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Showing posts from August, 2018

ये कैसा विसर्जन पुराने देवी देवता का

अब आजकल ज़्यादातर पेड़ों के नीचे हर तरह के भगवान की मूर्ति ,फ़ोटो, माला और यहाँ तक की देवी माँ पर चढ़ाई हुई चुनरी और कभी कभी प्रसाद भी लोग रख देते है । पर हमें एक बात समझ नहीं आती है कि आख़िर पेड़ों के नीचे क्यूँ रखते है । पहले तो लोग नदी में भगवान की पुरानी मूर्ति और फूल माला प्रवाहित कर देते थे । और समय के साथ ये फ़ोटो और मूर्तियाँ गल जाती रही होंगीं । पर पिछले कुछ सालों से जब से नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिये नदियों मे फूल माला और मूर्ति विसर्जन पर रोक लगी तब से जहाँ तहाँ पेड़ों के नीचे भगवान की तस्वीर वग़ैरह दिखने लगी है । जिस भगवान को आप घर के मन्दिर में रखकर पूजते है उन्हें कैसे इस तरह से पेड़ों के नीचे रख सकते है । पेड़ों के नीचे रखे भगवान की मूर्ति और फ़ोटो पर कुत्ते -बिल्ली गंदा करते है । जिसे देखकर बहुत दुख और अफ़सोस होता है और लगता है कि इस संसार में किसी का भी कोई महत्त्व नहीं है । हमारे घर के आस पास दो तीन बड़े बड़े पेड़ है जहाँ हर रोज़ कुछ नई फ़ोटो या मूर्ति लोग रख देते है । कभी कभी सफ़ाई करने वाले पेड़ों के नीचे से भगवान की तस्वीर वग़ैरह उठाकर सड़क के पार दीव

रक्षाबंधन और कितनी सारी यादें

सबसे पहले सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनायें । रक्षाबंधन या राखी का त्योहार भाई बहन के रिश्ते की मज़बूत डोर । इस त्योहार से ना जाने कितने किससे जुड़े है । हमें पक्का यक़ीन है कि ना केवल हमारे बल्कि सभी के दिल में राखी की बहुत सारी खट्टी - मीठी यादें होंगीं । बचपन में तो राखी का बड़ा इंतज़ार रहता था और हमारे भइया हर बार कुछ नया तोहफ़ा हम सब बहनों को देते थे । पर हर बार हम राखी में रोते भी ज़रूर थे क्योंकि राखी बाँधने में हमारा नम्बर सबसे आख़िर में आता था और सब बड़ी दीदी लोगों को भइया कुछ ना कुछ गिफ़्ट देते और जब हम राखी बाँधते तो बड़े मज़े से कहते कि अरे तुम्हारे लिये तो कुछ बचा ही नहीं है । और बस इतना सुनते ही हमारे आँसुओं का नल चालू हो जाता था और तब भइया चुपके से हमारा गिफ़्ट हमें देते और हम रोते रोते हँसने लगते थे ।पापा मम्मी हमेशा कहते थे कि तुम हर बार क्यूँ रोती हो जब तुम्हें पता है कि भइया तुम्हें गिफ़्ट देगें पर हमारा बालमन क्या करे । 😛 अब रोने का क्या कहें हम तो जब राखी बाँधते हुये गाना भी गाते है तो गाते गाते आँसू अनायास ही निकल आते है । हमारे घर में तो सब कहते थे क

आज तक समझ नहीं आया कि

डाक्टर के यहाँ मरीज़ के बैठने के लिये हमेशा एकदम अलग तरह का गोल छोटा सा स्टील का स्टूल क्यूँ होता है । 😳 जब छोटे थे और जब भी कभी बीमार होते थे तो डाक्टर के यहाँ जाते थे तो उस स्टील के स्टूल को देखकर सोचते थे कि मरीज़ के लिये कुर्सी की बजाय स्टूल क्यूँ रहता है । कभी कभी सोचते थे कि शायद डाक्टर के पास पैसा कम पड़ गया होगा इसलिये स्टूल रखा है । 😊 चाहे शहर बड़ा हो या छोटा या चाहे गाँव ही क्यूँ ना हो हर जगह और हर हॉस्पिटल में वो चाहे बड़ा हो या छोटा हर जगह मरीज़ के लिये स्टील का स्टूल ही रहता है । जहाँ तक हम सोचते है ये मरीज़ को कुछ अलग सा महसूस कराने के लिये ही ये स्पेशल स्टूल रखा जाता है । अरे भाई अगर कुर्सी रख दी जायेगी को क्या मरीज़ मरीज़ नहीं रहेगा ।

