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Showing posts from April, 2020

आज की पोस्ट इरफ़ान खान और ऋषि कपूर के नाम ( लॉकडाउन २.० ) सोलहवां दिन

लॉकडाउन के चलते ऐसी ख़बर भी सुनने को मिलेगी ,सोचा ना था । कल सुबह सुबह ही इरफान खान के निधन की ख़बर आई और आज सुबह सुबह ऋषि कपूर के निधन की ख़बर सुनने को मिली । दो दिन में दो कलाकारों का जाना बड़ा दुखद है । ये दोनों ही कलाकार अपनी अलग तरह की फ़िल्मों के लिये जाने जाते रहें है । इरफ़ान खान जहाँ संजीदा और आर्ट फ़िल्मों के लिये तो वहीं ऋषि कपूर हल्की फुलकी रोमांटिक फ़िल्मों के लिये मशहूर थे । ऋषि कपूर की फ़िल्में तो हम लोग सत्तर के दशक से देखते आ रहें है फिर वो चाहे मेरा नाम जोकर हो ,बॉबी हो , झूठा कहीं का ,खेल खेल में ,दीवाना , रफ़ू चक्कर और ना जाने कितनी फ़िल्मे और हाल की फ़िल्में जैसे मुल्क ,राजमा चावल और १०२ नॉट आउट ही क्यों ना हो । सत्तर क्या अस्सी और नब्बे के दशक तक ऋषि कपूर की फ़िल्में काफ़ी आती भी थी और चलती भी थी । ऋषि कपूर और नीतू सिंह की फ़िल्मों के तो लोग दीवाने से होते थे । और सबसे ज़्यादा नई हीरोइनों के साथ ऋषि कपूर ने फ़िल्में की थी । ये भी एक समय में मज़ाक़ होता था । एक ज़माने में रोमांटिक फ़िल्में ऋषि कपूर के नाम ही थी । वैसे सत्तर और अस्सी में मल्टीस्टारर फ़ि

पूरा दिन कैसे बीत जाता है , पता ही नहीं चलता है ( लॉकडाउन २.० ) पन्द्रहवां दिन

आजकल घर में समय कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता है । सही कह रहें है ना । जबकि कुछ समय पहले मेरा मतलब है लॉकडाउन के पहले अकसर ये बोर होने वाली फीलिंग आ जाती थी । और लगता था मानो समय बीत ही नहीं रहा हो । क्यों कि कुछ करते जो नहीं थे । पर पता नहीं जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से सारे काम करने के बावजूद समय बच भी जाता है और पूरा दिन कैसे अच्छे से बीत भी जाता है । पहले जहाँ हर काम के लिये हैल्पर का इंतज़ार रहता था कि वो आयेगी तो ये काम होगा वो आयेगी तो वो काम होगा । मतलब सारा दिन सिर्फ़ हर काम के होने के इंतज़ार में ही निकल जाता था । पर अब चूँकि हैल्पर का इंतज़ार नहीं है तो सब काम करने के लिये हम लोगों को टाइम मैनेजमेंट आ गया है । 👍👍 और कमाल की बात ये कि पहले बिना कुछ किये ही हम थककर बोर हो जाते थे और कहीं घूमने निकल पड़ते थे । पर जब से कोरोना के कारण लॉकडाउन हुआ और सभी हैल्परों का आना बंद हुआ तब से हमने एक बात नोटिस की कि जब से हमने सारा काम करना शुरू किया है तब से दो बातें समझ में आई । एक तो ख़ुद काम करने से सारे दिन व्यस्त तो जरूर होते है पर इस काम के चक्कर

क्या हम लोग ज़्यादा पानी ख़र्च कर रहें है ( लॉकडाउन २.० ) चौदहवाँ दिन

क्यों क्या आपको नहीं लगता है कि जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ तब से हम लोगों के घरों में पानी का कुछ ज़्यादा ही कंजमशन या इस्तेमाल हो रहा है । एक तो हर समय हाथ धोते रहो और दूसरा बर्तन धोते रहो । 😏 कुछ दिन पहले हमारे पतिदेव कोई न्यूज़ बता रहे थे कि चूँकि कोरोना से बचाव के लिये सभी लोग बार बार हाथ धो रहें है और जिसकी वजह से शायद अंडरग्राउंड पानी का स्तर कुछ नीचे हो जायेगा । वैसे ये तो सच है कि जब से इस कोरोना का चक्कर शुरू हुआ है तब से हाथ धोने का काम और पानी का ख़र्चा बढ तो गया है । और सबके घर में रहने से भी बर्तन का काम बढ गया है । कैसे ? क्या बताने की ज़रूरत है । 😜 अब अंडरग्राउंड पानी का तो हमें पता नहीं पर हाँ इस लॉकडाउन और कोरोना के चलते हम लोगों के किचन में पानी का कंजमशन जरूर बहुत बढ गया है । अब वो क्या है कि पहले तो सुबह और शाम जब हम लोगों की हैल्पर काम के लिये आती थी तभी किचन में बर्तन धुलना , खाना बनना वग़ैरा होता था । और जब एक बार वो काम करके चली जाती थी तो उसके बाद जब वो शाम को काम करने के लिये आती थी तब दोपहर के खाने के बर्तन धुलते थे । भले ही उस बीच मे

किचन में काम करना हुआ आसान ( लॉकडाउन २.० ) तेरहवाँ दिन

अब कोरोना के कारण हुये लॉकडाउन को एक महीने से ज़्यादा हो गया है और इतने दिन लगातार सारे काम ख़ुद से करते हुये जहाँ हम लोग एक्सपर्ट हो गये है वहीं किचन के काम को कुछ हद तक आसान भी बना लिया है । बात तो वही है कि जब सब कुछ हमें ही करना है तो पूरा समय किचन में ही तो नहीं बिताना है ना । क्योंकि अगर पूरा समय किचन मे रहेंगे तब तो ज़ाहिर सी बात है कि हम लोग थक कर चूर भी होंगे और किचन से दूर भी भागेंगे । एक तो आजकल सिरे से सारा काम करना और फिर रोज़ किचन में सारा समय खाना बनाने में लग जाये तब तो हो चुका हमारा कल्याण । 😛 वैसे हम पहले ये सब काम नहीं करते थे और अगर किचन में ज़्यादा काम करने लगो तो पतिदेव और बेटे भी हल्ला करते है कि क्या आप हर समय किचन में कुछ करती रहती है । हर समय काम ही करती रहती है । तो उसी लिये हमने ये सब करना शुरू किया जिससे किचन में पूरे समय सिर्फ़ खाना ही हम ना बनाते रहें । उससे अच्छा है कि उस बचे हुये समय का सही इस्तेमाल करें । वैसे भी जब से कोरोना आया तब से सब्ज़ी ख़रीदने के बाद से काम बहुत बढ गया है । पहले सब्ज़ी ख़रीदो फिर उसे भिगोओ फिर उसे धो फिर सब्ज़

