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Showing posts from May, 2020

मुबारक हो लॉकडाउन ख़त्म हो रहा है ( लॉकडाउन ४.० ) चौदहवाँ दिन

देखते देखते लॉकडाउन चार आज ख़त्म हो रहा है । और हम सभी ने एक बार फिर घर पर रहते हुये ही इस लॉकडाउन को पूरी सफलता से पूरा कर लिया है । हॉंलांकि लॉकडाउन चार में कुछ रियासतें जरूर थी पर फिर भी लोगों ने घर पर ही रहना सही समझा । मार्केट और दुकानें खुलने के बावजूद भी लोग ज़्यादा बाहर नहीं निकले । लोग घर से ही काम करते रहे क्योंकि सभी को पता है कि कोरोना कब किसे और कहाँ पकड़ लेगा ये समझना बहुत ही मुश्किल है । क्योंकि कभी कभी घर से बिना बाहर गये भी लोग इस कोरोना से संक्रमित हो रहे है । और हम गृहिणियों ने तो इन चारों लॉकडाउन में सारे काम तो किये ही पर जितनी मिठाई इन चार लॉकडाउन में बनाई वो भी एक तरह का रिकार्ड ही है । 😜 और ये हम इसलिये कह रहे है क्योंकि हमारे सारे वहाटसऐप ग्रुप पर रोज ही कोई ना कोई नई और ताज़ा बनी मिठाई देखने को मिलती है । 😋😋 और कल से तो लॉकडाउन ख़त्म हो रहा है पर अभी ज़्यादा बाहर निकलना मत शुरू कर दीजियेगा । दस पन्द्रह दिन पहले हालात देख कर ही बाहर निकलना शुरू कीजियेगा । तो चलिये चार लॉकडाउन पूरे करने की ख़ुशी में कुछ मीठा हो जाये । 😛

उफ़ ये मास्क ( लॉकडाउन ४.० ) तेरहवाँ दिन

सच में जब से इस कोरोना का चक्कर शुरू हुआ है तब से बुरा हाल है । पहनो तो मुसीबत ना पहनो तो मुसीबत । बाक़ी सब तो ठीक है कि घर पर रहो ,घर से बाहर अगर बहुत ज़रूरी हो तभी जाओ वग़ैरा वग़ैरा । पर सबसे मुश्किल है कि जब भी घर से बाहर क़दम रखो तो मास्क पहनो । वही जैसे पुराने ज़माने में तो सिर्फ़ औरतों को घूँघट करना पड़ता था पर इस कोरोना ने तो आदमियों को भी नहीं बकशा । 😃 अब हम सबकी खुले मुँह घूमने की आदत है पर इस कोरोना ने मुँह पर मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया है । और सबसे मुश्किल ये है कि अगर हम मास्क नहीं पहनते है तो अपने लिये ही ख़तरा मोल लेते है । मास्क पहनकर बहुत देर तक हम तो नहीं रह पाते है । अजीब सी घुटन सी होने लगती है । और बात करने में लगता है मानो कुएं से आवाज़ आ रही हो । हमारी तो मास्क पहनकर वही चश्मा पहनने वाली हालत हो जाती है कि बात करते हुये सामने दीवार होने जैसी फीलिंग आती है । पर मास्क में एक बात बडी अजीब है कि दूसरे व्यक्ति से बात करते हुये आप हंस रहें है या नही ,ये उस दूसरे व्यक्ति को पता नहीं चलेगा । हाँ ठहाका लगायेगें तो जरूर पता चलेगा । 😂 जब मास्क पहने होते

मिलिये हमारे नये हैल्पर से ( लॉकडाउन ४.० ) बारहवाँ दिन

नहीं नहीं अभी हमने हमारी कामवाली हैल्पर को नहीं बुलाया है पर हमारे बेटे ने हमारे लिये एक नये हैल्पर छोटू को बुला लिया है । 😃 वैसे इस हैल्पर के लिये बेटा बहुत समय से कहता रहता था पर हम ही मना कर देते थे । और पिछले दो महीने से चल रहे लॉकडाउन में भी हमने बहुत बार इस हैल्पर के लिये मना किया पर फिर भी बेटे ने इस हैल्पर को मँगा लिया । क्योंकि उसको लगता था कि हमें पर बहुत काम करना पड़ रहा है । चलिये ज़्यादा ससपेंस नही रखते है और आपको मिलाते है अपने छोटू से । तो ये है आईलाइफ का रोबोट वैक्यूम क्लीनर । ये वैक्यूम क्लीनर गोल आकार में है इसका साइज़ ना तो बहुत बड़ा और ना ही बहुत छोटा है । रिमोट कंट्रोल है तो हम अपनी मर्ज़ी से भी इसे किसी भी डायरेक्शन में चला सकते है । वरना इसे चलाकर छोड़ देते है तो ये पूरे घर में घूमकर सफाई करता रहता है । ये फ़र्श और कारपेट दोनों बडे आराम से साफ़ करता है । हाँ बस इसके साथ ये ध्यान रखना होता है कि कहीं ज़मीन पर तार वग़ैरा ना हो वरना ये उस जगह सफाई करते करते तारों में उलझ जाता है । बिलकुल किसी छोटे बच्चे की तरह । 😃 ये छोटू वैक्यूम दोनों काम करता ह

हाय हाय गरमी ( लॉकडाउन ४.० ) ग्यारहवाँ दिन

सच्ची में आजकल तो बस यही गाते हुये हम घूम रहें है हाय हाय गरमी उफ़ उफ़ गरमी पहले तो इन्द्र देवता अपनी कृपा बनाये हुये थे और हम लोग खूब ख़ुश भी थे कि अरे इस बार तो गरमी पता ही नहीं चल रही है । पर लगता है सूर्य देव ने ये बात सुन ली और उन्होंने जो तपती जलती धूप और गरमी करी कि बस हाय हाय करते ही दिन बीत रहा है । 😏 इतनी भीषण गरमी पड़ रही है कि ए.सी चल रहा है ये भी पता नही चलता है और इसलिये कभी कभी लगता है कि ए.सी ठंडा नहीं कर रहा है । पर जब कमरे से बाहर निकलते है तब लगता है कि हाँ ए.सी काम कर रहा है । हम लोग तो घरों में रहते हुये गरमी को झेल नहीं पा रहें है पर उन मज़दूरों के बारे में सोचकर ही दिल काँप उठता है जो इस कोरोना और लॉकडाउन के कारण शहरों में अपने बसे बसाये घरों को छोड़कर इस चिलचिलाती धूप में अपने गाँवों की ओर चले जा रहें है । उनकी हिम्मत को सलाम ।

