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Showing posts from March, 2019

इतने छोटे बच्चों को टयूशन

आजकल की दौड़ती भागती जिंदगी में लगता है पेरेंटस के पास समय की बहुत अधिक कमी सी होने लगी है । और इसका एक कारण शायद ये है कि आज कल दोनों पेरेंटस नौकरीपेशा होते है । और इसी वजह से लगता है कि नई पीढ़ी के माता पिता छोटे छोटे बच्चों के लिये टयूशन की बात करते है । पर कक्षा दस या बारहवीं में अगर बच्चे टयूशन लेते है तो बात समझ में आती है क्योंकि इन क्लास की साइंस और मैथ्स पढ़ाना थोड़ा मुश्किल होता है । पर क्लास वन के लिये टयूशन की बात हमारी समझ से परे है । हमारे एक ग्रुप पर अकसर मायें ऐसी क्वैरी लगाती दिखती है कि कोई अच्छी टयूशन क्लास या कोई अच्छा टयूशन टीचर बतायें क्लास वन के बच्चे के लिये । और ये पढ़कर हम सोच में पड़ जाते है कि कया आजकल की मां अपने क्लास वन में पढ़ने वाले बच्चे को भी नहीं पढ़ा सकती है । और अगर क्लास वन या क्लास टू के बच्चे को नहीं पढ़ा सकती है तो उनके पढ़े लिखे होने का क्या फ़ायदा । वैसे भी क्लास वन या क्लास टू में स्कूल में क्या और कितना पढ़ाया जायेगा । होमवर्क ही तो मिलता होगा । आमतौर पर जो हमने देखा है कि बच्चे मैथ्स और साइंस के लिये कलास सिक्स से टयूशन पढ़ना

ऑलमंड हाउस के बिस्टिक्स

हैदराबाद की करांची बेकरी के बारे में तो हम लोगों ने सुन रखा है पर इस बार हमारे नन्दाई जी हैदराबाद के ऑलमंड हाउस से बिस्टिक्स लाये थे । पहले तो बिस्टिक्स पढकर समझ नहीं आया और हमने उसे बिस्कुट ही समझा पर जब पैकेट खोला तब बिस्टिक्स का मतलब समझे । इस पैकेट में बिस्कुट की छोटी छोटी स्टिक्स है जो खाने में बेहद स्वादिष्ट है । और इन बिस्टिक्स में सबसे अच्छी बात है कि चूँकि ये छोटी है तो मीठा कम खाने वालों के लिये भी अच्छी है माने कि एक स्टिक खाकर भी मन भर सकता है । वैसे ये बिस्टिक्स इतने टेस्टी है कि एक खाने के बाद दो चार तो एक झटके में ही खा जाते है । अब क्या करें कंट्रोल ही नहीं होता है । 😜 एक पैकेट पाँच सौ ग्राम का होता है और इसमें ढाई सौ ग्राम के दो डिब्बे होते है ।पाँच सौ ग्राम के पैकेट की क़ीमत पाँच सौ साठ रूपये है । और इस के ढाई सौ ग्राम के पैक का दाम दो सौ अस्सी रूपये है । गिनी तो नहीं है पर कम से कम पचास साठ बिस्टिकस तो होती ही है । ये बिस्टिकस आटा ,मक्खन ,कैलिफ़ोर्नियन बादाम ,चीनी से बने है और ये बिस्टिक्स खाने में खूब कुरकुरे और बादाम से भरपूर है । अब बिस्टिक्स में जब

हो गई होली

होली की थकान और ख़ुमारी उतरी या नहीं । 😜 हर साल फ़रवरी बीतने के साथ ही होली के आने का इंतज़ार शुरू हो जाता है । हालाँकि इस साल होली थोड़ा देर से आई पर अच्छा ही हुआ क्योंकि मौसम का जो मिज़ाज चल रहा था मतलब इस साल तो जैसे जाड़ा जाने का नाम ही नहीं ले रहा था । इस साल मार्च के महीने तक ठंडक रही । एक हफ़्ते पहले तक ऐसा लग रहा था कि कहीं स्वेटर पहन कर होली ना खेलनी पड़ जाये । 😁 होली आये और चिप्स पापड़ गुझिया मालपुआ ना बने ऐसा कहाँ हो सकता है । और वैसे भी साल में एक बार ही ये सब बनता है ।और बिन मौसम इन चीज़ों को बनाने का मन भी नहीं करता है । क्यूँ सही कह रहे है ना । वैसे होली आने के पहले चिप्स और पापड़ बनाने होते है पर इस बार भगवान जी ने भी खूब धूप छांव का खेल खेला । हमने तो जिस दिन छत पर पापड़ बनाकर डाले उस पूरे दिन हल्की ही धूप रही और थोड़ी बहुत बूंदाबांदी भी हुई । नतीजतन पापड़ छत से उठाकर नीचे लाकर पंखे की हवा में सुखाने पड़े । पापड़ ही नहीं आलू की चिप्स का भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ । होली के एक दिन पहले जब छत पर चिप्स डाले तो एक बार फिर से पूरे दिन सूरज देवता लुका छिपी खेलते रहे और

हैप्पी वीमेंस डे

आठ मार्च का दिन अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते है । और आज के दिन देश और दुनिया में अनगिनत कार्यक्रम भी होते है । तो सबसे पहले वीमेंस डे की ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें । हमारे समाज में महिला हमेशा किसी ना किसी पुरूष के संरक्षण में ही रहे ऐसा माना जाता था और है । जब बेटी पैदा होती है तो पिता और भाई का संरक्षण रहता है । शादी के बाद पति और पुत्र के संरक्षण में रहती है । चाहे अनचाहे महिला सदैव किसी ना किसी पुरूष के संरक्षण में ही रहती थी और है । हज़ार तरह की परम्परायें लड़की होने के नाम पर थोप दी जाती है कि तुम लड़की हो ये नहीं कर सकती । तुम लड़की हो इसलिये फ़लाँ जगह नहीं जा सकती हो । तुम लड़की हो इसलिये किससे और कैसे बात करनी है इसका सलीक़ा होना चाहिये । पर आज के समय में बहुत कुछ बदल सा रहा है । पर अभी भी कहीं ना कहीं ये सोच अभी बाक़ी है । हालाँकि आज के समय में बेटी लड़की या महिला किसी भी तरह से पुरूषों से कम नहीं है बल्कि हम तो ये कहेंगें कि आजकल महिलायें पुरूषों से थोड़ा आगे ही है । क्यूँ ग़लत तो नहीं कह रहे है ।