पुरानी कविता का मज़ा


अभी दो-तीन दिन पहले हमारी एक दोस्त ने कुछ पुरानी कवितायें जिन्हें हम लोगों ने स्कूल में पढ़ा था उन्हें वहाटसऐप पर शेयर किया था जिसे पढ़कर हम वापस स्कूल के समय में चले गये । हो सकता है कुछ लोगों ने ये कवितायें पढ़ी होगी और कुछ ने नहीं भी पढ़ी होगी। क्योंकि समय समय पर कविता के रूप भी बदलते रहे है।

हमें पक्का यक़ीन है कि आप सबको सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा ,मैथिलीशरण गुप्त, मलिक मोहम्मद जायसी ,सूर्य कान्त निराला रामधारी सिंह दिनकर जैसे अनेक कवि ज़रूर याद होगे ।

समय के साथ स्कूल का सिलेबस , पाठ्यक्रम सब बदल जाता है। अब जो हिन्दी की कवितायें हमने पढ़ी थी जैसे --उठो लाल अब आँखें खोलो जिसमें माँ का प्यार और दुलार झलकता है तो वही चाँद का अपनी माँ से ज़िद करना कि सिलवा दो माँ मुझे ऊन का एक झिंगोला । चाहे जितनी बार भी पढ़े हर बार एक अजीब सा रोमांच और ख़ुशी होती है इन कविताओं को पढ़कर ।

अब जो कवितायें हमने पढ़ी थी वो हमारे बेटों ने नहीं पढ़ी । यहाँ तक की जो बड़े बेटे ने पढ़ी थी ,छोटे के समय उनमें कुछ बदलाव आ गया था । दोनों बेटों के समय में ये कवितायें नहीं थी। उनके समय में कविता का रूप कुछ बदल सा गया था । और बदलता ही जा रहा है।

पर हमें नहीं लगता है कि जितना हम लोगों को अपने समय की कवितायें याद है उतनी इन लोगों को याद होगी। वैसे तो हमने बेटों को पढ़ाया है पर हमें भी इनके समय की कोई कविता याद नहीं है। 🙂और हो सकता है इसका कारण इंग्लिश पर ज़्यादा ज़ोर होना एक वजह हो सकती है।












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