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Showing posts from June, 2020

बर्तनों का शॉवर 😄( अनलॉक ३.० )

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क्या हुआ ? चौंक गए शीर्षक पढ़कर ।😜 अरे सच में हमने अपने बर्तनों के लिए शॉवर मंगाया है । बड़ा ही अच्छा और क्यूट सा है । क्या यकीन नहीं आ रहा है । इसे देखिए और बताइए की हमारे बर्तनों का शॉवर क्यूट है या नहीं ।😍  

आसमानी ऊँचाई पर डीज़ल पेट्रोल के दाम क्यूँ ( अनलॉक ३.० )

जब पहला लॉकडाउन शुरू हुआ था उस समय डीज़ल का दाम शायद पैंसठ या सत्तर ऐसा ही कुछ था पर आजकल तो अस्सी रूपये से भी ज़्यादा हो गया है । जबकि डीज़ल को हमेशा सस्ता माना जाता रहा है क्योंकि डीज़ल कारों के साथ साथ कमरशियल वाहनों जैसे ट्रक ,टेम्पो वग़ैरा में तो डीज़ल ही इस्तेमाल होता है । और डीज़ल हमेशा पेट्रोल से सस्ता भी होता था पर आजकल हालात बदल गये है । डीज़ल पेट्रोल से महँगा हो गया है । अजीब बात है पर आजकल कुछ भी हो सकता है । फिलहाल तो बढ़ी हुई क़ीमत का हम लोगों पर ज़्यादा असर नहीं है क्योंकि आजकल कोरोना के चलते हम लोग तो घर में ही है इसलिये आजकल कार बहुत कम चलती है वरना अगर पहले की तरह ही घूमते फिरते होते तब इस बढ़ी हुई क़ीमत का असर हम पर भी शायद कुछ होता । खैर हम पर तो नही पर इतनी बढ़ी हुई क़ीमत का असर दूसरे लोगों जैसे ट्रक और टैम्पो चलाने वालों पर तो बहुत ही पड़ रहा होगा । क्योंकि एक तो पहले ही लॉकडाउन ने सब गड़बड़ कर रखा है उस पर पेट्रोल और डीज़ल की रोज क़ीमत बढ जाती है । इस पूरे जून के महीने में रोज कभी दस पैसा तो कभी पन्द्रह पैसे कर कर के पेट्रोल डीज़ल के दाम सरकारें बढ़ा

बादलों को भी कोरोना से डर लगता है (अनलॉक ३.० )

पिछले कई दिनों से रोज सुबह शाम बादल छा जाते है पर नतीजा वही सिफ़र मतलब नो बारिश । 😊 हमें तो लगता है जब बादल दिल्ली पर छाते है तभी इन्द्र देव बादलों से पूछते है कि अभी तुम कहाँ हो । और जैसे ही बादल कहते है कि हम दिल्ली पर छाये हुये है । तो इन्द्र देव कहते है कि फ़ौरन दिल्ली से निकलो । पर क्यूँ भगवन । तो इन्द्र देव कहते है क्या तुम्हें पता नहीं है कि वहाँ कोरोना फैला हुआ है । अब हम तो यहाँ आ गये है भगवन । अच्छा तो जरा सी झींसी करके निकल लो । 🌨 तो उसके बाद हम कहाँ जायें भगवन ? कहाँ बरसें । कहीं भी जाओ , नोयडा जाओ ,ग़ाज़ियाबाद जाओ ,राजस्थान जाओ और नहीं तो इलाहाबाद और लखनऊ और नहीं तो मुम्बई ही जाकर बरसो । और दिल्ली पर छाये बादल इन्द्र देव की बात मानकर कुछ बूँदें गिराकर दिल्ली से उड़ जाते है । 💦

मुबारक हो तीन महीने हो गये ( अनलॉक ३.० )

हम सबको आत्म निर्भर बने हुये पूरे तीन महीने हो चुके है । बिलकुल प्रेगनेंसी टाइप वाली फीलिंग आ रही है ना । 😜 शुरू शुरू में कुछ परेशानियाँ और तीन महीने बीतते बीतते सब कुछ सैटल सा हो रहा है । 😁 अब विदेश में तो लोग अपना हर काम स्वयं ही करते है पर अपने देश में ये कामवाली और हैल्पर की जो सहूलियत हम लोगों को थी वो भी इस कोरोना ने छीन ली । 😬 हम लोगों ने हमेशा कामवाली हैल्पर और सेवक को अपने घरों में काम करते देखा है पर अब तो हम लोग ही फ़ुल टाइम सेवक टाइप हो गये है । पर इन तीन महीनों में हम ने बहुत कुछ सीखा और समझा है । पहली बात तो आत्म निर्भर होने की है जो हमने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हम कभी इतने आत्म निर्भर बन सकते है और बन जायेंगें । पर कोरोना ने वो भी बना दिया । अपना तो ये हाल था कि अगर पार्वती एक दिन छुट्टी कर ले तो ना तो हम काम करते थे और ना ही घर में कोई हमें करने देता था । 🤓 बाहर का खाना जो हमारे यहाँ जब तब आता था अब पिछले तीन महीने से बंद है और हम हर तरह का खाना बनाने में हाथ आज़मा रहें है । 😛 वैसे पार्वती या कोमल तो नहीं है पर फिर भी हमारी मदद के लिये

बोर्ड की परीक्षायें रद्द कर दी गई है ( अनलॉक ३.० )

