गरमी की छुटटियॉ और काम वाली बाई

गरमी की छुटटियॉ आते ही काम करने वाली बाईयो का जैसे अकाल सा पड़ जाता है। अब इसमें इन बाईयो की भी क्या ग़लती है वो भी तो साल में एक बार ही एक महीने के लिए अपने गाँव जाती है। हाँ पर उनके जाने से हम लोगों को काफ़ी परेशानी हो जाती है। क्योंकि हम लोगों को उनकी आदत सी हो जाती है।

अब वैसे तो सारा रूटीन सेट रहता है कि वो सुबह काम पर आ जाती है इससे घर की साफ़ सफ़ाई और सारे काम समय से निपट जाते है । हालाँकि ये जब गॉव जाती है तो अपनी जगह किसी और को लगा जाती है काम करने के लिए पर नये के साथ तालमेल बैठाना बड़ा मुश्किल हो जाता है क्योंकि एक तो उनका अपना काम होता है। और वो उसमें से समय निकाल कर हम लोगों का एक्सट्रा काम करती है । 😊

दूसरा रोज़ रोज़ समझाना पड़ता है कि ऐसे करो तो वैसे करो काम । और टाइम का तो कोई मतलब ही नहीं रहता है । नौ बजे का टाइम बोलो तो दस बजे आती है और कई बार इन्तज़ार करते रहो तो ग्यारह बजे आती है और कुछ कहने पर हँसकर अपने काम का हवाला देती है और हम चाह कर भी कुछ नहीं कह पाते है क्योंकि अगर ये भी चली गई तो फिर क्या होगा। ☺️
और रोज़ रोज़ नई काम वाली भी नहीं मिलती है क्योंकि अगर कोई आती भी है तो वो पक्का यानी परमानेन्ट काम चाहती है।

आजकल तो हम इस समस्या से जूझ रहे है ! आप लोगों का क्या हाल है। 😋

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