Posts

Showing posts from 2019

तीसरा स्कूल रीयूनियन ( चाफी में कैंप फ़ायर )

चाफी से अगले दिन हम लोग सातताल ,नौकुचिया ताल और भीमताल घूमने गये । हालाँकि मौसम बहुत गड़बड़ था बहुत बादल छाये हुये थे पर फिर भी हम लोग घूमने निकले और सात ताल में हम लोग आराम से घूम लिये । वैसे भी किसी को वहाँ बोटिंग तो करनी नहीं थी और बूंदी बांदी शुरू सी हो रही थी तो तकरीबन आधा घंटा वहाँ बिताकर और फ़ोटो खींच खांचकर हम लोग नौकुचिया ताल की ओर चल दिये । नौकुचिया ताल पर जब हम लोग पहुँचे वहाँ तभी बस बारिश रूकी थी ।और इस वजह से वहाँ थोड़ा किच किच सा था पर जैसे ही हम लोग ताल की ओर बढ़े तो बत्तखों का झुंड दिखाई दिया । बत्तखें भी बहुत समझदार जैसे ही वो लोगों को देखती है तो बस क्वैक क्वैक करती हुई आ जाती है ताकि लोग उन्हें चने खिलायें । तो लाज़मी था कि जब बत्तखें हम लोगों की तरफ़ आई तो हम लोग उन्हें चने खिलाये । हमने भी चने ख़रीदे और हाथ से खिलाने में यूँ ते डर लग रहा था कि कहीं बत्तख काट ना ले पर फिर हिम्मत करके हाथ से चने खिलाये तो बड़ा मजा आया और हमने एक बार और चने ख़रीदकर बत्तखों को खिलाये ।( बीस रूपये में एक दोना चने देता है बेचने वाला ) और लौटकर गरमागरम भुट्टे हम लोगों ने खाये । औ

तीसरा स्कूल रीयूनियन ( २) चाफी रील एंड रिवर एडवैंचर कैम्प

काठगोदाम से हम लोगों को चाफी जाना था । चाफी जोकि नैनीताल से पहले एक छोटा सा गाँव है और जहाँ चाफी नदी बहती है ।यहीं पर जगाती के भांजे कान्हा का रिसॉरट है जहाँ हम सब दो दिन मौज मस्ती करने वाले थे । चूँकि ये रिसॉरट थोड़ा हटकर मतलब शहर से दूर था । कान्हा ने ही हम लोगों को काठगोदाम से लाने के लिये गाड़ियाँ भेजी थी । काठगोदाम से हम लोगों को चाफी रील एंड रिवर् एडवैंचर कैम्प ले जाने के लिये दो बड़ी गाड़ियाँ मय ड्राइवर ( टवेरा और क्वालिस ) आयी थी । चाफी रवाना होने से पहले एक बार फिर से फ़ोटो शोटो खींचीं गई । हम सब में कुछ लोगों को पहाड़ी रास्ते पर चक्कर की परेशानी तो कुछ को गाड़ी की पीछे की सीट पर बैठने में परेशानी थी । पर कुछ हर हालात में ख़ुश और एडजस्ट करने वालीं भी थी । सब लोग दोनों गाड़ियों में एडजस्ट होकर चाफी के लिये चल पडे और चालीस मिनट बाद हम लोग चाफी रिसॉरट पहुँचे तो सबसे पहले तो वहाँ की ख़ूबसूरती साफ़ और स्वच्छ हवा और मौसम पर हम सब फ़िदा हो गये । और पहाड़ों के बीच बने टेंट और बग़ल में पानी के कल कल की आवाज़ सुनते ही सबकी थकान और बीमारी मानो हवा हो गई । इस रिसॉरट में कुल आठ टेंट

तीसरा स्कूल रीयूनियन

चौंकिये मत एक बार फिर इस साल सितम्बर में हम स्कूल फ्रैंड्स नैनीताल में रीयूनियन के लिये इकट्ठा हुये थे । हालाँकि नैनीताल जाने का प्लान पिछले यानि २०१८ में ही बन गया था क्योंकि सभी लोग कुछ अलग जगह जाना चाहते थे । वैसे इस साल के रीयूनियन में कई बार झटके लगे और एक समय तो ऐसा लगने लगा था कि कहीं इस बार का रीयूनियन कैंसिल ही ना करना पडे । पर वो कहते है ना कि अंत भला तो सब भला । मतलब हम लोगों का रीयूनियन सफल रहा । 😊 अब नैनीताल जाना कोई आसान काम तो था नहीं । क़िस्मत से हम लोगों की एक दोस्त जगाती नैनीताल से ही है और जिसकी वजह से हम लोगों को बहुत सहूलियत रही । वैसे नैनीताल जाने के लिये हम लोगों की तकरीबन पाँच छ: महीने या यूँ कहें कि साल भर की प्लानिंग थी । क्योंकि हम सब अलग अलग जगह से इकट्ठा होने थे जैसे किसी को मुम्बई से तो कुछ लोग इलाहाबाद से तो कोई कानपुर से तो किसी को बनारस से आना था ,किसी को बिहार से तो कुछ को दिल्ली और गुरूग्राम से तो किसी को हैदराबाद तो कोई नागपुर से तो किसी को दुबई से आना था । कुछ को छुट्टी लेनी थी तो कुछ को घर बार की ज़िम्मेदारी थी पर कोई भी एक साल में एक बार

नैनीताल यात्रा एक अनुभव ( आख़िरी पार्ट )

