मन की पतंग उड़ाओ (लॉकडाउन २.० ) पांचवां दिन
दरअसल एक दो दिन पहले हमारे ननिहाल ग्रुप पर हमारे एक कज़िन ने अपनी पतंग उड़ाते हुये फ़ोटो लगाई थी और कहा कि पतंग उड़ाइये । जब हमने पूछा कि क्या उनके शहर में पूरा लॉकडाउन नहीं है तो उसने बताया कि वहाँ पतंग मिल जाती है । मतलब जुगाड़ हो जाता है । वैसे तो दिल्ली में भी शाम को कुछ पतंग आसमान में उड़ती जरूर दिखती है ।
वैसे हम लोग जब बचपन में ननिहाल जाते थे तो गरमी की छुट्टियों के दो महीने घर पर ही रहते हुये कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था । और तब ऐसा नहीं था कि रोज़ ही हम लोग कहीं घूमने जाते हों । हम सब मर्ज़ी से ख़ुशी ख़ुशी सारे कज़िन मिलकर घर पर ही सारा समय बिता देते थे ।
पर तब के घर में रहनें और आज के घर में रहनें में बहुत फ़र्क़ है क्योंकि उस समय कोई पाबंदी या लॉकडाउन नहीं था ना ।और जब चाहें बाहर जा सकते थे आज की तरह नहीं । वैसे हमारे नाना थोड़े कड़क थे पर हम बच्चों को कभी भी कुछ नहीं कहते थे हांलांकि उनकी एक आवाज़ ही काफ़ी होती थी । बड़ी रौबदार पर्सनैलटी और आवाज़ थी ।
खैर अब दिल्ली में तो पतंग नहीं मिल सकती इसलिये हमने ख़यालों और मन की पतंग उड़ाने की कोशिश की क्योंकि मन की पतंग तो कम से कम उडा ही सकते है ।
और पतंग उड़ाते हुये अभी हमने गाना शुरू ही किया था
चली चली रे पतंग मेरी चली रे
कि हमारी पतंग को जलेबी दिख गई तो बस फिर क्या था हमारी पतंग अटक गई । तो हमने सोचा कि ख़याली पुलाव ना सही पतंग की जलेबी की उड़ान तो पूरी कर ही दी जाये । 😃
बस फिर क्या था आज तो संडे भी है अब ये मत कहियेगा कि लॉकडाउन में तो रोज़ ही संडे है । ऐसा नहीं है संडे की अपनी महिमा होती है ।और इसे हम नकार नहीं सकते है ।
और इसीलिये क्यूँकि आज संडे है तो हमने मन की पतंग की जलेबी खाने की इच्छा को जलेबी बनाकर और खाकर पूरी की । 😝
पतंग यानि आसमान की खुली हवा में मदमस्त होकर उड़ना । तो आप भी अपने मन की पतंग को खुली हवा में उड़ाइये और लॉकडाउन का मजा लीजिये ।
कटी पतंग बनकर मत रहिये । 😂
वैसे हम लोग जब बचपन में ननिहाल जाते थे तो गरमी की छुट्टियों के दो महीने घर पर ही रहते हुये कैसे बीत जाते थे पता ही नहीं चलता था । और तब ऐसा नहीं था कि रोज़ ही हम लोग कहीं घूमने जाते हों । हम सब मर्ज़ी से ख़ुशी ख़ुशी सारे कज़िन मिलकर घर पर ही सारा समय बिता देते थे ।
पर तब के घर में रहनें और आज के घर में रहनें में बहुत फ़र्क़ है क्योंकि उस समय कोई पाबंदी या लॉकडाउन नहीं था ना ।और जब चाहें बाहर जा सकते थे आज की तरह नहीं । वैसे हमारे नाना थोड़े कड़क थे पर हम बच्चों को कभी भी कुछ नहीं कहते थे हांलांकि उनकी एक आवाज़ ही काफ़ी होती थी । बड़ी रौबदार पर्सनैलटी और आवाज़ थी ।
खैर अब दिल्ली में तो पतंग नहीं मिल सकती इसलिये हमने ख़यालों और मन की पतंग उड़ाने की कोशिश की क्योंकि मन की पतंग तो कम से कम उडा ही सकते है ।
और पतंग उड़ाते हुये अभी हमने गाना शुरू ही किया था
चली चली रे पतंग मेरी चली रे
कि हमारी पतंग को जलेबी दिख गई तो बस फिर क्या था हमारी पतंग अटक गई । तो हमने सोचा कि ख़याली पुलाव ना सही पतंग की जलेबी की उड़ान तो पूरी कर ही दी जाये । 😃
बस फिर क्या था आज तो संडे भी है अब ये मत कहियेगा कि लॉकडाउन में तो रोज़ ही संडे है । ऐसा नहीं है संडे की अपनी महिमा होती है ।और इसे हम नकार नहीं सकते है ।
और इसीलिये क्यूँकि आज संडे है तो हमने मन की पतंग की जलेबी खाने की इच्छा को जलेबी बनाकर और खाकर पूरी की । 😝
पतंग यानि आसमान की खुली हवा में मदमस्त होकर उड़ना । तो आप भी अपने मन की पतंग को खुली हवा में उड़ाइये और लॉकडाउन का मजा लीजिये ।
कटी पतंग बनकर मत रहिये । 😂
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