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Showing posts from January, 2019

इम्तिहान है कोई कुंभ नहीं

आजकल प्रयाग राज में कुंभ मेला चल रहा है और ऐसा ही कुंभ से जुड़ा एक क़िस्सा याद आ गया । बात काफ़ी पुरानी है । हमारे भइया उस समय बी.ए. में थे और उनके कुछ दोस्त अकसर घर आया करते थे । वैसे तो हम लोगों के घर में कोई रोक टोक नहीं थी कहीं आने जाने पर , पर जब इम्तिहान होते थे तो सब लोग ख़ुद ही पढ़ाई करते थे । भइया के ऐसे ही एक दोस्त थे जो इम्तिहान के दिनों में भी घूमने में ज़्यादा रूचि रखते थे । और पढ़ने से दूरी । वैसे हमारी मम्मी कभी किसी को टोकती नहीं थी । भइया के बी.ए. के इम्तिहान चल रहे थे और एक दिन उनके ये दोस्त स्कूटर पर आये कि चलो घूम कर आते है। क्या हर समय तुम पढ़ते रहते हो । तो भइया उन्हें मना नहीं कर पाये और बाहर जाने के लिये तैयार होने लगे । तभी मम्मी आई और उनके दोस्त से बोली कि बेटा आजकल तो इम्तिहान चल रहे है थोड़ा पढ़ लिया करो । घूम तो तुम बाद में भी सकते हो । तो भइया के उन दोस्त ने बडे शांत भाव से मम्मी से कहा अरे चाची ये तो बस बी.ए. का इम्तिहान है कोई कुंभ मेला थोड़ी है जो छ: या बारह साल में आयेगा । इम्तिहान तो हर साल होता है । कहने की ज़रूरत नहीं है कि उसके बाद भइया क

छब्बीस जनवरी आई है

आज छब्बीस जनवरी है तो सबसे पहले तो आप सबको गणतन्त्र दिवस की बधाई । पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर हर स्कूल में खूब सारे फ़ंक्शन होते थे । और इसके लिये स्कूल की टीचर और स्टूडेंट्स मिलकर तैयारी करते थे । डाँस ,स्पोटर्स देशभक्ति से ओत प्रोत गीत ,कविता पाठ सब होता था । और जब सब प्रोग्राम ख़त्म होते थे तो लड्डू मिलते थे । 😋 बचपन में तो हम लोग गणतन्त्र दिवस और स्वतन्त्रता दिवस का खूब इंतज़ार करते थे । वैसे इंतज़ार तो हम आज भी इन दिनों का करते है बस फ़र्क़ इतना है कि अब टी.वी. पर परेड का इंतज़ार करते है । ऐसे ही स्कूल के समय का एक वाक्या है । हम लोगों की एक सीनियर दीदी थी और उन्होंने अपना नाम कविता पाठ के लिये लिखाया था । और जब वो स्टेज पर कविता पढ़ने आई तो उन्होंने सबसे पहले सभी टीचर और प्रिंसिपल को सम्बोधित करते हुये अपना कविता पाठ शुरू किया । छब्बीस जनवरी आई है ,छब्बीस जनवरी आई है । इस एक लाइन को उन्होंने नौ रस के अंदाज में पढ़ा था । और उसके बाद अचानक ही उन्होंने श्रृंगार रस में अपनी आवाज़ को बहुत ही सॉफ़्ट करते हुये पढ़ा छब्बीस जनवरी आई है । फिर अचानक ठहाका सा लगाते हुये मतल

फ़ूड पांडा है ना

आजकल फ़ूड पांडा की वजह से घर के पुरूष काफ़ी हद तक आत्मनिर्भर हो रहे है । ये अच्छी बात भी है और नहीं भी ।क्योंकि फूड पांडा में वो सौ रूपये तक का ऑर्डर भी भेज देते है । अभी कल ही की बात है हमारी एक सहेली मिली और बोली कि इस फूड पांडा से तो हम परेशान हो गये है । तो हमने भी जिज्ञासावश पूछा क्यों तो बोली एक दिन में तीन चार बार घर की घंटी बजती है और देखो तो फूड पांडा का डिलीवरी बॉय कुछ ना कुछ लेकर आया है । कभी चाट तो कभी समोसा ,कभी केक पेस्ट्री । तो हमने कहा कि ये तो अच्छा है वो तो आपका कितना ख़याल रखते है । तो हमारी सहेली बोली बताओ घर में खाना बना हुआ है । और फूड पांडा से ऑर्डर कर देते है । अगर फूड पांडा से मंगाना ही है तो बता दें ताकि घर में खाना बनकर बर्बाद तो ना हो । हमारी सहेली ही नहीं कभी कभी हमारे घर पर भी ऐसा होता है । 😋

