ई मानसून सेशन तो ई क्लास क्यूँ नहीं ( अनलॉक १.० ) तीसरा दिन
कल टी.वी चैनल में ये ख़बर दिखा रहे थे कि नेता लोग इस साल कोरोना के चलते पार्लियामेंट का वर्चुअल मानसून सेशन करने पर विचार कर रहें है ।
क्योंकि कोरोना के चलते घर से निकलने में ख़तरा है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करना मुश्किल होगा ।
अरे जब आपको ख़तरा है तो बच्चों को कैसे ख़तरा नहीं है ।
जब नेता ख़ुद वर्चुअल सेशन करने की सोच रहें है तो कैसे वो लोग बच्चों के स्कूल खोलने की बात सोच रहें है ।
बच्चे जिन्हें घर में तो फिर भी माँ बाप घर पर रखकर बच्चों को किसी से मिलने जुलने नहीं दे रहें है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करवा रहें है । पर जब एक बार बच्चे स्कूल जायेंगे तो भला वो कितनी सोशल डिसटेंसिंग रख पायेंगें ।
और बस में, स्कूल में , क्लास में, वो कैसे इस सोशल डिसटेंसिंग का पालन कर पायेगें । फिर वो चाहे छोटे बच्चे हों या बडी क्लास के बच्चे ही क्यों ना हो ।
ठीक है मानते है इन नेताओं की बात को कि अब हम सबको इस कोरोना के साथ ही रहना है पर सबसे पहले बच्चों का ही स्कूल खोलने की क्या जल्दी है । जबकि हर जगह कोरोना के केस दिन ब दिन बढ ही रहें है ।
और स्कूल खोलने के लिये सिर्फ़ ये तर्क कि जवान लोगों को कोरोना से ज़्यादा ख़तरा नहीं है । ये कहना कहाँ तक सही है ।
जबकि अभी तो बच्चों ने मार्च के बाद से घर से बाहर क़दम भी नहीं रखा है ।
और अगर स्कूल जाकर बच्चे कोरोना की चपेट में आ जाते है तो किसकी ज़िम्मेदारी होगी ।
या बस यही कह कर हाथ झाड़ लेगें कि अब तो हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी । या अब हम सबको ख़ुद ही अपना ख़याल रखना होगा ।
हमारे बहुत सारे ग्रुप पर माँओं ने एक तरह की कैम्पेन चला रखी है कि अगर स्कूल खुलते है तो भी वो लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगीं ।
और हम भी उन माँओं की बात से पूरी तरह सहमत है ।
क्योंकि कोरोना के चलते घर से निकलने में ख़तरा है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करना मुश्किल होगा ।
अरे जब आपको ख़तरा है तो बच्चों को कैसे ख़तरा नहीं है ।
जब नेता ख़ुद वर्चुअल सेशन करने की सोच रहें है तो कैसे वो लोग बच्चों के स्कूल खोलने की बात सोच रहें है ।
बच्चे जिन्हें घर में तो फिर भी माँ बाप घर पर रखकर बच्चों को किसी से मिलने जुलने नहीं दे रहें है और सोशल डिसटेंसिंग का पालन करवा रहें है । पर जब एक बार बच्चे स्कूल जायेंगे तो भला वो कितनी सोशल डिसटेंसिंग रख पायेंगें ।
और बस में, स्कूल में , क्लास में, वो कैसे इस सोशल डिसटेंसिंग का पालन कर पायेगें । फिर वो चाहे छोटे बच्चे हों या बडी क्लास के बच्चे ही क्यों ना हो ।
ठीक है मानते है इन नेताओं की बात को कि अब हम सबको इस कोरोना के साथ ही रहना है पर सबसे पहले बच्चों का ही स्कूल खोलने की क्या जल्दी है । जबकि हर जगह कोरोना के केस दिन ब दिन बढ ही रहें है ।
और स्कूल खोलने के लिये सिर्फ़ ये तर्क कि जवान लोगों को कोरोना से ज़्यादा ख़तरा नहीं है । ये कहना कहाँ तक सही है ।
जबकि अभी तो बच्चों ने मार्च के बाद से घर से बाहर क़दम भी नहीं रखा है ।
और अगर स्कूल जाकर बच्चे कोरोना की चपेट में आ जाते है तो किसकी ज़िम्मेदारी होगी ।
या बस यही कह कर हाथ झाड़ लेगें कि अब तो हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी । या अब हम सबको ख़ुद ही अपना ख़याल रखना होगा ।
हमारे बहुत सारे ग्रुप पर माँओं ने एक तरह की कैम्पेन चला रखी है कि अगर स्कूल खुलते है तो भी वो लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगीं ।
और हम भी उन माँओं की बात से पूरी तरह सहमत है ।
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