बदला मौसम का मिज़ाज ( लॉकडाउन २.० ) बारहवाँ दिन

हर साल गरमी की शुरूआत होली ख़त्म होने के साथ ही शुरू हो जाती थी । पर इस साल तो मौसम ने भी अपना मिज़ाज कुछ बदल सा लिया है । इस साल होली के दो तीन दिन पहले तक तो बारिश ही होती रही थी जिसकी वजह से मौसम में ठंडक बरक़रार थी । और उस समय तो यही लग रहा था कि शायद होली के दिन भी बारिश होगी । पर होली से एक दिन पहले बारिश तो जरूर बंद हो गई पर तब तक इस कोरोना की कुछ कुछ आहट अपने देश में आ चुकी थी और जिसके चलते सबसे होली ना खेलने को कहा गया था । आम तौर पर होली बीतने के साथ ही हम लोग घर में ए.सी चलाना शुरू कर देते थे । पर इस साल एक तो होली बहुत जल्दी पड़ गई और दूसरे मौसम भी कुछ सर्द ही था । मतलब गरमी पड़नी शुरू नहीं हुई थी । हमें याद है पिछले साल अप्रैल के पहले हफ़्ते में हमारी सभी बहनें हमारे घर आई थी और उस समय ये हाल था कि बिना ए. सी के एक मिनट रहना दूभर था । क्योंकि मार्च से ही गरमी पड़नी शुरू हो गई थी । पर इस बार तो हम लोग ए. सी के बिना भी रह लेते है । अरे मतलब पहले तो क्या दिन क्या रात पूरे समय ए. सी चलता ही रहता था । वैसे जब हम लोग छोटे थे तब भीषण गरमी जहाँ तक हमें याद है मई में शु

सुघड़ गृहिणी ( लॉकडाउन २.० ) ग्यारहवाँ दिन

ये सब शब्द सुने तो बहुत है और बहुत लोग सुघड़ गृहिणी होती भी है । और हमारे जानने वालों में भी बहुत सुघड़ गृहिणियाँ है भी । अब सबका नाम तो नहीं दे सकते है पर हमें पता है कि वो समझ जायेंगी । अब सुघड़ गृहणियाँ तो वही होगी ना जो कोई चीज़ बर्बाद ना करें और हर बची हुई चीज़ का अच्छा इस्तेमाल करे । इस लॉकडाउन में ये पता चला कि हममें भी वो सुघड़ गृहिणी वाली कुछ विशेषतायें आ गई है । जो पहले कहीं खोई हुई थी । 😜 हमारी एक दीदी तो हमें हमेशा कहती है कि हम कोई भी सामान या खाने की चीज़ें बहुत जल्दी हटा देते है मतलब या तो किसी को दे देते है या फेंक देते है । और वो हमेशा कहती थी तुम इस काम में बड़ी जल्दबाज़ी करती हो मतलब कोई भी चीज़ फेंकने में । वैसे ओरिजनल फेंकू गुरू हम ही है । 😁 अब आमतौर पर जब भी खाना बनता है तो हमेशा कुछ ज़्यादा ही बन जाता है तो अगर एक दो दिन किसी ने नहीं खाया तो हम उस चीज़ को हटा देते थे । पर आश्चर्य है कि आजकल नो फूड वेस्टेज । मतलब आजकल तो सब कुछ इतना सही अंदाज से बनता है कि बस क्या कहें । हमारी मम्मी कहती भी थी कि बरककत तभी होती है जब गृहिणी सुघड़ हो । काश आज मम्

राम तेरी गंगा साफ़ हो गई ( लॉकडाउन २.० ) दसवाँ दिन

कितनी अजीब बात है ना कि जिस पवित्र नदी गंगा की सफाई में करोड़ों करोड़ों रूपये ख़र्च किये गये वो अचानक बिना कुछ किये ही अपने आप साफ़ और स्वच्छ हो गई । ना केवल गंगा नदी बल्कि आजकल तो पूरे देश में बहने वाली अलग अलग नदियाँ सभी पूरी तरह से साफ़ और पानी पूरी तरह से स्वच्छ हो गया है । फिर वो चाहे दिल्ली में बहने वाली यमुना नदी हो , फ़ैज़ाबाद अयोध्या में बहने वाली सरयू नदी हो लखनऊ में बहने वाली गोमती नदी हो या इलाहाबाद ( प्रयागराज ),बनारस ,हरिद्वार में बहने वाली गंगा नदी हो या चाहे झेलम ,गोदावरी या कोई और नदी हो या चाहे नैनीताल की मशहूर झील ही हो ,आजकल सबका पानी बिलकुल साफ़ और पारदर्शी सा हो गया है । इस कोरोना और लॉकडाउन ने ना केवल हम लोगों को घर पर रहने को मजबूर किया बल्कि इस लॉकडाउन ने एक बहुत बड़ी बात ये समझाई कि ये जो हमारी नदियाँ है उनसे भी हम लोगों को थोड़ी दूरी बनाकर रखनी चाहिये । मतलब एक तरह की सोशल डिसटैंसिंग । जब नब्बे के दशक में ये गाना आया था राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते धोते तब भी इस गाने के मतलब यही था कि गंगा कितनी मैली है । एक तो हीरोइन के लिये

