्रेज़ी के नहीं बल्कि हिन्दी के ही शब्द लगते है । हिन्दी ने उन शब्दों को आत्मसात कर लिया है । वैसे हिन्दी भले चाहे लोग बोलें या ना बोलें पर हिन्दी गाने और हिन्दी फ़िल्में जरूर देखते है । 🤓

स्मार्ट लाइट का ज़माना आया 😜

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स्मार्ट फोन, स्मार्ट टी वी और अब स्मार्ट लाइट । और ये स्मार्ट लाइट फ़िलिप्स ने बनाई है । और ये थोड़ी महँगी भी है । पर ठीक है ना । स्मार्ट लाइट मतलब वाई फ़ाई से कनेक्शन । और हर बार या हर समय लाइट को ऑन या ऑफ़ करने के लिये उठकर स्विच बोर्ड तक जाने की ज़रूरत नहीं है । वैसे काफ़ी समय से इसके बारे में सुनते थे कि अब ऐसी लाइट आती है जिन्हें ऐलैकसा या गूगल को कमांड देकर ऑन और ऑफ़ करा जा सकता है । 😛 पर चूँकि ये हमारे घर में अभी आई है तो हमारे लिये तो ये नई ही है ना । वैसे इसे ख़रीदने का कई बार प्लान भी बना था । पर ख़रीदी अब गई । और अभी तो सिर्फ़ एक ही बल्ब लगाया है । और ऐलैकसा को कमांड देकर लाइट को जलाया ,बुझाया और लाइट के कलर को भी बदला । 😊 और इसमें लाइट के जलने को भी शेडयूल कर सकते है मतलब टाइमर है , उसे धीमी या मध्यम करने की भी सैटिंग है । और इसे ना सिर्फ़ हम बल्कि घर के बाक़ी लोग भी कमांड दे सकते है । और ना केवल घर से बल्कि घर के बाहर रहते हुये भी । और हाँ इसमें डिस्को लाइट भी है । 💃 और हमें ऐसा करने में मतलब ऐलैकसा को कमांड देने में बडा मजा आया था । अब आप कहेंगें

न्यूज़ है या सीरियल

आजकल तो न्यूज़ देखना मतलब अपना दिमाग़ ख़राब करना होता जा रहा है ।  बस कोई एक न्यूज़ मिल जाये इन न्यूज़ चैनलों को और बस फिर क्या सारे दिन बस एक ही बात को कई कई तरह से दिखाते रहते है । शुरू में लगता था कि टी वी की न्यूज़ अखबार वाली न्यूज़ से बेहतर है पर ऐसा पहले तो था पर अब न्यूज़ चैनलों की टीआरपी की दौड़ में अव्वल आने के चक्कर में ये लोग कुछ भी और किसी भी हद तक जा सकते है । धीरे धीरे अब एक बार फिर लगने लगा है कि अखबार और रेडियो न्यूज़ वाला ज़माना ही ठीक था जिसमें रोज कुछ नई ख़बर पढ़ी जाती थी ना कि पूरे दिन क्या पूरे हफ़्ते तक बस एक ही ख़बर देखते और सुनते रहो । ऐसा नहीं है कि पहले सनसनीख़ेज़ ख़बरें नहीं होती थी पर उन ख़बरों से पूरे समय रूबरू नहीं होते रहते थे । ख़बर ख़बर की तरह होती थी । पर आजकल तो टी वी चैनल वाले पूरी तरह से जेम्स बांड बनते जा रहें है । जो सुराग़ कोई ना ढूँढ पाये वो ये लोग खोज निकालते है । हर चैनल अपनी पीठ ठोंकता रहता है ब्रेकिंग न्यूज़ के बहाने और सबसे पहले ख़बर दिखाने का दावा करने के बहाने । हमें तो अब न्यूज़ न्यूज़ कम सीरियल की तरह ज़्यादा लगता है ।

गुरु घंटाल corona

सबसे पहले तो सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  और हमारे सभी शिक्षकों को सादर नमन🙏🙏 शिक्षक मतलब जो आपको शिक्षा दे । और ऐसी शिक्षा की शुरुआत सबसे पहले तो घर से ही होती है। जहां मां पापा बाबा दादी भईया दीदी जो समय समय पर कोई ना कोई शिक्षा देते रहते है जो हमारे जीवन के लिए बहुत अहम होती है । स्कूल और यूनिवर्सिटी जहां शिक्षक हमारी सोच और मानसिकता दोनों को सही दिशा देते है ।  दोस्त जो हमारे मन के अन्दर के बच्चे को हमेशा जिन्दा रखने की शिक्षा देते है । और जीवन जो हमें हर पल एक नया अध्याय पढ़ाता है और हमें उस हर अध्याय को अच्छे से समझ बूझ कर उसकी परीक्षा में पास होते रहना होता है । हां कभी कभी फेल भी होते है। और इस बार तो जीवन ने जितना विकट , कठिन और बड़ा अध्याय दिया है उतना ही जटिल गुरु भी  दिया है ।    Corona  -- जो अध्याय भी है और गुरु भी है जिसे पढ़ते पढ़ाते छ: महीने होने को आ रहे है । पर अभी तक ये ज्यादा कुछ समझ नहीं आया है कि कैसे इसको पढ़ें  । पर फिर भी हम सभी अपनी पूरी कोशिश कर रहे है जीवन के इस पाठ्यक्रम को अपनी अपनी तरह से पढ़ने की ।   यूं तो इसे पढ़ते पढ़ाते हुए छः महीने ह