दो दिन भुवाली और भीमताल घूमने के बाद तीसरे दिन नैनीताल जाने का प्रोग्राम बना । उसका एक कारण यह भी था कि ये कहा जा रहा था कि सोमवार को नैनीताल जाना सम्भव होगा क्योंकि शनिवार और रविवार का जो पर्यटकों का हुजूम था वो कुछ कम हो जायेगा । अगले दिन सुबह सुबह फटाफट नाश्ता करके हम लोग साढ़े ग्यारह बजे तक नैनीताल के लिये निकले । रास्ते में कुछ ज़्यादा भीड़ भाड नहीं मिली और दो दिन पहले जहाँ से पुलिस वाले बैरियर लगाकर सबको वापिस भेज रहे थे वहाँ पुलिस वाले भी थोड़ा रिलैकस करते हुये दिखे । और मन ही मन हम ख़ुश हो रहे थे कि चलो आज तो आराम से नैनीताल पहुँच ही जायेंगे । पर जैसे ही नैनीताल दिखना शुरू हुआ और नैनीताल एक कि. मी. लिखा दिखा कि बस कार रूक गई । मतलब ट्रैफ़िक जाम की एक लम्बी सी लाइन उस घुमावदार पहाड़ी पर देखी जा सकती थी । और हम लोगों को लगा कि अब तो नैनीताल पहुँचना कहीं मुश्किल ना हो जाये । ट्रैफ़िक में खड़े खड़े जब आधा घंटा होने लगा तो कुछ लडकों ने टैक्सियों से अपना सामान लेकर पैदल चलना ही उचित समझा । और उनकी देखा देखी कुछ और लोग भी मय सामान के पैदल ही चल पड़े । और इंच इंच करके कार आगे ब

नैनीताल यात्रा ( पार्ट ३ ) गोलू देवता का मन्दिर और चाय बाग़ान

इधर थोड़ा व्यस्त रहने की वजह से नैनीताल यात्रा का विवरण छूट गया था । पर चलिये आज आगे चलते है । 😊 भीमताल जाने और ट्रैफ़िक का बुरा हाल देखकर ये सोचा गया कि अगले दिन भुवाली के आस पास की जगह देखी जाये । और ऐसे में गूगल बाबा से ज़्यादा मददगार भला कौन हो सकता है । गूगल बाबा से पता चला कि जहाँ हम लोग रह रहे थे ( पाइन ओक ) वहाँ से चाय बाग़ान और गोलू देवता का मन्दिर बस दो-तीन कि.मी. की दूरी पर ही है । तो अगले दिन हम लोग पहले चाय बाग़ान देखने गये । जहां टिकट बीस रूपये का था । टिकट लेकर जब चाय बाग़ान में गये तो थोड़ा निराश हुये क्यों कि गूगल पर फ़ोटो में चाय बाग़ान काफ़ी बड़ा लग रहा था और हमें भी लगा था कि चाय बाग़ान बड़ा सा होगा पर वहाँ एक छोटे से एरिया को बस पर्यटकों के लिये खोला हुआ था बाक़ी सारा बंद था ।और चूँकि उस दिन रविवार था तो बाग़ान में पत्तियाँ तोड़ती हुई बाग़ान की महिलायें नहीं दिखी । 😏 और इसलिये वहाँ बमुश्किल पन्द्रह मिनट हम लोग रहे । क्योंकि वहाँ घूमने के लिये ज़्यादा कुछ था ही नहीं । हाँ हर कोई उसी जरा से एरिया में अलग अलग पोज देकर फ़ोटो खींच और खिंचा रहे थे । हमने भी

नैनीताल यात्रा एक अनुभव ( पार्ट २ भीमताल )

उम्मीद है कि आपकी थकान उतर गई होगी ।😊 इतने बुरे ट्रैफ़िक जाम के बाद तो उस शाम कहीं निकलने की इच्छा ही नहीं हुई । रात में पांडे जी के होटल से स्वादिष्ट शाकाहारी खाना मँगवाया गया और अगले दिन भीमताल घूमने का प्रोग्राम बनाया गया । सुबह तकरीबन बारह बजे के आस पास हम लोग भीमताल के लिये निकले पर चूँकि गूगल बाबा हम लोगों को भीमताल की बजाय नैनीताल वाले रास्ते पर लेकर चल पड़ें । वो इसलिये क्यों कि हमने तल्लीताल भीमताल लिख दिया था । 😳 जैसे ही नैनीताल के रास्ते पर चले कि थोड़ी दूर बाद भुवाली सैनिटोरियम पड़ा जो बहुत ही जर्जर हालत में लग रहा था । वैसे बता दें कि एक ज़माने में भुवाली इस सैनिटोरियम की वजह से ही जाना जाता था पर शायद अब नहीं । खैर सैनिटोरियम से बस एक या दो कि. मी. ही गये होगें कि एक बार फिर कारों की लम्बी क़तार नज़र आई और चूँकि वहाँ से कार को वापिस मोड़ना मुश्किल था लिहाज़ा हम लोग भी उसी लाइन में लग गये । रेंगते हुये जब नैनीताल जाने वाले रास्ते पर पहुँचे तो वहाँ बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे और नैनीताल का रास्ता बैरियर लगाकर बंद किया हुआ था । गाड़ियाँ या तो काठगोदाम जा सकती थ

नैनीताल यात्रा एक अनुभव (पार्ट १)