क्या आपके साथ ऐसा हुआ है

कल हम कोटक महिन्द्रा बैंक के ए.टी.एम से रूपये निकालने गये थेऔर हमने छ: हज़ार निकालने के लिये जब लिखा तो उस पर मैसेज लिखा आया कि सॉरी इस अमाउंट में रूपये नहीं दे सकते है तो दुबारा जब हमने साढ़े छ: हज़ार लिखा तो उस मशीन ने फटाफट रूपये दे दिये । क्योंकि जब से नोटबंदी हुई है तब से इस ए.टी.एम से सिर्फ़ दो के गुणे वाले संख्या का अमाउंट ही मिलता है । और हम ये देखकर असमंजस में पड़ गये कि ईवन नम्बर की बजाय ऑड नम्बर में रूपये क्यूँ दिये जबकि कभी कभी अगर ढाई या साढे चार या पाँच निकालने जाओ तो मशीन में लिख कर आता है कि ये अमाउंट देने में असमर्थ है तो दुबारा दो,चार,या छ: का अमाउंट डालना पड़ता है तब कहीं ज़ाकर रूपये मिलते है । अब पता नहीं कि ये मशीन का गड़बड़ झाला है या कुछ और । 😳

एक नेता अटल बिहारी बाजपेयी जी

जैसा कि हम सभी जानते है कि कल शाम पाँच बज कर पाँच मिनट पर हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी ने अंतिम साँस ली थी । और आज उनको पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जा रही है । यूँ तो हम राजनीति से दूर है पर बाजपेयी जी का नाम और तारीफ़ लोगों से हमेशा सुनी है । जनसंघ वाले ज़माने में तो खैर हम छोटे थे पर इमर्जेंसी के दौरान धर्मयुग और वीकली जैसी मैगज़ीन में इन के जेल में बंद होने की और बाद में जेल से रिहा होने पर की बातें और लेख बहुत पढ़े थे । बाद में इन्होंने भारतीय जनता पार्टी बनाई और बाजपेयी जी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे भले पहली बार तेरह दिन तो दूसरी बार ग्यारह महीने के लिये प्रधानमंत्री बने थे पर तीसरी बार पूरे पांच साल के लिये प्रधानमंत्री रहे थे पर २००४ में इंडिया शाइनिंग का बहुत प्रचार प्रसार होने के बाद भी चुनाव हार गये थे । कभी भी किसी के लिये भले ही वो विपक्ष के नेता हों या कोई और उन्होंने कभी भी किसी के लिये अपशब्द नहीं इस्तेमाल किये थे । बाजपेयी जी की कवितायें जो बहुत ही सरल भाषा में होती थी और जिसे हर कोई समझ सकता था । आओ मिलकर

झंडा ऊँचा रहे हमारा

आज हम सब भारतवासी भारत देश का बहत्तरवां स्वतन्त्रता दिवस मना रहे है । आज के दिन देश आज़ाद हुआ था । अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से देश स्वतन्त्र हुआ था और इस आज़ादी को हासिल करने के लिये हज़ारों लाखों लोगों ने अपने प्राणों की क़ुरबानी दी थी । और उनकी क़ुरबानी की वजह से ही हम सब आज़ाद भारत में साँस ले रहे है । तो सबसे पहले तो सभी को स्वतन्त्रता दिवस की खूब सारी शुभकामनाएँ । एक समय था जब स्वतन्त्रता दिवस की सुबह से ही हर गली और चौराहे पर लाउड स्पीकर पर देशभक्ति के गीत बजने लगते थे और पूरा माहौल देशभक्ति के रंग से सराबोर हो जाता था । और क्या जोश और देशप्रेम से ओतप्रोत गीत होते थे । याद तो होगा ही -- दे दी हमें आज़ादी बिना खड बिना ढाल ये देश है वीर जवानों का ,अलबेलों का मस्तानों का , मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती ऐ मेरे वतन के लोगों ,ज़रा ऑंख में भर लो पानी कर चले हम फ़िदा जान ओ तन साथियों वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों मेरा रंग दे बसंती चोला सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ वैसे आजकल भी लोग देशभक्ति के अलग रंग में रं

