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Showing posts from July, 2020

अच्छा हुआ जो हम पहले ही पढ़ चुके

कोरोना काल में बडे बडे बदलाव हो रहें है । अब कल शिक्षा नीति में बहुत बड़ा बदलाव किया गया है । अब अच्छा या बुरा ये तो बाद में ही पता चलेगा । पता तो क्या ही चलेगा जो हो गया सो हो गया । अब हम लोगों के समय में साइंस , आर्टस और कॉमरस अलग अलग स्ट्रीम मानी जाती थी और हमारे बेटों ने भी इसी तरह से दसवीं और बारहवीं में पढ़ाई की थी । पर अब नई शिक्षा नीति के तहत अब कोई भी स्ट्रीम से पढ़ाई करो , सब बराबर है । वैसे साइंस वालों को पहले बहुत गुमान होता था कि हम साइंस साइड से है पर इस शिक्षा नीति ने सबको बराबर कर दिया ।😊 अब हम लोगों के समय में ग्रेजुएशन दो साल में और पोस्ट ग्रेजुएशन दो साल का होता था हालाँकि हमारे समय में ज़ीरो ईयर हो गया था जिसकी वजह से एक साल एक्स्ट्रा लगा था । 🤓 पर ऐसा हमेशा नहीं होता था । पर फिर कुछ साल बाद ग्रेजुएशन तीन साल और पोस्ट ग्रेजुएशन दो साल का हुआ मतलब पाँच साल का । और अब नये नियम से ग्रेजुएशन चार साल का होगा और मास्टर्स एक साल का मतलब ये भी पाँच साल का होगा पर ग्रेजुएशन में एक साल बढ़ा दिया गया है । पता नहीं क्यों ? अब बच्चे पढ़ाई के दौरान ब्रेक ले

कभी कभी नाम से भी धोखा हो जाता है 😳

ओ बाबा कॉमन नाम होना भी कभी कभी परेशानी का सबब बन सकता है ये पहली बार जाना । अब जुड़वा भाई - बहन में तो सुना है कि एक ग़लती करता है तो डाँट दूसरे को पड़ती है । पर एक सा नाम होने पर भी ऐसा कुछ हो सकता है । कभी सोचा ना था । 🤓 हाल ही में हमारे साथ एक ऐसा ही वाक्या हुआ । दरअसल हम एक ग्रुप के मेंबर है जहाँ हमारे ही नाम की किसी ने कोई अंडर बंडक मतलब कोई बहुत ही ख़राब पोस्ट ( आपत्तिजनक ) लिखी और ग्रुप में सबमिट की । पर उस ग्रुप के सभी एडमिन काफ़ी सतर्क और सचेत रहते है और कोई भी पोस्ट उनके अप्रूव्ड हुये बिना ग्रुप पर नहीं दिखती है ।तो वो पोस्ट तो ग्रुप पर नहीं आई पर ..... रात में हमे एक मैसेज मिला कि आपने फ़लाँ फ़लाँ पोस्ट लिखी है और आपसे अनुरोध है कि आप इस तरह की पोस्ट ना लिखें और ना ग्रुप पर भेंजें क्योंकि इस ग्रुप पर इस तरह की पोस्ट नहीं लगती है । और आगे हमारे ब्लॉग की तारीफ़ भी की । और कुछ विषयों पर ग्रुप पर लिखने के लिये भी कहा । पहले तो मैसेज पढ़कर हमें समझ नहीं आया । बहुत सोचा कि अभी पिछले कुछ दिनों में हमने उस ग्रुप पर क्या लिखा है पर कुछ आपत्तिजनक लिखा हो ऐसा हमें य

ब्रीद इन टू द शैडोज ( breathe : into the shadows)

कल हमने ब्रीद इन टू द शैडोज देख लिया । वही अभिषेक बच्चन वाला शो जो अमेजॉन पर दिखाया जा रहा है । वैसे हमने पहले वाला ब्रीद जिसमें माधवन था , नहीं देखा था । पहले एपिसोड में ही अच्छा नहीं लगा था । वो थोडा ज़्यादा ही वीभत्स लगा था । पर खैर ये वाला हमने पूरा देख लिया । हाँ थोड़ी बहुत मारकाट इसमें भी है पर इतनी कि आराम से देखी जा सकती है । और आजकल के चलते ट्रेंड से जरा अलग मतलब कोई गाली गलौज वग़ैरा नहीं । ( जहाँ डायलॉग के बदले पूरी पूरी लाइन में सिर्फ़ गाली ही बोली जाती है । ) हमने एक दिन में नहीं तीन चार दिन में ये पूरा शो देखा क्योंकि एक तो बारह एपिसोड और वो भी चालीस पैंतालीस मिनट के । तो एक दिन में दो एपिसोड से ज़्यादा देख ही नहीं पाते थे । शुरू के एपिसोड में तो शो ठीक ठाक लगा पर आख़िर के तीन चार एपिसोड बहुत अच्छे लगे । सभी कलाकारों ने ठीक काम किया है । अभिषेक बच्चन और अमित साद की कहीं अच्छी तो कहीं बुरी एक्टिंग है । पर ओवरऑल दोनों ने ठीक ही काम किया है । पर हाँ नित्या मेनन की एक्टिंग हमें बहुत पसंद आई । कह सकते है कि ये एक साफ़ सुथरी थ्रीलर सीरीज है । और ये भी कि बिना बह