कुछ दिन पहले हम नैनीताल गये थे । अब आप कहेंगे कि नैनीताल जाना भला कौन सी बड़ी बात है । गरमी की छुट्टियों मे तो हमेशा लोग नैनीताल ,मसूरी शिमला और मनाली वग़ैरह घूमने जाते ही है । तो भला इसमें नई बात क्या है । दरअसल काफ़ी समय से लोग कहते थे कि अब सड़कें बहुत अच्छी बन गई है और अब सड़क से यात्रा करना बहुत आरामदायक हो गया है । और वैसे भी नैनीताल गये हमें पच्चीस तीस साल हो गये थे । लिहाज़ा सोचा गया कि इस साल नैनीताल घूमकर आया जाये । नैनीताल से पहले भुवाली पड़ता है जहाँ हमारे पतिदेव के दोस्त का घर है और वो पिछले तीन चार साल से हम लोगों को कह रहे थे कि हम लोग भुवाली और नैनीताल घूमने आये और उनके घर पर रूकें । तो हम लोगों ने भी मन बनाया और नैनीताल जाने की तैयारी की और चल पड़े । 🚘 सुबह साढ़े सात बजे घर से चले और तकरीबन एक घंटे में हम लोग ग़ाज़ियाबाद पहुँच गये । हम बडे ख़ुश थे कि वाक़ई सड़कें बहुत अच्छी बन गई है । अरे पर ये क्या अभी तो हमने अच्छी सड़क की तारीफ़ ही की थी कि अचानक ही गड्ढा युक्त ( गड्ढा मुक्त नहीं 😒 ) सड़क शुरू हो गई और हमें बैठे बैठे हिंडोले का मजा मिलने लगा । हँसिये मत

जब हमने चाट खाई

अब आप सोच रहे होंगें कि चाट खाई है कौन सा एवरेस्ट पर चढ़ाई की है । हाँ हमें पता था कि आप पक्का यही सोच रहे होगें । है ना । 😊 चलिये चाट खाने का क़िस्सा बताते है । दरअसल कल हमारी दोस्त ने अचानक ग्यारह बजे फोन किया कि चलो अभी चाट खाने चलते है । तो हमने कहा कि हमारे घर पर एक बजे ए.सी वाला आने वाला है क्योंकि ए.सी. में कुछ प्राबलम आ रही है । और हमने उनसे पूछा कि क्या हम लोग एक बजे तक आ जायेंगे । तो वो बोली कि कह तो नहीं सकते है । पर चलो हमारा चाट खाने का बहुत मन है । हमने एक बार फिर कहा कि बड़ी गरमी और धूप है तो वो बोली कि हम तुम्हें ए.सी. कार में ले जा रहें है । अब चलो । तो हम तैयार हुए और हम दोनों उनकी कार से चल पड़े सेक्टर बारह चाट खाने । रास्ते में उन्होंने बताया कि वहाँ पर हल्दीराम के यहाँ चाट खायेंगें । और सेक्टर बारह हम बस एक बार गये थे और उन्हें भी रास्ता पूरी तरह से पता नहीं था । हमें सेक्टर बारह का आईडिया तो था पर पूरी तरह से पक्का नहीं था । खैर हमने कहा कि जी.पी.एस. चला लेते है तो वो बोली कि परेशान मत हो हम लोग पहुँच जायेंगे । पर हमने फिर भी जी.पी.एस. चला लिया और ज

जब अर्बन क्लैप का विज्ञापन भ्रमित करता है

आजकल टी.वी. पर अर्बन क्लैप का एक विज्ञापन खूब आ रहा है जिसमें आयुषमान खुराना अपने ए.सी की सर्विसिंग अर्बन क्लैप से करवाता हुआ दिखाया गया है । ए.सी सर्विसिंग करते हुये दिखाया गया है कि अर्बन क्लैप वाले ए.सी को प्लास्टिक शीट से ढंक कर वाटर जेट से ए.सी.की जाली और ए.सी. की धुलाई करते है । जिससे ना कोई गंदगी होती है और ना ही पानी वग़ैरा नीचे गिरता है । और आयुषमान खुराना उनके काम करने के तरीक़े से बहुत प्रभावित होता है । इस विज्ञापन को देखकर हम भी काफ़ी प्रभावित हुये थे । और इस बार ए.सी .की सर्विस के लिये अर्बन क्लैप को बुक कर दिया । शाम को तय समय से थोड़ा देर में अर्बन कलैप से दो लोग आए । जैसा कि हमने उम्मीद की थी कि वो प्लास्टिक शीट के साथ साथ बाल्टी वगैरह भी लाएंगे ए. सी. की सफाई के लिए पर ऐसा नहीं था । और ऐसी उम्मीद हमने इसलिये की थी क्योंकि जब भी अर्बन क्लैप से ब्यूटीशियन या मसाज वाली आती है तो वो अपने साथ हर छोटा बड़ा सामान लाती है यहाँ तक कि ब्यूटीशियन पैडीक्योर के लिये टब और बैठने के लिये प्लास्टिक का स्टूल भी लाती है । खैर वो लोग प्लास्टिक शीट और जेट तो लाए थे

अरसे बाद बहनों का रीयूनियन

पिछले हफ़्ते हम बहनें कई साल बाद एक साथ इक्कठा हुई थीं वरना हर बार कोई ना कोई ग़ायब ही रहता था । कितना भी कोशिश करें सब एक साथ एक जगह इक्कठा नहीं हो पाती थी । पर इस बार हम सब एक साथ रहे और जितना मस्ती मजा हुआ उसे लिख कर बयां नहीं किया जा सकता है । हम बहनें तो पहले से ही इस बात के लिये बदनाम है कि हम बोलने के साथ ही इतने ज़ोर से हँसते है कि हम बहनों के अलावा किसी को भी समझ नहीं आता है कि हमने क्या बोला और क्यूँ हम सब ठहाका लगाकर हंस पड़े । और जहाँ तक हम सोचते है ऐसा आप सभी के साथ भी होता होगा । 😁 सब बच्चों का मिलना , गप्पें मारने और सबका मनपसंद खाना ,मनपसंद स्वीट डिश , सच में उन चार दिनों में ऐसा लग रहा था मानो जैसे घर में शादी ब्याह का माहौल हो ,रौनक़ ही रौनक़ , शोर ही शोर ,ठहाकों की आवाज़ , एक दूसरे को हर समय पुकारते रहना कि अरे आ जाओ ,किचन में क्या कर रही हो । साथ बैठो , बातें करो । बीच बीच में एक दूसरे को उपदेश भी देते जाना । शाम को सबका एक दूसरे को गिफ़्ट देना और सबसे ज़रूरी फ़ोटो सेशन । हम बहनें तो फ़ोटो खिंचाने में जरा भी नहीं थकती है पर बच्चे और पतिदेव और जीजाजी लोग न

