द शेप ऑफ़ वाटर
नाम तो सुना ही होगा । 😊अब नाम से ही काफ़ी अलग सा शीर्षक लग रहा है ना ,और ये अलग है भी क्योंकि ये इस साल का ऑस्कर जीतने वाली फिलम का नाम है।
कुछ महीनों से इस पिकचर का बड़ा शोर हो रहा था कि बहुत ही कमाल की और लाजवाब फिलम है और इस फ़िल्म को बेसट फिलम के लिए ऑस्कर मिला है और ये तो हम सभी जानते है कि ऑस्कर हॉलीवुड का सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है और इसे एक नहीं चार चार अवार्ड मिले है , जिससे ये पक्का हो गया कि ये फ़िल्म तो लाजवाब होगी।
काफ़ी दिन पहले जब दिल्ली में ये फ़िल्म सिनेमा हॉल में लगी तो एक दिन हम भी पहुँच गये देखने । फ़िल्म शुरू हुई और पहले सीन को देखकर लगा वाह क्या पिकचर है पर उसके पॉच दस मिनट बाद लगा कि जैसे कोई हिन्दी फिलम देख रहे हो । इसका मेन कैरेकटर देख कर इंग्लिश फिलम ई. टी या यूँ कहे कि राकेश रोशन की फिलम कोई मिल गया याद आ गई । क्योंकि इसमें कुछ भी ससपेंस या उत्सुकता बढ़ाने वाली कोई बात थी ही नहीं ,सब कुछ का पता चल रहा था कि आगे क्या होने वाला है।
ख़ैर अब गये थे देखने तो पूरी पिकचर देखी पर फिर आख़िरी सीन देखकर लगा अरे ऐसा तो बहुत सारी हिन्दी फ़िल्मों में होता है पर हाँ उसका आख़िरी सीन का पिकचराइजेशन कॉफ़ी अच्छा है । कहने का मतलब है कि सिर्फ़ पहला और आख़िरी सीन पूरी पिकचर का बेस्ट पार्ट है। बाक़ी तो बस ऐसे ही है।
जब हमने अपने छोटे बेटे को इस फिलम के बारे ने राय बताई तो हमारे छोटे बेटे का कहना था कि चूँकि हम लोग इतनी ज़्यादा इंग्लिश फ़िल्मे और इंग्लिश शो देखते है मतलब पहले सी .डी और डी वी डी पर देखते थे और अब नैटफलिकस और ऐमजोन पर देखते है । 😁 कि हम लोगों को जब तक कुछ बहुत ही अलग या ख़ास ना हो तब तक पसंद नहीं आता है। 😀
कुछ महीनों से इस पिकचर का बड़ा शोर हो रहा था कि बहुत ही कमाल की और लाजवाब फिलम है और इस फ़िल्म को बेसट फिलम के लिए ऑस्कर मिला है और ये तो हम सभी जानते है कि ऑस्कर हॉलीवुड का सबसे बड़ा अवार्ड माना जाता है और इसे एक नहीं चार चार अवार्ड मिले है , जिससे ये पक्का हो गया कि ये फ़िल्म तो लाजवाब होगी।
काफ़ी दिन पहले जब दिल्ली में ये फ़िल्म सिनेमा हॉल में लगी तो एक दिन हम भी पहुँच गये देखने । फ़िल्म शुरू हुई और पहले सीन को देखकर लगा वाह क्या पिकचर है पर उसके पॉच दस मिनट बाद लगा कि जैसे कोई हिन्दी फिलम देख रहे हो । इसका मेन कैरेकटर देख कर इंग्लिश फिलम ई. टी या यूँ कहे कि राकेश रोशन की फिलम कोई मिल गया याद आ गई । क्योंकि इसमें कुछ भी ससपेंस या उत्सुकता बढ़ाने वाली कोई बात थी ही नहीं ,सब कुछ का पता चल रहा था कि आगे क्या होने वाला है।
ख़ैर अब गये थे देखने तो पूरी पिकचर देखी पर फिर आख़िरी सीन देखकर लगा अरे ऐसा तो बहुत सारी हिन्दी फ़िल्मों में होता है पर हाँ उसका आख़िरी सीन का पिकचराइजेशन कॉफ़ी अच्छा है । कहने का मतलब है कि सिर्फ़ पहला और आख़िरी सीन पूरी पिकचर का बेस्ट पार्ट है। बाक़ी तो बस ऐसे ही है।
जब हमने अपने छोटे बेटे को इस फिलम के बारे ने राय बताई तो हमारे छोटे बेटे का कहना था कि चूँकि हम लोग इतनी ज़्यादा इंग्लिश फ़िल्मे और इंग्लिश शो देखते है मतलब पहले सी .डी और डी वी डी पर देखते थे और अब नैटफलिकस और ऐमजोन पर देखते है । 😁 कि हम लोगों को जब तक कुछ बहुत ही अलग या ख़ास ना हो तब तक पसंद नहीं आता है। 😀
Comments