चौथा महीना पूरा हो गया

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आज चौथा महीना भी पूरा हो गया । अब ये मत कहियेगा कि क्या दिन और महीना गिन रही हो । अब क्या करें महीना ना गिने तो पता कैसे चले कि कितने दिन हो गये है । 😃 पर ये कोरोना तो जाने का नाम ही नहीं ले रहा है । सच में अब तो कभी कभी मन करता है कि इसे डंडा लेकर दौड़ाया जाये । पर ऐसा हो नहीं सकता है । पर सोचने में क्या जाता है ।😇 कल शाम को हम अपनी सोसाइटी की एक फ़्रेंड से मिलने नीचे गये पर दस मिनट बाद ही लगा कि बात करना तक मुश्किल हो रहा है । कहीं बैठो तो कोरोना के चिपकने का डर रहता है । ज़्यादा देर मास्क पहने रहो तो साँस फूलने लगती है और ज़्यादा दिन ना मिलो तो मन । ख़ुशी ख़ुशी काम तो कर ही रहें है पर उसमें भी कभी कभी लगता है कि उफ़ कब तक । चमकते बर्तन और घर देखकर खूब ख़ुश भी होते है । पर फिर भी कभी कभी दिल पूछता है आख़िर कब तक । कोई नहीं कोरोना नहीं जा रहा है तो कोई बात नहीं । सब कुछ अपने समय पर ही होता है । चलिये चौथा महीना पूरा होने की ख़ुशी में एक नहीं दो सेल्फ़ी हो जाये । 😁

एक्स्ट्रा टायर नहीं पंक्चर रिपेयर किट

सही पढ़ रहे है कि अब से कार में एक्स्ट्रा स्टेपनी नही बल्कि पंक्चर रिपेयर किट होगा । और सभी टायर में एक तरह का प्रेशर मॉनिटरिंग सिस्टम होगा जिससे कार चालक को टायर की हवा के दबाव के बारे में पता चलता रहेगा । ऐसा भारत सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि ये सड़क सुरक्षा के लिये उपयोगी होगा । और जिन कारों में ये टायर मॉनिटिरिंग सिस्टम और टायर रिपेयर किट स्पेयर होगा उनमें स्टेपनी की ज़रूरत नही होगी । वैसे पंक्चर का कोई एक कारण तो होता नहीं है । आम तौर पर पंक्चर कोई कील या शीशा वग़ैरा टायर में लगने से होता है । तो मतलब कि अगर आपकी कार में पंक्चर हो जाये तो पहले आप ख़ुद ही टायर निकालो और फिर बैठकर पहले पंक्चर बनाओ फिर वापिस टायर लगाओ और तब कार चलाओ । जहाँ तक हमारा खयाल है कि स्टेपनी रहने से ये आराम रहता है कि अगर कहीं भी रास्ते में टायर पंक्चर हुआ तो बस स्टेपनी निकालो और टायर बदल लो । ( ख़ासकर जब हाई वे पर जा रहें हों तो ।) और फिर पंक्चर टायर को कहीं से भी रिपेयर करवा लो । वैसे टायर बदलना ही कौन सा बड़ा आसान होता है कि अब लोग टायर का पंक्चर भी बनायें । वैसे आत्म निर्भर बनने की ओ

touchless key for lifts and doors

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आजकल कोरोना के चलते हर तरह की सावधानी बरती जा रही है । अब जब भी हमें लिफ़्ट का इस्तेमाल करना होता है तो हम साथ में टिशू पेपर और हैंड सैनिटाइजर लेकर चलते है । पर अब हमें ऐसा करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि हमारे पास अब टचलेस की है । 😜 अभी चार पाँच दिन पहले ही मँगाई है । ये ब्रास की है तो एक तो ये सेफ़ है और दूसरे इसमें जंग और करेंट वग़ैरा लगने का ख़तरा भी नहीं है । और इसपर किसी भी तरह के जीवाणु ( कोरोना वायरस भी ) ज़्यादा देर तक नहीं टिकते है । तो इस लिहाज़ से भी ये सेफ़ है । और लिफ़्ट वग़ैरा चलाने के लिये तो बहुत बढ़िया है । हाँ दरवाज़ा खोलने में इसके इस्तेमाल की अभी थोड़ी आदत डालनी पड़ेगी । 😊 इसमें सबसे अच्छी बात ये लगी कि ये बहुत भारी भरकम नहीं है । हल्की सी है बिलकुल दूसरी चाबियों की तरह । और इसे लेकर चलने में कोई दिक़्क़त नही है । और घर आकर इसे बडे आराम से सैनीटाइज भी कर सकते है । इसको रखने के लिये एक छोटा सा पाउच भी है । तो अब नीचे जाने के लिये बस मास्क लगाया और ये टचलेस की ली और चल दिये । 😊

