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Showing posts from December, 2018

नये साल का रिज़ोल्यूशन

वैसे हम ज़्यादा रिज़ोल्यूशन जैसी बात में विश्वास नहीं करते है । आम तौर पर हम ना तो कोई रिज़ोल्यूशन ना ही अपने आप से कोई ख़ास वादा या प्रॉमिस करते है । अब इसका एक कारण है । वो क्या है ना कि हमने पिछले साल यानि २०१८ में सोचा और अपने से वादा किया कि इस साल हम कुछ नहीं तो पाँच से सात किलो अपना वज़न घटायेगें । और हमने उस पर अमल भी करना शुरू कर दिया और पाँच सात तो नहीं पर हाँ दो किलो वज़न ज़रूर कम कर लिया था । और अपनी इस उपलब्धि पर हम ख़ुश भी बहुत थे । पर ये क्या जैसे ही जाड़े के मौसम की शुरूआत हुई तो बस सब गड़बड़ हो गया । अब हरी मटर से बनने वाले तरह तरह के व्यंजनों जैसे घुघरी , मटर का पराँठा या पूड़ी , मटर की कचौड़ी ,मटर की टिक्की मटर का निमोना ।😋 पढ़कर मुँह में पानी आ गया ना तो सोचिये जब घर में ये सब बने तो भला कौन वज़न कंट्रोल कर सकता है । और वैसे भी मटर का स्वाद तो इसी मौसम में भाता है । सिर्फ़ मटर ही क्यों गाजर का हलवा ,गोंद के लड्डू , गजक जैसी स्वादिष्ट खाने की चीज़ों के चलते कौन वज़न घटा सकता है । भई हम तो नहीं कर सकते है । 😊 तो फ़िलहाल इस साल नो रिज़ोल्यूशन । इस बार

जाने वाले साल को सलाम ,आने वाले साल को सलाम

जी हाँ आज साल २०१८ का आख़िरी दिन है और इस पूरे साल का लेखा जोखा करें तो साल अच्छा ही गुज़रा बस दो चार बार बीमार पड़ने को छोड़ दें तो । यूँ तो हम २००७ से ब्लॉगिंग कर रहे थे पर इस साल फ़रवरी से हमने फेसबुक पर अपना ब्लॉग लिखना शुरू किया । २०१८ में स्कूल की सहेलियों से खूब मुलाक़ातें हुई । आने वाले साल यानि २०१९ के लिये उम्मीद है कि अच्छा ही गुज़रेगा । ज़्यादा लम्बी पोस्ट नहीं लिखेंगें क्योंकि जानते है हमारी तरह आप सब भी नये साल के स्वागत की तैयारी में होगें । तो चलिये आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें ।

छब्बीस दिसम्बर २००४ यानि सुनामी

हर साल छब्बीस दिसम्बर आने पर सुनामी याद आ ही जाती है । और छब्बीस दिसम्बर की वो सुबह जब समुद्र की लहरों ने सब कुछ बदल दिया था । आज चौदह साल बाद भी सुनामी की बात करते हुये मेरे रोंगटे से खड़े हो जाते है क्योंकि उस दिन जो इतना तीव्र भूकम्प आया था और जब उसके बाद समुंदर ने अपना रौद्र रूप दिखाया था उसे भला कैसे भूल सकते है । आज भी जब उस दिन की बात करते है तो जैसे वो पूरा मंज़र आँखों के सामने घूम जाता है । रविवार की सुबह छ: बजे हम लोग सो रहे थे जब बहुत तेज़ भूकम्प आया तो पहले तो समझने में समय लगा कि फिर देखा कि अलमारी, दरवाज़े सब धड़ धड़ करके हिल रहे है तो झट से उठे और बेटे को आवाज़ लगाई कि जल्दी उठो भागो भूकम्प आया है । अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में हम लोग दुमंज़िला ( डुप्लेक्स ) घर में रहते थे और चूँकि ऊपर की मंज़िल पर हम लोगों के कमरे थे तो सीढ़ी से नीचे भागते हुये सँभलना पड़ रहा था क्योंकि सीढ़ी इतनी ज़ोर ज़ोर से हिल रही थी कि जैसे राजधानी ट्रेन चल रही हो । और जैसे ही हम सीढ़ी से उतरे तो गिर पड़े क्योंकि ज़मीन तो और ज़ोर से हिल रही थी और हम सँभल ही नहीं पाये थे । घर से बाहर खड़े होकर

