जीवन का कोई मूल्य नहीं

ऐसा माना जाता है कि मनुष्य का जीवन ८४ लाख योनियो में विचरण करने के बाद मिलता है। मतलब कि इस जीवन के पहले हम पेड़ पौधे,पशु पक्षी,मछली मगरमच्छ और चींटी से लेकर हर तरह के कीड़े मकोड़े बनने के बाद हमे मनुष्य का जीवन मिला है। अब अगर ऐसा मानते है तो इसमें सच्चाई तो होगी ही।


पर लगता है कि इंसान के जीवन का सबसे कम मूल्य है , ख़ासकर आजकल ।ऐसा लगता है कि ज़िन्दगी से सस्ता तो कुछ है ही नहीं । जब जिसे चाहा बस मार दिया । ये तक नहीं सोचते है कि उसके बाद उनका या उनके परिवार का क्या होगा।

ज़रा सी बात हो फिर वो चाहे कार पार्किंग को लेकर झगड़ा हो या रोडरेज हो या चाहे जायदाद का झगड़ा हो बस फट से बिना समय गँवाये किसी की जान ले लेते है। अब अगर हम किसी को ज़िन्दगी दे नहीं सकते है तो भला भगवान की दी हुई ज़िन्दगी लेने का हक़ हमें किसने दिया।


सुबह सवेरे जब अख़बार मे इस तरह की ख़बर पढने को मिलती है तो लगता है क्या वाक़ई अब लोगों में सहनशीलता ख़त्म होती जा रही है।

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