वैसे ये ख़बर तो कल ही आ गई थी । हालाँकि पिछले कुछ दिनों से थोड़ी असमंजस की स्थिति सी भी थी । कभी होता था कि इम्तिहान जुलाई में होगें तो कभी कोई तारीख़ एनाउंस करते थे कि फ़लाँ तारीख़ से बोर्ड की परीक्षा हो सकती है । पर खैर अब ये निश्चित हो गया है कि बोर्ड के इम्तिहान नहीं होंगे । इम्तिहान ना होने की ख़बर से बच्चों को और उनके माता पिता को जरूर बडी राहत मिली होगी । क्योंकि इस कोरोना के माहौल में स्कूल , पढ़ाई और इम्तिहान से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कोरोना से सुरक्षा । वैसे कुछ राज्यों को बच्चों के इम्तिहान ज़्यादा ज़रूरी लग रहें है और वहाँ परीक्षायें भी हो रही है । पता नहीं क्यूँ । वैसे जहाँ कुछ बच्चे बोर्ड के इम्तिहान ना होने पर शायद ख़ुश होंगें तो वहीं कुछ बच्चे शायद अपसेट भी होगें क्योंकि उन्हें फ़ुल मार्कस शायद नहीं मिल पायेंगें । ऐसा हम इसलिये कह रहें है क्योंकि हमारी एक फ्रैंड है जिनका नाती बारहवीं क्लास में है और इम्तिहान ना होने की ख़बर पाकर थोडा अपसेट हो गया क्योंकि अब वो कम्प्यूटर में फ़ुल नम्बर ( १०० ) नहीं ला पायेगा । क्योंकि अब तो इम्तिहान ही कैंसिल हो गया है ।

जब ख़ुद पर आई तो ( अनलॉक ३.० )

आजकल पूरे देश मे कोरोना बढने की रफ़्तार दिन पर दिन तेज़ ही होती जा रही है । जहाँ आम लोगों को कवैरंटीन सेंटर और हॉस्पिटल पहुँचना और इलाज में आने वाली परेशानियों को हम सब रोज देख सुन और पढ़ रहे है । आम लोगों को जहाँ सरकारी अस्पताल में इलाज करवाने के बारे में बडी बडी बातें सब करते है कि वहाँ हर तरह की सुविधाये मरीज़ों के लिये उपलब्ध है वग़ैरा वग़ैरा । वैसे डाक्टर, नर्सें , हॉस्पिटल स्टाफ़ सब भरसक कोशिश करते है और बहुत ही ज़्यादा काम कर रहें है ताकि मरीज़ों का सही तरीक़े से इलाज हो सके । और मरीज़ ठीक भी होते है । अभी तक तो साधारण लोग मतलब आम आदमी इसकी चपेट में आ रहा था । पर अब कुछ नेताओं को भी इस कोरोना ने पकड़ना शुरू कर दिया है । और ये सारे नेता वो चाहे किसी भी पार्टी के हों , सब सरकारी अस्पताल ना जाकर सीधे मैक्स हॉस्पिटल में भरती होते है । और तो और बाहर से भी नेता गण आकर मैक्स में एडमिट होकर इलाज करवा रहें है । क्योंकि दिल्ली में मैक्स में फिलहाल कोरोना का सबसे अच्छा और सही इलाज हो रहा है । तो भला नेता लोग कहीं और क्यूँ जायेंगें । ठीक है जो सक्षम है ,ओहदे से और पैसे से वो

गूगल बाबा पर ज़्यादा भरोसा 🤓 ( अनलॉक ३.० ) पहला दिन

अभी कल ही की बात है हमारे बेटे ने पूछा कि फ़लाँ काम को कैसे करें । तो हमने जब बताया तो उन्हें यक़ीन नहीं हुआ और उसने फ़ौरन नेट पर सर्च किया और थोड़ी देर बाद आकर हमसे बोला कि हाँ मॉम आप सही कह रही थी । अब क्या करें आजकल गूगल बाबा पर सबक़ो ज़्यादा ही भरोसा है । और हो भी क्यों ना क्योंकि गूगल बाबा के पास हर सवाल का जवाब जो होता है । 😜 तो हमने उससे कहा कि आज तो हमें नानी की कही बात यानि मुहावरा याद आ गया । हमारी मम्मी आम बोलचाल की भाषा में भी खूब मुहावरे बोला करती थी । और हर बात के लिये उनके पास कोई ना कोई मुहावरा होता ही था । 😁 हांलांकि हम मुहावरों का बिलकुल भी इस्तेमाल नहीं करते है । पर कभी कभी जब कुछ ऐसी बात हो जाती है तो अनायास ही मम्मी वाले मुहावरे बोल देते है । 😛

हमेशा अपने बारे में ही सोचते है ( अनलॉक २.० ) सोलहवां दिन

कल शालू ने एक पोस्ट शेयर की थी जिसे पढ़कर लगा कि हम लोग जो सिर्फ़ तीन महीने से ही घर में रह रहे है और इतने दिनों में ही परेशान भी हो रहें है कि हम लोग घर से बाहर नहीं जा पा रहें है । कब सब ठीक होगा और कब हम लोग एक बार फिर से उसी आज़ादी से घूम फिर सकेंगें । घर से बाहर निकल सकेंगे । पर कल उस पोस्ट को पढ़ कर लगा कि वो लोग जो किसी मजबूरी या बीमारी की वजह से घर से बाहर नहीं जा पाते है । उनकी भी तो इच्छा होती होगी बाहर की दुनिया देखने की । पर ऐसा नहीं है कि बीमारी की वजह से उन लोगों ने हार मान ली हो । वो घर पर अपनी परेशानियों के साथ रहते हुये भी बहुत कुछ करते है और ख़ुश रहते है । और हालात से कभी हार नहीं मानते है । हम लोगों को उनसे हिम्मत और प्रेरणा लेनी चाहिये ।

