अपनी अपनी पीठ थपथपा लो ( इक्कीसवाँ दिन )

आज लॉकडाउन का इक्कीसवाँ दिन है तो सबसे पहले तो हम सभी को इसके लिये बधाई । और चूँकि इन इक्कीस दिनों में हमने पूरी लगन और शिद्दत से सारे काम किये है तो हम सबको अपनी पीठ थपथपा लेनी चाहिये ।

क्यूँ ?

ये भी कोई पूछने या बताने की ज़रूरत है । और इसमें हम लोग पतिदेव और बच्चों को नहीं छोड़ सकते क्यों कि इस कवैरंटाईन में इन लोगों ने भी हम सबका बहुत साथ दिया है । फिर वो चाहे काम में हाथ बटाना हो या कुछ और काम में मदद करना हो ।


ना कुछ स्पेशल खाने की फ़रमाइश ना ही कोई खाने को लेकर हील- हुजजत । पर हाँ कभी कभी जरूर ...... ।🤓

जब से ये लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से हम लोग बस घर में ही है और ऐसे में धमाके होने के बहुत चांस होते है । अब यूं तो ये कहावत आम तौर पर औरतों के लिये ख़ासकर सास बहू के लिये कही जाती थी कि जहाँ चार बर्तन होगे तो वो टकरायेगें ही । पर आजकल के इस कवैरंटाईन के समय में ये बात सभी के लिये कही जा सकती है । समझ गये ना । 😛


और एक बात सभी ने नोटिस की होगी कि आजकल ख़र्चे कम और बचत ही बचत हो रही है । अब जब बाहर जाना आना है नहीं तो पेट्रोल ,डीज़ल,टैक्सी ,सिनेमा तमाशा ,बाहर का खाना सब बंद और यहाँ तक की धोबी को दिये जाने वाले कपड़ों के आयरन का ख़र्चा भी नहीं । सोचो सोचो । 😝


सही कह रहे है ना हम ।


अब ये तो हमेशा ही कहा जाता है कि छोटी छोटी बातों में ख़ुशी ढूँढो तो बड़ी ख़ुशी अपने आप मिल जाती है ।


और ये हम आपको अपने अनुभव से बता रहें है । वो क्या है ना कि जब हम लोग अंडमान गये थे तो हर कोई कहता था कि वहाँ रहना बहुत मुश्किल है वग़ैरा वग़ैरा । पर हम लोगों नें अंडमान में अपना पूरा समय बहुत ही मज़े से घूमते फिरते निकाला था ।


अब वही बात कि अगर आप ख़ुश रहना चाहो तो हर कुछ अच्छा वरना सब बेकार ।

कहने का मतलब ये है कि जिस तरह से हम सबने और हमारे परिवार ने ये इक्कीस दिन का समय हँसते ,खेलते ,काम करते और कभी कभी शायद ग़ुस्सा और झगड़ कर निकाला है उसी तरह बाक़ी के दिन भी निकल ही जायेंगें ।


तो बस ख़ुशियाँ ढूँढते रहिये और मस्त रहिये ।

और हाँ आज इक्कीस दिन बीतने की ख़ुशी में एक सेलफी तो बनती ही है । 😃





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