क्रिसमस और बड़ा दिन
बचपन से लेकर आज तक हम क्रिसमस मनाते चले आ रहे है । और हर साल पूरे जोश के साथ क्रिसमस ट्री सजाना , गिफ़्ट ख़रीदना और केक और पार्टी मतलब स्पेशल खाना ।
वैसे पहले तो लोग क्रिसमस कम मनाते थे पर अब तो हर कोई क्रिसमस मनाता है जो कि एक तरह से अच्छी बात है । पहले सिर्फ़ चर्च या जो क्रिसचियन होते थे उन्हीं के घर वग़ैरा सजते थे पर अब तो हर मार्केट में क्रिसमस का जोश दिखाई देता है ।
बाक़ी त्योहारों की तरह हम क्रिसमस भी मनाते है । दरअसल इसका भी एक कारण है । जब हम छोटे थे तो हम लोग म्योराबाद जो कि एक ज़माने में ईसाई बस्ती भी कही जाती थी वहाँ रहते थे । जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ईसाई बस्ती वो इसलिये कि वहाँ पर सारे घर ईसाइयों के थे बस दो चार घर ही हिन्दुओं के थे । बहुत ही छोटा सा मोहल्ला था और गिने चुने लोग होते थे । हर कोई सबको जानता था ।
हालाँकि आज का म्योराबाद बहुत बदल गया है अब तो ये काफ़ी बड़ी और विकसित कॉलोनी बन गई है ।
जब क्रिसचियन कॉलोनी मे रहते थे तो ज़ाहिर सी बात है हमारी दोस्तें भी क्रिसचियन थी पुतुल ,चीनू ,मीनू और रीना । खूब सबके घर आना जाना और खेलना तथा त्योहार संग संग मनाना होता था । हमारे बाबा हमें ईसाईन कहते थे । 😊
हम लोगों के घर के पीछे ही गिरजाघर ( चर्च ) था और हर साल क्रिसमस पर वहाँ ख़ास प्रेयर होती थी । और अपनी सहेलियों के साथ हम भी गिरजाघर चले जाते थे और फिर क्रिसमस के पूरे दिन घूम घूम कर केक खाना होता था । हर किसी का घर सज़ा होता था और लोग क्रिसमस सांग गाते थे । ।उस ज़माने में घर पर केक नहीं बनता था पर हाँ बाज़ार से या फिर साइकिल पर एक पेस्ट्री केक बेचने आता था उससे केक वग़ैरा ख़रीदा जाता था । और क्रिसमस का स्पेशल केक तो तब सिर्फ़ ईसाइयों के घर ही खाने को मिलता था ।
वैसे इतना याद नहीं पर शायद पुतुल के घर पर आन्टी केक बनाती थी या ख़रीदती थी पर जो भी हो केक बहुत ही स्वादिष्ट होता था । क्रिसमस केक में जो हल्की सी कड़वाहट होती है वही उसकी ख़ासियत है ।
अब तो नहीं पर पहले अकसर क्रिसमस के दिन थोड़ी बहुत बारिश ज़रूर होती थी । जिससे ठंड बढ़ जाती थी । और क्रिसमस का दिन इसलिये भी ख़ास माना जाता है क्योंकि पच्चीस दिसम्बर से दिन बड़ा होना शुरू हो जाता है । और इसीलिये क्रिसमस को बड़ा दिन भी कहा जाता था ।
बहुत समय तक जब हमारे बेटे छोटे थे और जब क्रिसमस की सुबह सांता क्लॉज़ की तरफ़ से उन्हें उनका मनपसंद गिफ़्ट मिलता था तो उनकी ख़ुशी देखने लायक होती थी और वो हमेशा ये सोचते और कहते थे कि भला सांता क्लॉज़ को कैसे मालूम
हो जाता है कि हमें क्या चाहिये या क्या पसंद है । कभी कभी ये भी कहते थे कि सांता क्लॉज़ हम लोगों का घर कैसे ढूंढ लेता है । कैसे क्रिसमस के ही दिन वो आता है वग़ैरा वग़ैरा । 😃
