तेरहवाँ हैबिटैट फ़िल्म फ़ेस्टिवल

रविवार को तेरहवाँ हैबिटैट फ़िल्म फ़ेस्टिवल समाप्त हो गया । और इस बीच हमने कुछ और फ़िल्मे देखीं तो सोचा कि उनमें से कुछ फ़िल्मों के बारे मे लिखा जाये ।

चलिये पहली फ़िल्म एस. दुर्गा के बारे में बात करते है । इस फ़िल्म की शुरूआत देवी माँ की पूजा से होती है और क़रीब दस मिनट तक सिर्फ़ पूजा ही दिखाई जाती है । ये एक मलयालम भाषा की फ़िल्म है जिसमें दुर्गा नाम की लड़की उत्तर भारत की दिखाई गई है और कबीर जो कि मलयाली है दोनों भागकर अपने शहर और लोगों से कहीं दूर चले जाना चाहते है । दोनों स्टेशन जाने के लिये चल पड़ते है । रात का समय कोई सवारी मिलना मुश्किल होता है ।

थोड़ी दूर दोनों पैदल चलते है और फिर एक मारुति वैन में जिसमें दो लोग सवार थे उनसे लिफ़्ट लेते है ।और फिर शुरू होती है स्टेशन तक पहुँचने की यात्रा और उस दौरान दुर्गा और कबीर दोनों को किन किन और कैसी कैसी मानसिक यातना झेलना पड़ता है ।ये दिखाया गया है । हालाँकि पूरे समय वैन वाले दुर्गा को कहते रहते है कि आप हमारी बहन हो और आप बिलकुल सुरक्षित है । आप डरो नहीं । हालाँकि वो उसके सामने अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने और शराब पीने से बिलकुल नहीं हिचकिचाते है ।

तो वहीं दूसरी तरफ़ मंदिर में काली और दुर्गा की पूजा और जुलूस वग़ैरा निकालते हुये दिखाया जाता है । कि देवी मां को प्रसन्न करने के लिये लोग ख़ुद को कितना कष्ट देते है ,आग पर चलते है ,यहाँ तक कि ट्रक के ऊपर स्वयं लटके हुये भी चलते है । पर यथार्थ उसके बिलकुल उलट है । दुर्गा अगर लड़की है तो उसे तमाम क़िस्म की यातनायें सहनी पड़ती है । देवी के रूप में तो पूज्य है पर असल ज़िन्दगी में नहीं।

दूसरी फ़िल्म न्यू डेलही टाइम्स देखी । वैसे तो ये १९८६ में बनी थी पर उसमें दिखाई गई राजनैतिक परिस्थितियाँ ,नेता और बातें ,पत्रकारिता से जुड़ी हुई बातें सब कुछ आज के परिप्रेक्ष्य में भी बिलकुल सटीक बैठती है ।फ़िल्म की शुरूआत उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर में एक विधायक के क़त्ल से होती है ।और फिर किस तरह अदालत में इक़बाल की गवाही के बाद जिसमें वो अजय सिंह जो कि एक युवा नेता है उसका नाम ले लेता है और जिसके बाद हिन्दू मुस्लिम दंगे शुरू हो जाते है । और कैसे आख़िर में अजय सिंह और त्रिवेदी जो कि मुख्यमन्त्री है मिल जाते है । और कैसे सच्चे पत्रकार विकास (शशि कपूर )को वो इस्तेमाल करते है ।

शशि कपूर और शर्मिंला टैगोर ,ओम पुरी ,मनोहर सिंह जैसे कलाकारों के जीवन्त अभिनय का तो कोई जवाब ही नहीं है ।यहाँ तक कि बिलकुल छोटा किरदार निभाने वाले ने भी अपने रोल से पूरा इंसाफ़ किया है । एक एक डायलॉग इतना कड़क कि कई बार सुनकर लगता था कि अरे आजकल तो यही सब देश में हो रहा है। और ये बातें तो आज भी सुनने में आती है जैसे कि फ़िल्म में मुख्यमन्त्री ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि बिजली पानी की कोई समस्या नहीं है नब्बे प्रतिशत गाँवों में बिजली पानी की सुविधा मिल रही है । या जैसे जब युवा नेता अजय सिंह (ओम पुरी ) और मुख्यमन्त्री मिल जाते है और वो उनके मंत्रीमंडल मे शामिल होने के बाद कहता है कि मुख्यमन्त्री त्रिवेदी जी की अगुआई में देश को आगे ले जायेगें।

क्यूँ सुना हुआ है ना ।

चलिये एक और मूवी सोनाटा जो कि बंगाली फ़िल्म है और जिसे अर्पणा सेन ने निर्देशित किया है । ये फ़िल्म एक मराठी नाटक पर आधारित है । इस फ़िल्म में तीन महिलाओं अर्पणा सेन ,शबाना आज़मी और लिलिट दूबे पर केन्द्रित है । ये तीनों पच्चीस साल से एक साथ है हालाँकि तीनों का स्वभाव और आदतें अलग है पर फिर भी हर ग़म हर दुख और हर ख़ुशी एक दूसरे के साथ बाँटती है । चूँकि ये एक नाटक पर आधारित है तो एक घर के अन्दर ही पूरी मूवी बनी है । इसमें हिन्दी,बंगाली और इंगलिश में मिले जुले से डायलॉग है । वैसे ये फ़िल्म इंगलिश मे ही है। अब इन तीनों हीरोइनों की एक्टिंग के लिये क्या कुछ कहने की ज़रूरत है । कोई किसी से कम नहीं ।

पर हमारा ये मानना है कि नाटक और फ़िल्मों का एक दूसरे में रूपान्तरित होना थोड़ा मुश्किल है ।

चलिये आज के लिये इतना ही काफ़ी है । वैसे अब फ़िल्म फ़ेस्टिवल ख़त्म हो गया है । 😀


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