हर किचन कुछ कहता है (लॉकडाउन २.० ) नवाँ दिन

हम सब कभी ना कभी जरूर कुछ स्पेशल बनाने किचन में तो जाते ही है पर इस लॉकडाउन ने तो हर रोज़ ही स्पेशल बना दिया है । किसके किचन में नाश्ते में क्या पक रहा है या लंच में किसने क्या खाया या फिर डिनर में कौन क्या बनायेगा । अब लॉकडाउन से पहले तो ये हमें पता ही नहीं होता था पर लॉकडाउन के चलते आजकल रोज़ नई नई खाने की डिशेज देखने को मिल रहीं है । ऐसा नहीं है कि लोग पहले खाना नहीं बनाते थे पर अब खाना बनाने में एक अलग तरह का मजा आने लगा है क्योंकि हर रोज़ नाश्ता - खाना बनाने के बाद उसकी फ़ोटो खींचकर जब तक अपने कुछ वहाटसऐप ग्रुप पर ना डाली जाये तब तक मजा नहीं आता है । यूं तो सभी अच्छे कुक है पर आजकल सबकी पाक कला कुछ ज़्यादा ही उभर कर आ रही है । और इसका अब सबको पता भी चल रहा है वरना जब तक कोई किसी के घर ना जाये तब तक पता नहीं चलता था कि वो पाक कला में कितना निपुण है । 🤓 अब हमें ही देखिये किचन से दस फ़ीट की दूरी रखने वाले पर आजकल कुछ ना कुछ बना ही रहें है । और हम भी कुछ कुछ नया ट्राई करते रहतें है । कभी नाश्ते में जलेबी पकौड़ी तो कभी लंच मे बिरयानी तो कभी डिनर में खिचड़ी तैहरी । हँसिय

लॉकडाउन में सर्वगुण सम्पन्न होते हम लोग ( लॉकडाउन २.० ) आठवाँ दिन

इस कोरोना के कारण और लॉकडाउन के चलते हम सब घर में तो रह ही रहे हैं । पर कभी सोचा ना था कि ये लॉकडाउन हमें सर्वगुण सम्पन्न भी बना सकता है । अब हम सबने ये बात अकसर शादी ब्याह के समय में सुनी है कि लड़की सर्वगुण सम्पन्न है । हालाँकि सर्वगुण सम्पन्न क्या होते है या उनका क्या मतलब होता है । ये पता तो नहीं था । पर इस लॉकडाउन के कारण हम लोग उस सर्वगुण सम्पन्न वाली श्रेणी में तो जरूर आ जायेगें । 😃 कैसे बताते है । 😆 अब कोरोना के कारण लॉकडाउन हुआ और लॉकडाउन के कारण सब मार्केट बाज़ार यहाँ तक की पार्लर तो बंद हुये ही साथ में सब मैनस सैलून मतलब बारबर शॉप भी बंद हो गई । अब आप कहेंगें कि इसका सर्व गुण सम्पन्न से क्या नाता । बता रहें है । अब झाड़ू पोछा बर्तन सफाई और खाना बनाने में तो इस लॉकडाउन में हम लोग माहिर हो गये है पर इस लॉकडाउन के चलते हमें बारबर का भी काम करना होगा ये तो हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हम भी ऐसा कुछ करेगें मतलब हेयरकट और वो भी सीधे पतिदेव का । वैसे जब हम छोटे थे तो हमारी दीदी अकसर हमारे बाल काट देती थी और कई बार तो हम खूब रोते भी थे कि हमारे बाल मत काटो

दीदी हम बोर हो रहें है ( लॉकडाउन २.० ) सातवाँ दिन

ये हम नहीं हमारी कामवाली हैल्पर का कहना है । 😊 जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से घर में काम के लिये आने वाले सभी हैल्पर छुट्टी पर ही है । ऐसे में हम हफ़्ते में एक बार हम अपनी खाना बानाने वाली से बात करते है । शुरू में तो वो कहती थी कि दीदी आपको सारा काम करना पड़ रहा होगा । और जब हमने उससे कहा कि तुम अब कुछ दिन आराम कर लो तो बोली आराम कहाँ दीदी । घर में भी तो पूरा काम करना पड़ ही रहा है । तो हमें लगा कि हैं घर में तो वो पहले भी सारा काम करती रही होगी पर शायद तब हमारे घर काम के लिये आने पर उसे ब्रेक मिल जाता होगा । मतलब जब वो हमारे घर काम के लिये आती होगी तो शायद थोड़ी देर के लिये अपने घर परिवार की समस्यायें भूल जाती होगी । ऐसा हमारा सोचना है । आज हमने उससे बात की और हाल चाल लिया तो वो बोली कि अभी तक तो सब ठीक ठीक ही है । बस हम घर में रह रहकर बोर हो रहें है । और एक सेकेंड के लिये तो हम सकते में ही आ गये । फिर हमने पूछा कि बोर क्यूँ हो रही हो । तो वो बडे मज़े से बोली कि दीदी पूरे समय घर में ही बंद रहते है । कहीं बाहर निकल नहीं पा रहें है । वैसे हमें उससे ऐसे जवाब की उ

कुछ तो हुआ है कुछ हो रहा है ( लॉकडाउन २.० ) छठां दिन

ऐसा हो तो रहा है ना 😀 परेशान मत होइये हम गाना नही गा रहें है पर हम ये जरूर सोच रहें है कि कैसे गाने हम लोगों की आजकल की इस लॉकडाउन की स्थिति में बिलकुल फ़िट बैठ रहें है । ☺️ अब आप माने चाहे ना मानें इस कोरोना और लॉकडाउन के चलते हम लोगों में थोडा बहुत बदलाव या यूँ कहें कि कुछ चेंज तो आया है । 🤓 बताते है कि क्या बदलाव या चेंज आया है । देखिये आप लोगों का तो हम नहीं जानते पर जैसा कि हमने पहले भी कई बार बताया है कि हम जरा आलसी टाइप के है तो कामधाम से दूरी होना तो लाज़िमी है ही । पर इस लॉकडाउन ने हमारी उस आलस को कहीं दूर भगा दिया है । अरे आलस तो छोड़िये जो हर समय कभी सिर में तो कभी कमर तो कभी पैर में दर्द होता था या कभी कुछ और होता रहता था अब सारी बीमारियों का नाम देने की ज़रूरत नहीं है ना । ☺️ वो सारे सिर दर्द ,कमर दर्द और बाक़ी छुटपुट बीमारियाँ आजकल कम सी क्या बिलकुल ग़ायब सी हो गई है । क्यों कि शायद उन हमारी बीमारियों को भी पता है कि अभी लॉकडाउन चल रहा है तो सभी को स्वस्थ रखने की ज़रूरत है ।😃 क्यूँ क्या हम ग़लत कह रहें है । नहीं ना । अब वही बात हो गई काम के ना काज के