चैत में चैता

आजकल चैत मास चल रहा है और चैत में चूँकि गरमी की शुरुआत होती है । गरमी और पतझड़ का होना विरह से जोड़ा जाता है । अभी कुछ दिन पहले हमारी एक सहेली ने हमें चैता यानि की जिसमें विरह का वर्णन है ऐसा गीत ख़ुद गाकर भेजा था । और जब से चैत मास शुरू हुआ है वो गाहे बगाहे हमें चैता के बारे में बताती रहती है । क्योंकि उन्हें इस मौसम यानि चैत में चैता सुनना बहुत अच्छा लगता है । हालाँकि वो चैता सुनकर तो विरह की अनुभूति करती है पर उनका कहना है कि उन्होंने पति विरह में कभी भी ऐसी अनुभूति नहीं की है । कहने लगीं क्या सच में ऐसी अनुभूति होती है जैसी कि चैता की नायिका को होती है । इसी हँसी मज़ाक़ के बीच हमने उनसे कहा था कि अबकी जब कभी भी आपके पति बाहर या दूसरे शहर जायें तो आप इस वियोग को महसूस करियेगा । इधर हम थोड़ा बिजी थे तो कल कई दिन बाद हमने अपने स्कूल का वहाटसऐप देखा तो पता चला कि हमारी एक सखी पति विरह की अग्नि में जल रही है । क्योंकि उसके पति कुछ दिनों से कहीं बाहर गये हुये है और वो घर में अकेले है । चूँकि वो अकेले रह रही है तो उसने लिखा था वो गले तक बोर हो रही है ( जिसका मतलब हम लोगों ने लगा

यादें अप्रैल फूल की

अब तो नहीं पर पहले बहुत समय तक अप्रैल फूल बनाते थे । बचपन में तो घर में पहली अप्रैल के दिन सुबह से ही कभी दीदी तो कभी मम्मी को अप्रैल फूल बनाने में खूब मजा आता था । और जब कोई हमारी बातों में आकर अप्रैल फूल बन जाता था तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता था । हालाँकि पहली अप्रैल के दिन हर कोई और हम भी बहुत सतर्क रहते थे कि कहीं कोई हमें अप्रैल फूल ना बना दे पर चाहे जितना भी सतर्क रहें किसी ना किसी की बातों में आकर अप्रैल फूल ( बेवक़ूफ़ ) बन ही जाते थे । 😜 एक बात तो है कि अप्रैल फूल बनाने में तो बड़ा मजा आता है पर जब ख़ुद बनते है तो क्या कहने की ज़रूरत है कि कैसा लगता है ।😩 पापा और भइया को तो बस फोन का रिसीवर ( पुराने ज़माने वाला फोन ) हटा कर अलग रख देते थे और कहते थे कि पापा फ़लाँ अंकल का फोन आया है या भइया से कहते थे कि उनके किसी दोस्त का फोन आया है और जैसे ही पापा या भइया फोन उठाकर हैलो कहते हम अप्रैल फूल कह कर हंस देते थे । पापा तो नहीं पर हाँ भइया कभी कभी हमें हड़काने भी थे हमारी इस हरकत पर ।😀 दीदी लोगों को तो अकसर कहते कि बाहर तुम्हारी दोस्त आई है और तुम्हें बुला रही है

इतने छोटे बच्चों को टयूशन

आजकल की दौड़ती भागती जिंदगी में लगता है पेरेंटस के पास समय की बहुत अधिक कमी सी होने लगी है । और इसका एक कारण शायद ये है कि आज कल दोनों पेरेंटस नौकरीपेशा होते है । और इसी वजह से लगता है कि नई पीढ़ी के माता पिता छोटे छोटे बच्चों के लिये टयूशन की बात करते है । पर कक्षा दस या बारहवीं में अगर बच्चे टयूशन लेते है तो बात समझ में आती है क्योंकि इन क्लास की साइंस और मैथ्स पढ़ाना थोड़ा मुश्किल होता है । पर क्लास वन के लिये टयूशन की बात हमारी समझ से परे है । हमारे एक ग्रुप पर अकसर मायें ऐसी क्वैरी लगाती दिखती है कि कोई अच्छी टयूशन क्लास या कोई अच्छा टयूशन टीचर बतायें क्लास वन के बच्चे के लिये । और ये पढ़कर हम सोच में पड़ जाते है कि कया आजकल की मां अपने क्लास वन में पढ़ने वाले बच्चे को भी नहीं पढ़ा सकती है । और अगर क्लास वन या क्लास टू के बच्चे को नहीं पढ़ा सकती है तो उनके पढ़े लिखे होने का क्या फ़ायदा । वैसे भी क्लास वन या क्लास टू में स्कूल में क्या और कितना पढ़ाया जायेगा । होमवर्क ही तो मिलता होगा । आमतौर पर जो हमने देखा है कि बच्चे मैथ्स और साइंस के लिये कलास सिक्स से टयूशन पढ़ना