आख़िरकार गरजत बरसत सावन आओ रे

इतने दिन से इंतज़ार करते करते आख़िरकार आज सावन के आने का एहसास हो रहा है । अरे पहले तो जब देखो रात के अंधेरे में गरज बरस कर चले जाते थे । पर आज जम कर बरस रहे है । 😊 हम जब छोटे थे तो जब बादल गरजते और बरसते थे तो हम लोग बोलते थे बरसों राम धड़ाके से आज तो वैसी ही बारिश हो रही है और सारे बरसात वाले गाने भी मन में आ रहें है । आज पहली बार लग रहा है कि हाँ दिल्ली में मानसून मतलब सावन आया है । वरना अब तो सावन ख़त्म होने में गिने चुने दिन ही बचे है । वैसे दिल्ली या यूं कहें कि अब तो किसी भी शहर में जरा ज़्यादा बारिश हुई नहीं कि बस हर तरफ़ पानी ही पानी भर जाता है । जिससे और सदियों तरह की समस्यायें खड़ी हो जाती है । सड़कों पर कारें बसें वग़ैरह पानी में फँस जाते है । लोगों को आने जाने में दिक़्क़त का सामना करना पड़ता है । वैसे आजकल तो लोग थोडा कम ही बाहर जा रहें है तो फिलहाल इस सुहावने मौसम का आनंद लेते है । ⛈☔️ वैसे पोस्ट लिखते लिखते बारिश रुक गई है ।😄

फ़्यूशिया पिंक 😜

डिस्क्लेमर -- महज़ पोस्ट समझें अन्यथा ना लें ।🙏🙏 अब आज के फैशनेबल समय में भले ही इसे फ़्यूशिया पिंक कहा जाये पर हम लोग जब बहुत छोटे थे तो ऐसे गुलाबी रंग को सुशीला पिंक कहते थे । 😃 अब इसके पीछे की कहानी कुछ ऐसी कि कोई सुशीला नाम की महिला ने चटक गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी । तो बस हम लोगों ने बस मस्ती में इस रंग का नाम सुशीला पिंक रख दिया । अब वो क्या है कि हम लोगों के शहर में हमारे घर के पास जब भी कोई मेला वग़ैरा लगता था तो इस तरह के गुलाबी रंग की साड़ी और कपडें में औरतें और लड़कियाँ बहुत नज़र आती थी । हम लोग अपनी छत पर बैठकर इन सुशीला पिंक को गिना करते थे । क्योंकि ये रंग दूर से चमकता हुआ दिख जाता था । 😛 वैसे बाद में हम लोगों ने ये कहना छोड़ दिया था और उसकी वजह थी कि हम लोगों के बहुत ही क़रीबी जानने वालों में दो लोगों के नाम है । 🙏🙏

उड़ने वाली कार

आज एक बडी ही मज़ेदार ख़बर पढ़ी कि अगले कुछ सालों में ओला और उबर उड़ने वाली कारें ( फ़्लाइंग टैक्सी ) बना देंगे । जो लोगों को उनके घर या ऑफ़िस से पिक करके उन्हें उनके गंतव्य पर छोड़ेगी । इस ख़बर को पढ़ते ही चाचा चौधरी की याद आ गई । जब हमारे बेटे छोटे थे तो वो चाचा चौधरी की कॉमिक्स पढ़ा करते थे । उन्हीं में से किसी एक कॉमिक्स में उड़ने वाली कार की कहानी थी । पूरी तरह से तो याद नहीं है पर उसमें चाचा चौधरी और साबू उड़ने वाली कार में सवार होकर विलेन का पीछा करते है और विलेन की उड़ती हुई कार एक बड़ी सी होर्डिंग से टकरा जाती है और वो पकड़ा जाता है । ऐसा ही कुछ था । और तब हम लोग दिल्ली के ट्रैफ़िक को देखकर कहते थे कि यहाँ भी उड़ने वाली कार आ जाये तो ट्रैफ़िक से छुट्टी मिले । वैसे कई इंगलिश फ़िल्में है जिनमें इस तरह की उड़ती हुई कारें वग़ैरा दिखाई जाती है । नाम नहीं याद आ रहा है । एक ब्रुस विलिस की ऐसी फ़िल्म देखी थी । 🤓 पर अब तो सच में ही ऐसी उड़ने वाली कारें आने वाली है । चलो हो सकता है सड़क पर तब कुछ ट्रैफ़िक कम हो जायेगा पर तब कहीं आसमान में इन उड़ने वाली कारों से ट्रै

