चैत में चैता
आजकल चैत मास चल रहा है और चैत में चूँकि गरमी की शुरुआत होती है । गरमी और पतझड़ का होना विरह से जोड़ा जाता है ।
अभी कुछ दिन पहले हमारी एक सहेली ने हमें चैता यानि की जिसमें विरह का वर्णन है ऐसा गीत ख़ुद गाकर भेजा था । और जब से चैत मास शुरू हुआ है वो गाहे बगाहे हमें चैता के बारे में बताती रहती है । क्योंकि उन्हें इस मौसम यानि चैत में चैता सुनना बहुत अच्छा लगता है ।
हालाँकि वो चैता सुनकर तो विरह की अनुभूति करती है पर उनका कहना है कि उन्होंने पति विरह में कभी भी ऐसी अनुभूति नहीं की है । कहने लगीं क्या सच में ऐसी अनुभूति होती है जैसी कि चैता की नायिका को होती है । इसी हँसी मज़ाक़ के बीच हमने उनसे कहा था कि अबकी जब कभी भी आपके पति बाहर या दूसरे शहर जायें तो आप इस वियोग को महसूस करियेगा ।
इधर हम थोड़ा बिजी थे तो कल कई दिन बाद हमने अपने स्कूल का वहाटसऐप देखा तो पता चला कि हमारी एक सखी पति विरह की अग्नि में जल रही है । क्योंकि उसके पति कुछ दिनों से कहीं बाहर गये हुये है और वो घर में अकेले है । चूँकि वो अकेले रह रही है तो उसने लिखा था वो गले तक बोर हो रही है ( जिसका मतलब हम लोगों ने लगाया कि वो विरह अग्नि में जल रही है )
और बस हमनें उस पर कमेंट किया कि तुम तो जायसी की नायिका बन गई हो । बस फिर क्या था ग्रुप पर विरह छा गया । एक सहेली ने जायसी की कुछ पंक्तियाँ लिखी इतर की शीशी नायिका पर डाली गई तो नायिका की विरह अग्नि से इतर नायिका तक पहुँचने के पहले ही सूख गया । मतलब विरह की अग्नि इतनी तीव्र थी ।
स्कूल के दिनों में हम लोगों ने बहुत सारे कवियों को पढ़ा था पर मलिक मोहम्मद जायसी ने जिस तरह से अपनी नायिकाओं के प्रेम और विरह , ऋंगार का वर्णन किया था वो आज भी कहीं ना कहीं सच होता नज़र आ रहा है ।
स्कूल में जब हम लोगों को हिन्दी टीचर जायसी की कविताओं को समझाती थी तो हम लोग दबी दबी सी हँसी हँसते थे और कई बार इसलिये टीचर से डाँट भी पड़ती थी । कई बार जायसी की विरह कविता पढ़कर खूब हँसते थे और समझ नहीं पाते थे कि क्या वाक़ई में ऐसा प्रेम और विरह होता है ।
जायसी ने जिस कोमलता से नायिका के विरह वियोग और दुख का वर्णन किया है वो कमाल का है ।
पिऊ सों कहेंगे संदेसडा ,हे भौंरा ! हे काग !
सो धनि बिरहै जरि मुई ,केबिन क धुवाँ हम्ह लाग ।।
मतलब तो समझ गये ना कि नायिका की विरह अग्नि के धुएं से ही कौआ और भौंरा काले हो गये है ।
चलिये अब बस करते है वरना कहीं ये वियोग सबको ना लग जाये ।
अभी कुछ दिन पहले हमारी एक सहेली ने हमें चैता यानि की जिसमें विरह का वर्णन है ऐसा गीत ख़ुद गाकर भेजा था । और जब से चैत मास शुरू हुआ है वो गाहे बगाहे हमें चैता के बारे में बताती रहती है । क्योंकि उन्हें इस मौसम यानि चैत में चैता सुनना बहुत अच्छा लगता है ।
हालाँकि वो चैता सुनकर तो विरह की अनुभूति करती है पर उनका कहना है कि उन्होंने पति विरह में कभी भी ऐसी अनुभूति नहीं की है । कहने लगीं क्या सच में ऐसी अनुभूति होती है जैसी कि चैता की नायिका को होती है । इसी हँसी मज़ाक़ के बीच हमने उनसे कहा था कि अबकी जब कभी भी आपके पति बाहर या दूसरे शहर जायें तो आप इस वियोग को महसूस करियेगा ।
इधर हम थोड़ा बिजी थे तो कल कई दिन बाद हमने अपने स्कूल का वहाटसऐप देखा तो पता चला कि हमारी एक सखी पति विरह की अग्नि में जल रही है । क्योंकि उसके पति कुछ दिनों से कहीं बाहर गये हुये है और वो घर में अकेले है । चूँकि वो अकेले रह रही है तो उसने लिखा था वो गले तक बोर हो रही है ( जिसका मतलब हम लोगों ने लगाया कि वो विरह अग्नि में जल रही है )
और बस हमनें उस पर कमेंट किया कि तुम तो जायसी की नायिका बन गई हो । बस फिर क्या था ग्रुप पर विरह छा गया । एक सहेली ने जायसी की कुछ पंक्तियाँ लिखी इतर की शीशी नायिका पर डाली गई तो नायिका की विरह अग्नि से इतर नायिका तक पहुँचने के पहले ही सूख गया । मतलब विरह की अग्नि इतनी तीव्र थी ।
स्कूल के दिनों में हम लोगों ने बहुत सारे कवियों को पढ़ा था पर मलिक मोहम्मद जायसी ने जिस तरह से अपनी नायिकाओं के प्रेम और विरह , ऋंगार का वर्णन किया था वो आज भी कहीं ना कहीं सच होता नज़र आ रहा है ।
स्कूल में जब हम लोगों को हिन्दी टीचर जायसी की कविताओं को समझाती थी तो हम लोग दबी दबी सी हँसी हँसते थे और कई बार इसलिये टीचर से डाँट भी पड़ती थी । कई बार जायसी की विरह कविता पढ़कर खूब हँसते थे और समझ नहीं पाते थे कि क्या वाक़ई में ऐसा प्रेम और विरह होता है ।
जायसी ने जिस कोमलता से नायिका के विरह वियोग और दुख का वर्णन किया है वो कमाल का है ।
पिऊ सों कहेंगे संदेसडा ,हे भौंरा ! हे काग !
सो धनि बिरहै जरि मुई ,केबिन क धुवाँ हम्ह लाग ।।
मतलब तो समझ गये ना कि नायिका की विरह अग्नि के धुएं से ही कौआ और भौंरा काले हो गये है ।
चलिये अब बस करते है वरना कहीं ये वियोग सबको ना लग जाये ।
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