कपड़े बडी जल्दी ख़राब हो रहें है 🤓 ( अनलॉक २.० ) पन्द्रहवां दिन

अब आप कहेगें कि भला घर में रहते हुये कपड़े कैसे जल्दी ख़राब हो सकते है । अरे हो रहें है । आप माने या ना माने पर हमारे कपड़े तो जल्दी ख़राब हो रहें है । अब वो क्या है नै कि पहले तो एक दिन में कम से कम तीन या चार बार कपड़े बदलते थे । ओ हो यक़ीन नहीं आ रहा है । चलिये बताते है कि कैसे हम इतने कपड़े बदलते थे । देखिये पहले सुबह सुबह मॉरनिंग वॉक पर जाने के कपड़े बदलते थे । फिर लौटकर नहा धोकर कपड़े बदलते थे । उसके बाद दिन या शाम को अगर मन हुआ तो मॉल वग़ैरा घूमने जाने या फ़िल्म देखने के लिये एक बार फिर से कपड़े बदल कर तैयार होते थे । 😁 और फिर रात में तो गाउन पहनते ही थे । तो इस तरह कोई भी कपड़ा पूरे दिन नहीं लादते थे मतलब पहनते थे । 😜 पर आजकल क्या है कि सुबह नहाने के बाद जो एक ड्रेस पहनते है वही सारे दिन लादे रहते है । फिर रात में जाकर कहीं नाइटी पहनते है । और इसीलिये जो कपड़े हम मार्च में पहन रहे थे उनकी हालत काफ़ी ख़राब सी हो गई तो हमने उन कपड़ों को रिटायर कर दिया । 😂

पापा

पूरा दिन इसी ऊहापोह में निकल गया कि पापा पर क्या लिखूँ क्यों कि पापा एक ऐसी शख़्सियत जिनको शब्दों में बयां करना हमारे बस की बात नहीं । पर हाँ पापा का हाथ हम सब के सिर पर होना जब वो थे तब भी और अब जब वो नहीं है तब भी उस प्यार भरे एहसास को हम सब आज भी महसूस क़रते है । पापा का हम सब भाई बहनों में कोई भी फ़र्क़ ना करना याद नहीं कभी भी पापा ने हम कोडाँटा हो हाँ मम्मी के डाँटने पर मम्मी को ही टोकना हम पापा कहते तो भइया कभी पापा तो कभी डैड कहते तो कभी दीदी ए पा कहती पापा कहने की ज़रूरत नहीं है कि हम सब आपसे कितना प्यार करते है हम सब आपको कितना याद करते है और आपको कितना मिस करते है । 🙏🙏

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन

आज हमारे पूरे देश में और विदेशों में सूर्य ग्रहण है । और आज के ग्रहण का समय काफ़ी लम्बा है । तकरीबन छ घंटे तक ।और आज रिंग ऑफ़ फ़ायर भी दिखाई देगा । अब जैसा कि हम लोग जानते है कि सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा की छाया सूरज पर पड़ती है और चंद्रमा सूरज और धरती के बीच आ जाता है और सूरज को ढंक लेता है । तब सूर्य ग्रहण होता है । और ऐसे समय में दिन में ही शाम या रात जैसा माहौल हो जाता है । हमें याद है जब हम छोटे थे तब सूर्य ग्रहण के समय मम्मी बहुत ज़्यादा एहतियात बरतती थीं । सारे घर के परदे बंद करवा देती थी । ताकि सूरज की जरा सी भी रोशनी घर में ना आये । बाहर निकलना तो दूर यहाँ तक की बाहर झाँकना भी मना होता था । कुछ भी काटना ,काम करना मना होता था । ग्रहण के दौरान कुछ भी खाने पीने को मना करती थीं क्योंकि ग्रहण के दौरान खाना पीना मना जो होता था । जो भी खाना होता था वो या तो ग्रहण शुरू होने के पहले या फिर ग्रहण ख़त्म के बाद । हालाँकि हमारे पापा इस सब को बहुत ज़्यादा मानते नहीं थे पर चूँकि मम्मी ये सब मानती थी तो वो उन्हें करने देते थे । ग्रहण के बाद वो स्नान और दान वग़ैरा भी करती थ

क्या कल पूरी दुनिया ख़त्म हो जायेगी 😳( अनलॉक २.० ) तेरहवाँ दिन

दो चार दिन पहले पतिदेव अपने किसी मित्र से हुई बात बता रहे थे कि उनके मित्र का कहना है कि इक्कीस जून २०२० को दुनिया ख़त्म हो जायेगी । अब इसमें कितनी सच्चाई है ये तो कल पता चलेगा । और कल यानि इक्कीस जून को ज़बरदस्त भूकम्प वग़ैरा आयेगा । क्योंकि कल सूर्य ग्रहण भी है । वैसे इस बार ग्रहण काफ़ी लम्बा और देर तक रहने वाला है । अब यूँ तो सूर्य ग्रहण में लोग बहुत कुछ करने और ना करने की सलाह देते है । पर पूरे दिन के ग्रहण में कितना पालन हो पायेगा । वैसे एक बार २०१२ के लिये भी कहा गया था कि दिसम्बर २०१२ में पूरी दुनिया ख़त्म हो जायेगी । पर खैर तब तो कुछ नहीं हुआ था । अब देखते है कल क्या होगा । क्या आपको भी ऐसा ही लगता है कि कल पूरी दुनिया ख़त्म हो जायेगी । खैर अगर कल सब ठीक ठाक रहा और दुनिया और हम लोग बच गये तो फिर कल मिलते है ।