संडे बारिश पकौड़ी और हम 😃

इस साल पता नहीं कैसे बारिश हो रही है । कभी आधी रात को होती है और कभी सुबह पाँच बजे होती है । जब तक जागो बारिश ग़ायब । 😛 हम बेचारे रोज बारिश होने के समय पकौड़ी खाने का मजा़ लेना चाहते है पर इस बार जब बारिश होती है तो पकौड़ी नहीं और जब पकौड़ी बनती है तो बारिश नहीं । आज भी सुबह छ: बजे धुँआधार बारिश हो रही थी तो हमें लगा कि चलो आज संडे भी है बारिश भी है तो पकौड़ी का पूरा मजा़ मिलेगा । पर जो हम सोचते हैं वो कहां होता है । 😬 आज भी वही हुआ सुबह बारिश देखकर पकौड़ी की तैयारी कर ली । पर जब तक हमने पकौड़ी बनाई बारिश हमारे यहाँ से रफ़ू चक्कर हो गई । तो आज एक बार फिर बिना बारिश के हमने पकौड़ी खाई । 😂

कोरोना क्या आया कि बाक़ी सब ग़ायब

मार्च में जब से कोरोना अपने देश में फैला तब से बाक़ी बीमारियॉं एक तरह से ग़ायब सी हो गई है । बीमारियाँ ग़ायब हुई है या फिलहाल बैक सीट पर है कहना मुश्किल है । वैसे कोरोना के डर के चलते ना तो हम लोग किसी भी तरह के टेस्ट करा रहे है जो पहले हर छ: महीने पर कराते थे ( और जो कराने भी है ) और ना ही किसी अस्पताल में जाने की हिम्मत कर पाते है । फिलहाल तो भगवान की कृपा से सब ठीक ठाक चल रहा है पर कभी कभी कुछ दूसरे ग्रुप पर लोग ऐसे सवाल पूछते रहते है कि क्या हॉस्पिटल जाना सेफ़ है । और तब ज़्यादातर लोग यही सलाह देते है कि अगर बहुत ज़रूरी ना हो तो हॉस्पिटल मत जाओ । डाक्टर से फोन पर बात कर लो वग़ैरा वग़ैरा । पर कोरोना ने ऐसा कर दिया है कि बाकी सब बीमारियाँ बिलकुल बैक सीट पर चली गई हैं ।

ग्लो एंड लवली

कुछ समय पहले तक जो क्रीम फ़ेयर एंड लवली नाम से जानी जाती थी अब उसका नाम बदल कर ग्लो एंड लवली कर दिया गया है । पता नहीं कितने लोग इस क्रीम को लगाकर गोरे हुये होंगें । पर जब बिकती है तो लोग इस्तेमाल भी करते ही होंगें । पहले तो जब फ़ेयर एंड लवली के एड आते थे तब उसमें एक बहुत ही डार्क कॉम्पलैक्शन या यूँ कहे कि काली लड़की को दिखाते थे जो इंटरव्यू ( या ऑफ़िस )के लिये जाती है तो लोग उसे अजीब सी नज़रों से देखते है और वो उदास सी घर आती है और आईने में अपने को देखती है । फिर वो फ़ेयर एंड लवली इस्तेमाल करती है और छ: हफ़्ते के बाद वो एकदम गोरी हो जाती है । और जब दोबारा वो जाती है तो लोग उसकी गोराई देखते ही रह जाते है । पर क्यूँ गोरी होना ? क्या डार्क कॉम्पलैक्शन में कोई बुराई है । हमें तो ऐसा कभी नहीं लगा और ना ही कभी किसी ने इस बात का एहसास कराया । बल्कि हम लोगों के समय में तो ये गाना भी बड़ा पॉपुलर था -- हम कोले हैं तो क्या हुआ दिलवालों है । 😃 और गोरे लोगों के लिये भी गाना बड़ा पॉपुलर था -- गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर । 😁 तो इसी फ़ंडे को फ़ॉलो करते हुये हम कभी भी इस चक्कर में नह

ऊह आह आउच

आजकल काम करते करते यही हाल हो रहा है ।😘 जहाँ जरा सा कंधे पर दबाओ तो फट से आवाज़ निकलती है ऊह । पैर को जरा दबाओ तो आह की आवाज़ निकलती है और कमर को तो जब हाथ लगाओ तो आउच की आवाज़ निकलती है । 😝 ( बिलकुल धक धक वाले गाने की स्टाइल में ) 😂 यूं तो कोरोना ने काम में काफ़ी पक्का कर दिया है । पर फिर भी हम जो इतने आराम परस्त थे तो कभी कभी काम करते करते ऊह आह आउच के चक्कर में फँस ही जाते है । अब अपना तो ऐसे ही ऊह आह आउच करते करते काम धाम हो रहा है । आप लोगों का पता नहीं । 😁 क्या आपको भी ये ऊह आह आउच वाली फीलिंग आती है । 🤓

