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Showing posts from February, 2019

एक हफ़्ता और दो फ़िल्में

अब फ़िल्में देखना तो हमारा पुराना शौक है । और हफ़्ते में एक पिकचर तो देखना बनता ही है । क्यूँ कुछ ग़लत तो नहीं कहा ना । वैसे आजकल फ़िल्मों की कहानी भी अलग और नई तरह की होती है । पिछले हफ़्ते हमने सोनम कपूर की फ़िल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा देखी थी और हमें तो फ़िल्म बहुत पसंद भी आई थी । हांलांकि फ़िल्म को लोगों ने कुछ ज़्यादा पसंद नही किया था । वैसे भी वो लीक से थोड़ा हटकर थी । आम लव स्टोरी नहीं थी । कहानी सोचें तो बहुत जटिल है क्यो कि पहले पहल लगता है कि फ़िल्म हिंदू मुस्लिम प्रेम प्रसंग पर आधारित है पर बाद में पता चलता है कि इस फ़िल्म में लड़की को लड़के से नहीं बल्कि लड़की से प्यार होता है । ये पढ़कर आपको झटका तो नहीं लगा । पर निर्देशक शैली चोपड़ा की तारीफ़ करनी होगी कि उसने एक बहुत ही संवेदनशील विषय को बहुत ही अच्छे ढंग से दिखाया । कहीं भी फ़िल्म में कोई चीप डायलॉग या सीन नहीं है और फ़िल्म काफ़ी रफ़्तार से आगे बढ़ती है । पर हाँ इसमें कलाकारों की भी तारीफ़ करनी होगी । क्योंकि हर छोटे बडे कलाकार ने अच्छा काम किया है । सोनम कपूर ,राजकुमार राव ,अनिल कपूर , जूही चावला और अभिषेक

चालीस रूपये की क़ीमत तुम क्या जानो पढ़ने वालों

कुछ दिन पहले पुरानी चिट्ठियों को दोबारा पढ़ते समय ये काग़ज़ का टुकड़ा हाथ लगा जो ऑल इंडिया रेडियो का था जिसमें हमें युवाओं के लिये होने वाले कार्यक्रम युववाणी में गिटार वादन के लिये आमन्त्रित किया गया था । इस लैटर को देखते ही ना जाने कितनी सारी यादें एक बार फिर से ताज़ा हो गई । जब पहली बार हम रेडियो स्टेशन गये थे तो एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास था पर जब हम रिकार्डिंग रूम में गये थे तब थोड़ा नर्वस हो गये थे । अरे भाई रेडियो बजाना आसान बात तो नहीं थी ,और वो भी पहली बार । और उस ज़माने में युववाणी कार्यक्रम में प्रोग्राम देना बड़ी बात होती थी । अब चालीस के दशक में तो अस्सी रूपये की बहुत क़ीमत थी और हमें याद है कि इन चालीस रूपयों को पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे थे और फूल कर कुप्पा हो गये थे । कयोकिं वो हमारे पहले रेडियो प्रोग्राम से मिला था । और रेडियो स्टेशन से निकलते हुये उन चालीस रूपयों को कैसे ख़र्च करना है ये सब प्लान बनाते हुये घर आ गये थे ।😋 हमने अपने परिवार के वहाटसऐप गुरूप पर जब ये वाला लैटर पोस्ट किया ो हमारे भइया बोले कि कि तब के चालीस रूपये आज के चार हज़ार के बराबर है ।