सावन में कांवड़

आजकल सावन के महीने में कांवड़ और कांवड़ियों का बहुत अधिक प्रचलन सा हो गया है । पहले कांवड़ियां बहुत कम होते थे । सावन के महीने में साधु महात्मा या बहुत ही ज़्यादा धार्मिक लोग ही कांवड़ लेकर जाते थे और हरिद्वार , गंगोत्री से गंगाजल लाकर शिव जी पर चढ़ाते थे । पहले कांवड़ लेकर जाने वाले नंगे पैर चलते थे । और बम बम भोले की जय कहते हुये चलते जाते थे । पर धीरे धीरे ये इतना अधिक प्रचलित हो गया है कि अब तो ट्रक के ट्रक भर कर कांवडियां जाते है । और इतना ज़ोर का म्यूज़िक बजाते है कि कुछ पूछिये मत । और अब तो सरकार भी जगह जगह इनके रूकने और खाने पीने का इंतज़ाम करती है । दिल्ली में तो बाक़ायदा हर थोड़ी दूरी पर काँवरिया शिवर बने हुये है जहाँ ये लोग रूकते है । सड़क के एक तरफ़ डोरी लगाकर इनके चलने के लिये अलग से रास्ता सा बना दिया गया है । और काफ़ी संख्या में पुलिस भी तैनात रहती है । हमें याद नहीं कि हमने पहले इनका नाम सुना था । सबसे पहली बार शायद १९९९ में कांवड़ के बारे में हमने अपने पतिदेव के एक ड्राइवर से सुना था क्योंकि वो छुट्टी ले रहा था क्योंकि वो हरिद्वार जा रहा था कांवड़ लेकर । खैर बात आ

याद है स्टीरियो और रिकार्ड प्लेयर

समय कैसे और कितनी जल्दी बदलता है । हर वो चीज़ जो एक समय में बहुत पॉपुलर होती है वो धीरे धीरे बिलकुल ग़ायब हो जाती है । अब स्टीरियो और रिकार्ड प्लेयर को ही देखिये । एक समय था जब ये घरों के ड्राइंग रूम की शोभा हुआ करते थे । स्टीरियो के साथ बड़े बड़े स्पीकर भी होते थे जिनसे गाना और म्यूज़िक बिलकुल अलग अलग सुनाई देता था । उस समय ये बहुत ही बड़ी बात मानते थे । एसपी और एल पी रिकार्ड्स खूब बिका करते थे । फ़िल्मी , ग़ैर फ़िल्मी ,भक्ति के ,ग़ज़लें वग़ैरह । हरेक की पसंद के रिकॉर्ड हुआ करते थे । हम लोगों के ड्राइंग रूम में भी बहुत समय तक स्टीरियो बड़ी शान से विराजमान रहा था । मम्मी नवरात्रों में मुकेश की गाई हुई रामचरितमानस सुनती तो वहीं हम बहनें फ़िल्मी गीत सुनते ,पापा मधुशाला सुनते और भइया ज़्यादातर इंगलिश गाने और वो भी खूब तेज़ आवाज़ में ही सुनते थे । वैसे हम भी हमेशा थोड़ा तेज़ आवाज़ में ही म्यूज़िक सुनना पसंद करते है । 😃 फिर आया टेप रिकॉर्डर । वैसे टेप रिकॉर्डर के आने के बाद भी स्टीरियो पर गाने सुनने का मजा ही अलग था । पर वही समय बदला और धीरे धीरे ना जाने कब सटीरियो को छोड़कर टेप रि

