पोस्ट अॉफिस और डिजिटल इंडिया

आम तौर पर हमें पोस्ट अॉफिस जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है क्योंकि आज कल हर काम ऑनलाइन हो जाते है। पर पोस्ट अॉफिस में अभी सब कुछ ऑनलाइन नहीं हुआ है। अभी हाल में हमें कुछ काम से द्वारका दिलली के पोस्ट अॉफिस जाने का मौक़ा मिला । और हमारा अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा।

आजकल वहाँ पर एक ही लाइन होती है उसी में सीनियर सिटिज़न ,महिलाये और एजेन्ट खड़े रहते है। वैसे पहले शायद एजेन्ट लोग दो बजे के बाद आते थे और सीनियर सिटिज़न की लाइन अलग होती थी। वैसे वहाँ पर दो विनडो पी.पी.एफ और बाक़ी खातों के लिए और दो स्पीड पोस्ट के लिए है पर सिर्फ़ एक ही विनडो पर काम होता है । इसका कारण कुछ समझ नहीं आया। सिवाय इसके कि जनता परेशान हो।

अब आज के समय में एक आराम है कि हम किसी भी पोस्ट अॉफिस से अपने पी.पी.एफ खाते में पैसे डिपॉजिट करा सकते है । वैसे हमारा अकाउंट दूसरे पोस्ट अॉफिस में है ।वहाँ हमने चेक जमा किया था पर कुछ नम्बर लिखना छूट गया था इसलिए दुबारा चेक जमा कराना था । पर वहाँ पहुँचकर पता चला कि चेक नहीं सिर्फ़ कैश जमा हो सकता है।

और चूँकि आजकल डिजिटल इंडिया का ज़ोर है और ये माना जाता है कि अब पहले से हालात सुधर गये है। तो एक दिन हम भी अपने घर के पास के पोस्ट अॉफिस में सुबह ग्यारह बजे पहुँच गये ये सोचकर कि बस पन्द्रह मिनट या ज़्यादा से ज़्यादा आधे घंटे में हमारा काम हो जायेगा।

पर वहाँ पहुँच कर ये समझ आया कि पोस्ट अॉफिस में काम होना इतना आसान नहीं है जितना हम सोच रहे थे । ख़ैर हम भी लाईन में लग गये चेक जमा करने के लिए ,तभी काउंटर के पास दीवार पर चिपके काग़ज़ पर देखा जिसपर लिखा था कि कुछ तकनीकी ख़राबी के कारण चेक नहीं लिए जायेंगे । :(

और हमारे आगे तकरीबन ग्यारह लोग खड़े थे और बाद में लाईन में लगे लगे पता चला कि उस लाईन में दो और लोग है जोकि अपना नम्बर लगा कर चले गये थे। :(
और बाद में पता चला कि उनमें से एक ऐजेनट था । क्योंकि पहले तो उसने बाहर से काम कराया और लंच के बाद पोस्ट अॉफिस के अन्दर जाकर काम करा रहा था और जब हम लोगों ने उसे टोका तो उसने ऐसा जवाब दिया मानो वो हम लोगों पर ही एहसान कर रहा हो , उसने कहा कि वो तो स्टाफ़ की मदद कर रहा है वरना सटाफ को बार बार उठकर रजिस्टर निकालना पड़ेगा । और समय भी ज़्यादा लगेगा । इससे तो लगता है कि पोस्ट अॉफिस में स्टाफ़ की बड़ी कमी है ।

धीरे धीरे लाईन आगे बढ़ रही थी और हमारे आगे छे लोग थे , तभी हमारी नज़र घड़ी पर पड़ी जो साढ़े बारह का समय दिखा रही थी और पोस्ट अॉफिस में एक से डेढ़ बजे तक लंच हो जाता है । अब तो हमारी नज़र पल पल बढ़ रही घड़ी की सुई पर औेर मन्द गति से बढ़ रही लाईन पर ही थी । और हमें ये हल्की सी उम्मीद थी कि शायद हमारा नम्बर आ जायेगा पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि एक सज्जन का कुछ बचत खाते से सम्बन्धित काम था जिसमें कुछ समय लग गया और फिर वही हुआ जिसका हमें डर था ,घड़ी ने एक बजाया और काउन्टर पर बैठी कर्मचारी लंच के लिए चली गई । वैसे इसमें उसकी ग़लती भी नहीं है कयोकि आख़िर उसे भी तो खाना खाने का हक़ है।

अब हम लोगों के पास डेढ़ बजने का इन्तज़ार करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। जैसे ही वो आई और दो लोगों का काम किया कि तभी पहले वाले सज्जन लाईन तोड़कर अपने पेपर देने और बाक़ी काम करवाने लगे और हम सब अपने नम्बर का इन्तज़ार करते हुए घड़ी देख रहे थे । किसी तरह उनका काम निपटा और ढाई बजे हमारा नम्बर आया और बस पाँच मिनट में हम भी कैश अपने खाते में डिपाजिट करके बाहर निकले और ऐसा एहसास हुआ मानो क़िला फ़तह कर लिया हो। :)


पाँच मिनट के काम के लिए साढ़े तीन घंटे लगे पर अगर अकाउंट में ऑनलाइन पैसे जमा करने की सुविधा होती तो हम इस जद्दोजहद से बच जाते ।










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