हरी और बोलने वाली छिपकली

हाँ कुछ अजीब सा विषय है लिखने के लिए । चूँकि आजकल गरमियों के दिन है तो छिपकलियॉ भी निकलने लगी है। हमें तो इनसे बहुत डर लगता है हालाँकि हमारे पतिदेव का कहना है कि उससे डरने की क्या बात है क्योंकि उसका इतना छोटा सा मुँह है वो भला क्या काटेगी। पर हम पर ऐसी दलील का कोई असर नहीं होता है। जहाँ गरमी आई नहीं कि ना जाने कहां से ये अवतरित हो जाती है।

अंडमान में पहली बार हमने इसे बोलते सुना । एक अजीब तरह की किट किट करती सी आवाज़ । पहले तो हम समझ ही नहीं पाये कि ये आवाज़ किस जीव जन्तु की है। पर बाद में पता चला कि ये तो छिपकली आवाज़ करती है। अब दिल्ली में तो हमने कभी नहीं सुना ना देखा था।

और वहाँ पर ही पहली बार हमने हरे रंग की छिपकली भी देखी थी। अरे देखी क्या हमारे कुर्ते पर बैठी थी। अंडमान में एक द्वीप है हटबे नाम का ,हम लोग वहाँ घूमने गये थे और बालकनी में बैठकर चाय पी रहे थे। हमने हलके हरे रंग का लखनवी सूट पहना था और दुपटटा आगे की तरफ़ रकखा था। और तभी चाय पीते पीते लगा कि दुपट्टे पर कुछ चल रहा है । अब चूँकि उस दिन हमने हरा सूट पहना था तो पहले पहल तो हम समझे कि कोई कीड़ा होगा । पर जब समझे तो हमारे मुँह से एक ज़ोर की चीख़ निकल गई। पर वहाँ के एक स्टाफ़ ने बड़े आराम से फ़टाक से उसे हाथ से पकड़ कर हटा दिया। और हमसे कहने लगा कि मैडम छिपकली का चलना तो शुभ मानते है और आपको ख़ूब धन मिलेगा। और हम डरे हुये से बस मुस्करा कर रह गये। और बाथरूम में जाकर हाथ मुँह धोया।

अब ये धन मिलना तो उसके मानने वाली बात थी पर हमारे यहाँ तो छिपकली अगर ऊपर गिर या चढ़ जाये तो मममी सबसे पहले नहाने के लिये कहती थी ,भले ही कोई समय हो। अब इसके पीछे वजह जो भी रही हो पर हम भी इसे करते है। 🙂

Comments

Popular posts from this blog

जीवन का कोई मूल्य नहीं

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन