कार चलाना सीखा वो भी तीन दिन मे .....

अब साइकिल और स्कूटर सीखने का किस्सा तो हम ने एक जमाने पहले ही आप लोगों को बता दिया था पर कार का किस्सा बताना रह गया था ।तो सोचा आज आप लोगों को अपने कार चलाने के सीखने का अनुभव भी बता दिया जाए । अब वो क्या है ना चूँकि मायके मे हम सबसे छोटे थे इसलिए कार सीखने का नंबर आते-आते हमारी शादी हो गई थी:)

आप यही सोच रहे है ना कि तीन दिन मे कार चलाना सीखा तो कौन सा बड़ा तीर मार लियाअरे भई हम जानते है कि आप लोगों ने एक घंटे या एक दिन मे कार चलाना सीखा होगा:)

दिसम्बर ८९ की बात है उस समय बेटे छोटे थे और हम इलाहाबाद गए हुए थे और हमारी बाकी जिज्जी भी इलाहाबाद आई हुई थी । एक दिन शाम को हम सब चाय पी रहे थे और बातें हो रही थी तभी हमें कार चलाना सीखने का भूत चढ़ गया ।तो भइया बोले की कार चलाना तो बहुत आसान है । बस गियर लगाना आना चाहिए । और कार चलाते समय बिल्कुल भी डरना नही चाहिए । फ़िर भइया ने घर मे खड़ी कार मे ही गियर लगाना सिखाया ।क्योंकि तब ambassador मे हैंड गियर होता था । ४-५ बार गियर लगाने की प्रैक्टिस करने के बाद ड्राईवर मुन्ना लाल को बुलाया गया और हम चल दिए कार सीखने के लिए ।

घर से तो मुन्ना लाल ही एमबैसडर कार लेकर चला और संगम के पहले बायीं ओर की सड़क जो आगे जाकर संगम पर ही मिलती थी (नाम भूल रहे है )और जिस पर उस ज़माने मे ट्रैफिक काफ़ी कम रहता था । वहां ले जाकर ड्राईवर ने एक बार फ़िर हमें गियर लगाना सिखाया और बताया कि कैसे क्लच को धीरे-धीरे छोड़ते हुए कार को आगे बढ़ाना है । पर जैसा की नौसिखिये चालक के साथ होता है वही हमारे साथ भी हुआ । जैसे ही first गियर लगाते और क्लच छोड़ते की बस कार वही घच करके झटके के साथ रुक जाती । :)

खैर २-४ बार के बाद समझ मे आया कि कैसे क्लच छोड़ते हुए एक्सीलेटर से स्पीड करते हुए कार आगे बढ़ाना है ।बस एक बार जब कार चल पड़ी तब तो कोई दिक्कत ही नही आई थी ।वैसे एम्बेसडर जैसी भारी-भरकम कार मे सीखने का ये फायदा हुआ कि एम्बेसडर चलाने के बाद सभी कार हल्की लगती थी । कार सीखने मे अगर एक बार first गियर मे कार चला ली बिना झटका दिए तो समझ लीजिये कि आपको कार चलाना आ गया । क्योंकि सबसे मुश्किल काम यही है । ग़लत तो नही कह रहे है ना । :)

उस दिन करीब एक घंटे तक कार चलाने के बाद घर लौटने मे फ़िर से ड्राइवर ने ही कार चलाई क्योंकि वहां पर जो चौराहा पड़ता है उस पर बड़ी भीड़ हुआ करती थी जिसमे रिक्शा ,साइकिल,कार,पैदल और गाय भैंस सभी होते थे । और पहले दिन तो डर भी लग रहा था । अगले दिन फ़िर से शाम को ड्राईवर के साथ हम कार लेकर संगम की ओर चल पड़े और इस बार हमारी भांजी भी कार मे हमारे साथ थी । और एक घंटे वहां कार चलाने के बाद जब लौटने लगे तो हमने ड्राईवर को बोला की अब घर चलना है इस लिए अब तुम चलाओ । तो ड्राईवर बोला दीदी आप ही चलाइये । बस धीरे-धीरे चलाइयेगा और चौराहे पर हार्न जरुर बजाइयेगा । खैर उस दिन डरते-डरते संगम से घर तक कार चलाकर जो आए तो धड़का खुल गया अरे मतलब डर निकल गया । :)

और घर मे घुसते ही भांजी ने सबको जोर-जोर से बताया कि आज तो मौसी ही कार चलाकर घर लायी है । तीसरे दिन जब चले तो पीछे बैठने वाली सवारी मे इजाफा हो गया माने हमारी भांजी के साथ-साथ हमारे बेटे भी चल दिए हमारे साथ । दो दिन चलाने के बाद तो इतना कार चलाना आगया था कि उस दिन घर से भी हम ही कार चलाकर ले गए फ़िर वहां एक घंटा कार चलाई और वापिस घर हम ही चला कर आए और बस सीख गए कार चलाना ।

