आगे बढ़ता और बदलता मौसम

इस साल जाड़ा थोड़ा देर से आया लग रहा है । वैसे भी अब तो जाड़ा सिर्फ़ एक डेढ़ महीने ही रहता है ।


अब वो पहले वाला समय तो रहा नहीं जब सितम्बर के बाद ही एक तरह से जाड़े की शुरूआत हो जाती थी । और तब ये माना जाता था कि पन्द्रह सितम्बर से ग्रीष्म ऋतु ख़त्म और शीत ऋतु की शुरूआत हो जाती थी । और इसी समय से दिन भी छोटे होने लगते थे । और इसे भी जाड़े की शुरूआत माना जाता था ।


पिछले साल तो दिसम्बर से जाड़ा पड़ना शुरू तो गया था पर कड़कड़ाती ठंड जनवरी में ही पड़ी थी । पर इस साल दिसम्बर में जाड़ा काफ़ी कम रहा बल्कि जनवरी में भी उतना जाड़ा नहीं पड़ा । जबकि इस साल फ़रवरी में मौसम का मिज़ाज ज़रूर कुछ बदला हुआ है ।


पहले तो ये माना जाता था कि मकर संक्रान्ति से सर्दी पड़नी कुछ कम हो जाती है पर अबकी बार तो मकर संक्रान्ति से ही मौसम ने पलटी मारी और जाड़ा पड़ना शुरू हुआ । जो अभी तक चल रहा है ।


यूँ तो शीत ऋतु में बारिश का होना अच्छा और बुरा दोनों होता है । अब कुछ फ़सल के लिये अच्छा तो कुछ के लिये बुरा क्योंकि कुछ फ़सल बारिश से ख़राब हो जाती है । और बारिश से मौसम में ठंडक का इज़ाफ़ा हो जाता है ।


और बसंत पंचमी में हल्की फुलकी बारिश होती है पर ठंड बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ती है । पर आजकल के बिगड़े मौसम और जब तब बादलों के आने की वजह से फ़रवरी में कुछ ज़्यादा सर्दी पड़ रही है ।


और कल तो ग़ज़ब ही हो गया । दिन भर दिल्ली में बादल छाये रहे और शाम होते होते दिल्ली में पहले तो धूम धड़ाके से बारिश शुरू हो गई और अभी बारिश चल ही रही थी कि तड़तडा कर ओले गिरने शुरू हो गये । और ओले एक बार गिर कर ही रूक नहीं गये बल्कि रूक रूक कर दो तीन बार गिरे थे । और हम तो ओले गिरते देख भूल ही गये थे कि बाहर कपड़े हैंगर में फैले है और जब तक कपड़ों की याद आई तब तक तो कपड़े पूरी तरह से गीले हो गये थे ।

दिल्ली और नोएडा में जो धुँआधार ओलों की बारिश हुई कि सड़कें तक पूरी की पूरी सफ़ेद हो गई ।

अब देखते है कि बसंत पंचमी से जाड़ा ख़त्म होता है या नहीं ।

वैसे मौसम में बदलाव ना केवल अपने देश में बल्कि पूरी दुनिया में देखने और सुनने में आ रहा है । 😊










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