मिलावट की इंतहा

मिलावट का ज़माना है जी । कुछ ग़लत तो नहीं कह रहें है ना ।

आजकल तो हर खाने पीने की चीज़ में मिलावट होने लगी है । चीनी ,चावल,मसाले ,घी,तेल हर चीज़ में मिलावट होने लगी है ।समझ नहीं आता है कि खायें तो क्या खायें ।

अब ऐसा नहीं है कि पहले ऐसी बातें नहीं होती थी । पहले भी कभी दूध में तो कभी खोये (मावा ) में मिलावट होने की ख़बर आती थी । और कभी कभार मसालों में कुछ कुछ मिला होने की ख़बरें आती थी । पर फल और सब्ज़ी में कम से कम मिलावट की बात नहीं होती थी ।

पर आजकल तो ऐसा लगता है कि फल और सब्ज़ियों में सबसे ज़्यादा मिलावट होने लगी है । कैमिकल्स की मदद से पकाया हुआ केला हो या ज़रूरत से ज़्यादा मीठा ख़रबूज़ा और तरबूज़ा । जाड़े में मिलने वाला अमरूद बाहर से हरा और अन्दर से बिलकुल गुलाबी होता है और जिसे बेचने वाले इलाहाबाद का अमरूद कहकर धड़ल्ले से बेचते है । अब इलाहाबाद के सारे के सारे अमरूद तो अन्दर से गुलाबी नहीं होते है । जबकि बाहर से लाल ज़रूर होते है । हमेशा नही पर कभी कभी जब जामुन को थोडी देर पानी में भिगा देते है उसमें से नीला सा रंग निकलता है ।

हमें अच्छे से याद है कि पहले तरबूज़ा ,ख़रबूज़ा सिर्फ़ गरमी के दिनों मे ही मिला करते थे । पर अब तो सारे साल तरबूज़ मिलते है और वो भी खूब लाल और मीठे । पहले जब तरबूज़ ख़रीदा जाता था तो थोड़ा सा काटकर देखा जाता था कि तरबूज़ा लाल है या नहीं और ज़्यादातर अन्दर से लाल नही होता था । तरबूज अगर कम लाल या फीका होता था तो उसे मीठा करने के लिये उसमें चीनी डालकर रखा जाता था ।हमारी मम्मी भी ऐसा करती थी और बहुत साल तक हममें भी ऐसा किया । पर अब ऐसा करने की ज़रूरत नहीं होती है ।

और ऐसा ही ख़रबूज़े के साथ भी किया जाता था कि अगर ख़रबूज़ा फीका होता था तो उसे मीठा करने के लिये उसमें चीनी डालकर रखते थे । पर आजकल तो तरबूज और ख़रबूज़ इतने मीठे होते है कि क्या कहें । वैसे अभी हाल ही में एक वीडियो भी खूब वायरल हुआ जिसमें तरबूज़ और ख़रबूज़ में ग़लत रंग के इन्जेक्शन से कैसे तरबूज पीला और ख़रबूज़ लाल हो जाता है ,ये दिखाया गया है ।

अब गरमी में तो कहा जाता है कि तरबूज खाना चाहिये क्योंकि इसमें पानी की मात्रा अधिक होती है और ये सेहत के लिये भी अच्छा होता है पर ऐसा रंगा हुआ तरबूज किस काम का । ये तो सेहत बनाने की बजाय सेहत बिगाड़ ही देगा ।

अब आम तो फलों का राजा है पर आम को भी कहीं कहीं ऐसे ही पकाते है । पहले या तो आम पेड़ पर ही पकते थे या फिर अख़बार में लपेटकर पकाया जाता था । कभी कभी तो पपीता भी अन्दर से इतना लाल सा और मीठा होता है कि आश्चर्य होता है कि हम पपीता खा रहें है या आम । :(

कहा जाता है कि फल सब्ज़ी खूब खाओ पर ऐसे फल सब्ज़ी खाकर हम लोगों का क्या होगा ?




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