बरसो रे ( अनलॉक २.० ) बारहवाँ दिन

बाबा रे इतनी ज़बरदस्त गरमी पड़ रही है कि कुछ पूछिये मत । बाहर मतलब बालकनी में निकलने में भी गरमी लगने लगी है । पिछले दो ढाई महीने से हम लोग रोज शाम को बालकनी में बैठकर कॉफ़ी वग़ैरा पीते थे पर इधर चार पाँच दिन से तो शाम को बाहर निकलने या बैठने का मन ही नहीं करता है । बाहर निकलते ही जैसे लू के थपेड़े मुँह पर लगते है । रोज सारे दिन बादल आते है छाते है और फिर हम सबमें बारिश की उम्मीद जगाते है और फिर टहल जाते है मतलब बिना बारिश किये ही बादल चले जाते है । और बादल आने से एक अजीब तरह की उमस भी हो जाती है जो और अधिक परेशान करती है । अब आज भी सुबह से बादल है और आंधी आने के भी आसार लग रहें है पर पता है शाम होते होते बादल उड जायेंगें । 😗

बाथरूम क्लीनर का रिव्यू (अनलॉक २.० ) ग्यारहवाँ दिन

कुछ दिन पहले हमने अपने इस बाथरूम क्लीनर रूपी हैल्पर के बारे में आप लोगों को बताया था । तो चलिये अब चूँकि हमने इसे इस्तेमाल किया है तो उसी के बारे में थोडा और डीटेल में बताते है ।क्योंकि हमारी एक फ़्रेड ने भी इसके बारे में पूछा था । ये सही है कि इससे बाथरूम की ज़मीन और दीवार पर लगी टाइल्स को साफ़ करने में अच्छा रहता है । क्योंकि ब्रश या झाड़ू से साफ़ करनें में मेहनत तो लगती ही है साथ ही बैठकर ज़मीन साफ़ करनी पड़ती है । तो उस झंझट से ये मुक्ति दिलाता है । और चूँकि इसमें रॉड लगा है तो बस खडे खडे जहाँ भी सफाई करनी है वहाँ कर सकते है । पर ऐसा नहीं है कि एक ही दिन की सफाई में ये टाइल्स को बिलकुल नया सा कर देगा । हाँ जब इसमें ब्रश को बदलना होता है तो चूँकि अभी ये नया नया है तो हमें थोडा ज़ोर लगाना पड़ता है । और हाँ क्योंकि ये मशीन है तो कभी कभी सफाई करते हुये छींटे भी उछालती है ।वैसे तो ब्रश वग़ैरा से सफाई में भी थोड़े बहुत छींटे तो पड़ते ही है । और इसमें ये ध्यान देने की सबसे ज़रूरत है कि इसके ऊपर डायरेक्ट पानी नहीं पड़ना चाहिये । वरना ये ख़राब हो सकता है । क्योंकि ये बैटरी स

डिज़ाइनर मास्क हो भी तो क्या ( अनलॉक २.० ) दसवाँ दिन

अब कोरोना के बाद से जिंदगी ही नहीं हम लोगों का पहनावा भी बदल रहा है । पहले जहाँ साड़ी ,लहगां,कपड़ा वग़ैरा के साथ मैचिंग ज्वैलरी पहनी जाती थी तो वहीं अब डिज़ाइनर मास्क भी पहने जायेंगे । कोरोना के बाद पहले तो वो मास्क मिलने शुरू हुये जिनसे कोरोना से बचा जा सकता था मतलब एन ९५ । और इनके अलावा काले ,हरे ,सफ़ेद रंग के भी मास्क मार्केट में मिलते थे । पर फिर धीरे धीरे लोगों ने घर में ही तीन लेयर का कपडें का मास्क बनाना शुरू किया । और बहुत लोगों ने तो कपड़े और साड़ी से मैचिंग मास्क भी बनाया । और आजकल तो ये हाल है कि हर तरह के एक से बढ़कर एक डिज़ाइनर मास्क भी बनने और मिलने लग गये है । कभी कभी तो फेसबुक खोलते ही मास्क का एड दिखाई देता है । 😁😷 पर मास्क पहनकर कितने भी अच्छे से तैयार हो लो वो बात नहीं आयेगी । अभी हाल ही में हमने एक वीडियो देखा था जिसमें सारी महिलायें खूब सुंदर कपड़े वग़ैरा पहनी हुई थीं और किसी ने गोल्डन तो किसी ने सिल्वर तो किसी ने ड्रेस से मैचिंग कलर के मास्क पहने हुये थे और जैसा कि पार्टी में होता है डी.जे बज रहा था और सब डाँस कर रही थी । अब कहने को तो सबने स्ट

आई मेकअप हुआ ज़रूरी 😁 ( अनलॉक २.० ) नवाँ दिन

जी हाँ 😁 हमें तो कुछ ऐसा ही लग रहा है कि कोरोना के चलते अब आई मेकअप सबसे अहम और ज़रूरी हो जायेगा । क्योंकि कोरोना के कारण मास्क भी अब हम लोगों के कपड़ों की तरह ही हो गया है । अब जब हम मास्क पहनते है तो आधे से ज़्यादा चेहरा तो मास्क ही ढक लेता है और नज़र आती है आँखें । तो अब तो सबसे ज़्यादा ध्यान आँखों के ही मेकअप करने पर रहेगा । अब हम जो कभी भी आई मेकअप नहीं करते थे पर हमें भी अब ये सीखना पड़ेगा । क्योंकि हमें तो हमेशा से ही लिपस्टिक लगाना ज़्यादा पसंद रहा है । 😊 पर मास्क के कारण लिपस्टिक लगाना कम करना पड़ेगा क्योंकि लिपस्टिक लगाने के बाद मास्क पहनने में सारी लिपस्टिक मास्क में लग जाती है । 😛 अब लिपस्टिक भले ना लगाओ क्योंकि मास्क तो पहनना ही होगा पर आँखों को जरूर सजाना होगा । वरना तैयार होना अधूरा लगेगा । अब तो आई लाइनर ,मसकारा, आई शैडोज़ रखने पडेगें । 🤗 क्या कोरोना तुमने अच्छी मुसीबत कर दी है । खामखां में । 😇