मन की पतंग उड़ाओ (लॉकडाउन २.० ) पांचवां दिन

दरअसल एक दो दिन पहले हमारे ननिहाल ग्रुप पर हमारे एक कज़िन ने अपनी पतंग उड़ाते हुये फ़ोटो लगाई थी और कहा कि पतंग उड़ाइये । जब हमने पूछा कि क्या उनके शहर में पूरा लॉकडाउन नहीं है तो उसने बताया कि वहाँ पतंग मिल जाती है । मतलब जुगाड़ हो जाता है । वैसे तो दिल्ली में भी शाम को कुछ पतंग आसमान में उड़ती जरूर दिखती है । वैसे हम लोग जब बचपन में ननिहाल जाते थे तो गरमी की छुट्टियों के दो महीने घर पर ही रहते हुये कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था । और तब ऐसा नहीं था कि रोज़ ही हम लोग कहीं घूमने जाते हों । हम सब मर्ज़ी से ख़ुशी ख़ुशी सारे कज़िन मिलकर घर पर ही सारा समय बिता देते थे । पर तब के घर में रहनें और आज के घर में रहनें में बहुत फ़र्क़ है क्योंकि उस समय कोई पाबंदी या लॉकडाउन नहीं था ना ।और जब चाहें बाहर जा सकते थे आज की तरह नहीं । वैसे हमारे नाना थोड़े कड़क थे पर हम बच्चों को कभी भी कुछ नहीं कहते थे हांलांकि उनकी एक आवाज़ ही काफ़ी होती थी । बड़ी रौबदार पर्सनैलटी और आवाज़ थी । खैर अब दिल्ली में तो पतंग नहीं मिल सकती इसलिये हमने ख़यालों और मन की पतंग उड़ाने की कोशिश की क्योंकि मन

हमारे काम वाले हैल्पर हमारी शान ( लॉकडाउन २.० ) चौथा दिन

आजकल देश में कोरोना के कारण जो स्थिति है मतलब ये लॉकडाउन या कवैरंटाईन जिसके कारण हम लोगों को घर में रहना पड़ रहा है और घर का सारा कामकाज भी करना पड़ रहा है । अभी तो पच्चीस छब्बीस दिन ही हुये है। वैसे तो अभी लॉकडाउन २.० तो ३ मई तक है ही मतलब दोनों लॉकडाउन मिलाकर तो सवा महीना हो ही जायेगा । और अभी आगे और कितने दिन ये सब चलेगा कहना मुश्किल है । फिलहाल तो हम सभी लोग काम करने के लिये दिमाग़ी तौर पर तैयार है वरना तो एक दिन काम करना मुश्किल हो जाता । और जिस तरह हम लोग ये काम मजबूरी और फिलहाल जोश में कर रहें है । और अपना किये काम से हम सब खूब ख़ुश भी हो रहें है । पर हमें पक्का पता है कि जिस दिन लॉकडाउन से पाबंदी हटेगी उस दिन सबसे पहले हम सब चैन की साँस लेंगें । कि चलो अब इस कामकाज से छुट्टी मिली । 😊 हम लोग तो लॉकडाउन की मजबूरी की वजह से काम कर रहें है पर जो हमारे घरों में काम करने आती है वो भी मजबूरी के तहत ही काम करने आती है । और उनके काम पर आने से हम लोगों को एक तरह की निश्चिंती सी भी रहती है । अरे मतलब काम का कोई टेंशन नहीं रहता है ना । आजकल इन हैल्परों को लेकर हमारे एक ग्रुप

कहीं बाहर की दुनिया ही ना भूल जायें हम लोग ( लॉकडाउन २.० ) तीसरा दिन

तकरीबन पच्चीस दिन से हम लोग अपने अपने घरों में ही रह रहें है । इस कोरोना के कारण बाहर आना जाना तो बंद है ।और इसीलिये कभी कभी अब तो डर भी लगता है कि कहीं हम लोग बाहर की दुनिया को भूल ही ना जाये । 😳 अब हम तो सातवीं मंज़िल पर रहते है और जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से एक बार या शायद दो बार ही नीचे उतरे है । अब पहले तो ऐसे ही दिन में कम से कम एक या दो बार नीचे चले जाते थे पर अब तो अपने घर के दरवाज़े से बाहर ही जाना बंद है तो भला नीचे कहाँ जायेंगें । 😏 हाँ हम लोग चूँकि ऊपर की मंज़िल पर है तो उसका एक फ़ायदा है कि हम छत पर चले जाते है पर उसमें भी कहीं कोई ना मिलता है और ना ही कोई बात करने को होता है । हाँ बस ताज़ी हवा और बाक़ी छतों पर कुछ लोग खेलते और एक्सरसाइज़ करते जरूर दिख जाते है । हम तो दिन भर में कई चक्कर अपनी बालकनी में भी लगाते रहते है ताकि घर वालों के अलावा कुछ और चलते फिरते लोग तो दिखाई दें । कुछ महीने पहले एक पिकचर देखी थी हाउस अरेस्ट जिसमें हीरो अपनी मर्ज़ी से छ महीने या शायद उससे ज़्यादा समय तक घर में बंद था । हालाँकि उसमें उसके घर से बाहर कदम ना रखने का निर्णय उसका