अब भला ये भी कोई डे है 😳😜

नहीं है हमें भी पता है पर आज सुबह सुबह हमारी एक किटी मेंबर ने कुछ ऐसी ही पोस्ट ग्रुप पर लगाई । 😳 आम तौर पर हम मोबाइल सब काम निपटाकर ग्यारह बजे या उसके बाद ही मोबाइल देखते है । पर आज सुबह एक्सरसाइज़ का मन नहीं था तो यूँ ही मोबाइल उठाया तो हमारे किटी ग्रुप पर पहला मैसेज देखा । शुरू हुई पोस्ट तो एक सीढ़ी सी बनी थी और लिखा था नीचे मत जाना , पर हम माने नहीं और नीचे जाने लगे । 🤓 वैसे पता था कि अंत में कुछ फनी ही होगा पर फिर भी हमने पूरी पोस्ट पढ़ी और अंत तक जाते जाते हँसी आने लगी । और अंत में लिखा था कि आज पागल डे है । वैसे कोरोना ने तो हम सबको काम करा करा के पागल बना ही दिया है । लिहाज़ा एक दिन क्या आजकल तो रोज ही पागल डे मन रहा है । 😂

क़िस्सा ऐ सरकार

आजकल कोरोना की ख़बर के साथ साथ पूरे समय राजस्थान की ख़बरें भी दिखाई जा रहीं है । वैसे हम कोई राजनीति के ज्ञाता तो नहीं है पर थोड़ी बहुत समझ आती है । अजीब तरह की राजनीति आजकल होने लगी है । एक अच्छी खासी चल रही सरकार को कुछ लोग अचानक गिराने की कोशिश करते है । और सफल भी हो जाते है । नेताओं का पहले तो फिर भी कुछ ईमान धर्म होता था पर आजकल के नेता तो बस । जहाँ चंद करोड़ दिखे बस उधर ही चल पड़े । पहले तो ख़रीद फ़रोख़्त छुपा छुपी होती थी पर अब तो जग ज़ाहिर रहती है । आजकल तो राजनीति बिलकुल मंडी की तरह होती जा रही है । जो ज़्यादा बोली लगा ले । वो चाहे मध्य प्रदेश हो या राजस्थान । क्या सिंधिया क्या पायलेट । सब मौक़ा परस्त । और मजे की बात कि इस सरकार गिराने और बचाने में सारे नेता कोरोना को बिलकुल ही भूल जाते है । ना किसी को कोरोना का डर ना ही सोशल डिटेंसिंग ।

सावनी पोस्ट

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जी हाँ आज की हमारी पोस्ट कुछ कुछ सावनी टाइप की है । अब फिलहाल हमारे यहाँ सावन में बारिश की थोड़ी आंखमिचौली सी चल रही है । अब बरसते भी है तो आधी रात में जब बारिश का मजा भी ना ले पायें । 😏 अब सावन शुरू होते ही हर ग्रुप पर सावन ,घेवर और अनरसा की बातें होती रहती है । पिछले हफ़्ते हमारी दीदी ने अनरसा की गोली बनाई और ग्रुप पर फोटो लगाई । देखने में इतने सुन्दर लग रहे थे कि हमें भी बनाने का मन कर गया । वैसे हमें याद नहीं कि आख़िरी बार हमने कब अनरसा की गोली खाई थी पर हाँ घेवर तो जरूर हर साल सावन में हम ख़रीद ही लाते थे । पर इस कोरोना ने तो वो सुविधा भी छीन ली है । अब आजकल तो बाज़ार की मिठाई वग़ैरा तो बंद है तो ज़ाहिर सी बात है कि अगर खाना है तो ख़ुद ही बनाओ । वैसे हमें घेवर बहुत ज़्यादा पसंद नही है क्योंकि बहुत घी घी सा होता है । पर जब ख़ुद बनाया तो खाने में बड़ा मजा आया । 😋 जी हाँ हमने घर पर घेवर बनाया । 😁 हमने सोचा कि जब सभी तरह की मिठाई बनाने की कोशिश कर रहें है तो फिर घेवर भी बना ही लेते है । 😃 बनाने में आसान भी है और मुश्किल

अमिताभ बच्चन को भी कोरोना हुआ

आज सुबह से ही ये ख़बर हर तरफ़ से आ रही है कि अमिताभ बच्चन भी कोरोना से संक्रमित हो गये है । खबर सुनकर लगा कि अरे ऐसा कैसे हो सकता है । और अमिताभ बच्चन ने ख़ुद भी ये बात कही है कि वो कोरोना पॉज़िटिव हो गये है । कोरोना का भी कुछ पता नहीं है कि कब किसे कहाँ और कैसे पकड़ लेगा । कल जहाँ एक तरफ़ धारावी में कोरोना पर क़ाबू पाने की अच्छी ख़बर आई थी कि किस तरह मुम्बई के धारावी जो बहुत घनी आबादी वाली जगह है वहाँ शुरू में कोरोना के केस काफ़ी आये थे पर फिर वहाँ कैसे टेस्टिंग वग़ैरा करके कोरोना पर कंट्रोल पाया गया है । अभी अच्छी ख़बर आये ज़्यादा समय नहीं हुआ था कि अमिताभ और अभिषेक बच्चन के कोरोना से संक्रमित होने की ख़बर आ गई । उम्मीद करते है कि दोनों जल्द ही ठीक और स्वस्थ हो जायेंगें ।