ऑलमंड हाउस के बिस्टिक्स

हैदराबाद की करांची बेकरी के बारे में तो हम लोगों ने सुन रखा है पर इस बार हमारे नन्दाई जी हैदराबाद के ऑलमंड हाउस से बिस्टिक्स लाये थे । पहले तो बिस्टिक्स पढकर समझ नहीं आया और हमने उसे बिस्कुट ही समझा पर जब पैकेट खोला तब बिस्टिक्स का मतलब समझे । इस पैकेट में बिस्कुट की छोटी छोटी स्टिक्स है जो खाने में बेहद स्वादिष्ट है । और इन बिस्टिक्स में सबसे अच्छी बात है कि चूँकि ये छोटी है तो मीठा कम खाने वालों के लिये भी अच्छी है माने कि एक स्टिक खाकर भी मन भर सकता है । वैसे ये बिस्टिक्स इतने टेस्टी है कि एक खाने के बाद दो चार तो एक झटके में ही खा जाते है । अब क्या करें कंट्रोल ही नहीं होता है । 😜 एक पैकेट पाँच सौ ग्राम का होता है और इसमें ढाई सौ ग्राम के दो डिब्बे होते है ।पाँच सौ ग्राम के पैकेट की क़ीमत पाँच सौ साठ रूपये है । और इस के ढाई सौ ग्राम के पैक का दाम दो सौ अस्सी रूपये है । गिनी तो नहीं है पर कम से कम पचास साठ बिस्टिकस तो होती ही है । ये बिस्टिकस आटा ,मक्खन ,कैलिफ़ोर्नियन बादाम ,चीनी से बने है और ये बिस्टिक्स खाने में खूब कुरकुरे और बादाम से भरपूर है । अब बिस्टिक्स में जब

हो गई होली

होली की थकान और ख़ुमारी उतरी या नहीं । 😜 हर साल फ़रवरी बीतने के साथ ही होली के आने का इंतज़ार शुरू हो जाता है । हालाँकि इस साल होली थोड़ा देर से आई पर अच्छा ही हुआ क्योंकि मौसम का जो मिज़ाज चल रहा था मतलब इस साल तो जैसे जाड़ा जाने का नाम ही नहीं ले रहा था । इस साल मार्च के महीने तक ठंडक रही । एक हफ़्ते पहले तक ऐसा लग रहा था कि कहीं स्वेटर पहन कर होली ना खेलनी पड़ जाये । 😁 होली आये और चिप्स पापड़ गुझिया मालपुआ ना बने ऐसा कहाँ हो सकता है । और वैसे भी साल में एक बार ही ये सब बनता है ।और बिन मौसम इन चीज़ों को बनाने का मन भी नहीं करता है । क्यूँ सही कह रहे है ना । वैसे होली आने के पहले चिप्स और पापड़ बनाने होते है पर इस बार भगवान जी ने भी खूब धूप छांव का खेल खेला । हमने तो जिस दिन छत पर पापड़ बनाकर डाले उस पूरे दिन हल्की ही धूप रही और थोड़ी बहुत बूंदाबांदी भी हुई । नतीजतन पापड़ छत से उठाकर नीचे लाकर पंखे की हवा में सुखाने पड़े । पापड़ ही नहीं आलू की चिप्स का भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ । होली के एक दिन पहले जब छत पर चिप्स डाले तो एक बार फिर से पूरे दिन सूरज देवता लुका छिपी खेलते रहे और

हैप्पी वीमेंस डे

आठ मार्च का दिन अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते है । और आज के दिन देश और दुनिया में अनगिनत कार्यक्रम भी होते है । तो सबसे पहले वीमेंस डे की ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें । हमारे समाज में महिला हमेशा किसी ना किसी पुरूष के संरक्षण में ही रहे ऐसा माना जाता था और है । जब बेटी पैदा होती है तो पिता और भाई का संरक्षण रहता है । शादी के बाद पति और पुत्र के संरक्षण में रहती है । चाहे अनचाहे महिला सदैव किसी ना किसी पुरूष के संरक्षण में ही रहती थी और है । हज़ार तरह की परम्परायें लड़की होने के नाम पर थोप दी जाती है कि तुम लड़की हो ये नहीं कर सकती । तुम लड़की हो इसलिये फ़लाँ जगह नहीं जा सकती हो । तुम लड़की हो इसलिये किससे और कैसे बात करनी है इसका सलीक़ा होना चाहिये । पर आज के समय में बहुत कुछ बदल सा रहा है । पर अभी भी कहीं ना कहीं ये सोच अभी बाक़ी है । हालाँकि आज के समय में बेटी लड़की या महिला किसी भी तरह से पुरूषों से कम नहीं है बल्कि हम तो ये कहेंगें कि आजकल महिलायें पुरूषों से थोड़ा आगे ही है । क्यूँ ग़लत तो नहीं कह रहे है ।

एक हफ़्ता और दो फ़िल्में

अब फ़िल्में देखना तो हमारा पुराना शौक है । और हफ़्ते में एक पिकचर तो देखना बनता ही है । क्यूँ कुछ ग़लत तो नहीं कहा ना । वैसे आजकल फ़िल्मों की कहानी भी अलग और नई तरह की होती है । पिछले हफ़्ते हमने सोनम कपूर की फ़िल्म एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा देखी थी और हमें तो फ़िल्म बहुत पसंद भी आई थी । हांलांकि फ़िल्म को लोगों ने कुछ ज़्यादा पसंद नही किया था । वैसे भी वो लीक से थोड़ा हटकर थी । आम लव स्टोरी नहीं थी । कहानी सोचें तो बहुत जटिल है क्यो कि पहले पहल लगता है कि फ़िल्म हिंदू मुस्लिम प्रेम प्रसंग पर आधारित है पर बाद में पता चलता है कि इस फ़िल्म में लड़की को लड़के से नहीं बल्कि लड़की से प्यार होता है । ये पढ़कर आपको झटका तो नहीं लगा । पर निर्देशक शैली चोपड़ा की तारीफ़ करनी होगी कि उसने एक बहुत ही संवेदनशील विषय को बहुत ही अच्छे ढंग से दिखाया । कहीं भी फ़िल्म में कोई चीप डायलॉग या सीन नहीं है और फ़िल्म काफ़ी रफ़्तार से आगे बढ़ती है । पर हाँ इसमें कलाकारों की भी तारीफ़ करनी होगी । क्योंकि हर छोटे बडे कलाकार ने अच्छा काम किया है । सोनम कपूर ,राजकुमार राव ,अनिल कपूर , जूही चावला और अभिषेक