घर में रहो और फ़िल्में देखो 😊 ( लॉकडाउन २.० ) दूसरा दिन

इस कोरोना ने तो हम सबको घर में रहने को ही मजबूर कर दिया है और कोई चारा भी तो नहीं है । क्योंकि चाहकर भी बाहर तो जाया नहीं जा सकता है । ऐसा तो शायद पहली बार ही हुआ है जब हर कोई सिर्फ़ और सिर्फ़ घर में ही रह रहा हो । अब घर में रहते हुये पूरा दिन सिर्फ़ काम ही तो नहीं करना चाहिये ।और अगर सिर्फ़ काम करेगें तो पक्का बोर हो जायेंगें । आख़िर मनोरंजन भी तो ज़रूरी है । वरना हम लोग यही गाना गाने लगेंगें सुबह और शाम काम ही काम 😀 और हम वहाटसऐप और फेसबुक तो देखते ही है साथ में फ़िल्में भी देखते रहते है । क्योंकि फ़िल्में जहाँ मनोरंजन करती है वहीं अच्छा टाइमपास भी है । 😃 हम तो आजकल क्या पहले भी फ़िल्में बहुत देखते थे । वो चाहे हॉल में देखनी हो या नैटफिलकस पर । हालाँकि हमें हॉल में ही फ़िल्में देखना ज़्यादा पसंद है । पर चूँकि आजकल हॉल में पिक्चर देखना तो दूर की नहीं बहुत दूर की बात हो गई है तो ऐसे में अमेजॉन और नैटफिलकस और मूबी बड़ा काम आ रहा है । और अमेजॉन पर तो हर तरह की फ़िल्मों का ख़ज़ाना है । हिन्दी इंगलिश के अलावा फ़्रेंच, जर्मन ,मराठी ,तमिल तेलुगु और तकरीबन हर भाषा की फ़ि

नया दिन नई शुरूआत ( लॉकडाउन २.० ) पहला दिन

पर क्या ये बात हम सबके लिये कह सकते है । शायद नहीं । जैसी कि हम सभी को उम्मीद थी और सबको ये पता भी था कि इस कोरोना के कारण लॉकडाउन बढ़ाया जायेगा और वही हुआ भी । पर इस लॉकडाउन में जहाँ हम सब तो अपने घरों में है वहीं जिन लोगों के पास घर नहीं है और जो लोग अपना गॉंव घर छोड़कर काम काज की तलाश में बडे शहरों में आते है उन लोगों के लिये तो ये बहुत ही मुश्किल का समय है । हम सब जानते है कि अपने देश में कितने लोग तो सड़कों ,बस स्टेशन और रेलवे स्टेशनों पर ही रहते और सोते है । और ऐसे लोगों को इस लॉकडाउन में जरूर परेशानी हो रही होगी । पहले लॉकडाउन के शुरू से अंत तक कहीं ना कहीं से ये ख़बर आती रहती थी कि कैसे लोग पैदल ही अपने घर को निकल पडे है । फिर वो चाहे किसी भी प्रदेश या प्रांत के रहें हो । कैसे लॉकडाउन के शुरू में दिल्ली में बहुत सारे लोग बस स्टेशन पर जमा हो गये थे ताकि बसों से अपने शहर या गॉंव जा सकें । और कल मुम्बई में कैसे इतने सारे लोग रेलवे स्टेशन पर पहुँच कर जमा हो गये इस उम्मीद में कि शायद ट्रेन चलेगी और वो अपने घरों को जा सकेंगे । क्या दिल्ली क्या मुम्बई क्या मध्य प्रद

अपनी अपनी पीठ थपथपा लो ( इक्कीसवाँ दिन )

आज लॉकडाउन का इक्कीसवाँ दिन है तो सबसे पहले तो हम सभी को इसके लिये बधाई । और चूँकि इन इक्कीस दिनों में हमने पूरी लगन और शिद्दत से सारे काम किये है तो हम सबको अपनी पीठ थपथपा लेनी चाहिये । क्यूँ ? ये भी कोई पूछने या बताने की ज़रूरत है । और इसमें हम लोग पतिदेव और बच्चों को नहीं छोड़ सकते क्यों कि इस कवैरंटाईन में इन लोगों ने भी हम सबका बहुत साथ दिया है । फिर वो चाहे काम में हाथ बटाना हो या कुछ और काम में मदद करना हो । ना कुछ स्पेशल खाने की फ़रमाइश ना ही कोई खाने को लेकर हील- हुजजत । पर हाँ कभी कभी जरूर ...... ।🤓 जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से हम लोग बस घर में ही है और ऐसे में धमाके होने के बहुत चांस होते है । अब यूं तो ये कहावत आम तौर पर औरतों के लिये ख़ासकर सास बहू के लिये कही जाती थी कि जहाँ चार बर्तन होगे तो वो टकरायेगें ही । पर आजकल के इस कवैरंटाईन के समय में ये बात सभी के लिये कही जा सकती है । समझ गये ना । 😛 और एक बात सभी ने नोटिस की होगी कि आजकल ख़र्चे कम और बचत ही बचत हो रही है । अब जब बाहर जाना आना है नहीं तो पेट्रोल ,डीज़ल,टैक्सी ,सिनेमा तमाशा ,बाहर का खाना सब ब

कितने दिन का लॉकडाउन था ( बीसवाँ दिन )

अरे ओ सखियों कितने दिन का लॉकडाउन था इक्कीस दिन का और अब कितने दिन बचे दो दिन अरे ओ सखियों दो दिन नहीं अभी पंद्रह दिन और बढ़ेगा ( ऐसी ख़बर तो है ) चलो सखियों अपनी कमर कसे रहो क्यों कि अभी इस घरेलू काम काज से जल्दी छुट्टी नहीं मिलने वाली । और वो गाना सुना है ना हिम्मत ना हार फ़क़ीरा चल चला चल । मतलब लगे रहो । अब जब ये कवैरंटाईन आगे बढ़ने वाला है तो हम सबको भी अपनी हिम्मत और जोश को बरक़रार रखना होगा । बिलकुल उसी तरह जैसे उरी फ़िल्म में हीरो पूछता रहता था ना हाऊ इज द जोश । और सारे बटालियन कहती थी हाई सर । ठीक उसी बटालियन की तरह हम सबको भी अपना जोश हाई बनाये रखना है । तो फिर फ़िकर नॉट मतलब चिन्ता किस बात की । जैसे इतने दिन बीते वैसे ये बाक़ी के दिन भी बीत जायेंगे । क्यूँ ठीक कह रहे हैं ना । अब तो सारा काम भी बडे सलीक़े से और अच्छे से होने लगा है । अब तो काम करने के ऐसे पक्के हो गये है कि कुछ पूछिये मत । अरे हम क्या आप लोग भी तो अब सब काम करने में एक्सपर्ट हो रहें है ना । अब पहले तो खाना बनाना दूर की बात थी पर आजकल तो नये नये ट्रायल भी हो रहें है । पर हाँ इस बात का

सोशल मीडिया और सोशल डिस्टेंसिंग ( उन्नीसवाँ दिन )

