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Showing posts from April, 2019

जब हमने चाट खाई

अब आप सोच रहे होंगें कि चाट खाई है कौन सा एवरेस्ट पर चढ़ाई की है । हाँ हमें पता था कि आप पक्का यही सोच रहे होगें । है ना । 😊 चलिये चाट खाने का क़िस्सा बताते है । दरअसल कल हमारी दोस्त ने अचानक ग्यारह बजे फोन किया कि चलो अभी चाट खाने चलते है । तो हमने कहा कि हमारे घर पर एक बजे ए.सी वाला आने वाला है क्योंकि ए.सी. में कुछ प्राबलम आ रही है । और हमने उनसे पूछा कि क्या हम लोग एक बजे तक आ जायेंगे । तो वो बोली कि कह तो नहीं सकते है । पर चलो हमारा चाट खाने का बहुत मन है । हमने एक बार फिर कहा कि बड़ी गरमी और धूप है तो वो बोली कि हम तुम्हें ए.सी. कार में ले जा रहें है । अब चलो । तो हम तैयार हुए और हम दोनों उनकी कार से चल पड़े सेक्टर बारह चाट खाने । रास्ते में उन्होंने बताया कि वहाँ पर हल्दीराम के यहाँ चाट खायेंगें । और सेक्टर बारह हम बस एक बार गये थे और उन्हें भी रास्ता पूरी तरह से पता नहीं था । हमें सेक्टर बारह का आईडिया तो था पर पूरी तरह से पक्का नहीं था । खैर हमने कहा कि जी.पी.एस. चला लेते है तो वो बोली कि परेशान मत हो हम लोग पहुँच जायेंगे । पर हमने फिर भी जी.पी.एस. चला लिया और ज

जब अर्बन क्लैप का विज्ञापन भ्रमित करता है

आजकल टी.वी. पर अर्बन क्लैप का एक विज्ञापन खूब आ रहा है जिसमें आयुषमान खुराना अपने ए.सी की सर्विसिंग अर्बन क्लैप से करवाता हुआ दिखाया गया है । ए.सी सर्विसिंग करते हुये दिखाया गया है कि अर्बन क्लैप वाले ए.सी को प्लास्टिक शीट से ढंक कर वाटर जेट से ए.सी.की जाली और ए.सी. की धुलाई करते है । जिससे ना कोई गंदगी होती है और ना ही पानी वग़ैरा नीचे गिरता है । और आयुषमान खुराना उनके काम करने के तरीक़े से बहुत प्रभावित होता है । इस विज्ञापन को देखकर हम भी काफ़ी प्रभावित हुये थे । और इस बार ए.सी .की सर्विस के लिये अर्बन क्लैप को बुक कर दिया । शाम को तय समय से थोड़ा देर में अर्बन कलैप से दो लोग आए । जैसा कि हमने उम्मीद की थी कि वो प्लास्टिक शीट के साथ साथ बाल्टी वगैरह भी लाएंगे ए. सी. की सफाई के लिए पर ऐसा नहीं था । और ऐसी उम्मीद हमने इसलिये की थी क्योंकि जब भी अर्बन क्लैप से ब्यूटीशियन या मसाज वाली आती है तो वो अपने साथ हर छोटा बड़ा सामान लाती है यहाँ तक कि ब्यूटीशियन पैडीक्योर के लिये टब और बैठने के लिये प्लास्टिक का स्टूल भी लाती है । खैर वो लोग प्लास्टिक शीट और जेट तो लाए थे