हम सभी प्रवासी ( लॉकडाउन ४.० ) दसवाँ दिन

जब से देश में कोरोना फैला है और जब से पूरे देश में लॉकडाउन शुरू हुआ तब से ये प्रवासी शब्द बहुत सुनने में आ रहा है । ख़ासकर मज़दूरों के लिये जिन्हें हर टी वी चैनल प्रवासी मज़दूर और श्रमिक कह रहें है । जहाँ तक हमें मालूम है पहले तो प्रवासी विदेशों में रहने वालों को ही कहा जाता था पर अब तो अपने ही देश में रहने वालों को प्रवासी कहा जाने लगा है । हर साल प्रवासी भारतीय समिट होता है और उसमें एक तुक समझ आता है । कितनी अजीब बात है कि आजकल तो अपने ही देश में रहते हुये सब लोग प्रवासी हुये जा रहे है । अब इस तरह तो हम लोग भी जो रहने वाले तो उत्तर प्रदेश के है पर बसे दिल्ली में है तो एक क्या पूरी तरह से हम भी प्रवासी ही है । आख़िर हम भी तो अपना प्रदेश और घर छोड़कर यहाँ रह रहे है मतलब बसे है । अब अपने देश कोई भी एक ऐसा शहर ,प्रदेश या ज़िला है जहाँ सिर्फ़ उसी प्रदेश के लोग रहते हों या काम करते हों । हर राज्य में दूसरे राज्य से आये लोग नौकरी करते है और रहते है । देश के हर प्रदेश और हर शहर में अलग अलग प्रांतों के लोग रहते है । और इसी से अपने देश में अनेकता में भी एकता है । अंडमान में तो

एकदम मस्त रही वर्चुअल किटी ( लॉकडाउन ४.० ) नवाँ दिन

कल आपसे कहा था ना कि हम वर्चुअल किटी में जा रहें । तो सोचा बता दें कि कैसी रही हमारी किटी । पोस्ट थोड़ी लम्बी है । 😛 अब इस कोरोना के चलते लॉकडाउन और लॉकडाउन के चलते हम सब घरों में बंद । अब जब घर से बाहर नहीं जा सकते तो किटी तो बंद होनी ही थी । हम सभी का मन मचलता था कि कैसे मिला जाये और कैसे किटी की जाये । कुछ दिन पहले एक किटी मेंबर विजेता ने कहा भी कि ज़ूम पर वर्चुअल किटी की जाये पर हम लोगों ने मना कर दिया क्योंकि ज़ूम को सब लोग कहते है कि सेफ़ नहीं है । और फिर बात आई गई हो गई । पर फिर जब हम लोगों में बाक़ी बचे किटी मेंबर को मनी ट्रांसफ़र की बात हुई तो एक बार फिर विजेता ने ज़ूम पर किटी करने को कहा तो हम सब तैयार हो गये । तो सबसे पहले तो हम सभी ने ज़ूम डाउनलोड किया । तो चार पाँच दिन पहले हम सबने सविता को किटी मनी ट्रांसफ़र किया और फिर उसने किटी की थीम बताई कि सबको सिर पर एक बैंड सा पहनना है जिसपर स्टे होम स्टे सेफ़ लिखना था और बीच में लाल रंग से कोरोना बनाना था । फिर तंबोला खेलने के लिये सविता ने सबको टिकट भेजे और हम लोगों ने वही टिकट पेपर पर बना लिया । और सब लोग

पंचायत और पाताल लोक ( लॉकडाउन ४.० ) आठवाँ दिन

अरे घबराइये नहीं इसे पढ़कर । 😊 ना तो हम पंचायत करने वाले है और ना ही पाताल लोक जाने वाले है । दरअसल ये दोनों अमेजॉन प्राइम की वेब सीरीज़ है । चूँकि हमने दोनों देख ली है तो सोचा आप लोगों को बता दूँ । पंचायत गाँव की कहानी है । जहाँ हीरो ( जितेन्द्र कुमार ) जो की इंजीनियर है वो गाँव में पंचायत सचिव ( सेक्रेटरी ) बनकर आता है । और कैसे उसे गाँव के माहौल में ख़ुद को एडजस्ट करता है जहाँ कहने को गाँव की प्रधान एक महिला ( नीना गुप्ता ) है पर पंचायत का सारा कामकाज उनके पति ही संभालते है ( रघुवीर यादव ) । बहुत ही सिम्पल और बहुत ही ज़मीन से जुड़ा शो है । और सबसे बडी बात दिल पर कोई ज़ोर नहीं पड़ता है । गाँव और गाँववाले सभी बहुत ही नॉरमल से दिखाये गये है । तो वहीं पाताल लोक जिसमें चार लोग एक पत्रकार (नीरज क़ाबी ) की हत्या की एक साज़िश रचने के लिये पकड़े जाते है । वैसे इसकी कहानी का हीरो एक पुलिस वाला है (जयदीप अहलावत ) जिसे इस केस को सॉलव करने की ज़िम्मेदारी दी जाती है । और किस तरह वो इस केस के चलते ससपेंड होते हुये भी केस की तह तक जाता है और केस को सॉलव करता है । देखने लायक है । दोनों