हमें लगता है कि सोशल मीडिया और सोशल डिस्टेंसिंग की आज के माहौल में बहुत ज़रूरी है ।आपको नहीं लगता है कि ये दोनों एक दूसरे के पूरक से हो गये है । इस कोरोना के कारण जब सभी लोग घरों में ही है और घर से ही ऑफ़िस का भी काम धाम चल रहा है और चूँकि घर से बाहर निकलना मना है तो ऐसे में ये सोशल मीडिया ही काम आ रहा है । फिर वो चाहे मनोरंजन हो या कुछ काम ही क्यूँ ना हो । कभी कभी हम सोचते है कि अगर सोशल मीडिया ना होता तो हम लोगों का क्या होता । क्योंकि इसके चलते एक तो दूरी पता नहीं चलती है और दूसरे सबसे जुड़े भी रहते है । मतलब साफ़ सोशल डिस्टेंसिग रखते हुये सबसे सोशली जुड़े रहो । जरा सोचिये अगर आज फेसबुक ,वहाटसऐप ,इंसटाग्राम, ट्वीटर यू ट्यूब टिकटॉक नहीं होते तो हम लोग कैसे समय काटते । क्योंकि आज के समय में इनके बिना तो जिंदगी सोची ही नहीं जा सकती है । और आज के इस कवैरंटाईन के समय में ये ही हम सबका सबसे बड़ा सहारा है । अब वहाटसऐप को ही लीजिये हम लोग घरों में पहले भी कुछ ना कुछ स्पेशल बनाते थे पर ऐसा नहीं था कि हमेशा खाने की फ़ोटो खींचें और वहाटसऐप पर लगायें । पर आज के समय में खाने की फ़

छोटे बच्चों के साथ लॉकडाउन ( अट्ठारहवां दिन )

हम सभी लोग इस लॉकडाउन में कुछ अलग और कुछ एक से तरीक़े से ही रह रहें है । हम लोगों के घर में चूँकि कोई छोटा बच्चा या स्कूल या कॉलेज जाने वाले बच्चे नहीं है पर जिनके घर में बच्चे है ,उनके लिये तो लॉकडाउन में एक तरह से डबल काम हो गया होगा । अब वैसे तो बच्चे स्कूल वग़ैरा चले जाते थे , शाम को भी बच्चे किसी स्पोटर्स के लिये या कुछ और सीखने के लिये जाते रहे होगे पर आजकल कवैरंटाईन के चलते बच्चों का भी बाहर आना जाना भी बंद हो गया है। जब हम लोगों को घर मे पूरे समय रहने में परेशानी सी होती है तो छोटे बच्चों को पूरे दिन घर में घर में रहना कितना मुश्किल होता होगा क्योंकि बच्चों में एनर्जी ज़्यादा होती है । अब ऐसा नहीं है कि वो लोग कुछ करती नहीं होंगी पर जब बच्चे घर से बाहर स्कूल या शाम को पार्क वग़ैरा में खेलते है तो उनकी एनर्जी भी ख़र्च होती ही है । अब घर में रहते हुये इतनी एनर्जी कहाँ ख़र्च होती होगी । और ऐसे में माओ को ही नये नये तरीक़े ढूँढने पड़ते होंगें । हम एक ग्रुप के सदस्य है जिसमें जब से स्कूल बंद हुये है तब पहले तो मॉंये बच्चों के होमवर्क के लिये थोडा चिंतित रहती थी पर लॉ

नीला आसमान , शुद्ध हवा और हम लोग ( सत्रहवां दिन )

अब इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना के चलते सब लोग लॉकडाउन में है । अब जब सारा देश लॉकडाउन में है और सारी जनता घर में है तो ज़ाहिर है कि बाहर सड़क पर एक तो लोग कम है और दूसरे कारें और बसें वग़ैरा तो बिलकुल ही ना के बराबर है । होली के पहले से ही लोगों ने घर से बाहर निकलना थोड़ा कम जरूर कर दिया था । और लोगों ने होली भी नहीं खेली थी । क्योंकि उस समय कोरोना का डर थोड़ा थोडा शुरू रहा था । हमें याद है होली के दो दिन बाद हम मॉल गये थे, जिस वेगास मॉल में लोगों से रौनक़ रहती थी वहाँ एक तरह का सन्नाटा था जो बहुत ही अजीब था क्यों कि उस समय तक दिल्ली वग़ैरा में सिर्फ़ स्कूल ही बंद थे । आजकल अकसर ऐसी ख़बरें पढ़ने को मिल रही है जैसे दिल्ली में यमुना का पानी साफ़ हो गया है । या पंजाब से हिमालय पर्वत दिखाई देने लगा है । या मुम्बई और दिल्ली में आसमान का सुंदर नीला रंग दिखाई देने लगा है । और ये सारी ख़बरें सही है और ये ख़बरें हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि क्या ये जो भी समस्यायें है वो हम इन्सानों नें ही बनाई है । ये बात तो है कि दिल्ली क्या देश के ज़्यादातर हिस्सों में कवैरंटाईन के पहले

चुस्ती फुरती और मीठी नींद ( सोलहवां दिन )

ओहो आप कहेगें कि चुस्त तो आप पहले भी थे , अरे हम आपकी नहीं अपनी बात कर रहे है और वो क्या है ना हमने पहले भी बताया कि हम थोड़े से आलसी टाइप के है । और हमारा फ़ंडा है कि अगर घर में काम करने के लिये हैल्पर है तो फिर हम घर के कामों से दो फ़ीट की दूरी बना कर रखते है , बिलकुल सही समझे आप कि हमें तब घर का कोई भी काम करने में जरा भी दिलचस्पी नहीं रहती है । वैसे भी हम घर के काम काज करने में बहुत ज़्यादा आगे नहीं बल्कि पीछे रहते है । ☺️ पर इस कोरोना के चलते जब से हम लोग घर पर है और सारे काम करने वाले हैल्पर छुट्टी पर है तो चाहो या ना चाहो घर का सब काम करना ही पड़ रहा है । अभी तो इक्कीस दिन से शुरूआत हुई है और अभी दूर तक जाना है मतलब अभी तो काफ़ी दिन तक हम लोगों को ही सारा काम करना है । इतनी जल्दी इससे नहीं छूटने वाले । 😏 वैसे शुरू में एक दो दिन तो बहुत समय भी लगा सारा घर समेटने में क्योंकि आज तक कभी भी इतना ना तो काम किया और नाहीं कभी ऐसी ज़रूरत पड़ी । पर अब धीरे धीरे पक्के और एक्सपर्ट होते जा रहे है । अभी बीस मार्च तक हम रोज़ आठ साढ़े आठ बजे सोकर उठते थे पर आजकल हम साढ़े