अरसे बाद बहनों का रीयूनियन

पिछले हफ़्ते हम बहनें कई साल बाद एक साथ इक्कठा हुई थीं वरना हर बार कोई ना कोई ग़ायब ही रहता था । कितना भी कोशिश करें सब एक साथ एक जगह इक्कठा नहीं हो पाती थी । पर इस बार हम सब एक साथ रहे और जितना मस्ती मजा हुआ उसे लिख कर बयां नहीं किया जा सकता है । हम बहनें तो पहले से ही इस बात के लिये बदनाम है कि हम बोलने के साथ ही इतने ज़ोर से हँसते है कि हम बहनों के अलावा किसी को भी समझ नहीं आता है कि हमने क्या बोला और क्यूँ हम सब ठहाका लगाकर हंस पड़े । और जहाँ तक हम सोचते है ऐसा आप सभी के साथ भी होता होगा । 😁 सब बच्चों का मिलना , गप्पें मारने और सबका मनपसंद खाना ,मनपसंद स्वीट डिश , सच में उन चार दिनों में ऐसा लग रहा था मानो जैसे घर में शादी ब्याह का माहौल हो ,रौनक़ ही रौनक़ , शोर ही शोर ,ठहाकों की आवाज़ , एक दूसरे को हर समय पुकारते रहना कि अरे आ जाओ ,किचन में क्या कर रही हो । साथ बैठो , बातें करो । बीच बीच में एक दूसरे को उपदेश भी देते जाना । शाम को सबका एक दूसरे को गिफ़्ट देना और सबसे ज़रूरी फ़ोटो सेशन । हम बहनें तो फ़ोटो खिंचाने में जरा भी नहीं थकती है पर बच्चे और पतिदेव और जीजाजी लोग न

चैत में चैता

आजकल चैत मास चल रहा है और चैत में चूँकि गरमी की शुरुआत होती है । गरमी और पतझड़ का होना विरह से जोड़ा जाता है । अभी कुछ दिन पहले हमारी एक सहेली ने हमें चैता यानि की जिसमें विरह का वर्णन है ऐसा गीत ख़ुद गाकर भेजा था । और जब से चैत मास शुरू हुआ है वो गाहे बगाहे हमें चैता के बारे में बताती रहती है । क्योंकि उन्हें इस मौसम यानि चैत में चैता सुनना बहुत अच्छा लगता है । हालाँकि वो चैता सुनकर तो विरह की अनुभूति करती है पर उनका कहना है कि उन्होंने पति विरह में कभी भी ऐसी अनुभूति नहीं की है । कहने लगीं क्या सच में ऐसी अनुभूति होती है जैसी कि चैता की नायिका को होती है । इसी हँसी मज़ाक़ के बीच हमने उनसे कहा था कि अबकी जब कभी भी आपके पति बाहर या दूसरे शहर जायें तो आप इस वियोग को महसूस करियेगा । इधर हम थोड़ा बिजी थे तो कल कई दिन बाद हमने अपने स्कूल का वहाटसऐप देखा तो पता चला कि हमारी एक सखी पति विरह की अग्नि में जल रही है । क्योंकि उसके पति कुछ दिनों से कहीं बाहर गये हुये है और वो घर में अकेले है । चूँकि वो अकेले रह रही है तो उसने लिखा था वो गले तक बोर हो रही है ( जिसका मतलब हम लोगों ने लगा

यादें अप्रैल फूल की

अब तो नहीं पर पहले बहुत समय तक अप्रैल फूल बनाते थे । बचपन में तो घर में पहली अप्रैल के दिन सुबह से ही कभी दीदी तो कभी मम्मी को अप्रैल फूल बनाने में खूब मजा आता था । और जब कोई हमारी बातों में आकर अप्रैल फूल बन जाता था तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता था । हालाँकि पहली अप्रैल के दिन हर कोई और हम भी बहुत सतर्क रहते थे कि कहीं कोई हमें अप्रैल फूल ना बना दे पर चाहे जितना भी सतर्क रहें किसी ना किसी की बातों में आकर अप्रैल फूल ( बेवक़ूफ़ ) बन ही जाते थे । 😜 एक बात तो है कि अप्रैल फूल बनाने में तो बड़ा मजा आता है पर जब ख़ुद बनते है तो क्या कहने की ज़रूरत है कि कैसा लगता है ।😩 पापा और भइया को तो बस फोन का रिसीवर ( पुराने ज़माने वाला फोन ) हटा कर अलग रख देते थे और कहते थे कि पापा फ़लाँ अंकल का फोन आया है या भइया से कहते थे कि उनके किसी दोस्त का फोन आया है और जैसे ही पापा या भइया फोन उठाकर हैलो कहते हम अप्रैल फूल कह कर हंस देते थे । पापा तो नहीं पर हाँ भइया कभी कभी हमें हड़काने भी थे हमारी इस हरकत पर ।😀 दीदी लोगों को तो अकसर कहते कि बाहर तुम्हारी दोस्त आई है और तुम्हें बुला रही है