पानदान

चंद रोज़ पहले हम डी.एल.एफ के एक रेस्टोरेंट नमक मंडी में खाना खाने गये थे । और वहाँ खाने के बाद में सौंफ और सुपारी एक पानदान में पेश की गई और उस पानदान को देखकर बहुत सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई ।

हमारे घर में हमारी मम्मी को पान खाने का बहुत शौक़ था और वो हमेशा पानदान रखती थी । पानदान जिसे हम लोग पनडबबा भी कहते थे । दरअसल हमारे ननिहाल में भी सभी लोगों को पान खाने का बेहद शौक़ था । और वहाँ भी हमेशा पानदान रहता था । चाय की तरह ही हमारे मौसी और मामा लोग पान खाया करते थे मतलब हर समय पान खाने को तैयार । 😋

मम्मी को जितना पान खाना पसंद था पापा को पान उतना ही नापसंद था पर पापा ने मम्मी को कभी भी पान खाने से रोका नहीं । पहले घरों मे बॉक्स रूम होता था और चूँकि पापा को पान नापसंद था इसलिये मम्मी पनडबबा बॉक्स रूम में ही रखती थी क्योंकि जब भी मम्मी पानदान खोलती थी तो एक ख़ुशबू से फैल जाती थी ।

पानदान में सबसे ऊपर प्लेट में एक पतले ,गीले से झींने से कपड़े में पान के पत्ते रखे होते थे । उस प्लेट के नीचे छोटी छोटी ढक्कनदार कटोरियाँ और उनमें छोटे छोटे चम्मच (डंडियां ) होते थे जिनमें कतथा, चूना ,सुपारी और जर्दा रखा होता था । साथ में सरौता होता था सुपारी काटने के लिये । कभी कभी जब मम्मी पानदान खोलती तो हम भी अरे पान नहीं एक दो टुकड़े सुपारी खा लेते थे । 😊

मौसी या मामा तो आते ही कहते थे जिया (मम्मी को जिया बोलते थे ) एक बढ़िया सा पान खिलाइये ।मम्मी लोगों की तो स्वीट डिश ही पान होता था । वैसे हम भी जब कहीं शादी ब्याह वग़ैरा में जाते है तो मीठा पान (मघई पान ) ज़रूर खाते है । 😛

वैसे पान खाने का शौक़ अभी भी हमारे परिवार में चल रहा है ।हमारे भइया , छोटा कज़िन ,ताईजी ,ममेरे भाई लोग इस शौक़ को बरकरार रखे हुए है । 😊










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