ये कैसे नेता और कैसी राजनीति
कर्नाटक में चुनाव के बाद जो कुछ तमाशा चल रहा था उससे लगता है कि अब अपने देश की राजनीति बस ड्रामा भर रह गई है । जिस तरह चुनाव प्रचार के दौरान सारी पार्टियाँ एक दूसरे के लिये बुरी से बुरी बात बोलते है और जैसी छींटाकशी होती है ,कि कोई भी किसी से पीछे नहीं रहता है । वैसे तो राजनीति मे सब कुछ जायज़ है । पर पहले तो फिर भी थोड़ी मर्यादा रहती थी पर अब तो कोई भी मर्यादा नही रखते है ।
चुनाव जीत जाये तो तो ठीक वरना तो हर पार्टी दूसरी पार्टी के नेताओं की ख़रीद फ़रोख़्त मे लग जाती है । दो- तीन दिन से सारे न्यूज़ चैनल दिखा रहे थे कि किस तरह १०० करोड़ मे दूसरी पार्टी के नेताओं को ख़रीदने की ख़बर दिखाई जा रही थी । और किस तरह नेताओं को रिसॉर्ट मे रखा जा रहा था ताकि वो लोग पार्टी छोडकर दूसरी पार्टी में ना चले जाये। बस मे भरकर कभी कोच्चि तो कभी हैदराबाद ले जाये जा रहे थे । मानो कोई सामान हों। अरे जो नेता पैसे रूपये के लिये दूसरी पार्टी मे चला जाता है वो जनता के लिये भला क्या करेगा ये सोचने वाली बात है।
ऐसा नहीं है कि पहले नेता पार्टी बदल कर दूसरी पार्टी मे नहीं जाते थे ,पहले भी दलबदलू नेता होते ही थे पर आज की तरह इतने मौक़ापरस्त नहीं होते थे । और इस तरह खुलेआम ख़रीद फ़रोख़्त नहीं होती थी ।
कहना ग़लत नहीं होगा कि अब तो ये कुछ रिवाज सा हो गया है ।
चुनाव जीत जाये तो तो ठीक वरना तो हर पार्टी दूसरी पार्टी के नेताओं की ख़रीद फ़रोख़्त मे लग जाती है । दो- तीन दिन से सारे न्यूज़ चैनल दिखा रहे थे कि किस तरह १०० करोड़ मे दूसरी पार्टी के नेताओं को ख़रीदने की ख़बर दिखाई जा रही थी । और किस तरह नेताओं को रिसॉर्ट मे रखा जा रहा था ताकि वो लोग पार्टी छोडकर दूसरी पार्टी में ना चले जाये। बस मे भरकर कभी कोच्चि तो कभी हैदराबाद ले जाये जा रहे थे । मानो कोई सामान हों। अरे जो नेता पैसे रूपये के लिये दूसरी पार्टी मे चला जाता है वो जनता के लिये भला क्या करेगा ये सोचने वाली बात है।
ऐसा नहीं है कि पहले नेता पार्टी बदल कर दूसरी पार्टी मे नहीं जाते थे ,पहले भी दलबदलू नेता होते ही थे पर आज की तरह इतने मौक़ापरस्त नहीं होते थे । और इस तरह खुलेआम ख़रीद फ़रोख़्त नहीं होती थी ।
कहना ग़लत नहीं होगा कि अब तो ये कुछ रिवाज सा हो गया है ।
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