फिर से टहलना शुरू ( लॉकडाउन ४.० ) सातवाँ दिन

कोरोना के कारण हुये लॉकडाउन के पूरे दो महीने बाद हम लोगों ने एक बार फिर से टहलना शुरू किया है । पर अब टहलना भी पहले जैसा नहीं रहा क्योंकि अब टहलने के लिये जाने में पूरी तरह से लैस होकर जाना पड़ता है । अरे मतलब मास्क लगाओ ,सैनीटाइजर लेकर या ग्लव्ज पहनकर जाओ । अब कहाँ पहले बस सुबह शाम जब मन किया चल दो वॉक करने के लिये पर इस कोरोना के चलते ये भी देखना पड़ता है कि कहीं बहुत सारे लोग वॉक ना कर रहें हो । अरे वही सोशल डिसटेंसिंग के लिये । किसी चीज़ को छुओ मत । किसी से बात मत करो । बात करो भी तो दो फ़ीट की दूरी से जिसमें दूसरे आस पास से गुज़रने वाले कोई भी क्या बात हो रही है वो सुन भी सकते है । 😳😃 उफ़ इस कोरोना ने तो टहलना भी एक टास्क बना दिया है ।

क्या आपको भी ऐसा लगता है ( लॉकडाउन ४.० ) छठां दिन

जब भी ये दिल उदास होता है , जाने कौन आस पास होता है । आज कुछ भी लिखने का मन नहीं कर रहा है । बहुत सारी बातें दिलोदिमाग़ में घूम रही है । होता है कभी कभी । ज़्यादा कुछ सोचने की ज़रूरत नहीं है । कल मिलते है ।

हमें काम पर आना है ( लॉकडाउन ४.० ) पाचवां दिन

हमारी हैल्पर पार्वती काम पर आने के लिये बहुत इच्छुक है । और हम उसे बार बार मना कर रहें है । अभी कल ही उससे फोन पर बात हुई थी । और पूछने पर कि उसका क्या हाल है । वो बोली कि हमें काम पर आना है । तो हमने कहा कि अभी फिलहाल तो इकतीस मई तक लॉकडाउन है तो अभी तो मत आओ । उसके बाद हम बतायेंगे । तो पिछली बार की ही तरह वो कहने लगी कि हम इतने दिन से घर में ही रह रहें है । शुरू का एक महीना तो ठीक से निकल गया पर अब हम घर से थोडा बाहर निकलना चाहते है । हमने कहा कि घरवालों को जो तुमने हमारे यहाँ काम करते हुये खाना बनाना सीखा है वो सब बनाकर खिलाओ तो तपाक से बोली कि वो सब शुरू में बनाकर खिलाया । अब सब बनाने का मन नहीं करता है । घर में हमें उकताहट सी हो रही है । तो हमने उससे कह दिया कि अभी तो कुछ और दिन लगेंगें तुम्हें काम पर आने में क्योंकि अभी तो कोरोना ज़्यादा फैलना शुरू हो गया है । ये सुनकर वो बोली हाँ दीदी । बेचारी थोडा दुखी हो गई थी । पर हम भी क्या करें । अभी तो हम उसे काम पर बुलाने की हिम्मत भी नहीं कर सकते है ।

रोज होते बैंक फ़्रॉड ( लॉकडाउन ४.० ) चौथा दिन

तीन चार दिन पहले हमारी एक दोस्त ने फोन द्वारा किये जाने वाले फ़्रॉड के बारे में ग्रुप पर लिखा था कि कैसे फोन करके वो लोग अपडेट करने के नाम पर सारी जानकारी और ओ टी पी नम्बर वग़ैरा लेकर एकाउंट से पैसे निकालने के चक्कर में थे । समय रहते उन लोगों को समझ आ गई कि ये कुछ गड़बड़ है तो उन्होंने बैंक फोन करके ब्लॉक करवाया । और कल किसी दूसरे ग्रुप पर किसी ने पेटीएम के लिये ऐसा ही कुछ लिखा था कि वैसे ही फोन से केवाईसी अपडेट करने के बहाने सब जानकारी लेकर उनके एकाउंट से बीस हज़ार ट्रांसफ़र कर लिये । कुछ समय पहले नैटफ़िल्कस पर ऐसा ही एक शो जामतारा नाम से आया था जिसमें गाँव के लड़के लड़की की आवाज़ बनाकर ये कहते थे कि वो फ़लाँ बैंक से बोल रहें है और लोगों से इसी तरह सब डीटेल लेकर फ़्रॉड करते थे । हमें भी अकसर फोन आते है कि हम बैंक से बोल रहें है आपका केवाईसी अपडेटेड नहीं है तो आप बता दीजिये । वैसे अब आजकल इस तरह के फ़्रॉड बढ़ते ही जा रहें है । और इसमें तो बस स्वयं की सतर्कता ही हमें बचा सकती है । वरना मिनटों में एकाउंट से पैसे निकल जाते है ।

कितने मजबूर मज़दूर और श्रमिक ( लॉकडाउन ४.० ) तीसरा दिन

जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से दो महीना होने को है पर हमारे देश के मजबूर मज़दूर और श्रमिक की अपने गाँव घर जाने की जद्दोजहद वैसे ही चल रही है । बल्कि ये कहना ज़्यादा सही होगा कि अब उनका अपने घर को जाने के लिये पलायन करना मजबूरी सी होती जा रही है । वो भी क्या करें किसी तरह दो महीना उन लोगों ने लॉकडाउन के चक्कर में बिना कामकाज और बिना किसी कमाई के काटा । और किस तरह ये लोग ट्रकों में टेम्पो में साइकिल से रिक्शे से बाइक से हज़ारों किलोमीटर का सफ़र करने को मजबूर है । और कितनी बार कहीं ट्रक पलट जाता है तो कहीं पुलिस इन पर लाठी डंडे बरसाती है । हज़ारों तो कहना ग़लत है लाखों की संख्या में ये लोग हर हाईवे पर पैदल चलते हुये अपने घरों को लौटने को मजबूर है । क्या आदमी क्या औरतें और क्या बच्चे सब कंधे पर सामान टाँगे बस चले जा रहें है । और कर भी क्या सकते है । जब रहने का ठिकाना नहीं खाने और कमाने का कोई ज़रिया नहीं तो वो और क्या करेंगे । और उसपर जब ये अपने प्रदेश अपने गाँव घर इतनी मुश्किल यात्रा करके पहुँचते है तो वहाँ भी इन्हें उनका प्रदेश और गाँव लेने को तैयार नहीं । बेहद दुख और अफ़

