पेड़ों की क़ुर्बांनी क्यों ?
आज सुबह अखबार में ये ख़बर पढ़ी कि दिल्ली के कुछ एरिया जैसे सरोजनी नगर ,नैरोजी नगर तथा कुछ और पश्चिमी दिल्ली की पुरानी कॉलोनियों को तोड़कर वहाँ दुबारा बहुमंज़िला इमारत बनने वाली है ।
बहुमंज़िला बिल्डिंग बनाना तो ठीक है पर इन्हें बनाने के लिये पेड़ों को भी काटना पड़ेगा । और पेड़ भी हज़ार दो हज़ार नहीं बल्कि सत्रह हज़ार से ज़्यादा पेड़ों की क़ुर्बांनी होगी । जबकि अभी तकरीबन इक्कीस हज़ार से ज़्यादा पेड़ है । तो सोचिये भविष्य में दिल्ली का क्या होगा ।
एक तरफ़ तो कहा जाता है कि पेड़ लगाओ और दूसरी तरफ़ सालों पुराने पेड़ों को काटकर बिल्डिंग बनाई जा रही है । वैसे ही दिल्ली में अब काफ़ी कम पेड़ रह गये है । पर अगर इसी तरह पेड़ काटकर बिल्डिंग बनती रही तो वो दिन दूर नहीं जब हर तरफ़ सिर्फ़ बिल्डिंग ही बिल्डिंग दिखाई देगी ।
बहुमंज़िला बिल्डिंग बनाना तो ठीक है पर इन्हें बनाने के लिये पेड़ों को भी काटना पड़ेगा । और पेड़ भी हज़ार दो हज़ार नहीं बल्कि सत्रह हज़ार से ज़्यादा पेड़ों की क़ुर्बांनी होगी । जबकि अभी तकरीबन इक्कीस हज़ार से ज़्यादा पेड़ है । तो सोचिये भविष्य में दिल्ली का क्या होगा ।
एक तरफ़ तो कहा जाता है कि पेड़ लगाओ और दूसरी तरफ़ सालों पुराने पेड़ों को काटकर बिल्डिंग बनाई जा रही है । वैसे ही दिल्ली में अब काफ़ी कम पेड़ रह गये है । पर अगर इसी तरह पेड़ काटकर बिल्डिंग बनती रही तो वो दिन दूर नहीं जब हर तरफ़ सिर्फ़ बिल्डिंग ही बिल्डिंग दिखाई देगी ।
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