चालीस रूपये की क़ीमत तुम क्या जानो पढ़ने वालों

कुछ दिन पहले पुरानी चिट्ठियों को दोबारा पढ़ते समय ये काग़ज़ का टुकड़ा हाथ लगा जो ऑल इंडिया रेडियो का था जिसमें हमें युवाओं के लिये होने वाले कार्यक्रम युववाणी में गिटार वादन के लिये आमन्त्रित किया गया था । इस लैटर को देखते ही ना जाने कितनी सारी यादें एक बार फिर से ताज़ा हो गई । जब पहली बार हम रेडियो स्टेशन गये थे तो एक अजीब सी ख़ुशी का एहसास था पर जब हम रिकार्डिंग रूम में गये थे तब थोड़ा नर्वस हो गये थे । अरे भाई रेडियो बजाना आसान बात तो नहीं थी ,और वो भी पहली बार । और उस ज़माने में युववाणी कार्यक्रम में प्रोग्राम देना बड़ी बात होती थी । अब चालीस के दशक में तो अस्सी रूपये की बहुत क़ीमत थी और हमें याद है कि इन चालीस रूपयों को पाकर हम ख़ुशी से झूम उठे थे और फूल कर कुप्पा हो गये थे । कयोकिं वो हमारे पहले रेडियो प्रोग्राम से मिला था । और रेडियो स्टेशन से निकलते हुये उन चालीस रूपयों को कैसे ख़र्च करना है ये सब प्लान बनाते हुये घर आ गये थे ।😋 हमने अपने परिवार के वहाटसऐप गुरूप पर जब ये वाला लैटर पोस्ट किया ो हमारे भइया बोले कि कि तब के चालीस रूपये आज के चार हज़ार के बराबर है ।

वेलेंटाइन डे और इन्द्र देव

आजकल वेलेंटाइन डे हर जगह छाया हुआ है । आख़िर हो भी क्यूँ ना फ़रवरी को प्यार का मौसम जो कहा जाता है । टी.वी. और रेडियो पर तो फ़रवरी महीने के शुरू होने के साथ ही विज्ञापन आने शुरू हो गये है और तो और मोबाइल फोन पर हर मिनट कोई ना कोई मैसेज आ रहा है कि वेलेंटाइन डे के लिये क्या करिये ,कहाँ घूमने जाइये या कहाँ खाना खाने जाइये । ना केवल इंडिया बल्कि विदेश घूमने जाने के भी खूब मैसेज आ रहे है । क्या जोमैटो क्या यात्रा या मेक माई ट्रिप सब कुछ ना कुछ ऑफ़र दे रहे है । और तो और ड्राईव यू जो कि ड्राइवर उपलब्ध कराती है वो भी वेलेंटाइन डे के लिये ऑफर और डिस्काउंट दे रही है । हर बाज़ार और दुकान लाल रंग के दिल के आकार के बने ग़ुब्बारों से सजी हुई है । ❤️ जहाँ पहले लोग वेलेंटाइन डे जानते ही नहीं थे वहीं अब तो हफ़्ते भर पहले से ही वेलेंटाइन डे की शुरूआत हो जाती है मसलन रोज़ डे ,चॉकलेट डे,टैडी डे ,हग डे वग़ैरह वग़ैरह और चौदह फ़रवरी को वेलेंटाइन डे । अब पहले तो वेलेंटाइन डे मनाने का उतना चलन नहीं था और ना ही ज़्यादा लोगों को पता था । पर पिछले पन्द्रह बीस सालों से वेलेंटाइन डे भी पूरे जोश से मनाया जाने

आगे बढ़ता और बदलता मौसम

इस साल जाड़ा थोड़ा देर से आया लग रहा है । वैसे भी अब तो जाड़ा सिर्फ़ एक डेढ़ महीने ही रहता है । अब वो पहले वाला समय तो रहा नहीं जब सितम्बर के बाद ही एक तरह से जाड़े की शुरूआत हो जाती थी । और तब ये माना जाता था कि पन्द्रह सितम्बर से ग्रीष्म ऋतु ख़त्म और शीत ऋतु की शुरूआत हो जाती थी । और इसी समय से दिन भी छोटे होने लगते थे । और इसे भी जाड़े की शुरूआत माना जाता था । पिछले साल तो दिसम्बर से जाड़ा पड़ना शुरू तो गया था पर कड़कड़ाती ठंड जनवरी में ही पड़ी थी । पर इस साल दिसम्बर में जाड़ा काफ़ी कम रहा बल्कि जनवरी में भी उतना जाड़ा नहीं पड़ा । जबकि इस साल फ़रवरी में मौसम का मिज़ाज ज़रूर कुछ बदला हुआ है । पहले तो ये माना जाता था कि मकर संक्रान्ति से सर्दी पड़नी कुछ कम हो जाती है पर अबकी बार तो मकर संक्रान्ति से ही मौसम ने पलटी मारी और जाड़ा पड़ना शुरू हुआ । जो अभी तक चल रहा है । यूँ तो शीत ऋतु में बारिश का होना अच्छा और बुरा दोनों होता है । अब कुछ फ़सल के लिये अच्छा तो कुछ के लिये बुरा क्योंकि कुछ फ़सल बारिश से ख़राब हो जाती है । और बारिश से मौसम में ठंडक का इज़ाफ़ा हो जाता है । और

