चिट्ठी आई है

कुछ याद आया , जी हॉ बिलकुल सही समझे है आप । 🙂

दरअसल कल कुछ सफ़ाई करते हुए एक चिट्ठी हमें मिली तो सोचा क्यूँ न आज चिट्ठी की ही बात करी जाये।

समय की तेज़ रफ़्तार और इलेक्ट्रानिक की बढ़ती सुविधाओं की वजह से चिट्ठी पत्री का सिलसिला कही खो सा गया है। हो सकता है आप को लगे कि भला जब इतना सुविधा जनक वहाटसऐप है तो फिर चिट्ठी की क्या बात करना । सवाल ये है कि हम सभी लोग इतने आराम और सुविधा के आदी हो चुके है कि चिट्ठी के महत्व को भूल गये है। बस फटाफट मोबाइल पर लिखा और भेज दिया और जिसे भेजा उसने तुरन्त जवाब भी दे दिया ,कभी कुछ लिख कर तो कभी कोई ईमोजी बनाकर । ☺️

ये अलग बात है कि अब किसी को भी किसी की भी चिट्ठी का इन्तज़ार नहीं रहता है पर हाँ एक समय था जब हर कोई चिट्ठी का इन्तज़ार करता था। हम तो ख़ूब करते थे ।

अनतरदेशी पत्र ,पोस्टकार्ड ,और लिफ़ाफ़े में चिट्ठियाँ भेजी जाती थी ,और विदेश एयरमेल से । पर अब घर बैठे मिनटों में मैसेज किसी को भी भेज देते है। अब कहॉ कोई अनतरदेशी पत्र लाये और चिट्ठी लिखे।पहले विदेश से तो चिट्ठी तक़रीबन दस से पन्द्रह दिन में आती थी पर लोकल मतलब अपने यहाँ दो से तीन दिन में। शादी ब्याह तय होने पर भी सबसे पहले सबको चिट्ठी भेजी जाती थी।

अनतरदेशी पत्र में एक एक जगह पर लिखते थे यहाँ तक की जो साइड में मोड़ने वाली जगह होती थी वहाँ भी लिखते थे। इतनी बातें होती थी कि जगह कम पड़ जाती थी। पोस्टकार्ड में ज़्यादातर अगर किसी को कोई सूचना देनी होती थी तो लिखते थे। और लिफ़ाफ़े में अकसर एक नहीं दो चिट्ठियाँ भी आती थी। ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि जब भी लखनऊ से मौसी मममी को चिट्ठी लिफ़ाफ़े में भेजती थी तो उसमें एक चिट्ठी हमारी प्यारी बहन नन्दा की भी होती थी। 😁

चिट्ठी लिखने का भी अपना अलग अन्दाज़ होता है जिसमें शुरूआत में अपनी और दूसरे की ख़ैरियत बताई और पूछी जाती थी। उसके बाद कुछ घर परिवार की बात होती ,फिर किसने कौन सी पिकचर देखी । और सबसे मज़ेदार बात कि मौसम का हाल भी लिखते थे । और अन्त में सभी बड़ों को सादर नमस्ते और छोटों को प्यार लिख कर चिट्ठी ख़त्म करते थे । 😋

अब तो ना ही कही पोस्ट बॉक्स दिखता है और ना ही पोस्टमैन आकर आवाज़ लगाता है । पहले हर गली मोहल्ले में लाल रंग का पोस्ट बॉक्स होता था और रोज़ एक पोस्टमैन उसमें से चिट्ठियाँ निकाल कर पोस्ट ऑफ़िस ले जाता और वहाँ से चिट्ठियों को उनके गन्तव्य स्थान तक एक बार फिर पोस्टमैन ही पहुँचाते थे।

पहले तो हिन्दी फ़िल्मों में गाने भी होते थे जैसे -- डाकिया डाक लाया , चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है ।

हमने पुरानी बहुत सारी चिट्ठियों को अभी भी सम्भाल कर रक्खा है। 🙂







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