हाथ जैसे घोड़ी के खुर 😁( बारहवाँ दिन )

जी बिलकुल सही पढ़ा है आपने । अब इस कवैरंटाईन के चलते मेरे तो क्या सभी के हाथों का यही हाल हो रहा होगा । 😏

क्यूँ ठीक कह रहें है ना ।

आज हमें झाड़ू पोंछा और बर्तन माँजते माँजते बारह दिन नहीं पन्द्रह दिन हो गये है ।

कैसे ?

तो वो ऐसे कि हमने तो अपनी पार्वती को इक्कीस तारीख़ से ही छुट्टी दे दी थी । लिहाज़ा हम पिछले पन्द्रह दिन से सब काम कर रहें है ।

अब जहाँ एक भी काम ना करते हों वहाँ इतना काम करना पड़े तो हाथों पर असर तो होगा ही ।


आजकल तो हाथों का ये हाल है कि बस पूछिये मत । पर जब साफ़ और चमकते बर्तन देखते है तो सब कुछ भूल जाते है । अब ये तो आप लोग भी मानेंगे कि ख़ुद से काम करने पर बर्तन और घर दोनों ही चमकते है ।


पर इस चमकीले घर और चमकते बर्तन के चक्कर में हमारे हाथ तो ऐसे हो गये है जैसे घोड़ी के खुर । बिलकुल शोले की बसन्ती की तरह जिसके हाथ टांगा खींचते खींचते घोड़ी के खुर जैसे हो गये थे । 😁



हाथों की रफनैस का ये हाल है कि चाहे जितना क्रीम या वैसलीन लगा लो ,सब पूरी तरह से ऐबसॉरब हो जा रहा है । और इसी वजह से हर थोड़ी देर पर हाथों में क्रीम वग़ैरा लगाते रहते है । पर कुछ ख़ास असर नहीं होता है । क्यों कि कुछ तो करोना के चलते हाथ धोते रहते है और बाक़ी कसर बर्तन धोने से पूरी हो रही है ।



आजकल तो इस गाने का बिगड़ा हुआ रूप ही मन में आता है


माँजते रहो बर्तन किचन में
बार बार बेशुमार


चलिये हम तो बर्तन और सारा काम कर चुके है और उम्मीद करते है कि आप भी सब काम निपटा चुकी होंगीं । 🤓👍









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