भला हो ऑनलाइन शॉपिंग का

इस कोरोना के कारण घर से निकलना तो बंद है ही और वो वाली सारी शॉपिंग भी बंद है मतलब जिसमें बाक़ायदा बाज़ार जाकर चार -छे दुकानों पर घूमकर और अच्छे से देख परख कर ख़रीदारी करते थे । कई बार हम सोचते है कि अगर ऑनलाइन शॉपिंग ना होती इस समय तो हम लोग क्या करते और कैसे रहते । पर इस कोरोना काल में ये ऑनलाइन शॉपिंग ही एकमात्र सहारा था और है जिसमें राशन से लेकर फल -सब्ज़ी , कपड़े से लेकर चादर , और जितने भी इलैक्ट्रॉनिक सामान ( गैजेट ) वो चाहे छोटू ( वैक्यूम क्लीनर ) हो या ओवन ही क्यूँ ना हो । हम जो हमेशा घर में सबको ऑनलाइन शॉपिंग करने पर टोका करते थे पर अब हम ख़ुद ही सारी चीज़ें ऑनलाइन मंगाने लग गये है । हमें हमेशा लगता था कि कपड़े वग़ैरा तो देखकर ही लेना चाहिये पर इस कोरोना ने हमारी वो सोच भी बदल दी । 😜 अब तो हम भी धड़ल्ले से कुछ भी मँगा लेते है । और मज़े की बात की अभी तक कोई भी सामान ख़राब नहीं निकला है । 😃 इस कोरोना और लॉकडाउन वग़ैरा के चलते तो बाहर जाना छूट ही गया है और अब इस ऑनलाइन शॉपिंग की वजह से बाजार जाने की भी आदत छूट जायेगी । 😊

मैचिंग मास्क का कल्चर

कोरोना के चलते मास्क सबसे ज़्यादा पॉपुलर हो रहा है । पहले तो कभी भी कोई मास्क में नज़र नहीं आता था पर अब कोई बिना मास्क के नज़र नहीं आता है । पर जब हम लोग जापान घूमने गये थे तो वहाँ लोग अलग अलग तरह का मास्क लगाये नज़र आते थे । जो हम लोगों को देखने में अजीब लगा था । तो पूछने पर कि यहाँ लोग मास्क लगाकर क्यूँ रहते है । हम लोगों की गाइड ने बताया था कि वहाँ अगर किसी को जरा सा भी सर्दी ज़ुकाम होता है तो वो मास्क पहनकर ही बाहर निकलता है । ताकि दूसरे लोगों को इनफ़ेक्शन ना हो । और ना केवल बडे लोग बल्कि छोटे छोटे बच्चे भी मास्क लगाते है अगर उन्हें खाँसी ज़ुकाम होता है तो । खैर पहले तो अपने यहाँ मास्क कल्चर था नही पर अब तो कम्प्लसरी हो गया है । तो भला कपड़े बनाने और बेचने वाली कम्पनियाँ कहाँ पीछे रहती । आजकल सूट और कुर्ते से मैचिंग मास्क मतलब जो कुर्ते का प्रिंट डिज़ाइन वहीं मास्क में भी मिल रहा है । 😊 जैसे लहरिया , वाग प्रिंट , राजस्थानी प्रिंट , प्लेन मास्क और प्रिंटेड मास्क जिसमें फूल पत्ती से लेकर कुछ भी बना होता है । बच्चों के लिये कार्टून फ़िगर वाले मास्क । मतलब जैसा च

क्या जजमेंट है 😳

कभी कभी ऐसे अजीब से जजमेंट सुनने को मिलते है कि समझ नहीं आता है कि क्या कहें अपनी न्याय पालिका को । तलाक़ के बहुत तरह के जजमेंट और ऑर्डर दिये गये है पर पिछले हफ़्ते एक जरा अजीब सा जजमेंट आया जिसमें पति को पत्नी से सिर्फ़ इसलिये तलाक़ मिल सकता है क्योंकि पत्नी सिंदूर और चूड़ी नहीं पहन रही थी या पहनना चाह रही थी । अब आज की पीढ़ी तो छोड़िये हमारी वाली पीढ़ी ने भी ना जाने कब से इन सब चीज़ों को लगाना और पहनना कम कर दिया है । तो क्या हम ....... 😃 समझ गये । अब इन सब चीज़ों से ही शादीशुदा होने को जोड़ा जाय ये आज के ज़माने में कहाँ तक न्याय संगत है । ठीक है हमारे हिन्दू धर्म में ये सब पहनना सुहाग की निशानी मानते है पर सिर्फ़ इस बात पर पति पत्नी को तलाक़ दे सकता है । ये बात समझ से परे है ।