रील और रियल लाइफ़ में अंतर ( अनलॉक २.० ) आठवाँ दिन

कल दोपहर में जब अचानक पतिदेव ने कहा कि एक और हीरो इस दुनिया को छोड़ कर चला गया तो हमारा पहला रिएक्शन था कौन और क्या कोरोना से । तब पतिदेव ने सुशांत सिंह राजपूत के सुसाइड की बात बताई । क्योंकि इंटरनेट पर ये ख़बर आ चुकी थी । पर ये ख़बर सुनकर यक़ीन नहीं हो पाया तो टी.वी चलाया तो वहाँ भी यही ख़बर दिखा रहे थे कि सुशांत सिंह राजपूत ने डिप्रेशन के चलते सुसाइड कर लिया । ये ख़बर सुनकर बहुत अजीब भी लगा और दुख भी हुआ । और उसके सुसाइड करने से लगा कि भले इंसान के पास रूपया ,पैसा,नाम,शोहरत ,ज़मीन जायदाद क्यूँ ना हो पर अगर मन ही शांत नहीं है तो सब कुछ बेकार । कहीं पढ़ा था कि सुशांत सिंह ने चाँद पर भी ज़मीन ख़रीदी थी । अब ये कितना सच कितना झूठ हम नहीं जानते है । सुसाइड करना तो हमारी नज़र में बहुत ही ग़लत है क्योंकि सुसाइड किसी समस्या का हल नहीं बल्कि परिवार के लिये जीवन भर का दुख होता है । ख़ुद तो सुसाइड कर लिया पर क्या अपने परिवार के लिये एक बार भी नहीं सोचा कि उन क्या बीतेगी । और सुसाइड क्यूँ किया इसका कारण ही जानने में सारी जिंदगी निकल जाती है । पिछले साल सुशांत सिंह की फ़िल्म छिछोरे

गुलाबो सिताबो ( अनलॉक २.० ) सातवाँ दिन

कल हमने अमिताभ बच्चन और आयुषमान खुराना की गुलाबों सिताबो देखी । सुजीत सरकार ने बनाई है । वैसे इस पिकचर को देखते हुये हमें अपने पुश्तैनी चार मंज़िला घर जो कि बनारस के नदेसर में है उसकी बहुत याद आई क्योंकि वहाँ भी कुछ ऐसे ही किरायेदार रहते है । 😁 खैर चलिये फ़िल्म की बात करते है । फ़िल्म की कहानी बहुत ही सिम्पल है पूरी फ़िल्म एक हवेली फ़ातिमा महल के लिये है । औरैया फ़िल्म में लखनऊ शहर दिखाया गया है । इसमें अमिताभ बच्चन मिर्ज़ा के रोल में और आयुषमान बाँके के रोल में है । कैसे मिरज़ा जो मालिक है भी और नहीं भी और बाँके जो किरायेदार है । कैसे दोनों की नोक झोंक चलती रहती है हर छोटी बडी बात के लिये । 😁 अमिताभ बच्चन ने तो हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है । और मिरज़ा के खड़ूस किरदार को बख़ूबी निभाया है । पर पूरी फ़िल्म में जिस तरह से वो एक अजीब से स्टाइल से चलते है वो कमाल का है । घुटने थोडा सा मोड़कर चलना अमिताभ बच्चन जैसे लम्बे क़द के व्यक्ति कि लिये मुश्किल जरूर रहा होगा । आयुषमान खुराना को तो देखकर ऐसा लग रहा था मानो वो पक्का यू.पी का ही रहने वाला हो । चाल ढाल ,कपड़े

कभी कभी मेरे दिल में ( अनलॉक २.० ) छठां दिन

कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि कोरोना ने हमारी जिंदगी ही नहीं बदली बल्कि जिंदगी का नज़रिया ही बदल दिया है । कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि फिर कब हम दोस्तों से गले मिल पायेगें कब हम दीदी लोगों के घर जा पायेंगें । कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कब बिना मास्क के हम आज़ादी से घूमेंगें कब बेफ़िक्री से शॉपिंग और मॉल घूमने जायेगें । कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि आख़िर कब तक हम घरों में बंद रहेंगें आख़िर कब तक हम आत्म निर्भर बनते रहेंगें । कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि ये खयाल शायद मेरे ही नहीं हम सबके दिल में ये खयाल आते है । 😏😒😫☹️