माघ मेला और कल्पवास और कुम्भ

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आजकल इलाहाबाद यानि प्रयागराज में कुम्भ की ज़ोर शोर से तैयारी चल रही है । ऐसी ख़बरें तो हम लोग अक्सर टी.वी. और अखबार में देख और पढ़ रहे है । पर हम तब के माघ मेले की बात कर रहें है जब टी.वी. नहीं था । माघ मेला मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिव रात्रि को आख़िरी नहान होता है । इस दौरान पूरे शहर में बस लोग ही लोग दिखाई देते है । जब से हमें याद है हर साल माघ मेले में खूब तैयारी होती थी । और जब कुम्भ या अर्ध कुम्भ होता था तब तो और भी अधिक तैयारी होती थी । चूँकि पूरा संगम का इलाक़ा रेतीला है तो वाहनों के चलने के लिये पूरे इलाक़े में बड़े बड़े लोहे की पट्टियों से एक तरह की सड़क बनाई जाती थी ताकि कार वग़ैरा बालू में धँस ना जाये । पूरे एरिया में खूब पानी का छिड़काव होता था और हर तरफ़ डी.डी.टी. का छिड़काव भी किया जाता था ताकि लोग बीमारी से बचे रहें । जब हम लोग छोटे थे तो हमारी दादी हर साल माघ मेले में एक महीने के लिये कल्पवास करती थी ।हम लोगों के पंडितजी श्याम सुंदर पाण्डे भी अपना टेंट लगवाते थे और हमारी दादी वहीं रहती थी । हम लोग बीच बीच में उनके पास जाते तो वो आलू की सब्ज़ी और पराँठा खिलाती थी

ख़त्म होती सहनशीलता

आज सुबह पेपर में एक ख़बर पढ़कर हम ये सोचने लगे कि आख़िर अब लोगों में सहनशीलता ख़त्म क्यूँ होने लगी है । जरा सा कुछ हुआ नहीं कि बस धाँय से गोली चला दी । पालतू कुत्ते को पत्थर मारने की सज़ा मौत । क्योंकि कुत्ते को भौंकने से रोकने और दौड़ाने से रोकने के लिये उस आदमी ने कुत्ते को पत्थर मारा । ऐसा अखबार में लिखा है । माना कि उसे पत्थर नहीं मारना चाहिये था पर क्या पत्थर मारने की इतनी बड़ी सज़ा देना कि सीधे गोली मार कर इंसान की जान ही ले लेना , ठीक है । और सबसे अजीब बात इस ख़बर में ये लगी कि जिस कुत्ते के लिये आदमी की जान ली उसे ही छोड़कर गोली मारने वाला और उसका पूरा परिवार भाग गये । अरे भाई कम से कम उस बेज़ुबान जानवर को तो अपने साथ ले जाते । आजकल लोगों में बर्दाश्त की कमी होती जा रही है । जरा जरा सी बात पर लोग गोली चला देते है और सबसे आश्चर्य की बात ये है कि जिसे देखो उसके पास रिवाल्वर होती है । पहले तो रिवाल्वर रखने के लिये लाइसेंस की ज़रूरत होती थी पर लगता है अब तो कोई भी रिवाल्वर रख सकता है । इंसान की जान की कोई क़ीमत नहीं है जबकि ये कहा और माना जाता है कि अगर आप किसी को जीवन दे

बिटिया को खाना बनाना नहीं आता है

कभी कभी पुरानी बातें सोचकर हँसी आती है । और अपनों पर प्यार । शादी से पहले रसोई की तरफ़ कभी रूख ही नहीं किया था । इसकी वजह थी कि घर में हमेशा सेवक रहे और चूँकि हम सबसे छोटे थे तो ऐसा मौका आता ही नहीं था । और अगर कभी आता भी तो बस सलाद वग़ैरा बनाना होता । जिसमें पाक कला में निपुणता की ज़रूरत नहीं थी । पर एक और वाक़या है जिसकी वजह से हमने दोबारा खाना बनाना नहीं सीखा कभी । दरअसल जब हम बहुत छोटे (चार या पॉच साल के ) थे तो एक बार मम्मी का कान का ऑपरेशन हुआ था और वो हॉस्पिटल में थी । एक दिन की बात है पापा और बड़ी दीदी लोग हॉस्पिटल से आये नहीं थे । शाम हो रही थी और घर में सिर्फ़ हम और हमसे दो साल बड़ी दीदी थी । हम लोगों को भूख लग रही थी तो सोचा कि खाना खाया जाये । ( ये उस समय की बात है जब फ्रिज और गैस का चूल्हा नहीं थे ) तो हम दोनों ने खाना बनाने की सोची । अब खाना बनाने के लिये चूल्हा जलाना था जो हम दोनों को ही नहीं आता था । अपनी बुद्धि लगाकर हम लोगों ने चूल्हा जलाने की कोशिश शुरू की । और चूल्हे मे अखबार मोड़ मोड़कर हम दोनों डालने लगे जिससे चूल्हा तो नहीं जला पर घर में धुआँ धुआँ हो गया ।