बिटिया को खाना बनाना नहीं आता है

कभी कभी पुरानी बातें सोचकर हँसी आती है । और अपनों पर प्यार ।

शादी से पहले रसोई की तरफ़ कभी रूख ही नहीं किया था । इसकी वजह थी कि घर में हमेशा सेवक रहे और चूँकि हम सबसे छोटे थे तो ऐसा मौका आता ही नहीं था । और अगर कभी आता भी तो बस सलाद वग़ैरा बनाना होता । जिसमें पाक कला में निपुणता की ज़रूरत नहीं थी । पर एक और वाक़या है जिसकी वजह से हमने दोबारा खाना बनाना नहीं सीखा कभी ।

दरअसल जब हम बहुत छोटे (चार या पॉच साल के ) थे तो एक बार मम्मी का कान का ऑपरेशन हुआ था और वो हॉस्पिटल में थी । एक दिन की बात है पापा और बड़ी दीदी लोग हॉस्पिटल से आये नहीं थे । शाम हो रही थी और घर में सिर्फ़ हम और हमसे दो साल बड़ी दीदी थी । हम लोगों को भूख लग रही थी तो सोचा कि खाना खाया जाये । ( ये उस समय की बात है जब फ्रिज और गैस का चूल्हा नहीं थे )

तो हम दोनों ने खाना बनाने की सोची । अब खाना बनाने के लिये चूल्हा जलाना था जो हम दोनों को ही नहीं आता था । अपनी बुद्धि लगाकर हम लोगों ने चूल्हा जलाने की कोशिश शुरू की । और चूल्हे मे अखबार मोड़ मोड़कर हम दोनों डालने लगे जिससे चूल्हा तो नहीं जला पर घर में धुआँ धुआँ हो गया ।

धुंये की वजह से हम दोनों की आँखों से आँसू गिरने लगे । और इन्हीं गिरते आँसुओं के बीच चूल्हा जलाने की नाकाम कोशिश करते हुये हम बोलते जा रहे थे कि हम तो बडे होकर किसी ऐसे लड़के से शादी करेंगें जो हमें रोज़ होटल में खाना खिलाये । तभी पापा और दीदी के हँसने की आवाज़ आई जो हॉस्पिटल से आ चुके थे और दरवाज़े पर खड़े होकर हम दोनों बहनों की बातें सुन रहे थे । 😀

उस दिन के बाद से हमने कभी रसोई में रोज़मर्रा वाला खाना बनाना सीखने की कोशिश नहीं की ।

ये बात हमारी शादी के समय की है । वैसे शादी से पहले हमने मम्मी से कुछ ख़ास तरह के व्यंजन बनाने ज़रूर सीखे और उनकी रेसिपी एक कॉपी में लिख ली ताकि आगे ये काम आये । पर तब भी गोल रोटी ,पूड़ी पराँठा वग़ैरा बनाना हमें नहीं आता था । ( और बहुत साल बाद हमने अपने पतिदेव से सीखा )

शादी में बिदाई के पहले हमारी मौसी और मम्मी ने हमारी अम्माजी और मौसी सास से कहा कि बिटिया को खाना बनाना नहीं आता है क्यों कि वो घर में सबसे छोटी है । तो अगर कुछ गड़बड़ हो जाये तो इसे क्षमा कर दीजियेगा । 🙏

हम बिदा होकर ससुराल आये तो अगले दिन अम्माजी ने हमें किचन में बुलाया तो देखा सब पकवान बने हुये थे और अम्माजी ने हमसे कहा कि तुम बस बर्तन मे रखे पकवान को पौने से चला दो । 🙏

हांलाकि हमारे पतिदेव के पास एक नेपाली बहादुर था जो घर का काम और खाना वग़ैरा बनाता था ।

अम्माजी इतनी अच्छी थी कि जब हम ससुराल से बिदा होकर अपने पतिदेव के साथ दिल्ली आने लगे तो उन्होंने एक सेवक (मुन्ना )हम लोगों के साथ भेजा ताकि हमें खाना ना बनाना पड़े और नई घर गृहस्थी में कोई दिक़्क़त ना आये ।
क्यों कि शायद उन्हें हमारी मम्मी और मौसी की कही बात याद थी कि बिटिया को खाना बनाना नहीं आता है । 😊

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