यीस्ट भी बडे कमाल की चीज़ है (अनलॉक २.० ) पाँचवां दिन

जानते जानते है आप लोग यीसट का इस्तेमाल करते आ रहें है पर हमने तो अभी हाल में ही इसका इस्तेमाल शुरू किया है ।और वाक़ई ये बडे कमाल की चीज़ है । अब वैसे तो हमारा फ़ंडा है कि अगर सब कुछ घर में ही बनायेंगें तो बाज़ार से क्या मँगायेंगे । पर इस लॉकडाउन और अनलॉक ने हमारी सोच थोड़ी क्या काफ़ी बदल दी है । अब लॉकडाउन के चलते हमने खूब मिठाइयाँ बनाई और अभी भी बना रहें है । पर अनलॉक में हमने कुकिंग का ट्रैक थोडा बदल दिया है और अब हमने बन ,पाव और ब्रेड वग़ैरा भी बनाने में हाथ आज़माना शुरू किया है । ( और मज़े की बात ये सब बनाने में बेटे को भी मजा आता है । 😂 ) और ये सब बनाने में यीस्ट का बड़ा योगदान है । क्योंकि यीस्ट के बिना ये सब बनाना जरा मुश्किल होता है । और यीस्ट से फटाफट ताज़ा बन या ब्रेड बन जाती है । फटाफट मतलब ढाई तीन घंटे में । 😃 एक बात तो है लॉकडाउन और अनलॉक में और चाहे जो हो पर नई नई चीज़ें बनाने में मजा खूब आने लगा है । और कभी कभार सही चीज़ नहीं बनती है पर जब बढ़िया बनती है तो जी ख़ुश हो जाता है । 😁

आजकल तरबूज कितने ज़्यादा मीठे होते है ( अनलॉक २.० ) चौथा दिन

आज सुबह तरबूज काटते हुये उसका एक टुकड़ा मुँह में डाला और उसकी मिठास से हम सोचने लगे कि पहले तरबूज इतने लाल और मीठे नहीं मिलते थे । और बस गरमियों में ही तरबूज मिला करते थे । पर अब तो तरबूज पूरे साल मिलता है । वो हल्के हरे रंग वाले तरबूज तो कम ही दिखते है । सात आठ किलो वाले तरबूज तो विरले ही मिलते है । अब तो ज़्यादातर गाढ़े हरे रंग वाले ( हाई ब्रीड ) दो - चार किलो वाले तरबूज ही मिलते है । हमें खूब अच्छे से याद है कि जब हम छोटे थे तो हमेशा मम्मी तरबूज ख़रीदने से पहले उसे थोडा सा कटवाकर देखती थी कि तरबूज अंदर से लाल है या नहीं । और तरबूज अगर फीका होता था तो अकसर उस छोटी कटी हुई जगह पर मम्मी चीनी डाल देती थी ताकि तरबूज मीठा हो जाये । 😋 और हमने भी बहुत सालों तक इसी तरह तरबूज का रंग चेक किया और ऐसे ही चीनी डालकर तरबूज को मीठा भी बनाया है । 😃 पर अब तरबूज को चीनी डालकर लाल और मीठा करने की ज़रूरत नहीं है । क्यों कि इधर पिछले कुछ सालों से तरबूज का लाल रंग और चीनी से भी अधिक मिठास बडी आम बात हो गई है । कभी कभार ही अंदर से लाल नहीं होता है । क्या आपको भी ऐसा लगता है ।

मिलिये हमारे एक और नये हैल्पर से ( अनलॉक २.० ) तीसरा दिन

अब आप भी सोचेंगे कि क्या एक और नया हैल्पर । जी हाँ । अब क्या करें । आत्म निर्भर जो बनना है । 😃 और अब जब सब काम हम लोगों को ख़ुद ही करना है तो कोई ना कोई जुगाड़ तो करना ही पड़ेगा । अब पहले तो सफाई वाला आता था और बाथरूम वग़ैरा साफ़ कर जाता था । पर इस कोरोना के चक्कर में उसका आना भी बंद हो गया । ☹️ खैर चलिये बताते है अपने नये हैल्पर के बारे में । ये है बाथरूम क्लीनर । अब वैसे अभी तक तो हम ब्रश ,झाड़ू और वाइपर से बाथरूम का फ़्लोर और टाइल साफ़ करते थे । पर इस नये क्लीनर से हमें इतनी सारी चीज़ों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । ये अकेला ही सब साफ़ कर देगा । ये बैटरी से चलता है और इसे रिचार्ज भी करना पड़ता है । वैसे हम इसे बाथरूम में ही रिचार्ज करते है । वो क्या है ना कि हम थोडा .... । 🤓

छोटू मतलब वैक्यूम क्लीनर का रिव्यू ( अनलॉक २.० ) दूसरा दिन

कुछ दिन पहले हमने अपने नये हैल्पर छोटू के बारे में आप को बताया था । अब छोटू से काम कराते हुये आठ दस दिन हो गये है तो हमने सोचा कि एक बार और आप लोगों को छोटू के काम करने के बारे में बताना चाहिये । 😊 अब वैसे जब से छोटू ने झाड़ू का काम अपने ज़िम्मे लिया है तब से हमें आराम तो बहुत है । और शुरू के दो तीन दिन तो छोटू के सफाई करने के बाद लगता था कि अरे घर में क्या इतनी ज़्यादा धूल मिट्टी और कचरा था । वैसे अलमारी सोफ़े वग़ैरा खिसका कर छोटू से सफाई कराने में ना धूल उड़ती है और ना ही पंखा बंद करना पड़ता है । हां कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना पड़ता है जब छोटू सफाई करता होता है तब । जैसे बड़े काग़ज़ के टुकड़े , प्लास्टिक या रैपर ,डोरी जैसी चीज़ें इसके रास्ते में नहीं आनी चाहिये वरना वो इसके रोटेटर में फँस जाती है तो ये ठीक से काम नहीं करता है । और एक अजीब सी आवाज़ भी करता है घररररररर टाइप की । 😏 और हफ़्ते में एक दिन इसके अंदर लगा बिन साफ़ करना पड़ता है वरना अगर बिन भरा रहेगा तो ये सफाई करता तो जरूर है पर कूडा इधर उधर गिरा भी देता है । ☺️ वैसे वैक्यूम वाला काम तो एकदम परफ़ेक्ट है ।