बड़ा जिगरा चाहिये

पिछले हफ़्ते हमने उरी फ़िल्म देखी और फ़िल्म अच्छी लगी । फ़िल्म देखने के बाद हम ये सोचने लगे कि आर्मी वालों के परिवार वाले बहुत बड़े दिल वाले होते है । फ़िल्म का एक डायलॉग हाऊ इज जोश पूछने पर जब सारे जवान पूरे जोश से हाई सर कहते थे तो एक तरह के गर्व और देशभक्ति की अनुभूति होती थी । सेना के तीनों दलों मतलब आर्मी ,एयर फ़ोर्स , और नेवी की वजह से हम सभी देशवासी चैन की नींद सोते है । क्योंकि ये तीनों सेना हर क्षण देश की सुरक्षा में लगे रहते है । बर्फ़ीले पहाड़ हो या तपती गरमी सेना के जवान हमेशा चौकस रहते है । जब भी हम कोई सेना पर आधारित फ़िल्म देखते है वो चाहे हक़ीक़त हो या बॉरडर हो या उरी फ़िल्म तो हमें लगता है कि जो परिवार अपने बेटों को सेना में भेजते है उनका दिल बहुत बड़ा होता है। बहुत बार ऐसा देखा और सुना जाता है कि परिवार के सदस्य ( पति भाई या पिता ) ,को खोने के बाद भी मांये अपने बेटों को देश की सेवा के लिये आर्मी में भेजती है । ये कहना ग़लत नहीं होगा कि आर्मी वाले और उनके परिवार वाले कुछ अलग ही मिट्टी के बने होते है । उनके अन्दर जो जज़्बा और जोश होता है वो सबमें नहीं होता है ।

इम्तिहान है कोई कुंभ नहीं

आजकल प्रयाग राज में कुंभ मेला चल रहा है और ऐसा ही कुंभ से जुड़ा एक क़िस्सा याद आ गया । बात काफ़ी पुरानी है । हमारे भइया उस समय बी.ए. में थे और उनके कुछ दोस्त अकसर घर आया करते थे । वैसे तो हम लोगों के घर में कोई रोक टोक नहीं थी कहीं आने जाने पर , पर जब इम्तिहान होते थे तो सब लोग ख़ुद ही पढ़ाई करते थे । भइया के ऐसे ही एक दोस्त थे जो इम्तिहान के दिनों में भी घूमने में ज़्यादा रूचि रखते थे । और पढ़ने से दूरी । वैसे हमारी मम्मी कभी किसी को टोकती नहीं थी । भइया के बी.ए. के इम्तिहान चल रहे थे और एक दिन उनके ये दोस्त स्कूटर पर आये कि चलो घूम कर आते है। क्या हर समय तुम पढ़ते रहते हो । तो भइया उन्हें मना नहीं कर पाये और बाहर जाने के लिये तैयार होने लगे । तभी मम्मी आई और उनके दोस्त से बोली कि बेटा आजकल तो इम्तिहान चल रहे है थोड़ा पढ़ लिया करो । घूम तो तुम बाद में भी सकते हो । तो भइया के उन दोस्त ने बडे शांत भाव से मम्मी से कहा अरे चाची ये तो बस बी.ए. का इम्तिहान है कोई कुंभ मेला थोड़ी है जो छ: या बारह साल में आयेगा । इम्तिहान तो हर साल होता है । कहने की ज़रूरत नहीं है कि उसके बाद भइया क

छब्बीस जनवरी आई है

आज छब्बीस जनवरी है तो सबसे पहले तो आप सबको गणतन्त्र दिवस की बधाई । पहले गणतंत्र दिवस के अवसर पर हर स्कूल में खूब सारे फ़ंक्शन होते थे । और इसके लिये स्कूल की टीचर और स्टूडेंट्स मिलकर तैयारी करते थे । डाँस ,स्पोटर्स देशभक्ति से ओत प्रोत गीत ,कविता पाठ सब होता था । और जब सब प्रोग्राम ख़त्म होते थे तो लड्डू मिलते थे । 😋 बचपन में तो हम लोग गणतन्त्र दिवस और स्वतन्त्रता दिवस का खूब इंतज़ार करते थे । वैसे इंतज़ार तो हम आज भी इन दिनों का करते है बस फ़र्क़ इतना है कि अब टी.वी. पर परेड का इंतज़ार करते है । ऐसे ही स्कूल के समय का एक वाक्या है । हम लोगों की एक सीनियर दीदी थी और उन्होंने अपना नाम कविता पाठ के लिये लिखाया था । और जब वो स्टेज पर कविता पढ़ने आई तो उन्होंने सबसे पहले सभी टीचर और प्रिंसिपल को सम्बोधित करते हुये अपना कविता पाठ शुरू किया । छब्बीस जनवरी आई है ,छब्बीस जनवरी आई है । इस एक लाइन को उन्होंने नौ रस के अंदाज में पढ़ा था । और उसके बाद अचानक ही उन्होंने श्रृंगार रस में अपनी आवाज़ को बहुत ही सॉफ़्ट करते हुये पढ़ा छब्बीस जनवरी आई है । फिर अचानक ठहाका सा लगाते हुये मतल