बालों के असली रंग की खोज ( पन्द्रहवां दिन )

अरे क्या सोचने लगे आप । हम आपकी नहीं अपनी बात कर रहें है । अब इस कवैरंटाईन का कुछ तो फ़ायदा उठाना ही चाहिये ना । अब पिछले कुछ सालों से हमने अपने बालों को कलर करना शुरू किया था । पहली बार जब कलर किया तो उस समय तक बाल ग्रे नहीं हुये थे । बस शौक़िया तौर पर कुछ अलग करने की चाहत से अपने काले बालों को ब्राउन कलर में रंगवा लिया । रंगवा इसलिये कह रहें है कि पहली बार हमने सैलून से कलर करवाया था । और वो भी इस भरोसे से कि बाद में फिर हम कलर नहीं करेंगे । और बालों को कोई नुक़सान भी नहीं होगा । पर सब कुछ चाहने से हो जाये तो क्या बात है । एक बार इस कलर के चक्कर में पड़ जाये फिर तो चाहकर भी इससे छुटकारा नहीं । 😏 अरे हम सच कह रहें है क्योंकि या तो लोग शौक से या तो लोग बालों की सफ़ेदी छिपाने के लिये कलर करते है । अब हमने तो शौक के चक्कर में शुरू किया और बस इसी में उलझ कर रह गये । आपका पता नहीं । 🤓 हर हेयर कलर ब्रांड ये कहती है कि उसमें अमोनिया नहीं है और ये बालों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचायेगा पर ऐसा कुछ नहीं है । हर ब्रांड बालों को कुछ ना कुछ नुक़सान तो करता ही है । चाहे कितना भी ते

लगता है पशु -पक्षी भी कवैरंटाईन में चल रहे है ( चौदहवाँ दिन )

अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ हम लोग ही कवैरंटाईन को मान रहे है बल्कि हमें तो ऐसा लगता है कि हमारे पशु-पक्षी भी इस कवैरंटाईन का पालन कर रहे है । क्या आपको ऐसा नहीं लगता है । पर हमें तो ऐसा ही लग रहा है । अब वो क्या है ना कि जब कहीं आना जाना नहीं हो तो ऐसी बातों पर ध्यान जाता ही है । 😊 क्यों ? बताते है । बताते है । कवैरंटाईन के पहले तो पक्षी जैसे कबूतर ,कौआ , मैना, और कभी कभार गौरेया ,फ़ाख्ता और चील बहुत उड़ते हुये दिखाई देते थे । और हमारे घर की बालकनी में तो कबूतर और मैना बहुत आते थे । पर जब से ये कवैरंटाईन शुरू हुआ है तब से ये पक्षी भी बहुत ही कम उड़ते हुये दिखते है । अब ऐसा भी नहीं है कि कबूतर और मैना बिलकुल ही ग़ायब है पर ये पक्षी भी आजकल बस सुबह और शाम को ही नज़र आते है । वरना तो हर समय कबूतर और मैना एक दूसरे को भगाते हुये नज़र आते थे । जब हम इनको खाने के लिये कुछ दाना डालते थे । कबूतर मैना क्या हमारे यहाँ तो गिलहरियाँ भी पूरा नीचे ग्राउंड फ़्लोर से सातवीं मंज़िल तक धाम चौकड़ी करती रहती थी मानो ( माउंटेनियरिंग का कोर्स की हों )और हम कहते भी थे कि गिलहरी पेड़ पर चढ़ना छ

अरसे बाद मलाई और बेसन का फ़ेस पैक लगाया ( तेरहवाँ दिन )

अब तो धीरे धीरे कवैरंटाईन का समय और दिन बीत रहें है । पर फिर भी घर से बाहर तो जाना नहीं है । और ऐसे में अपनी स्किन की देखभाल भी तो ज़रूरी है । क्यों कि आजकल तो क्या ब्यूटी पार्लर और क्या अर्बन क्लैप ,सभी बंद है । अब पिछले कुछ सालों से जब से हमने फेशियल वग़ैरा करवाना शुरू किया तब से घर पर हमने अपनी स्किन के लिये कुछ भी करना छोड़ ही दिया था । कुछ आलस और कुछ लापरवाही । और जब से अर्बन क्लैप शुरू हुआ तब से तो और भी आराम हो गया कि ब्यूटीशियन घर पर ही आ जाती है । तो आराम के साथ साथ हम इसके आदी भी होते गये । और अपनी स्किन के लिये ख़ुद कुछ भी करना एक तरह से छोड़ ही दिया था । ☹️ पहले हम फेशियल वग़ैरा बहुत नियमित रूप से नहीं कराते थे बस जब कभी शादी ब्याह पड़ा तो ज़रूर करवा लेते थे । और तब हमारी पार्लर वाली हमेशा कहती थी कि मैडम आप फेशियल करवाया करिये । पर हम हमेशा मना कर देते थे । क्यों कि उस समय तक हम मलाई और बेसन को मिलाकर उसका पैक ही अपने चेहरे पर लगाया करते थे । और उसके रिज़ल्ट से हम ख़ुश भी थे । पर इधर कुछ सालों से जब से अर्बन क्लैप की होम सर्विस शुरू हुई तब से हमने फेशियल नियमित

हाथ जैसे घोड़ी के खुर 😁( बारहवाँ दिन )

