रिश्तों के बदलते नाम

वैसे आज का विषय हमारी कल हुई किटटी पार्टी से मिला है । वो क्या है ना कि कल हमारी किटटी पार्टी थी और वहाँ हमारी एक मेंबर नहीं आई थी क्योंकि उसके ससुर जी बीमार हो गये है। यह जानकर हम लोंगों की सबसे सीनियर पर ज़िंदादिल सदस्य संतोष जी ने बड़ी ही मासूमियत से कहा कि अब ससुर कहां , ससुर तो फ़ादर - इन -लॉ हो गये है ।

और संतोष जी की कही हुई बात कुछ ग़लत भी नहीं है क्योंकि अब लोग सास ,ससुर ,ननद ,देवर ,जेठ ,जेठानी,ही नही मौसी,मामा,चाची ,नाती पोती ,नतनी सब कुछ कुछ लुप्त से हो रहे है ।

मॉं बाबूजी से हम लोग मम्मी पापा पर आये थे । पर धीरे धीरे मॉम और डैड का ज़माना आया । अब तो कई बार पापा के लिये पॉपस भी सुनने को मिलता है ।

कब सास मदर -इन-लॉ और ससुर कब फ़ादर -इन-लॉ बन गये किसी को भनक भी नहीं लगी ।

ननद और भाभी तो सिस्टर् -इन-लॉ भी नही बल्कि सिस-इन-लॉ हो गई ।

दामाद सन-इन-लॉ तो बहू डॉक्टर-इन-लॉ हो गई। पहले बड़ी शान से दामाद को दामाद कहकर मिलवाते थे पर अब सन-इन-लॉ कहकर मिलवाया जाता है

चाची ,मौसी ,बुआ,मामी को एक ही सम्बोधन आन्टी से ही बुलाया जाता है । तो वहीं मामा ,चाचा फूफा को अंकल । पता ही नहीं चलता है कि घर के है रिश्तेदार है या बाहर वाले है । पहले तो हम लोग बाहर वालों मतलबपापा के दोस्तों और उनकी पत्नियों को आन्टी अंकल की बजाय चाचाजी चाचीजी कहकर सम्बोधित करते थे ।

और तो और जितने नाती ,पोते,पोती सब ग्रैंड चिल्डरैन हो गये है ।

अब शायद ये मॉडर्न होने के आयाम बन गये है । 🙂

भगवान जाने भविष्य मे क्या होगा ।

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