सावन आया झूम के , अरे कहाँ

पहले तो सावन मास शुरू होने की शुभकामनायें । परसों की बारिश देखकर लग रहा था कि सोमवार को हम कहेंगें आया सावन झूम के । पर बादलों ने कहा ज़्यादा ख़ुश होने की ज़रूरत नहीं है और वापिस चले गये । और बेतहाशा गरमी कर गये । 😏 अब तो सावन में बस यही रहता है कि बस अच्छी बारिश होती रहे । वरना एक ज़माना था जब बारिश का अपना एक अलग अंदाज हुआ करता था । पुराने ज़माने में ना जाने कितने गाने बारिश और सावन पर बने है । हालाँकि आजकल ऐसे गानों का भी कुछ अभाव सा हो गया है । अब इस कोरोना काल में तो क्या सावन क्या भादों । सब एक बराबर है । वरना सावन में होने वाली किटटी में भी सावन की थीम का होना और सबका हरा रंग पहनना मेंहदीं , चूड़ी और फ़ुल ऑन हरियाली बनकर किटटी में जाना । 😃 और इस बार तो सावन में पड़ने वाली किटटी भी वर्चुअल होने वाली है । इसमें कितना भी सजधज लो पर वो बात नहीं आती है । पर फिलहाल तो इसी वर्चुअल तरीक़े से ही जुड़े रह सकते है । अब इस सावन में तो मेंहदी भी खुद से ही लगानी पड़ेगी । 😫 हाँ बस सावन और बारिश में जो एक बात नहीं बदलती है वो है चाय -पकौड़ी । इधर बारिश शुरू हुई और उधर चाय

गुरू पूर्णिमा

आज गुरू पूर्णिमा है तो पहले तो सबको गुरू पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनायें । और हमारे सभी गुरूओं को प्रणाम । 🙏🙏 गुरू कौन -- वो जो हमें ज्ञान दे और ग़लत सही की पहचान कराये । गुरू हर वो है जो आपको कुछ ना कुछ सिखाता रहता है फिर वो चाहे समय हो या कोरोना हो । कोरोना जिसने जीवन का फ़लसफ़ा ही बदल दिया ।  अब जैसे जीवन और जिंदगी चलते रहते है वैसे ही हम सब पूरे समय कुछ ना कुछ सीखते ही रहते है । समय समय पर हमारे गुरू बदलते रहते है क्योंकि जीवन भी तो निरंतर बदलता ही रहता है ।  कहने की ज़रूरत नहीं है कि सभी बड़ों ने जो पग पग पर किसी ना किसी रूप में हमारे गुरू रहे है जैसे मम्मी पापा ,अम्माजी पापाजी , भइया - दीदी लोग ,दोस्त और हमारे सभी शिक्षकों ने हमेशा हमारा मार्गदर्शन किया है । वैसे गुरू की लिस्ट में हमारे नये गुरूओं को कैसे छोड़ सकते है और वो है हमारे पतिदेव और बेटे जिन्होंने ठोंक ठोंक कर हमको टैक सैवी बनाया है । 😂 और आजकल के सबसे बडे गुरू कहें कि गुरू घोटाले कहें -- वो है गूगल बाबा । चाहे कोई भी समस्या हो गूगल बाबा के पास उसका हल जरूर रहता है । और बिलकुल इंस्टैंट जवाब मिलता है ।

नो टच नो कॉन्टैक्ट

आजकल कोरोना के कारण कोई भी ऑनलाइन सर्विस हो या कोई और तरह की सर्विस हर कोई नो टच नो कॉन्टैक्ट पॉलिसी को फ़ॉलो कर रहा है । अमेजॉन तो अपने एड में भी दिखाता है नो कॉन्टैक्ट । और इस नो टच और नो कॉन्टैक्ट से हमें वो पुराना ज़माना याद आ रहा है जब हम लोगों की दादी इस तरह किया करती थी और तब हम लोग बहुत ग़ुस्सा करते थे कि दादी ऐसे क्यूँ करती है । दादी दिन में दो बार तो जरूर ही नहाती और पूजा करती थी । पर अगर कोई छू जाये तो वो फिर से नहाती थी और पूछने पर कहती कि फ़लाँ से हम छुआ गये है । या फ़लाँ ने हमको छू लिया । हम लोगों के पास एक डॉगी था और दादी को उसे छूना और प्यार करना अच्छा तो लगता था पर हर समय वो उसे नहीं प्यार करती या छूती थी । बस वो उसे सिर्फ़ नहाने के पहले ही छूती थी । 😊 दादी की रसोई में कोई घुस नहीं सकता था । कोई सामान आता था तो हमेशा कहती थी वहीं सामान धर दा और जा । फिर वो सामान को थोडा शुद्ध करके उठाती थी और फिर इस्तेमाल करती थी । और बहुत शुरू में ना केवल हमारी दादी बल्कि हमारी मम्मी भी ये सब बहुत मानती और करती थी । वो तो बाद में धीरे धीरे मम्मी ने सब कुछ थोडा छोड़ा था पर

