सावन में कांवड़
आजकल सावन के महीने में कांवड़ और कांवड़ियों का बहुत अधिक प्रचलन सा हो गया है । पहले कांवड़ियां बहुत कम होते थे । सावन के महीने में साधु महात्मा या बहुत ही ज़्यादा धार्मिक लोग ही कांवड़ लेकर जाते थे और हरिद्वार , गंगोत्री से गंगाजल लाकर शिव जी पर चढ़ाते थे । पहले कांवड़ लेकर जाने वाले नंगे पैर चलते थे । और बम बम भोले की जय कहते हुये चलते जाते थे ।
पर धीरे धीरे ये इतना अधिक प्रचलित हो गया है कि अब तो ट्रक के ट्रक भर कर कांवडियां जाते है । और इतना ज़ोर का म्यूज़िक बजाते है कि कुछ पूछिये मत । और अब तो सरकार भी जगह जगह इनके रूकने और खाने पीने का इंतज़ाम करती है । दिल्ली में तो बाक़ायदा हर थोड़ी दूरी पर काँवरिया शिवर बने हुये है जहाँ ये लोग रूकते है । सड़क के एक तरफ़ डोरी लगाकर इनके चलने के लिये अलग से रास्ता सा बना दिया गया है । और काफ़ी संख्या में पुलिस भी तैनात रहती है ।
हमें याद नहीं कि हमने पहले इनका नाम सुना था । सबसे पहली बार शायद १९९९ में कांवड़ के बारे में हमने अपने पतिदेव के एक ड्राइवर से सुना था क्योंकि वो छुट्टी ले रहा था क्योंकि वो हरिद्वार जा रहा था कांवड़ लेकर । खैर बात आई गई हो गई । पर अब तो सावन आते ही पूरे शहर में काँवडियों का रेला सा आ जाता है ।
अभी कल ही अखबार में एक ख़बर आई थी कि किसी महिला की कार एक काँवरिया को छू गई थी और जिससे बाक़ी कांवड़ियों नें ग़ुस्से में आकर कार के शीशे तोड़ दिये और कार को पूरी तरह से पलट दिया । और तोड़ फोड़ की ।
कल जब हम अपनी किटी से आ रहे थे तो सड़क पर ट्रकों में और बाइक पर काँवरिया ही काँवरिया थे । और एक बाइक पर तीन तीन लोग वो भी बिना हैलमेट के और अंधाधुँध बाइक चलाते हुये जा रहे थे । (ना कोई रोकने वाला ना कोई टोकने वाला ) सड़क पर काफ़ी ट्रैफ़िक था तभी कुछ लोग बाइक पर ज़ोर ज़ोर से बोलते हुये हम लोगों के बग़ल वाली कार को हाथ हिला हिला कर रूकने का इशारा कर रहे थे और जैसे ही कार रूकी कि तेज़ी से तीन चार बाइक पर काँवरिया निकले । ट्रैफ़िक पुलिस भी सब गाड़ियों को रोक कर इनके जाने का रास्ता बनवा रहे थे ।
लेकिन हर बीतते साल कांवड़ियों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है । और कई बार लगता है कि ये भक्ति है या मस्ती है ।
पर धीरे धीरे ये इतना अधिक प्रचलित हो गया है कि अब तो ट्रक के ट्रक भर कर कांवडियां जाते है । और इतना ज़ोर का म्यूज़िक बजाते है कि कुछ पूछिये मत । और अब तो सरकार भी जगह जगह इनके रूकने और खाने पीने का इंतज़ाम करती है । दिल्ली में तो बाक़ायदा हर थोड़ी दूरी पर काँवरिया शिवर बने हुये है जहाँ ये लोग रूकते है । सड़क के एक तरफ़ डोरी लगाकर इनके चलने के लिये अलग से रास्ता सा बना दिया गया है । और काफ़ी संख्या में पुलिस भी तैनात रहती है ।
हमें याद नहीं कि हमने पहले इनका नाम सुना था । सबसे पहली बार शायद १९९९ में कांवड़ के बारे में हमने अपने पतिदेव के एक ड्राइवर से सुना था क्योंकि वो छुट्टी ले रहा था क्योंकि वो हरिद्वार जा रहा था कांवड़ लेकर । खैर बात आई गई हो गई । पर अब तो सावन आते ही पूरे शहर में काँवडियों का रेला सा आ जाता है ।
अभी कल ही अखबार में एक ख़बर आई थी कि किसी महिला की कार एक काँवरिया को छू गई थी और जिससे बाक़ी कांवड़ियों नें ग़ुस्से में आकर कार के शीशे तोड़ दिये और कार को पूरी तरह से पलट दिया । और तोड़ फोड़ की ।
कल जब हम अपनी किटी से आ रहे थे तो सड़क पर ट्रकों में और बाइक पर काँवरिया ही काँवरिया थे । और एक बाइक पर तीन तीन लोग वो भी बिना हैलमेट के और अंधाधुँध बाइक चलाते हुये जा रहे थे । (ना कोई रोकने वाला ना कोई टोकने वाला ) सड़क पर काफ़ी ट्रैफ़िक था तभी कुछ लोग बाइक पर ज़ोर ज़ोर से बोलते हुये हम लोगों के बग़ल वाली कार को हाथ हिला हिला कर रूकने का इशारा कर रहे थे और जैसे ही कार रूकी कि तेज़ी से तीन चार बाइक पर काँवरिया निकले । ट्रैफ़िक पुलिस भी सब गाड़ियों को रोक कर इनके जाने का रास्ता बनवा रहे थे ।
लेकिन हर बीतते साल कांवड़ियों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है । और कई बार लगता है कि ये भक्ति है या मस्ती है ।
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