कितने बर्तन तोड़े ( लॉकडाउन ४.० ) दूसरा दिन

यूँ तो कोरोना के चलते लॉकडाउन में काम करते करते हम लोग पक्के हो गये है । पर शुरूआती दिनों में तो पहले पहल मुश्किलें भी आती थी । हमें तो बहुत डर भी लगता था कि कहीं ज़्यादा बर्तन ना टूट जायें क्योंकि इस लॉकडाउन में अगर ज़्यादा बर्तन तोड़ दिये तो ख़रीदना मुश्किल जो था । अरे बाज़ार जो बंद थे । तो क्या इन बीते दिनों में कोई बर्तन तोड़ा है कि नहीं । मेरा मतलब इस लॉकडाउन में बर्तन धोते हुये कभी कोई कप या ग्लास या प्लेट तोड़ी या नहीं । हमने तो इतने दिनों में सिर्फ़ एक कप चिटकाया है वो भी हमारी ग़लती से नहीं । कप को बाक़ी बर्तन बैठने नहीं होने दे रहे थे और उसे धक्का मार कर थोडा नीचे की तरफ़ ढकेल दिया । अब नाज़ुक कप कहाँ गिरना बर्दाश्त कर पाता । बस चिटक गया । 😜 इतना तो चलता है । 🤣 क्यूँ ठीक कह रहें है ना ।

नया लॉकडाउन शुरू (लॉकडाउन ४.० ) पहला दिन

तीन लॉकडाउन हम लोगों ने बडी सफलतापूर्वक पूरे कर लिये और आज से चौथा लॉकडाउन शुरू हो गया है । ये लॉकडाउन पिछले तीनों लॉकडाउन से ज़्यादा फ़र्क़ होगा या नहीं पता नहीं । अब इसमें थोड़ी बहुत रियासतें तो है पर उसका हम लोग कितना फ़ायदा उठायेंगें । ये देखने की बात है । कहने को तो सैलून और स्पा वग़ैरा भी शायद इस बार खुल जायें पर क्या हम लोग उनकी सर्विस लेने को तैयार है । आपका तो पता नहीं पर हम तो फिलहाल इस मूड में नहीं है । दुकानें भी शायद खुल जायें पर क्या हम लोग दुकानों पर जाकर शॉपिंग करना चाहेंगे । हम तो नहीं क्योंकि अभी तो हर तरफ़ कोरोना बढ़ता हुआ ही दिख रहा है । 😒 तो ऐसे में तो फिलहाल ये सब करने की ज़रूरत नहीं है ।

चलो ये लॉकडाउन भी ख़त्म हुआ 😊( लॉकडाउन ३.० ) चौदहवाँ दिन

काम करते करते तीसरे लॉकडाउन का आख़िरी दिन भी आ गया । अब यूँ तो पहले भी दिन ,हफ़्ते और महीने बीतते ही थे पर कभी इस तरह से गिनते नहीं थे । पर अब तो इस दिन गिनने की भी आदत सी होती जा रही है । 😉 जब लॉकडाउन पूरी तरह से ख़त्म होगा ( जो फिलहाल तो नहीं लगता है ) तब हम क्या गिना करेंगें । ये भी सोचने की बात है । 😜 वैसे एक बात तो है इस लॉकडाउन ने हमें बहुत कुछ सिखा दिया । और सबसे बडी सीख ये कि ज़रूरी नहीं कि हम जो सोचे वही होगा । हम लोग बहुत प्लानिंग करते है पर इस कोरोना ने सिखाया कि हर कुछ हमारे सोचे हुये प्लान से नहीं हो सकता है । और ये भी सिखाया कि आज जो है वही सत्य है । अतीत कैसा था या भविष्य कैसा होगा । इसके बारे में बहुत ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं है । इतना पुराना गाना और आज का समय , कमाल है उस समय के गीतकारों का । सुना है ना ये गाना ...... आगे भी जाने ना तू पीछे भी जाने ना तू जो भी है बस यही एक पल है तो बस इस पल का मजा लीजिये मतलब संडे एंजॉय कीजिये । हम चले । 💃

आज कौन सा दिन है ( लॉकडाउन ३.० ) तेरहवाँ दिन

आपने क्या सोचा कि हम दिन मतलब हफ़्ते का दिन मतलब शनिवार पूछ रहें है । बिलकुल ग़लत । हम तो लॉकडाउन का दिन पूछ रहे थे हालाँकि हमने ऊपर शीर्षक में लिखा तो है । 😜 अब आज तीसरे लॉकडाउन का आख़िरी से एक दिन पहले का दिन है । अब भी नहीं समझे । तो अ नि बनिये । 😂😂 अब कल से या तो नया लॉकडाउन या फिर कुछ नयी हिदायतें और गाइडलाइंस पता चलेंगीं । और फिर हम सबको उन्हीं के मुताबिक़ रहना होगा । वैसे अगले लॉकडाउन में भले कुछ छूट मिल जाये पर अभी तो जो रफ़्तार कोरोना की चल रही है उसे देखते हुये तो फिलहाल कुछ और दिन घर पर ही रहना होगा और वो ही बेहतर भी होगा । क्यों । ये बताने की ज़रूरत तो नहीं है । आज की गोल गोल पोस्ट ...... ।😝