हमने तो बुला लिया 😛

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हाँ हाँ सही पढ़ रहें है । अब वो क्या है ना कि छठां महीना चल रहा है 😜 और अब सारा काम करना थोडा भारी लगने लगा है । और पिछले यानि पाँचवें महीने में हमने ऊह आह आउच के बारे में लिखा भी था । तो हमने सोचा कि ये ऊह आह आउच कहीं ज़्यादा ना बढ जाये । इसलिये हमने पार्वती यानि कि हमारी हैल्पर (कामवाली ) को आज से वापिस काम पर बुला लिया है । वैसे अभी सिर्फ़ बर्तन ही धुलता रहें है । बाक़ी और कोई काम जैसे डस्टिंग और झाड़ू और खाना वग़ैरा नहीं बनवा रहें है । वैसे उसकी और अपनी दोनों की सुरक्षा का खयाल रखा है । क्योंकि ख़तरा तो दोनों के लिये ही है । और उसके आने के पहले सारे इंतज़ाम भी कर लिये मसलन हैंड सैनिटाइजर और मास्क ख़ास उसी के लिये मँगवाया है और दरवाज़े के पास ही रख दिया है । ताकि जैसे ही वो आये तो पहले हाथ सैनिटाइज कर ले और नया मास्क पहन ले और तब ही किचन में जाये । और काम करके वापिस जाते समय मास्क को नीचे डस्टबीन में डालकर जाये । अभी तो आज पहला दिन था उसका काम का । हो सकता है इतने महीनों बाद काम करने से उसे कुछ परेशानी हो पर हमें जो इतने महीनों से काम

पेड़ पौधों पर भी असर हुआ

जब से लॉकडाउन शुरू हुआ तब थोड़े समय बाद ही प्रकृति में बहुत सारे बदलाव दिखने लगे थे । जैसे नदियाँ और वातावरण स्वच्छ हो गया था । प्रदूषण एकदम ख़त्म हो गया था ।आसमान का नीला रंग साफ़ और सुंदर दिखने लगा था । और इन सबका असर पेड़ पौधों पर ना पड़े । ऐसा कैसे हो सकता है । अभी दो तीन दिन पहले यूँ ही बालकनी से बाहर देखते हुये जब इतने हरे भरे पेड़ देखे तो रहा नहीं गया और हमने फोटो खींच ली । इतने स्वस्थ और साफ़ और हरे पेड़ और बिलकुल चमकती हुई पत्तियाँ देखकर मन ख़ुश हो गया । वरना मार्च में कुछ तो पतझड़ के कारण और ज़्यादा प्रदूषण के कारण पेड़ पौधे बिलकुल बेजान से लगते थे । वैसे इसमें बारिश , कोरोना और लॉकडाउन का भी असर है वरना तो दिन भर चलने वाली गाड़ियों के प्रदूषण के कारण भी पेड़ पौधों पर ख़ासा बुरा असर पड़ता है । अब यूँ तो लोग और गाड़ियाँ वग़ैरा चलने लगी है पर फिर भी अभी सब कुछ बिलकुल पहले जैसा नहीं हुआ है । मतलब कि अभी भी लोग कम ही निकलते है । अभी तो फिलहाल सब कुछ हरा भरा है पर जब सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा तब देखना पड़ेगा कि ये हरियाली कितनी रहती है । यहाँ हम एक २२ मार्च की और

जब हमारे राइस कुकर की क़िस्मत जागी 😜

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हम सही कह रहें है । पता नहीं कितने सालों से हमारा राइस कुकर डिब्बे में पूरी तरह से पैक होकर रखा हुआ था । ज़्यादा नहीं बस सात सालों से । 😆 जब तब सफाई करते हुये इसे भी साफ़ करके दोबारा वहीं अलमारी पर रख देते थे । अब इस्तेमाल क्यों नहीं किया तो वो इसलिये कि हमें लगता था कि राइस कुकर में कुछ भी बनाना बडा झंझटी है । लिहाज़ा बेचारा डिब्बे में बस बंद ही पड़ा रहा । पर वो कहते है ना देर है अंधेर नहीं । 😆 और ये कहावत हमारे राइस कुकर के लिये बिलकुल फ़िट बैठती है । और इस कोरोना काल में राइस कुकर की भी क़िस्मत जाग गई । 😜 ऐसे ही एक दिन विचार आया कि क्यूँ ना राइस कुकर में बिरयानी ट्राई करी जाये । और बस फिर क्या था फटाफट राइस कुकर को अलमारी से उतारा गया और धो धाकर बिरयानी बनाने की तैयारी शुरू की गई । वैसे राइस कुकर में कम घी में भी बिरयानी बन जाती है । ये भी हमने पहली बार जाना । कम घी इसलिये कहा क्योंकि हम सभी जानते है कि बिरयानी बनाने में बहुत घी डालना पड़ता है । वरना वो सरकउंया बिरयानी ( मतलब खाते जाओ ) नहीं बनती है ।😛 पर खैर पहली बार कम घी और कम मेहनत मे लज़ीज़ बिरयानी तैयार