कितने ख़ुदगर्ज़ ( अनलॉक २.० ) पहला दिन

कितनी अजीब बात है ना कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ था और हर राज्य में रहने वाले दूसरे राज्य के मज़दूर और श्रमिक जो ज़्यादातर यू.पी और बिहार के थे , को जब अपने गॉंव घर लौटना था तब ज़्यादातर स्टेटस या उनकी कम्पनियों ने उनके घर लौटने का कोई इंतज़ाम करने की ना तो ज़रूरत समझी थी और ना ही ज़्यादा कोशिश की थी । और ना ही उनके रहने खाने का सही इंतज़ाम करने की कोशिश की थी । बल्कि सबने एक तरह से हाथ खडे कर दिये थे । और उनको उनके हाल पर छोड़ दिया गया था । जिसकी वजह से उन श्रमिकों को घर जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था । और चूँकि कोई इंतज़ाम नहीं था इसलिये जो जैसे जा सकता था वो वैसे ही अपने घरों के लिये निकल पड़ें । ऑटो, टेम्पो ,ट्रक ,मोटर साइकिल , रिक्शा ,ठेला और साइकिल और हज़ारों तो पैदल ही अपने घरों के लिये निकल पड़े थे । हालाँकि बहुत बाद में ट्रेनें और बसें भी चलाई गई थी । पर अब जब सब कम्पनियों को खोलना शुरू हो रहा है तो कम्पनियाँ भी घर वापिस गये श्रमिकों को बसों से और कुछ तो इनको प्लेन से भी वापिस बुला रही है । अब हर राज्य सरकार ये कहकर कि उनके राज्य में इतना विकास इन्हीं यू.

आज Sunday है ( अनलॉक १.० ) सातवां दिन

आज Sunday है और आज यहां पर बहुत ही सुहावना मौसम हो रहा है । बादल छाए हुए है और हल्की बूंदा बांदी भी ही रही है । तो आज कुछ ज्यादा नहीं । बस Sunday का और मौसम का मज़ा लेने जा रहे हैं और आप भी होने वाली बारिश का मज़ा लीजिए । चाय पकोड़ी बनाइए और खाइए और खिलाइए  । 😄

आत्म निर्भर होने का एक और शस्त्र ( अनलॉक १.० ) छठां दिन

अब चूँकि हमने अभी अपनी हैल्पर को बुलाना शुरू नहीं किया है और अभी भी हम आत्म निर्भर बनने की ओर अग्रसर है । अब यूँ तो पहले कभी इन चीज़ों की ना तो ज़रूरत पड़ी और ना ही कभी सोचा क्योंकि हमेशा हैल्पर जो रहते थे । 😊 तो जैसा कि पहले भी कई बार बता चुके है कि हमें डस्टिंग वग़ैरा करना बिलकुल पसंद नहीं है । पर चूँकि पहले पिछले दो महीने लॉकडाउन के चलते हमें सभी काम करने की आदत सी हो गई है । पर फिर भी डस्टिंग करने में हमें बिलकुल मजा नहीं आता है । और धूल का ये हाल है कि अभी डस्टिंग करके धूल साफ़ करो पर थोड़ी देर में फिर धूल सी नज़र आने लगती है । तो उसी डस्टिंग को आसान बनाने के लिये ये डस्टिंग ग्लव्ज रूपी शस्त्र मँगाया गया है । बस इसे ग्लव्ज की तरह पहन लेते है और फटाफट डस्टिंग हो जाती है । और इससे दरवाज़े और खिड़की भी साफ़ करना आसान है । और ये धूल को खूब अच्छे से साफ़ भी कर देता है । और हाथ में वो जो कॉलीन और धूल की मिली जुली सी अजीब सी जो महक आती थी वो इसमें नहीं नहीं आती है । 😊 तो हम चले आप के लिये इससे डस्टिंग का वीडियो बनाने । 😃

बिजली का बिल और इन्कम टैक्स ( अनलॉक १.० ) पांचवां दिन

क्या आप जानते है कि अब से बिजली के बिल को भी इन्कम टैक्स में दिखाना पड़ेगा । अगर बिल का अमाउंट ज़्यादा है तो । हमको तो पता नहीं था अभी परसों ही पता चला कि अब से बिजली का बिल अगर एक लाख रूपये सालाना से ज़्यादा का है तो वो भी इन्कम टैक्स में बताना पड़ेगा । 😬 अरे पर क्यूँ । भाई बिजली के बिल से इन्कम टैक्स को जोड़ना हमें तो बहुत अजीब लगा क्योंकि कौन कितनी बिजली ख़र्च कर रहा है और कितना बिल दे रहा है । यह तो एक तरह का घरेलू मामला है । और बिजली का बिल देकर देने वाले की इन्कम में तो कोई इज़ाफ़ा नहीं होता है मतलब वो कोई इनकम तो है नहीं । ☹️ और फिर ज़्यादा बिजली का बिल देकर तो जनता एक तरह से मदद ही करती है । फिर क्यूँ । अब तो ऐसा लगता है कि कहीं आने वाले दिनों में राशन और सब्ज़ी पर ख़र्च होने वाले ख़र्चे भी कहीं इन्कम टैक्स में ना दिखाने पड़ जायें । 🙁