क्रिसमस और बड़ा दिन

बचपन से लेकर आज तक हम क्रिसमस मनाते चले आ रहे है । और हर साल पूरे जोश के साथ क्रिसमस ट्री सजाना , गिफ़्ट ख़रीदना और केक और पार्टी मतलब स्पेशल खाना । वैसे पहले तो लोग क्रिसमस कम मनाते थे पर अब तो हर कोई क्रिसमस मनाता है जो कि एक तरह से अच्छी बात है । पहले सिर्फ़ चर्च या जो क्रिसचियन होते थे उन्हीं के घर वग़ैरा सजते थे पर अब तो हर मार्केट में क्रिसमस का जोश दिखाई देता है । बाक़ी त्योहारों की तरह हम क्रिसमस भी मनाते है । दरअसल इसका भी एक कारण है । जब हम छोटे थे तो हम लोग म्योराबाद जो कि एक ज़माने में ईसाई बस्ती भी कही जाती थी वहाँ रहते थे । जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ईसाई बस्ती वो इसलिये कि वहाँ पर सारे घर ईसाइयों के थे बस दो चार घर ही हिन्दुओं के थे । बहुत ही छोटा सा मोहल्ला था और गिने चुने लोग होते थे । हर कोई सबको जानता था । हालाँकि आज का म्योराबाद बहुत बदल गया है अब तो ये काफ़ी बड़ी और विकसित कॉलोनी बन गई है । जब क्रिसचियन कॉलोनी मे रहते थे तो ज़ाहिर सी बात है हमारी दोस्तें भी क्रिसचियन थी पुतुल ,चीनू ,मीनू और रीना । खूब सबके घर आना जाना और खेलना तथा त्योहार संग संग मनाना

दास्तानें दर्दे ए दाँत

कुछ दिन से हमारे दाँत में दर्द हो रहा था । अब दर्द भी मेरा ही बुलाया हुआ है । अरे जल्दी मत करिये बताते है बताते है । 🙂 दरअसल कुछ दिन पहले हम लाई ( मुरमुरा ) और भुना चना बड़े मज़े से खा रहे थे तभी लगा कि एक दाँत में कुछ अटका हुआ है और जब टूथपिक से निकाला तो चने के टुकड़े के साथ कुछ सफ़ेद टुकड़ा सा निकला तो उस पर हमने ध्यान नहीं दिया पर जब दाँत में खाना फँसना शुरू हुआ तब पता चला कि दाँत में से एक छोटा सा टुकड़ा निकल गया है । बस फिर और कोई चारा नहीं था सिवाय दाँत के डाक्टर के पास जाने के । तो हम गये भी और डाक्टर ने देख कर सबसे पहले पूछा कि आपने क्या खाया जो आपका दाँत टूट गया और जैसे ही हमने कहा कि चना खाया था तो डाक्टर के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई बस ग़नीमत ये रही कि उसने ये नहीं कहा कि क्या आप लोहे के चने खा रही थीं जो दाँत टूट गया । 😁 खैर चैकअप और एक्सरे के बाद डाक्टर ने रूट कनाल ट्रीटमेंट के लिये कहा । अब पहले वाला ज़माना तो है नहीं कि दाँत में दर्द हुआ और दाँत निकाल दिया । दर्द और दाँत दोनों से छुटकारा । 😃 पर अब तो डाक्टर दाँत उखाड़ने की बजाय दाँत बचाने की पूरी कोशिश कर