जी बिलकुल सही पढ़ा है आपने । अब इस कवैरंटाईन के चलते मेरे तो क्या सभी के हाथों का यही हाल हो रहा होगा । 😏 क्यूँ ठीक कह रहें है ना । आज हमें झाड़ू पोंछा और बर्तन माँजते माँजते बारह दिन नहीं पन्द्रह दिन हो गये है । कैसे ? तो वो ऐसे कि हमने तो अपनी पार्वती को इक्कीस तारीख़ से ही छुट्टी दे दी थी । लिहाज़ा हम पिछले पन्द्रह दिन से सब काम कर रहें है । अब जहाँ एक भी काम ना करते हों वहाँ इतना काम करना पड़े तो हाथों पर असर तो होगा ही । आजकल तो हाथों का ये हाल है कि बस पूछिये मत । पर जब साफ़ और चमकते बर्तन देखते है तो सब कुछ भूल जाते है । अब ये तो आप लोग भी मानेंगे कि ख़ुद से काम करने पर बर्तन और घर दोनों ही चमकते है । पर इस चमकीले घर और चमकते बर्तन के चक्कर में हमारे हाथ तो ऐसे हो गये है जैसे घोड़ी के खुर । बिलकुल शोले की बसन्ती की तरह जिसके हाथ टांगा खींचते खींचते घोड़ी के खुर जैसे हो गये थे । 😁 हाथों की रफनैस का ये हाल है कि चाहे जितना क्रीम या वैसलीन लगा लो ,सब पूरी तरह से ऐबसॉरब हो जा रहा है । और इसी वजह से हर थोड़ी देर पर हाथों में क्रीम वग़ैरा लगाते रहते है । पर कुछ

दाल रोटी खाओ प्रभु के गुन गाओ ( ग्याहरवाँ दिन )

आज कवैरंटाईन का ग्यारहवाँ दिन शुरू हो गया है । पिछले दस दिन तो अच्छे से गुज़रे हैं तो आगे भी अच्छे ही गुजरेंगें । अब कवैरंटाईन के बारे में जिस समय घोषणा हुई थी उस समय तो हर किसी ने फटाफट राशन और सब्ज़ी वग़ैरा खरीदना शुरू कर दिया था । और हमने भी ऐसा ही किया था । वैसे राशन तो ज़्यादा ख़रीद भी सकते हैं और काफ़ी दिन तक इस्तेमाल भी कर सकते है क्यों कि आटा चावल तो जल्दी ख़राब नहीं होते है पर सब्ज़ी भला कितने दिन चलेगी । ये सवाल तो ज़रूर उठा । अब हरी सब्ज़ी कोई दस या बारह दिन तक ही चल सकती है चाहे कितना भी स्टॉक कर लें क्यों कि बाद में धीरे धीरे सब्ज़ी ख़राब होने लगती है । वैसे आलू,प्याज़ टमाटर तो काफ़ी समय तक इस्तेमाल किये जा सकते है । वैसे हमारे यहाँ तो दुकानों पर अभी सब्ज़ी ,फल वग़ैरा मिल रहा है । और कभी कभी ऑनलाइन ऐप पर भी ऑर्डर करके आ जाता है । हालाँकि हम नहीं जाते है पर हमारे गार्ड वग़ैरा कभी कभार फल सब्ज़ी बाज़ार से ला देते है । हमने तो घर में भी कह रखा है कि जब सब्ज़ी वग़ैरा नहीं मिलेगी तो दाल रोटी खाई जायेगी । वैसे हम ये पोस्ट बाद में लगाने वाले थे पर कल अपनी एक

सेल्फ़ मोटिवेशन ( दसवाँ दिन )

इस सेल्फ़ आईसोलेशन के समय में सेल्फ़ मोटिवेशन की बहुत अहमियत और ज़रूरत है । आप भी सहमत है ना हमारी इस बात से । अब देखिये ना कहीं आना ना कहीं जाना और घर में रहना और उस पर काम ही काम बेशुमार । तो अपने आपको तो मोटिवेट करने की बेहद ज़रूरत है क्योंकि अगर हम ही थक जायेंगें या कुछ उदास या दुखी टाइप के हो जायेंगे तो आप सोच सकते है कि घर का क्या माहौल हो जायेगा । हर तरफ़ बड़ा ही अजीब सा माहौल हो जायेगा । और ऐसे में घर में अशांति का माहौल हो जायेगा क्योंकि अगर हम ख़ुश नहीं रहेंगे तो भला ये कवैरंटाईन का समय कैसे बीतेगा । और फिर घर का काम करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायेगा बिलकुल डॉन के डायलॉग की तरह । 😊 तो ख़ुशी और मोटिवेशन तो हमें अपने अंदर और आस-पास ही ढूँढनी पड़ेगी । जैसे योगा करके , ध्यान लगाकर या म्यूज़िक सुनकर , खाना बनाकर भी बहुत लोगों को ख़ुशी मिलती है और जब हम लोग ख़ुश होंगें तो मनोबल या मोटिवेशन तो बढ़ेगा ही । है ना । वैसे हम तो म्यूज़िक सुनते हुये घर में काम करते है और ऐसे में घर का काम भी निपट जाता है और हमें बोरियत भी नहीं होती है । अब जैसे कल हमें यू ट्यूब का म

दिन तारीख़ कुछ याद नहीं ( आठवाँ दिन )

जब से कवैरंटाईन शुरू हुआ है तब से कौन सा दिन है या कौन सी तारीख़ है कुछ याद नहीं है । बस रोज़ ये लगता है कि आज एक दिन और बीत गया । और हमें वो भी इसलिये पता रहता है क्योंकि आजकल हम रोज़ एक पोस्ट जो लिख रहें है । 😁 वैसे आपका तो हम नहीं जानते पर अपने बारे में तो हम यक़ीन से ये कह सकते है कि जब हम पोस्ट लिखते है तब यही पता चलता है कि कवैरंटाईन के कितने दिन कम हुये है । और आज कौन सा दिन है । अब आजकल तो रोज़ की दिनचर्या ही ऐसी हो गई है कि बस सुबह उठो , चाय शाय पियो और बस लग जाओ काम पर । अब भला ऐसे में कहाँ याद रहे कि आज कौन सी तारीख़ है या कौन सा दिन है । 😏 क्या आपको दिन और तारीख़ याद रहती है । अगर याद है तो आप कमाल है । 👍 आजकल तो उस गाने का उलटा हिसाब चल रहा है जिसमें गाया गया था कि हर दिन होली हर रात दिवाली । अपना तो हर दिन काम हर रात काम ही चल रहा है । क्या दिन क्या रात सब दिन एक समान । 😩 चलिये बहुत बातें हो गई । हम चलते है कुछ और काम निपटाने । आपने इतने ध्यान से पोस्ट पढ़ी ,इसके लिये हम आपके शुक्र गुज़ार है । हा हा हा अप्रैल फूल बनाया , आपको ग़ुस्सा तो नहीं आया