फ़ूड पांडा है ना

आजकल फ़ूड पांडा की वजह से घर के पुरूष काफ़ी हद तक आत्मनिर्भर हो रहे है । ये अच्छी बात भी है और नहीं भी ।क्योंकि फूड पांडा में वो सौ रूपये तक का ऑर्डर भी भेज देते है । अभी कल ही की बात है हमारी एक सहेली मिली और बोली कि इस फूड पांडा से तो हम परेशान हो गये है । तो हमने भी जिज्ञासावश पूछा क्यों तो बोली एक दिन में तीन चार बार घर की घंटी बजती है और देखो तो फूड पांडा का डिलीवरी बॉय कुछ ना कुछ लेकर आया है । कभी चाट तो कभी समोसा ,कभी केक पेस्ट्री । तो हमने कहा कि ये तो अच्छा है वो तो आपका कितना ख़याल रखते है । तो हमारी सहेली बोली बताओ घर में खाना बना हुआ है । और फूड पांडा से ऑर्डर कर देते है । अगर फूड पांडा से मंगाना ही है तो बता दें ताकि घर में खाना बनकर बर्बाद तो ना हो । हमारी सहेली ही नहीं कभी कभी हमारे घर पर भी ऐसा होता है । 😋

माघ मेला और कल्पवास और कुम्भ

Image
आजकल इलाहाबाद यानि प्रयागराज में कुम्भ की ज़ोर शोर से तैयारी चल रही है । ऐसी ख़बरें तो हम लोग अक्सर टी.वी. और अखबार में देख और पढ़ रहे है । पर हम तब के माघ मेले की बात कर रहें है जब टी.वी. नहीं था । माघ मेला मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिव रात्रि को आख़िरी नहान होता है । इस दौरान पूरे शहर में बस लोग ही लोग दिखाई देते है । जब से हमें याद है हर साल माघ मेले में खूब तैयारी होती थी । और जब कुम्भ या अर्ध कुम्भ होता था तब तो और भी अधिक तैयारी होती थी । चूँकि पूरा संगम का इलाक़ा रेतीला है तो वाहनों के चलने के लिये पूरे इलाक़े में बड़े बड़े लोहे की पट्टियों से एक तरह की सड़क बनाई जाती थी ताकि कार वग़ैरा बालू में धँस ना जाये । पूरे एरिया में खूब पानी का छिड़काव होता था और हर तरफ़ डी.डी.टी. का छिड़काव भी किया जाता था ताकि लोग बीमारी से बचे रहें । जब हम लोग छोटे थे तो हमारी दादी हर साल माघ मेले में एक महीने के लिये कल्पवास करती थी ।हम लोगों के पंडितजी श्याम सुंदर पाण्डे भी अपना टेंट लगवाते थे और हमारी दादी वहीं रहती थी । हम लोग बीच बीच में उनके पास जाते तो वो आलू की सब्ज़ी और पराँठा खिलाती थी

ख़त्म होती सहनशीलता

आज सुबह पेपर में एक ख़बर पढ़कर हम ये सोचने लगे कि आख़िर अब लोगों में सहनशीलता ख़त्म क्यूँ होने लगी है । जरा सा कुछ हुआ नहीं कि बस धाँय से गोली चला दी । पालतू कुत्ते को पत्थर मारने की सज़ा मौत । क्योंकि कुत्ते को भौंकने से रोकने और दौड़ाने से रोकने के लिये उस आदमी ने कुत्ते को पत्थर मारा । ऐसा अखबार में लिखा है । माना कि उसे पत्थर नहीं मारना चाहिये था पर क्या पत्थर मारने की इतनी बड़ी सज़ा देना कि सीधे गोली मार कर इंसान की जान ही ले लेना , ठीक है । और सबसे अजीब बात इस ख़बर में ये लगी कि जिस कुत्ते के लिये आदमी की जान ली उसे ही छोड़कर गोली मारने वाला और उसका पूरा परिवार भाग गये । अरे भाई कम से कम उस बेज़ुबान जानवर को तो अपने साथ ले जाते । आजकल लोगों में बर्दाश्त की कमी होती जा रही है । जरा जरा सी बात पर लोग गोली चला देते है और सबसे आश्चर्य की बात ये है कि जिसे देखो उसके पास रिवाल्वर होती है । पहले तो रिवाल्वर रखने के लिये लाइसेंस की ज़रूरत होती थी पर लगता है अब तो कोई भी रिवाल्वर रख सकता है । इंसान की जान की कोई क़ीमत नहीं है जबकि ये कहा और माना जाता है कि अगर आप किसी को जीवन दे

बिटिया को खाना बनाना नहीं आता है

कभी कभी पुरानी बातें सोचकर हँसी आती है । और अपनों पर प्यार । शादी से पहले रसोई की तरफ़ कभी रूख ही नहीं किया था । इसकी वजह थी कि घर में हमेशा सेवक रहे और चूँकि हम सबसे छोटे थे तो ऐसा मौका आता ही नहीं था । और अगर कभी आता भी तो बस सलाद वग़ैरा बनाना होता । जिसमें पाक कला में निपुणता की ज़रूरत नहीं थी । पर एक और वाक़या है जिसकी वजह से हमने दोबारा खाना बनाना नहीं सीखा कभी । दरअसल जब हम बहुत छोटे (चार या पॉच साल के ) थे तो एक बार मम्मी का कान का ऑपरेशन हुआ था और वो हॉस्पिटल में थी । एक दिन की बात है पापा और बड़ी दीदी लोग हॉस्पिटल से आये नहीं थे । शाम हो रही थी और घर में सिर्फ़ हम और हमसे दो साल बड़ी दीदी थी । हम लोगों को भूख लग रही थी तो सोचा कि खाना खाया जाये । ( ये उस समय की बात है जब फ्रिज और गैस का चूल्हा नहीं थे ) तो हम दोनों ने खाना बनाने की सोची । अब खाना बनाने के लिये चूल्हा जलाना था जो हम दोनों को ही नहीं आता था । अपनी बुद्धि लगाकर हम लोगों ने चूल्हा जलाने की कोशिश शुरू की । और चूल्हे मे अखबार मोड़ मोड़कर हम दोनों डालने लगे जिससे चूल्हा तो नहीं जला पर घर में धुआँ धुआँ हो गया ।