और उसके बाद दिल्ली मे पतिदेव ने खूब कार चलाने की प्रैक्टिस करवाई । जहाँ भी जाना होता था वो हमसे ही कार चलवाते थे । उस समय हम लोगों के पास फिएट कार थी ।और हमारी एक ननद पश्चिम विहार मे रहती थी और तकरीबन हर हफ्ते एक बार हम लोग उनके यहां जाते थे तो g.k. से पश्चिम विहार तक हम कार चलाते थे जिसका नतीजा ये हुआ कि हम कार चलाने मे पक्के हो गए ।

बाद मे जब दोनों बेटे स्कूल जाने लगे थे तब ये कार चलाना असली मे काम आया था क्योंकि दोनों बेटों का स्कूल के भारी-भारी बैग के साथ पैदल चलना मुश्किल होता था ना (वैसे स्कूल बहुत पास था, E.O.K.मे ) । :)


Comments

साथ में ड्राइविंग लाइसेंस भी जलादी बनवा लीजिए।
पहले दिन कार चलाने की प्रेक्टिस के बाद उस दिन रात में खूब सपने दिखे होंगे.
चलिए आप भाग्यशाली रहीं .
Arvind Mishra said…
तो धड़क खुल गयी और आप कुशल कार चालक बन गयीं -तो यह तो घटना विहीन दृष्टांत रहा -पढने का सारा रोमांच ही जाता रहा !( हा हां हा ..) लिंक देखते ही लगा कि कहीं आपने आपने पापा की गाडी भिडाई होगी -वह क्रेन से लाई गयी होगी -आप सब की मरहम पट्टी तो हुयी ही होगी हाल चाल भी अच्छी तरह से पूंछा गया होगा ! पर यहाँ तो आपके सौभाग्य और हमारे दु...से मामला ही उल्टा निकला -खैर अति विलम्बित बधाई ! अब लगभग उन्ही दिनों में मुझे भी इलाहाबाद में आपने एक उच्चाधिकारी को एक अलग वेन्यू -के पी कालेज के मैदान में एक सेकेण्ड हैण्ड कार -नमालूम कौन कार थी (!) सिखाने का आदेश पालन करना पड़ा था और एक दिन हद तब हो गयी जब महोदय ने इतने जोर से गियर लगाया या नामालूम अचानक क्या किया पूरा गियर ही उनके हाथ में खिच ऊपर आ गया और वे हक्के बक्के से मुझे और मैं मामले की नजाकत तुरंत न भांप कार भाव शून्य सा उन्हें देखता रह गया और मंथर गति से कार कालेज की दीवार से भिड कर रूक गयी ! तब मुझे होश आया और ऐसी हंसी छूटी कि उच्चाधिकारी का डर भी रफूचक्कर हो गया ! लीजिये अब भी हंसी छूट गयी ....
बहुत जल्‍द सीख गयी आप तो कार चलाना ... देर से बताया तो देर से ही लीजिए बधाई।
कुश said…
कार क़ी सबके पास अपनी एक कहानी तो होती है..
तीन दिन में कार चलाना सिख गयी आप और एक हम थे लाइसेंस पहले बनवा लिया गाड़ी तीन साल बाद सीखी .
सही कहा बस पहला गेयर डालके गाड़ी आगे बढा दी तो आधी गाड़ी चलाना आ गया .
कार चलानी सीख ली यही बहुत अच्छा हुआ ..मैं भी सीखी थी पर दिल्ली का ट्रेफिक देखते ही भूल जाती हूँ :)
Puja Upadhyay said…
baap re baap...teen hi din me car...par main to aapki nahin un logo ko daad deti hoon jo nausikhiye ke sath peeche baithne ka jokhim le rahe the...aur un sare logo ka jo us din road par chal kar risk le rahe the :D
तीन दिन में कार सीख ली बधाई! तीन दिन सड़क वाले बेचारे कैसे जिये होंगे।
बहुत खूब जी ..ये बहुत अच्छा किया
- लावण्या
वाह क्या बात है, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
बहुत खूब....आपका अनुभव पढ़कर तो लगता है कि हम भी गियर वाली कार कल ही स्टार्ट कर लें...अगर हमने यहाँ गाड़ी चला ली तो उसका श्रेय आपको ही जाएगा :)
mamta said…
विनीत जी कार तो हमने ८९ मे चलानी सीखी थी और तभी लाइसेस भी बनवा लिया था । अब तो २० साल हो गए है कार चलाते हुए । :)
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