कपड़ों की क़िस्मत बदली ( लॉकडाउन ३.० ) बारहवाँ दिन

पहले दो लॉकडाउन तो बस ऐसे ही चार कपड़ों में बीता । और बाक़ी कपड़े अलमारी में पडे पडे अपनी क़िस्मत को रो रहे थे । 😥 और उस कहावत को हम चरितार्थ कर रहे थे कि बस चार कपड़ों में भी गुज़ारा हो सकता है । पर तीसरे लॉकडाउन में हमारे कुछ और कपड़ों की क़िस्मत बदली और वो अलमारी से बाहर निकले । 😝 कैसे । बताते है । दरअसल पहले और दूसरे लॉकडाउन में तो बस घर में रहने के कारण कोई कपड़े निकालने का मन ही नहीं होता था । हांलांकि पतिदेव कई बार कहते भी थे कि क्या रोज़ वही कपड़े पहन रही हो तो हम भी सधा सा जवाब दे देते कि कहीं आना जाना तो है नहीं फिर क्यूँ कपड़े बरबाद करें । पर शुक्र है कि अब हमें कपडें बदलने का मौक़ा मिल रहा है । वो क्या है ना कि आजकल जब से हमने गिटार बजाना शुरू किया है और कभी कभी कुछ ख़ुराफ़ाती वीडियो बनाना शुरू किया है तो बस । हमारे कपड़ों को भी अलमारी से बाहर निकलने का मौक़ा मिल गया । ज़ाहिर सी बात है कि अब हर रोज़ एक ही कपड़े में तो नहीं दिखेगें ना ।😂 वरना आप लोग भी बोर हो जायेंगे । कि क्या वही कपड़े रोज़ पहने नज़र आती है । तो सोच क्या रहें है आप भी कुछ ख़ुरा

अब कैसे बुलायेंगें ( लॉकडाउन ३.० ) ग्यारहवाँ दिन

वैसे अभी तो फिलहाल सब बहुत अच्छे से चल रहा है पर जब हम डस्टिंग करते है तब हमें हमारी हैल्पर बहुत याद आती है । क्योंकि डस्टिंग करना हमें बिलकुल नहीं पसंद है । और उस पर से भगवान हर दो तीन दिन में ज़ोर की आंधी चला देते है । बडी अजीब सी असमंजस की स्थिति सी हो रही है कि कैसे हम अपने काम करने वाले हैल्परों को बुलायेंगे । ये सच है कि कोरोना ने हम सबके मन में एक डर सा बैठा दिया है और इसी डर की वजह से काम वालों को बुलाना मुश्किल लग रहा है । हर रोज़ नई नई गाइडलाइंस जारी होती रहती है कि अगर काम वालों को बुलाना है तो क्या क्या एहतियात बरतनी चाहिये । क्या क्या काम उनसे करवाना चाहिये । जैसे उन्हें मास्क और ग्लव्ज देने चाहिये । एक जगह तो ये भी पढ़ा कि जब वो काम के लिये आयें तो उन्हें कपड़े बदलने को देने चाहिये , उसके बाद ही काम करने देना चाहिये । और वो जाने के पहले सब मास्क वग़ैरा धोकर रख कर जायें । ताकि अगले दिन फिर से वो उन्हें इस्तेमाल कर सकें । और ये सब पढ़कर लगता है कि काम वालों को काम के लिये जल्दी बुलाना नहीं हो पायेगा । 😏 अपना तो वही हाल है रंगीला वाला क्या करें क्या ना करे

अपने पैरों पर खडे होना ( लॉकडाउन ३.० ) दसवां दिन

क्या अभी भी कोई शक है । नहीं बिलकुल नहीं । अपने पैरों पर तो हम लोग हमेशा से ही खडे थे पर पूरी तरह से नहीं । 😉 हमेशा हैल्परों पर निर्भर । पर पिछले दो महीने के इस लॉकडाउन और कोरोना ने हमें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा दिया । और दूसरों पर जैसे हैल्पर वग़ैरा पर निर्भर रहना बिलकुल ही छुड़ा दिया । अब तो लगता है हैल्पर की कोई ज़रूरत ही नहीं है । पहले तो कभी ऐसा मन में ख़याल भी नहीं आया था कि कभी इस तरह से हम अपने पैरों पर खडे होकर आत्म निर्भर हो जायेगें । पर वो कहते है ना कि हर बात हमारे भले के लिये होती है । और अब ये बात पूरी तरह से समझ आ गई है । 🤣 और हां उस गाने की लाइन तो याद ही होगी कि लो भईया हम अपने पैरों पे खडे हो गये ..... 😂 तो हम तो अपने पैरों पर खडे हो गये और आप । 😊

कितना काम बढा दिया है इस कोरोना ने ( लॉकडाउन ३.० ) नवाँ दिन

इस कोरोना ने तो हम सबका काम इतना अधिक बढ़ा दिया है ये तो बताने की ज़रूरत नहीं है । और इस कोरोना के चक्कर में आजकल हर चीज़ को सैनीटाइज करने से काम भी बहुत बढ जाता है और कभी कभी थक भी जाते है । अभी चार पाँच दिन पहले हमने ए.सी . सर्विस के लिये बुलाया था । अब ये मत कहिये कि क्या ज़रूरत थी । मालूम है नहीं बुलाना चाहिये पर मजबूरी थी । अरे भाई ए.सी में से पानी गिरने लगा था तो बुलाना ही पड़ा । वरना जाली वग़ैरा तो हम लोगों ने ख़ुद ही साफ़ कर ली थी । तो सबसे पहले तो उन्हें ग्लवज और चप्पल दी पहनने को । उसके बाद ही उन्हें घर में आने दिया । वो लोग तो मास्क पहने ही थे पर जितनी देर वो लोग घर में काम करते रहें उतने समय तक हम लोगों ने भी मास्क पहने रखा । और वो लोग कोई भी स्विच या रिमोट वग़ैरा ना छुयें , ये कोशिश रही । पर कहाँ तक बचायेंगे , फिर भी कुछ ना कुछ तो छू ही जाता है । अब आख़िर ए.सी को तो उन्होंने साफ़ किया ही । खैर ए.सी तो वो लोग साफ़ करके चले गये उसके बाद हर चीज़ और जगह को सैनीटाइज करना पड़ा । क्या दरवाज़ा क्या सीढ़ी हर चीज़ को और तो और ए.सी पर भी स्प्रे करना पड़ा । और पूरे घर