वेलेंटाइन डे और इन्द्र देव

आजकल वेलेंटाइन डे हर जगह छाया हुआ है । आख़िर हो भी क्यूँ ना फ़रवरी को प्यार का मौसम जो कहा जाता है । टी.वी. और रेडियो पर तो फ़रवरी महीने के शुरू होने के साथ ही विज्ञापन आने शुरू हो गये है और तो और मोबाइल फोन पर हर मिनट कोई ना कोई मैसेज आ रहा है कि वेलेंटाइन डे के लिये क्या करिये ,कहाँ घूमने जाइये या कहाँ खाना खाने जाइये । ना केवल इंडिया बल्कि विदेश घूमने जाने के भी खूब मैसेज आ रहे है । क्या जोमैटो क्या यात्रा या मेक माई ट्रिप सब कुछ ना कुछ ऑफ़र दे रहे है । और तो और ड्राईव यू जो कि ड्राइवर उपलब्ध कराती है वो भी वेलेंटाइन डे के लिये ऑफर और डिस्काउंट दे रही है । हर बाज़ार और दुकान लाल रंग के दिल के आकार के बने ग़ुब्बारों से सजी हुई है । ❤️ जहाँ पहले लोग वेलेंटाइन डे जानते ही नहीं थे वहीं अब तो हफ़्ते भर पहले से ही वेलेंटाइन डे की शुरूआत हो जाती है मसलन रोज़ डे ,चॉकलेट डे,टैडी डे ,हग डे वग़ैरह वग़ैरह और चौदह फ़रवरी को वेलेंटाइन डे । अब पहले तो वेलेंटाइन डे मनाने का उतना चलन नहीं था और ना ही ज़्यादा लोगों को पता था । पर पिछले पन्द्रह बीस सालों से वेलेंटाइन डे भी पूरे जोश से मनाया जाने

आगे बढ़ता और बदलता मौसम

इस साल जाड़ा थोड़ा देर से आया लग रहा है । वैसे भी अब तो जाड़ा सिर्फ़ एक डेढ़ महीने ही रहता है । अब वो पहले वाला समय तो रहा नहीं जब सितम्बर के बाद ही एक तरह से जाड़े की शुरूआत हो जाती थी । और तब ये माना जाता था कि पन्द्रह सितम्बर से ग्रीष्म ऋतु ख़त्म और शीत ऋतु की शुरूआत हो जाती थी । और इसी समय से दिन भी छोटे होने लगते थे । और इसे भी जाड़े की शुरूआत माना जाता था । पिछले साल तो दिसम्बर से जाड़ा पड़ना शुरू तो गया था पर कड़कड़ाती ठंड जनवरी में ही पड़ी थी । पर इस साल दिसम्बर में जाड़ा काफ़ी कम रहा बल्कि जनवरी में भी उतना जाड़ा नहीं पड़ा । जबकि इस साल फ़रवरी में मौसम का मिज़ाज ज़रूर कुछ बदला हुआ है । पहले तो ये माना जाता था कि मकर संक्रान्ति से सर्दी पड़नी कुछ कम हो जाती है पर अबकी बार तो मकर संक्रान्ति से ही मौसम ने पलटी मारी और जाड़ा पड़ना शुरू हुआ । जो अभी तक चल रहा है । यूँ तो शीत ऋतु में बारिश का होना अच्छा और बुरा दोनों होता है । अब कुछ फ़सल के लिये अच्छा तो कुछ के लिये बुरा क्योंकि कुछ फ़सल बारिश से ख़राब हो जाती है । और बारिश से मौसम में ठंडक का इज़ाफ़ा हो जाता है । और

बड़ा जिगरा चाहिये

पिछले हफ़्ते हमने उरी फ़िल्म देखी और फ़िल्म अच्छी लगी । फ़िल्म देखने के बाद हम ये सोचने लगे कि आर्मी वालों के परिवार वाले बहुत बड़े दिल वाले होते है । फ़िल्म का एक डायलॉग हाऊ इज जोश पूछने पर जब सारे जवान पूरे जोश से हाई सर कहते थे तो एक तरह के गर्व और देशभक्ति की अनुभूति होती थी । सेना के तीनों दलों मतलब आर्मी ,एयर फ़ोर्स , और नेवी की वजह से हम सभी देशवासी चैन की नींद सोते है । क्योंकि ये तीनों सेना हर क्षण देश की सुरक्षा में लगे रहते है । बर्फ़ीले पहाड़ हो या तपती गरमी सेना के जवान हमेशा चौकस रहते है । जब भी हम कोई सेना पर आधारित फ़िल्म देखते है वो चाहे हक़ीक़त हो या बॉरडर हो या उरी फ़िल्म तो हमें लगता है कि जो परिवार अपने बेटों को सेना में भेजते है उनका दिल बहुत बड़ा होता है। बहुत बार ऐसा देखा और सुना जाता है कि परिवार के सदस्य ( पति भाई या पिता ) ,को खोने के बाद भी मांये अपने बेटों को देश की सेवा के लिये आर्मी में भेजती है । ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आर्मी वाले और उनके परिवार वाले कुछ अलग ही मिट्टी के बने होते है । उनके अन्दर जो जज़्बा और जोश होता है वो सबमें नहीं होता है ।