उफ़्फ़ ये पाबंदी

अब पाबंदी चाहे किसी चीज़ की हो बुरी लगती ही है । फिर वो चाहे देर रात तक बाहर घूमने की हो या कहीं आने जाने की पाबंदी हो । घरवालों द्वारा लगाई पाबंदी हो या चाहे डाक्टर के द्वारा लगाई पाबंदी ही क्यूँ ना हो । किसी को भी पाबंदी में रहना पसंद नहीं आता है । कुछ पाबंदी में तो कभी कभी ढील भी मिल जाती है पर कुछ में तो ढील मिलना तो दूर कोई दूसरा ऑप्शन ही नहीं होता है और झक मार कर हमें उसी पाबंदी में रहना पड़ता है । हालाँकि आजकल पाबंदी का कोई ख़ास मतलब नहीं रह गया है पर फिर भी कुछ पाबंदी अपनेआप ही लागू हो जाती है । ज़्यादा सोचने विचारने की ज़रूरत नहीं है हम कोई दार्शनिक पोस्ट नहीं लिख रहे है बल्कि वहाटसऐप की लगाई पाबंदी के बारे में बात कर रहे है । हँसने की ज़रूरत नहीं है । 😃 अब पहले तो एक बार में जितने चाहे उतने लोगों को मैसेज फ़ॉरवर्ड कर दो कोई पूछने वाला नहीं था । सुबह एक ही बार में पंद्रह बीस गुरूप में गुड मॉरनिंग का मैसेज चला जाता था । पर अब तो एक बार में पाँच मैसेज की पाबंदी लगा दी गई है । और इसके तहत एक बार में पाँच से ज़्यादा लोगों को मैसेज भेज ही नहीं सकते है । बार बार पाँच पाँच करक

आदमी या जानवर

दो तीन दिन पहले एक न्यूज़ पढ़ी थी जिसमें एक प्रेगनेंट बकरी का आठ आदमियों ने रेप किया जिसकी वजह से वो बकरी मर गई । कहना कठिन है कि कौन इंसान है और कौन जानवर । पहले तो हमें लगा कि किसी ने यूँ ही ख़बर छापी है पर जब पढ़ा तो लगा कि आदमी इतना जानवर कैसे बन गया । और मन एक अजीब सी घृणा से भर गया । हो सकता है उन आदमियों की ये सोच रही होगी कि बकरी के रेप पर तो ना कोई केस होगा और ना कोई सज़ा । बच्चियाँ ,लड़कियाँ और महिलायें तो वैसे ही सुरक्षित नहीं है अब तो जानवर भी सुरक्षित नहीं है । देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान ।

सावन में मेंहदी

सावन या श्रावण मास शुरू हो गया है । सावन मतलब मेहंदी ,हरियाली तीज का त्योहार ,नागपंचमी,गुड़िया का त्योहार ,झूला और बारिश की फुहारें । सावन आये और हम मेंहदी ना लगाये ऐसा नहीं हो सकता है । बचपन में हम लोगों के यहाँ हरियाली तीज नहीं मनाते थे । पर गुड़िया के त्योहार वाले दिन से एक दिन पहले हम लोग मेंहदी ज़रूर लगाते थे ।नागपंचमी में सांप को दूध पिलाने का चलन था क्या अभी भी है और इसलिये सपेरे अपने झोले में नाग बाबा को लाते थे ( वैसे दिल्ली में भी बहुत साल तक सपेरे साँप लाते थे नागपंचमी के दिन ) और गुड़िया के दिन तो हम लोगों के घर से थोड़ी दूर पर मेला भी लगता था । 😊 जब हम छोटे थे तो सावन का खूब इंतज़ार करते थे क्योंकि तब सिर्फ़ सावन में ही हम मेहंदी लगाते थे । और आजकल की तरह तब इतने मेहंदी लगाने वाले नहीं होते थे और ना ही बाज़ार में मेहंदी के कोन वग़ैरह मिला करते थे । तब तो ताज़ी ताज़ी मेहंदी तोड़ी जाती थी और घर पर ब्रजवासी ( हम लोगों का सेवक ) सिल पर मेंहदी पीसता था और तब हम और हमारी दीदी बडे जतन से लगाते थे पर हम लोगों की मेहंदी में वैसा गाढ़ा लाल रंग नही आता था हाँ थोड़ा हल्का लाल रंग