अच्छे फल और सब्ज़ियाँ का मिलना

अब यूँ तो कोरोना से बुरा कुछ हो नहीं सकता है पर इस कोरोना के चलते आजकल बेहद उम्दा फल और सब्ज़ियाँ बाज़ार में मिल रही है । आजकल हर तरह की बेस्ट क्वालिटी की सब्ज़ियाँ और फल हिन्दुस्तान के बाज़ार में उपलब्ध है । और अच्छे फल सब्ज़ी ना केवल बाज़ार में बल्कि आजकल तो ऑनलाइन ऑर्डर करने पर भी होम डिलीवरी हो रही है । अब कोरोना के कारण हम लोगों का बाहर जाना तो हो नहीं रहा है पर हमारे यहाँ ऑनलाइन ऑर्डर करने पर ( फिर वो चाहे बिग बास्केट हो या फिर स्पार हो ) भी खूब अच्छी सब्ज़ियाँ वग़ैरा आ रही है । जबकि पहले जब भी सब्ज़ी और फल मँगाते थे तो कुछ ना कुछ ख़राब ही निकल जाता था । जैसे टमाटर या तो बहुत पके या थोड़े कच्चे से आते थे । फूल गोभी वग़ैरा तो अकसर गड़बड़ होती थी । जिसके कारण हमने ऑनलाइन फल सब्ज़ी मंगाना बंद कर दिया था । पर आजकल क्या बढ़िया टमाटर ,गोभी ,गाजर ,भिंडी ,करेला यहाँ तक की पालक भी बहुत ही बढ़िया मिल रही है । और फल भी लाजवाब वो चाहे आम हो लीची हो पल्म हो या ख़रबूज़ा और तरबूज ही क्यूँ ना हो । कहने का मतलब है कि कोरोना और लॉकडाउन ने भले ही हम लोगों को घर में बंद कर दिया है

आर्या ( वेब सीरीज़ )

कुछ तीन चार दिन पहले हॉटस्टार पर आर्या देखी जिसमें सुष्मिता सेन और चन्द्रचूड़ सिंह है । दोनों ही कलाकार काफ़ी अरसे बाद दिखाई दिये । वैसे तो नाम से ही पता चलता है कि कहानी आर्या पर ही होगी । हीरोइन प्रधान सीरीज है कि कैसे उसकी लाइफ़ अचानक से बदल जाती है । और कैसे वो अपनी फ़ैमिली को प्रोटेक्ट करती है । और ये सब करने में उसे कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है । पर इस सीरीज़ में एक अजीब बात हमें ये लगी कि कहने को तो ये थ्रीलर है पर कहीं कुछ भी सस्पेंस नहीं है । सब कुछ बिलकुल प्रिडिक्टेड सा है । यहाँ तक की आख़िरी सीन भी । सीन शुरू होने के साथ ही समझ आ जाता है कि अब कुछ गड़बड़ होने वाला है या फ़लाँ मर जायेगा । हो सकता है हमारा ज़्यादा फ़िल्में और सीरीज़ देखने का नतीजा है । 🤓 पर हाँ सुष्मिता सेन ने एक्टिंग जरूर अच्छी करी है । और उसी की वजह से ये सीरीज़ देखी भी जा रही है । चन्द्रचूड़ सिंह तो इतनी कम देर के लिये थे कि बस क्या कहें । हाँ बीच बीच में एक दो मिनट के लिये गाना गाते जरूर नज़र आ जाते थे । आख़िर हीरो जो थे । कहाँ माचिस वाला चन्द्रचूड़ सिंह और कहाँ इस सीरीज़ वाला । 😒

कुछ भी नाम रख देते है 😳

कल जब न्यूज़ देख रहे थे तो उसमें एक कपड़े धोने वाले साबुन मतलब डिटरजेंट का एड आया और उस साबुन का नाम सुन और पढ़ कर हम सोचने लगे कि कम्पनियाँ कैसे नाम सोचती है । या बस कुछ भी नाम रख देती है । क्या सोचकर ऐसे नाम रखती है । जिस साबुन का एड देखा था उस साबुन का नाम छोकरा साबुन है । और उसमें ये भी कहते हैं कि पैंसठ सालों का विश्वास । अब खैर हमने तो पहले इस साबुन का नाम कभी सुना ही नहीं था । बहुत सारे साबुन के थोड़े अजीब नाम तो होते है । जैसे निरमा ,घड़ी , व्हील ,फेना वग़ैरा तो खूब सुने और देखे है । पर ये छोकरा साबुन । हमारी तो समझ के बाहर है ।