फ़िल्मी गीतो की किताब

हिन्दी फ़िल्मे देखना अगर यूँ कहे कि बचपन से ही हमें इसका शौक़ रहा है तो ग़लत नहीं होगा क्योंकि कभी भी मममी पापा ने फ़िल्म देखने पर कोई रोक टोक नहीं की। और अकसर हम लोग मममी पापा के साथ ही फ़िल्म देखने जाते थे। वैसे हमारे बाबा भी फ़िल्मों के बहुत शौक़ीन थे और सपनों का सौदागर फ़िल्म देखने के बाद तो वो हेमा मालिनी के बहुत बड़े फ़ैन बन गये थे और हेमा मालिनी की कोई भी पिकचर देखे बिना नहीं रहते थे । 🙂

वैसे उस समय पिकचर देखना मनोरंजन का एकमात्र साधन होता था और शायद इसीलिये लोग सपरिवार फ़िल्म देखने जाते थे। शादी के पहले भी और शादी के बाद भी फ़िल्मे देखने का सिलसिला जारी रहा और अभी तक ये शौक़ बरक़रार है।

पहले तो एक स्क्रीन वाले सिनेमा हॉल होते थे और वहाँ पिकचर देख कर जब निकलते थे तो हॉल के बाहर फ़िल्मी गीतों की किताब बिक रही होती थी जिसमें कम से कम दो तीन फ़िल्मों के पूरे पूरे गाने ,गायक का नाम और गीतकार और संगीतकार का नाम भी लिखा होता था । बिना ये किताब ख़रीदे पिकचर देखना पूरा नहीं माना जाता था । शाम को छत पर बैठकर इस गाने की किताब का पूरा इस्तेमाल होता था अरे मतलब गाने गाये जाते थे । वैसे सत्तर के दशक के बाद इन किताबों का मिलना बिलकुल ख़त्म सा हो गया था ।

पर अब तो मल्टीप्लेक्स का ज़माना है जहाँ एक साथ चार या पाँच फ़िल्मे दिखाई जाती है। और आजकल तो मोबाइल पर ही गाने के बोल लिख कर आ जाते है। इसलिये गाने की किताब की कोई ज़रूरत ही नहीं है। ☺️





Comments

Popular posts from this blog

जीवन का कोई मूल्य नहीं

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन