कबूतर से नुक़सान भी हो सकते है ।
कबूतर जिन्हें शान्ति का प्रतीक माना जाता है और कबूतर को संदेशवाहक भी माना जाता है । पहले तो इतनी ज़्यादा संख्या में कबूतर नहीं होते थे पर धीरे धीरे कबूतरों की संख्या बढ़ती जा रही है । अब तो बहुत जगहों जैसे कुछ तिराहों पर ,फ़्लाई ओवर पर ,कबूतर को खिलाने के लिये बाक़ायदा दाना भी मिलता है और लोग कार ,स्कूटर रोक कर दाना ख़रीदते है और कबूतरों को खिलाते है ।
आजकल तो कबूतर कुछ ज़्यादा ही दिखने लगे है । अब पहले तो घर या खिड़की पर कबूतर का बैठना अच्छा नहीं माना जाता था । ऐसा माना जाता था कि कबूतर के बोलने से मनहूसियत आती है । पर अब हालात बदल गये है । हम चाहें या ना चाहें कबूतर घर की खिड़कियों ,ए.सी. ,और बालकनी में आ ही जाते है । जब भी कबूतर आते तो हम लोग चावल वग़ैरा भी डाल देते थे । वैसे गोवा और अरूनाचल मे भी हम कबूतरों को खूब दाना डालते थे पर कभी ऐसा नहीं लगा था कि हम इन्हें अपने घर नहीं आने देगें ।
जब हमने घर बदला तो बड़े शान से बालकनी में गमले लगाये और कबूतरों के आने पर ख़ुश भी हुये पर तब ये नहीं सोचा था कि कबूतरों से कोई नुक़सान भी हो सकता है । शुरू शुरू मे जब गमले में कबूतर ने अण्डा दिया तो हम लोग बड़े ख़ुश हुये और जब क़रीब बीस दिन बाद उसमें से सुनहरे रंग के बच्चे निकले तब तो हम बड़े ही रोमांचित हुये और फिर तो रोज़ हम उन्हें बढ़ते हुये देखते । रोज़ कबूतर अपने बच्चों के सुनहरे रंग के बालों को चोंच से साफ़ करते उन बच्चों को दाना खिलाते । और हम उनकी खूब फ़ोटो भी खींचते थे । वीडियो भी बनाते थे ।
और ऐसे ही करीब दो महीने के समय में धीरे धीरे वो बच्चे बड़े हो गये और एक दिन उड़ गये ।जिस गमले मे अंडा दिया था वो पौधा मर गया और हम ये सोचकर संतुष्ट थे कि चलो पौधा तो मर गया पर कबूतर के बच्चे बचे रहे । यहाँ ये ज़रूर बताना चाहेगें कि कई बार कौवे भी आते थे इन बच्चों को खाने के लिये पर तब हम उन्हें भगा दिया करते थे।
पर ये क्या अभी बच्चों को उड़े हुये दो चार दिन ही हुये थे कि एक बार फिर से कबूतर ने अंडे दे दिये । पर इस बार दूसरे गमले मे । और फिर वही दो महीने का चक्र चला ।
पर तभी उन्हीं दिनों हमारा छोटा बेटा अचानक बीमार पड़ गया और उसे एक हफ़्ते तक हॉस्पिटल मे रहना पड़ा । हॉस्पिटल में डाक्टरों ने दुनिया भर के जितनी भी तरह के टेस्ट होते है सब करवाया पर तेज़ बुखार और सिरदर्द का कारण नहीं पता चला । कुछ दिन बाद जब एक बार फिर डाक्टर से मिलने गये तो बातों बातों मे कबूतर का ज़िक्र आया तब डाक्टर ने कहा कि कबूतर जो गंदगी करते है और उनके बच्चों के सुनहरे बालों से जो कि जब हम साँस लेते है तो शायद वो कई बार हमारे शरीर के अन्दर चले जाते है और हम लोगों को पता भी नहीं चलता है । और उस वजह से लोग बीमार पड़ जाते है ।
ख़ैर उस समय डाक्टर की बात पर थोडा यक़ीन हुआ और थोड़ा नहीं हुआ । पर उसके बाद से मन मे एक भ्रम सा हो गया और हमने कबूतरों को दाना डालना बन्द ही कर दिया और बालकनी से सारे गमले और पौधे सब हटा दिये ।ऐसा नहीं है कि अब कबूतर नहीं आते है , अभी भी कबूतर आते है पर अब थोड़ा कम आते है क्योंकि अब हमने स्पाइकस लगा दिये है ।
आजकल तो कबूतर कुछ ज़्यादा ही दिखने लगे है । अब पहले तो घर या खिड़की पर कबूतर का बैठना अच्छा नहीं माना जाता था । ऐसा माना जाता था कि कबूतर के बोलने से मनहूसियत आती है । पर अब हालात बदल गये है । हम चाहें या ना चाहें कबूतर घर की खिड़कियों ,ए.सी. ,और बालकनी में आ ही जाते है । जब भी कबूतर आते तो हम लोग चावल वग़ैरा भी डाल देते थे । वैसे गोवा और अरूनाचल मे भी हम कबूतरों को खूब दाना डालते थे पर कभी ऐसा नहीं लगा था कि हम इन्हें अपने घर नहीं आने देगें ।
जब हमने घर बदला तो बड़े शान से बालकनी में गमले लगाये और कबूतरों के आने पर ख़ुश भी हुये पर तब ये नहीं सोचा था कि कबूतरों से कोई नुक़सान भी हो सकता है । शुरू शुरू मे जब गमले में कबूतर ने अण्डा दिया तो हम लोग बड़े ख़ुश हुये और जब क़रीब बीस दिन बाद उसमें से सुनहरे रंग के बच्चे निकले तब तो हम बड़े ही रोमांचित हुये और फिर तो रोज़ हम उन्हें बढ़ते हुये देखते । रोज़ कबूतर अपने बच्चों के सुनहरे रंग के बालों को चोंच से साफ़ करते उन बच्चों को दाना खिलाते । और हम उनकी खूब फ़ोटो भी खींचते थे । वीडियो भी बनाते थे ।
और ऐसे ही करीब दो महीने के समय में धीरे धीरे वो बच्चे बड़े हो गये और एक दिन उड़ गये ।जिस गमले मे अंडा दिया था वो पौधा मर गया और हम ये सोचकर संतुष्ट थे कि चलो पौधा तो मर गया पर कबूतर के बच्चे बचे रहे । यहाँ ये ज़रूर बताना चाहेगें कि कई बार कौवे भी आते थे इन बच्चों को खाने के लिये पर तब हम उन्हें भगा दिया करते थे।
पर ये क्या अभी बच्चों को उड़े हुये दो चार दिन ही हुये थे कि एक बार फिर से कबूतर ने अंडे दे दिये । पर इस बार दूसरे गमले मे । और फिर वही दो महीने का चक्र चला ।
पर तभी उन्हीं दिनों हमारा छोटा बेटा अचानक बीमार पड़ गया और उसे एक हफ़्ते तक हॉस्पिटल मे रहना पड़ा । हॉस्पिटल में डाक्टरों ने दुनिया भर के जितनी भी तरह के टेस्ट होते है सब करवाया पर तेज़ बुखार और सिरदर्द का कारण नहीं पता चला । कुछ दिन बाद जब एक बार फिर डाक्टर से मिलने गये तो बातों बातों मे कबूतर का ज़िक्र आया तब डाक्टर ने कहा कि कबूतर जो गंदगी करते है और उनके बच्चों के सुनहरे बालों से जो कि जब हम साँस लेते है तो शायद वो कई बार हमारे शरीर के अन्दर चले जाते है और हम लोगों को पता भी नहीं चलता है । और उस वजह से लोग बीमार पड़ जाते है ।
ख़ैर उस समय डाक्टर की बात पर थोडा यक़ीन हुआ और थोड़ा नहीं हुआ । पर उसके बाद से मन मे एक भ्रम सा हो गया और हमने कबूतरों को दाना डालना बन्द ही कर दिया और बालकनी से सारे गमले और पौधे सब हटा दिये ।ऐसा नहीं है कि अब कबूतर नहीं आते है , अभी भी कबूतर आते है पर अब थोड़ा कम आते है क्योंकि अब हमने स्पाइकस लगा दिये है ।
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