सब्ज़ी काटने का शस्त्र 😊 ( अनलॉक १.० ) चौथा दिन

अब जब हम सबको आत्म निर्भर बनना है तो मदद के लिये कोई तो चाहिये ना । और हमारी मदद के लिये हमारे सुपुत्र ने एक और शस्त्र मँगा दिया और वो है वेजीटेबल चॉपर मतलब फटाफट सब्ज़ी काटने का शस्त्र ।😃 अब इससे सब्ज़ी भी कट जाती है और हाथ की एक्सरसाइज़ भी हो जाती है । कैसे ? वो तो फोटो देखकर ही पता चलेगा । 😜 चलिये हम ज़्यादा कुछ नहीं लिखते है । तो बस आप फोटो देखिये और बताइये कि हमारा ये शस्त्र कैसा है । 😁

ई मानसून सेशन तो ई क्लास क्यूँ नहीं ( अनलॉक १.० ) तीसरा दिन

कल टी.वी चैनल में ये ख़बर दिखा रहे थे कि नेता लोग इस साल कोरोना के चलते पार्लियामेंट का वर्चुअल मानसून सेशन करने पर विचार कर रहें है । क्योंकि कोरोना के चलते घर से निकलने में ख़तरा है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करना मुश्किल होगा । अरे जब आपको ख़तरा है तो बच्चों को कैसे ख़तरा नहीं है । जब नेता ख़ुद वर्चुअल सेशन करने की सोच रहें है तो कैसे वो लोग बच्चों के स्कूल खोलने की बात सोच रहें है । बच्चे जिन्हें घर में तो फिर भी माँ बाप घर पर रखकर बच्चों को किसी से मिलने जुलने नहीं दे रहें है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करवा रहें है । पर जब एक बार बच्चे स्कूल जायेंगे तो भला वो कितनी सोशल डिसटेंसिंग रख पायेंगें । और बस में, स्कूल में , क्लास में, वो कैसे इस सोशल डिसटेंसिंग का पालन कर पायेगें । फिर वो चाहे छोटे बच्चे हों या बडी क्लास के बच्चे ही क्यों ना हो । ठीक है मानते है इन नेताओं की बात को कि अब हम सबको इस कोरोना के साथ ही रहना है पर सबसे पहले बच्चों का ही स्कूल खोलने की क्या जल्दी है । जबकि हर जगह कोरोना के केस दिन ब दिन बढ ही रहें है । और स्कूल खोलने के लिये सिर्फ़ ये तर्क कि

आना जाना हुआ आसान ( अनलॉक १.० ) दूसरा दिन

अब यूँ तो चौथे लॉकडाउन से ही लोगों ने बाहर निकलना शुरू कर ही दिया था पर फिर भी एक राज्य से दूसरे राज्य में आना जाना आसान नहीं था । और इसके लिये ई-पास की ज़रूरत होती थी । और कई बार तो ई पास होने के बावजूद लोगों को मुश्किलें होती थी क्योंकि कभी कभी दूसरे राज्य अपनी सीमा सील कर देते थे । पर अब कम से कम लोगों को इस परेशानी से निजात मिल जायेगी क्योंकि हर समय ई-पास तो नहीं दिखाना पड़ेगा । पर दिल्ली हरियाणा और यू. पी की सीमायें फिलहाल तो सील ही रहेंगीं क्योंकि इन का मानना है कि लोगों की एक दूसरे राज्य में आवाजाही से ही कोरोना के केस बढ रहें है । और इसीलिये अभी कुछ और दिन तक इनकी सीमायें सील रहेंगीं । जिसके कारण लोगों को अभी और परेशानी झेलनी पड़ेगी । बहुत से लोग जिन्हें रोज ही एक राज्य ( स्टेट ) से दूसरे राज्य आना जाना पड़ता है । जैसे वो काम तो दिल्ली में करते है पर रहते नोएडा या हरियाणा में है । इसी तरह लोग काम तो ग़ाज़ियाबाद ,फ़रीदाबाद में करते है पर रहते दिल्ली में है । और ऐसे लोगों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है जो रहते एक राज्य में है और नौकरी या काम दूसरे राज्य में करते है ।

थोड़ी आज़ादी (अनलॉक १.० ) पहला दिन

आज से अनलॉक वन की शुरूआत हो रही है । मतलब अब धीरे धीरे ताला खुलना शुरू यानि कि पाबंदियों हटनी शुरू हो रही है । मतलब अब घर से बाहर निकलने की आजादी मिल रही है । पाबंदियाँ जरूर हटनी शुरू हो रही है पर अभी सावधानी बरतने की भी ज़रूरत है । क्योंकि अब सरकारों का मानना है कि कोरोना तो अभी जल्दी कहीं जाने वाला नहीं है और हम सबको अब इसके साथ ही जीने की आदत डालनी है । पर इसका मतलब ये नहीं है कि पाबंदी हटते ही सब लोग बाहर निकल पड़ें क्योंकि ऐसे में ही तो सबसे ज़्यादा ख़तरा है । क्योंकि हम लोग कहीं तो सोशल डिसटेंसिंग मानते है और कहीं नहीं । वैसे भी अब तो कोरोना से बचने के लिये हम सबको ख़ुद ही सचेत रहना होगा क्योंकि सरकारों ने तो अपना पल्ला झाड़ लिया है । वैसे लॉकडाउन के चलते तो कोरोना के मामले रोज ही बढ़ते रहें है अब देखना ये है कि अनलॉक में क्या होता है । अभी तो यही कहा जा सकता है कि सावधानी हटी , दुर्घटना घटी । तो फिलहाल हम तो अभी बाहर निकलने नहीं जा रहें है और आप भी घर से बाहर निकलने की जल्दी मत करियेगा । क्योंकि अधिकतर लोग यही सोचकर बाहर निकलेंगे कि अब तो कोई रोकटोक नही है । अब पिछ