हमारी तो क्रिसमस की तैयारी हो चुकी है । आप लोग क्रिसमस मना रहे है या नहीं । 🌲🎁
वैसे पहले तो लोग क्रिसमस कम मनाते थे पर अब तो हर कोई क्रिसमस मनाता है जो कि एक तरह से अच्छी बात है । पहले सिर्फ़ चर्च या जो क्रिसचियन होते थे उन्हीं के घर वग़ैरा सजते थे पर अब तो हर मार्केट में क्रिसमस का जोश दिखाई देता है ।
बाक़ी त्योहारों की तरह हम क्रिसमस भी मनाते है । दरअसल इसका भी एक कारण है । जब हम छोटे थे तो हम लोग म्योराबाद जो कि एक ज़माने में ईसाई बस्ती भी कही जाती थी वहाँ रहते थे । जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है ईसाई बस्ती वो इसलिये कि वहाँ पर सारे घर ईसाइयों के थे बस दो चार घर ही हिन्दुओं के थे । बहुत ही छोटा सा मोहल्ला था और गिने चुने लोग होते थे । हर कोई सबको जानता था ।
हालाँकि आज का म्योराबाद बहुत बदल गया है अब तो ये काफ़ी बड़ी और विकसित कॉलोनी बन गई है ।
जब क्रिसचियन कॉलोनी मे रहते थे तो ज़ाहिर सी बात है हमारी दोस्तें भी क्रिसचियन थी पुतुल ,चीनू ,मीनू और रीना । खूब सबके घर आना जाना और खेलना तथा त्योहार संग संग मनाना होता था । हमारे बाबा हमें ईसाईन कहते थे । 😊
हम लोगों के घर के पीछे ही गिरजाघर ( चर्च ) था और हर साल क्रिसमस पर वहाँ ख़ास प्रेयर होती थी । और अपनी सहेलियों के साथ हम भी गिरजाघर चले जाते थे और फिर क्रिसमस के पूरे दिन घूम घूम कर केक खाना होता था । हर किसी का घर सज़ा होता था और लोग क्रिसमस सांग गाते थे । ।उस ज़माने में घर पर केक नहीं बनता था पर हाँ बाज़ार से या फिर साइकिल पर एक पेस्ट्री केक बेचने आता था उससे केक वग़ैरा ख़रीदा जाता था । और क्रिसमस का स्पेशल केक तो तब सिर्फ़ ईसाइयों के घर ही खाने को मिलता था ।
वैसे इतना याद नहीं पर शायद पुतुल के घर पर आन्टी केक बनाती थी या ख़रीदती थी पर जो भी हो केक बहुत ही स्वादिष्ट होता था । क्रिसमस केक में जो हल्की सी कड़वाहट होती है वही उसकी ख़ासियत है ।
अब तो नहीं पर पहले अकसर क्रिसमस के दिन थोड़ी बहुत बारिश ज़रूर होती थी । जिससे ठंड बढ़ जाती थी । और क्रिसमस का दिन इसलिये भी ख़ास माना जाता है क्योंकि पच्चीस दिसम्बर से दिन बड़ा होना शुरू हो जाता है । और इसीलिये क्रिसमस को बड़ा दिन भी कहा जाता था ।
बहुत समय तक जब हमारे बेटे छोटे थे और जब क्रिसमस की सुबह सांता क्लॉज़ की तरफ़ से उन्हें उनका मनपसंद गिफ़्ट मिलता था तो उनकी ख़ुशी देखने लायक होती थी और वो हमेशा ये सोचते और कहते थे कि भला सांता क्लॉज़ को कैसे मालूम
हो जाता है कि हमें क्या चाहिये या क्या पसंद है । कभी कभी ये भी कहते थे कि सांता क्लॉज़ हम लोगों का घर कैसे ढूंढ लेता है । कैसे क्रिसमस के ही दिन वो आता है वग़ैरा वग़ैरा । 😃
हमारी तो क्रिसमस की तैयारी हो चुकी है । आप लोग क्रिसमस मना रहे है या नहीं । 🌲🎁
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