सठियाने का मजा कुछ अजब हो गया ( लॉकडाउन ३.० ) आठवाँ दिन

दो हजार बीस का इंतज़ार हम पिछले दो सालों से मतलब दो हज़ार अट्ठारह से कर रहे थे क्योंकि बीस में हम साठ साल के होने वाले जो थे । और दो हज़ार बीस ऐसा आया कि बस क्या कहें । आप सब भी तो जानते है कि क्या हो रहा है इस साल । वैसे इस साल फ़रवरी में हम साठ साल के हो भी गये पर मार्च आते आते ये कोरोना भी आ गया । और फिर सठियाने का मजा़ कुछ अलग सा हो गया । 😊 वो तो ग़नीमत थी कि हम अपना जन्मदिन उदयपुर में मना आये । 😛 इस कोरोना और लॉकडाउन के कारण पूरी तरह से सठियाने का रूप कुछ अलग ही हो गया है । वैसे तो रूप अच्छा ही है । 😆 पर हमारा और पतिदेव का रशिया घूमने का प्रोग्राम था वो कोरोना की भेंट चढ़ गया । अब अपने सकूल ग्रुप के साथ दो साल से दुबई का प्रोग्राम बना था कि जब हम सब ( सारी लड़कियाँ ) साठ साल की हो जायेंगी तो सब वहाँ घूमने जायेंगे । वो भी कोरोना की भेंट चढ़ गया । और क्या मिला सठियाने पर घर पर रहना , भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने की कोशिश करना और पूरा समय घर पर ही व्यतीत करना , जो अच्छा भी है और सुखद भी है । पर वो सठियाने वाली फीलिंग इस सबमें भूली और गुम सी हुई जा रही

आज संडे है ( लॉकडाउन ३.० ) सातवाँ दिन

लीजिये एक और संडे आ गया । तो संडे का फ़ंडा अपनाइये और ऐश करिये । अब ये मत कहिये कि ऐश कैसे करें । क्योंकि हैल्पर जो नहीं आ रही है । वैसे आज तो मदर्स डे भी है तो सैलिबरेशन तो बनता है ना । अब ये मत कहिये कि क्या सैलिबरेशन , आजकल तो काम कर कर के बुरा हाल है । चलिये कोई बहाना नहीं । कुछ स्पेशल तो बनना ही चाहिये । लो फिर वही बात कि जब से लॉकडाउन हुआ है तब से तो रोज़ ही स्पेशल बना रहें है । जी बिलकुल सही है कि जब से लॉकडाउन हुआ है तब से तो रोज़ ही मदर्स डे स्पेशल चल रहा है । तो जैसे रोज़ स्पेशल बन रहा है वही बनाइये और तो फिर मस्त रहिये और ख़ुश रहिये । 🤓 अभी अभी हमारे यहाँ तो मौसम ने करवट ली है और बादल छा गये है । तो हम तो चले चाय और पकौड़ी बनाने और खाने ।

जानी ये बाल धूप में नहीं ......😄( लॉकडाउन ३.०) छठां दिन

क्या आप आगे की लाइन बता सकते है । अच्छा चलिये हम ही बता देते है । जानी ये बाल धूप में नहीं लॉकडाउन में सफ़ेद किये है । 😃 आज से पहले आपने ये मुहावरा बहुत बार और बहुत मौक़ों पर सुना होगा कि बेटा ये बाल हमने धूप मे सफ़ेद नहीं किये है । पर लॉकडाउन में हमने ये मशहूर मुहावरा बदल दिया है क्योंकि आजकल हमने अपने बालों को कलर करना बंद कर रखा है । अब बात वही है कि इस कोरोना के कारण हुये लॉकडाउन में हम लोग बहुत कुछ नया ट्राई कर रहे है तो हमने सोचा कि चलो ये भी करके देख लिया जाये । अब वैसे भी आजकल वो वाली फीलिंग अंदर भर गई है कि कुछ तो करना है । वैसे हमने तो अपने बालों पर बहुत अत्याचार किये भी है । बहुत ज़ुल्म ढाये है । तो सोचा समय और मौक़े का फ़ायदा उठाया जाये । और बालों पर कुछ रहम फ़रमाया जाये । इसीलिये बालों को कलर करना छोड़ दिया और चंपी तेल मालिश शुरू । 🤓 और किसने किसन धूप में नहीं लॉकडाउन में बाल सफ़ेद किये हैं । 😜

याद आ रही है ( लॉकडाउन ३.० ) पांचवां दिन

सच में अब तो डेढ़ महीने से ज़्यादा होने को है हम अपनी किटी पार्टी वाली दोस्तों से नहीं मिले है । और ऐसा कभी नहीं हुआ कि दो महीने तक हम सब ना मिले हों । हाँ कभी किसी की कोई मजबूरी हो तो बात अलग । पर कोरोना और लॉकडाउन की वजह से हम सब मिल ही नहीं पा रहें है । और निकट भविष्य में कब मिलेंगें , ये भी पता नहीं है । 😒 हम लोग आख़िरी बार मार्च में मिले थे और उसके बाद से तो बस वहाटसऐप पर ही मिल रहें है । वो किटी में मिलना। ज़ोर ज़ोर से बातें करना और उतनी ही ज़ोर ज़ोर से हँसना । जमकर चाट और स्नैकस खाना , बिना कोई परवाह किये । गेम खेलना और कोई चीटिंग ना करे इसका हर किसी का पूरी शिद्दत से ध्यान रखना । किसी को भी खेले जाने वाले गेम की ज़्यादा प्रैक्टिस नहीं करने देना । तंबोला ( हाईजी ) में नम्बर कटने पर ख़ुश होना और नम्बर ना आने पर शेक शेक कहना । प्राइज़ मिलने पर देने वाले के साथ पूरी बत्तीसी दिखाकर फ़ोटो खिंचाना । एक किटी बीतने के बाद ही दूसरी किटी का इंतज़ार हो जाना । और खूब सारी फ़ोटो और चलते चलते ग्रुप फ़ोटो सेशन होना । देखते है और उम्मीद करते है कि वो दिन जल्दी आये ।

