चलती का नाम जिंदगी

क्यूँ ग़लत तो नहीं कह रहे है ना ।

जन्म लेने के पहले से ही ज़िंदगी चलने लगती है ।और इसकी शुरूआत माँ की कोख से शुरू हो जाती है । जन्म लेने के बाद जैसे जैसे ज़िंदगी चलने लगती है वैसे वैसे हम बहुत कुछ सीखते जाते है । कभी गिरते है तो कभी उठते है कभी हँसते है तो कभी रोते है ,कभी जीतते है तो कभी हारते है पर कभी रूकते नहीं है ।

और शायद इसी का नाम ज़िंदगी है । वो गाना तो सुना ही होगा --- जीवन चलने का नाम चलते रहो सुबहो शाम ।
एक और पुराना दोस्त फ़िल्म का गाना याद आया ---गाड़ी बुला रही है ,सीटी बजा रही है ,चलना ही ज़िंदगी है चलती ही जा रही है ।

नीचे वाले गाने में जीवन और जीवन से जुड़ी समस्याओं और ट्रेन की इतनी सुंदरता से बराबरी करी गई है कि उस समय के गीतकार की सोच की तारीफ़ किये बिना नहीं रह सकते है । जो लोग रेल से कटकर आत्महत्या करते है उनके लिये बहुत ही सुंदर संदेश गीत के माध्यम से दिया है -- गाड़ी का नाम ना कर बदनाम पटरी पर रख कर सिर को , हिम्मत ना हार

पर कभी कभी लोग जीवन के इसी उतार चढ़ाव से घबराकर अपनी ज़िंदगी ही ख़त्म कर देते है । पर ऐसा करते हुये क्या वो एक बार भी अपने परिवार के बारे में नहीं सोचते है ।







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