कहीं बाहर की दुनिया ही ना भूल जायें हम लोग ( लॉकडाउन २.० ) तीसरा दिन

तकरीबन पच्चीस दिन से हम लोग अपने अपने घरों में ही रह रहें है । इस कोरोना के कारण बाहर आना जाना तो बंद है ।और इसीलिये कभी कभी अब तो डर भी लगता है कि कहीं हम लोग बाहर की दुनिया को भूल ही ना जाये । 😳


अब हम तो सातवीं मंज़िल पर रहते है और जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से एक बार या शायद दो बार ही नीचे उतरे है । अब पहले तो ऐसे ही दिन में कम से कम एक या दो बार नीचे चले जाते थे पर अब तो अपने घर के दरवाज़े से बाहर ही जाना बंद है तो भला नीचे कहाँ जायेंगें । 😏

हाँ हम लोग चूँकि ऊपर की मंज़िल पर है तो उसका एक फ़ायदा है कि हम छत पर चले जाते है पर उसमें भी कहीं कोई ना मिलता है और ना ही कोई बात करने को होता है । हाँ बस ताज़ी हवा और बाक़ी छतों पर कुछ लोग खेलते और एक्सरसाइज़ करते जरूर दिख जाते है । हम तो दिन भर में कई चक्कर अपनी बालकनी में भी लगाते रहते है ताकि घर वालों के अलावा कुछ और चलते फिरते लोग तो दिखाई दें ।


कुछ महीने पहले एक पिकचर देखी थी हाउस अरेस्ट जिसमें हीरो अपनी मर्ज़ी से छ महीने या शायद उससे ज़्यादा समय तक घर में बंद था । हालाँकि उसमें उसके घर से बाहर कदम ना रखने का निर्णय उसका था । और वो किसी को घर के अंदर भी नहीं आने देता था । घर में ना तो कोई काम वाला आता था ना ही कोई और । खाना से लेकर साफ़ सफाई वो ख़ुद ही करता था । पर हाँ सब सामान वो ऑनलाइन जरूर मंगवाता था । और बस यही उसका बाहरी लोगों से सोशल इंटरएक्शन होता था ।


अब आप कहेगें कि वो तो फ़िल्म थी । जी हाँ हम भी यही सोच रहे है कि वो तो फ़िल्म थी । पर कब सोचा था कि हम लोग भी ऐसी फ़िल्मी जिंदगी के मज़े लेगें । वो कहते है ना कि फ़िल्में जिंदगी का आइना होती है आज ये बात कुछ हद तक सच लग रही है । 😊

और उस फ़िल्म को देखकर हमें कभी नहीं लगा था कि हम लोग भी कभी इस तरह ही अपने घरों में रहेंगें । और सोशल इंटरएक्शन के नाम पर गार्डस को चाय देना या फल और सब्ज़ी या राशन का सामान मंगवाना और लेना होगा ।



अब उस फ़िल्म और हम लोगों की रीयल लाइफ़ में अन्तर ये है कि हीरो अपनी मर्ज़ी से घर में बंद था और हम लोग इस कोरोना नाम की महामारी से बचने के लिये घरों में बंद है ।


इतने दिनों तक घरों में रहने के बाद तो बाज़ार क्या होता है ,कहीं हम लोग भूल ना जायें ।
अपने जानने वालों के घर जाने पर कैसी फीलिंग आती है , कहीं हम भूल ना जायें ।
पिक्चर हॉल में फ़िल्म देखने का मजा क्या होता है , कहीं हम भूल ना जायें ।
और सबसे बड़ी बात हम लोग घर से बाहर निकलना ही कहीं भूल ना जायें ।


क्या ऐसा हो सकता है । आपका क्या कहना है ।






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