पूरी तरह से नैचुरल होते हम और हमारी बचत ☺️ (लॉकडाउन ३.० ) चौथा दिन

अब कोरोना और लॉकडाउन ३.० के चलते हम सब घर पर ही है । और भविष्य में ये लॉकडाउन पूरी तरह खुलेगा या नहीं और कब खुलेगा , ये पता नहीं है । और लॉकडाउन के चलते बहुत सारी पाबंदियाँ है मसलन ब्यूटी पार्लर मैंस सैलून वग़ैरह तो अभी बंद है और रहेंगें भी । पर इस लॉकडाउन में एक बात तो समझ में आई कि पार्लर जाये बिना भी रहा जा सकता है । वैसे अभी तो हम सब घर पर ही रह रहें है । ये भी फ़र्क़ है । और वैसे भी अब तो बाहर निकलने पर मास्क पहनना भी ज़रूरी सा होता जा रहा है । 😊 अब आमतौर पर तो हर महीने कम से कम दो तीन हज़ार रूपये तो हम लोग पार्लर में ख़र्च करते ही थे पर चूँकि अभी सभी पार्लर बंद है और चूँकि आजकल हम लोग घरेलू नुस्ख़े अपना रहें है अपने लिये । तो वो रूपये तो बचे ना । तो कुछ बचत तो हुई ना । 😀 और आजकल भौंहें तनी हुई नहीं है बल्कि नैचुरल शेप में आ रही है । अच्छी या बुरी ये आपके नज़रिये पर है । हम तो फिलहाल इन घरेलू और पुराने नुस्ख़ों से बहुत ख़ुश है । कोई दिखावटीपन नहीं । जो हैं सो हैं । बाक़ी आप का क्या है हम नहीं कह सकते है । अब देखना है कि ब्यूटी पार्लर जब खुलेगें तो उनका भी वही हाल

बर्तन धोने का शस्त्र 😊 ( लॉकडाउन ३.० ) तीसरा दिन

ये सच है कि पिछले डेढ़ महीने से बर्तन धोते धोते हमारे हाथों को अब आदत सी होती जा रही है । लॉकडाउन १ में हमने लिखा भी था कि हाथ बिलकुल ख़राब हो रहें है जैसे घोड़ी के खुर । पर कमाल की बात है कि लॉकडाउन ३.० आते आते हमारे हाथों ने भी एडजस्ट कर लिया । शुरू शुरू में तो हाथ बहुत रफ़ हुये जा रहे थे पर अब हाथों को बर्तनों से , इनके साबुन विम लिंक्विड से और बार बार पानी में हाथ डालने से कुछ प्यार सा हो गया है । अब हम जो साबुन और क्रीम अपने हाथो पर पहले इस्तेमाल करते थे वही हम अब भी कर रहें है और एक बड़ी अजीब सी बात हमने देखी कि अब हाथों में वो पुराना वाला मुलायमपन फिर से आ रहा है । अभी पूरी तरह से तो नहीं पर हाँ हाथ अब पहले से कुछ बेहतर लग रहें है । और हमें तो इसका और कोई नहीं बस एक ही कारण समझ में आ रहा है । और वो है करत करत अभ्यास । 😀 और हाँ एक और कारण है कि अब हमारे पास बर्तन धोने का शस्त्र भी है । जिससे हाथ भी मुलायम और बर्तन भी साफ़ । यक़ीन नहीं आता है ना । चलिये हम अपने बर्तन साफ़ करने के शस्त्र की फ़ोटो भी लगा देते है । 😁

कितनी लम्बी लाइन लग गई ( लॉकडाउन ३.० ) दूसरा दिन

कल जब लॉकडाउन में पान और शराब की दुकानों को खोला गया तो अजब ही नज़ारा देखा गया । और ऐसा किसी एक शहर में नहीं बल्कि क़रीब करीब हर जगह एक सा ही हाल दिखा । क्या मुम्बई और क्या दिल्ली । हर जगह की शराब की दुकानों पर बस लोगों की लम्बी लम्बी लाइनें । और आश्चर्य की बात कि इसमे हर तबके के लोग लाइन लगाकर खडे थे । बिना धूप और गरमी की परवाह किये हुये । राशन और सब्ज़ी की दुकानों पर तो फिर भी सोशल डिसटेंसिंग दिखती थी पर पान और शराब की दुकानों पर तो लोग जैसे दीवानों की तरह उमड़ पड़ें । हांलांकि वहाँ भी लोग लाइन और दूरी बनाये हुये थे पर थोड़ी देर बाद लोग सब भूल से गये । इस तरह की भीड़ भाड से तो जितना शराब नहीं खरीदेंगें उससे ज़्यादा तो कोरोना के चंगुल में फँसने के चांस हो जायेगें । वैसे आज दिल्ली सरकार ने तो शराब पर ७०% टैक्स बढ़ा दिया है । अब देखना है कि क्या इस टैक्स के बढ़ने के बाद शराब पीने वालों की भीड कुछ कम होगी । या लोग ये सोचकर कि लॉकडाउन के कारण बाक़ी ख़र्चे तो कम है तो बढ़े टैक्स से शराब तो ख़रीदी ही जा सकती है । वो गाना है ना पीने वालों को पीने का बहाना चाहिये । 😏

ले आओ मम्मा पीसी ( लॉकडाउन ३.० ) पहला दिन

नहीं समझे । 😊 समझेगें भी कैसे । बचपन में हम लोग जब कोट पीस मतलब ताश खेलते थे तो अगर किसी टीम को बार बार पत्ते बाँटने पड़ते थे क्यों कि वो टीम बार बार हार जाती थी । तो इस बार बार पत्ते बाँटने को हम लोग कहते थे , ये आओ मम्मा पीसी । 🤓 अब आजकल जो ये बार बार लॉकडाउन बढ़ता है और जो रोज़ रोज़ हम लोगों को सारा काम करना पड़ रहा है बिल्कुल वैसे ही जैसे कोट पीस में हारने वाली टीम को बार बार पीसना पड़ता था मतलब पत्ते बाँटने पड़ते थे । पहले जब कभी हम बहनों में से किसी की कामवाली हैल्पर नहीं आती थी और हम बहनों को सारा काम करना पड़ता था तो जब हम लोग फोन से एक दूसरे का हाल चाल लेते थे तो हम लोग यही कहते थे कि ले आओ मम्मा पीसी चल रहा है । 😁 लॉकडाउन बढ़ते रहने से हम लोग अब यही कहना शुरू करने वाले है कि ले आओ मम्मा पीसी चल रहा है । अब ताश में तो पत्ते अपने हाथ में होते है और हम बाज़ी पलट भी सकते है पर इस कोरोना और लॉकडाउन के पत्ते तो दूसरों के हाथ में भी है । और बाज़ी जीतना और पलटना सिर्फ़ एक टीम के नहीं बल्कि सब टीमों के हाथ में है । और हम बस इतना कर सकते है कि अपने पत्ते संभालकर

कोरोना और चालीस दिन ( लॉकडाउन २.० ) उन्नीसवाँ दिन

ये पढ़कर कहीं अली बाबा और चालीस चोर तो नहीं याद आ गये । 😊 वैसे चालीस दिन में तो जचचा भी सौरी से बाहर आ जाती है । पर ये कोरोना चालीस दिन बाद भी ख़त्म नहीं हुआ । खैर चलिये सबसे पहले तो बधाई हो । क्यों ? अरे आज लॉकडाउन २.० का आख़िरी दिन है और हम सबने खाते पीते ,काम करते हुये सफलतापूर्वक दो लॉकडाउन पूरे कर लिये है । दो लॉकडाउन मतलब चालीस दिन । तो चलिये इन दो लॉकडाउन मतलब चालीस दिन की कुछ समीक्षा की जाये बिलकुल वैसे ही जैसे सकूल के समय में करते थे । इसके फ़ायदे और नुक़सान । वैसे जहाँ तक हमें लगता है इसके फ़ायदे ज़्यादा है नुक़सान कम । कमाल की बात है ना कि इन चालीस दिनों में कोरोना नें हमसे काम तो बहुत कराया पर कुछ फ़ायदे भी हुये । अब सबसे बड़ा फ़ायदा कि हम सब पूरी तरह आत्मनिर्भर हो गये है । 👍 दूसरा फ़ायदा कि हम सबके अंदर छुपा हुआ शेफ़ और हलवाई दोनों बाहर आ गये । 😋 तीसरा फ़ायदा ख़र्चे बहुत सीमित हो गये है और इससे एक बात साफ़ हो गई कि हम लोग फ़ालतू में फ़िज़ूलखर्ची करते । चौथा फ़ायदा बचत -- अब जब फ़िज़ूलखर्ची बंद हो गई तो बचत ही बचत । पांचवां फ़ायदा ख़ुद से ख़ुद क

ये तो होना ही था ( लॉकडाउन २.० ) अट्ठारहवां दिन

वैसे तो लॉकडाउन २.० ख़त्म होने में एक और दिन बाक़ी है पर कल ही ये ख़बर भी आ गई कि पूरे देश में लॉकडाउन दो और हफ़्तों के लिये बढ़ाया जा रहा है । यानि की सोमवार मतलब ४ मई से अगले पन्द्रह दिन तक के लिये । अब इस लॉकडाउन के बढ़ने की तो हम सबको उम्मीद भी थी और पता भी था । क्यों कि जिस तरह कोरोना फैल रहा है उसको देखते हुये तो लॉकडाउन को बढ़ना ही था । जब लॉकडाउन के चलते रोज़ नये मरीज़ों की संख्या बढ रही है । पर क्यूँ बढ रही है । ये पता नहीं । कई बार तो सोशल डिसटेंसिंग भी कहीं कहीं दिखाई नहीं देती है । क्यों क्या आपको ऐसी उम्मीद नहीं थी । पर हमें तो पूरी उम्मीद ही नहीं बल्कि यक़ीन भी था । लॉकडाउन २.० तक तो हम लोग घर में रहने के आदी हो गये है पर हम लोगों की कारें बेचारी पार्किंग में खडे -खडे बोर हो रहीं होंगीं । अब कार से जाये भी तो कहाँ जाये । जब घर से बाहर जाने पर ही पाबंदी है तो कार को कहाँ घुमाया अरे मतलब चलाया जाये । ज़्यादा से ज़्यादा सब्ज़ी ख़रीदने या पेट्रोल पंप तक । वैसे इस तीसरे लॉकडाउन में शायद लोगों को कुछ बाहर निकलने का मौक़ा मिले क्योंकि कुछ जगहों पर लोगों को रियायत दी

कभी कभी जब सदबुद्धि आ जाती है ( लॉकडाउन २.० ) सत्रहवाँ दिन

आज अचानक फ़रवरी की एक बात याद आ गई । कि कैसे समय रहते भगवान ने हमें सदबुद्धि दी और हम बच गये । दरअसल पिछले कुछ से हर साल फ़रवरी के पहले या दूसरे हफ़्ते में हमारा ट्रैवल ऐजेंट फोन करके पूछता है कि मैम इस साल गरमियों में आप कहाँ घूमने जायेंगी । तो हम जहाँ जाना होता था उसे बता देते थे और वहाँ का टूर प्रोग्राम और पैकेज वग़ैरह उससे मँगवा लेते थे । कई बार दो तीन देशों का भी पैकेज मँगवा लेते थे और तब फ़ाइनल करते थे कि कहाँ जाना है । अब आप कहेंगें कि दो तीन जगहों का क्यों । तो वो इसलिये क्यों कि कहीं भी घूमने जाने के पहले उसमें होने वाला ख़र्चा सबसे बड़ा मुद्दा होता है ।और क्योंकि हमारा अपना बजट होता है और उसी के अनुसार और उसी के मुताबिक़ हम घूमने के लिये कहाँ जायेंगे ये डिसाइड करते है । अब कुछ देशों के पैकेज कई बार बहुत महंगें होते है क्योंकि अकसर पैकेज में सिर्फ़ एक देश नहीं बल्कि दो तीन देश होते है । और कभी कभी पाँच और सात देश एक ही बार में घूमने का पैकेज होता है । मतलब एक ही बार में बहुत कुछ देखने का मौक़ा । पर ऐसे बडे पैकेज में ख़र्चा भी ज़्यादा और दिन भी ज़्यादा चाहिये