स्कूटर चलाना तो सीखा पर चलाया नही :)
अपनी साइकिल सीखने की दास्तान तो हम बता ही चुके है और आज हम अपने स्कूटर सीखने का किस्सा यहां लिख रहे है। घर मे सबसे छोटे होने की वजह से स्कूटर और कार सीखने की नौबत या यूं कहें की नंबर नही आ पाया ।उस समय इलाहाबाद मे लड़कियां स्कूटर कम ही चलती थी पर हाँ लूना बहुत चलाती थी जो साइकिलऔर स्कूटर का मिला-जुला सा रूप था। मिला जुला इसलिए की अगर कहीं पेट्रोल ख़त्म हो जाता था तो पैडल मारकर भी चलाया जा सकता था। :) वैसे उन दिनों लूना बहुत प्रचलित थी। पर लूना को हमने कभी स्कूटर के बराबर का नही माना। (लूना चलाने वालों से माफ़ी चाहते है )तो इसलिए चलाने का सवाल ही नही था।
वो कहते है ना कि जिसने साइकिल चलाई हो उसे स्कूटर सीखने मे कोई दिक्कत नही आती है।पर ऐसा कुछ नही है स्कूटर सीखना भी कम मुश्किल काम नही है। कहाँ हलकी-फुलकी साइकिल और कहाँ भारी-भरकम स्कूटर।पर एक बात सही है कि साइकिल चलने वाले जल्दी स्कूटर सीख लेते है। वैस्पा के लिए कहा जाता था कि वो हल्का स्कूटर है लेम्ब्रेटा के मुकाबले।और वैस्पा चलाने मे भी आसान और हल्का । और हमारी किस्मत देखिये कि पतिदेव के पास वैस्पा स्कूटर था ।
खैर जब शादी हुई तब एक-डेढ़ साल बाद हमने स्कूटर सीखने की सोची और जब पतिदेव को बताया तो वो काफ़ी खुश हुए और तय हुआ कि छुट्टी के दिन वो हमे सिखायेंगे।अब उस समय तो सिर्फ़ रविवार की ही छुट्टी होती थी इसलिए स्कूटर सीखने मे हमे एक महीना लग गया। छुट्टी के दिन कालोनी मे बने ग्राउंड मे हम मियां-बीबी मय स्कूटर पहुँच जाते और शुरू होती क्लास । पहले दिन तो हैंडल की वजह से हाथ मे ही दर्द हो गया था तो अगले दिन गियर और एक्सीलेटर मे ही confuse हो जाते थे ।और आख़िर कार पतिदेव ने स्कूटर चलाना हमे सिखा ही दिया और हम ने भी इसी तरह धीरे-धीरे गलतियाँ करते- सुधारते स्कूटर सीख ही लिया था ।
स्कूटर तो हमने किसी तरह सीख लिया और दिल्ली मे चलाना भी शुरू किया पर सिर्फ़ अपने घर के आस-पास या घर के पास के बाजार तक ही जाते थे स्कूटर से क्यूंकि दिल्ली मे उस समय के हिसाब से बहुत भीड़ होती थी (पर आज के समय के मुकाबले मे बहुत कम भीड़ )और स्कूटर मे ये खतरा रहता था कि अगर किसी ने ठोंक दिया तब तो गए काम से। :)
और अपने इसी डर की वजह से हमने बस कुछ ही दिन स्कूटर चलाया और उसके बाद स्कूटर चलाना बंद कर दिया और ये सोचा की स्कूटर चलाने से बेहतर है कार चलाना क्यूंकि कम से कम कार मे उतना खतरा तो नही है अरे भाई अगर कोई कार को ठोंकता भी है तो पहले तो कार डैमेज होगी तब कार चालक को नुकसान होगा। हालांकि आज कल तो कार के साथ-साथ चालक भी .... ।
और ऐसे नेक विचार आते ही हमने स्कूटर चलाना बिल्कुल ही बंद कर दिया हालांकि पतिदेव का कहना था की ये सब बेकार की बात है पर हमने भी ठान लिया था कि बेकार ही सही पर अब अगर हम कोई वाहन चलाएंगे तो वो सिर्फ़ कार ही। :)
वो कहते है ना कि जिसने साइकिल चलाई हो उसे स्कूटर सीखने मे कोई दिक्कत नही आती है।पर ऐसा कुछ नही है स्कूटर सीखना भी कम मुश्किल काम नही है। कहाँ हलकी-फुलकी साइकिल और कहाँ भारी-भरकम स्कूटर।पर एक बात सही है कि साइकिल चलने वाले जल्दी स्कूटर सीख लेते है। वैस्पा के लिए कहा जाता था कि वो हल्का स्कूटर है लेम्ब्रेटा के मुकाबले।और वैस्पा चलाने मे भी आसान और हल्का । और हमारी किस्मत देखिये कि पतिदेव के पास वैस्पा स्कूटर था ।
खैर जब शादी हुई तब एक-डेढ़ साल बाद हमने स्कूटर सीखने की सोची और जब पतिदेव को बताया तो वो काफ़ी खुश हुए और तय हुआ कि छुट्टी के दिन वो हमे सिखायेंगे।अब उस समय तो सिर्फ़ रविवार की ही छुट्टी होती थी इसलिए स्कूटर सीखने मे हमे एक महीना लग गया। छुट्टी के दिन कालोनी मे बने ग्राउंड मे हम मियां-बीबी मय स्कूटर पहुँच जाते और शुरू होती क्लास । पहले दिन तो हैंडल की वजह से हाथ मे ही दर्द हो गया था तो अगले दिन गियर और एक्सीलेटर मे ही confuse हो जाते थे ।और आख़िर कार पतिदेव ने स्कूटर चलाना हमे सिखा ही दिया और हम ने भी इसी तरह धीरे-धीरे गलतियाँ करते- सुधारते स्कूटर सीख ही लिया था ।
स्कूटर तो हमने किसी तरह सीख लिया और दिल्ली मे चलाना भी शुरू किया पर सिर्फ़ अपने घर के आस-पास या घर के पास के बाजार तक ही जाते थे स्कूटर से क्यूंकि दिल्ली मे उस समय के हिसाब से बहुत भीड़ होती थी (पर आज के समय के मुकाबले मे बहुत कम भीड़ )और स्कूटर मे ये खतरा रहता था कि अगर किसी ने ठोंक दिया तब तो गए काम से। :)
और अपने इसी डर की वजह से हमने बस कुछ ही दिन स्कूटर चलाया और उसके बाद स्कूटर चलाना बंद कर दिया और ये सोचा की स्कूटर चलाने से बेहतर है कार चलाना क्यूंकि कम से कम कार मे उतना खतरा तो नही है अरे भाई अगर कोई कार को ठोंकता भी है तो पहले तो कार डैमेज होगी तब कार चालक को नुकसान होगा। हालांकि आज कल तो कार के साथ-साथ चालक भी .... ।
और ऐसे नेक विचार आते ही हमने स्कूटर चलाना बिल्कुल ही बंद कर दिया हालांकि पतिदेव का कहना था की ये सब बेकार की बात है पर हमने भी ठान लिया था कि बेकार ही सही पर अब अगर हम कोई वाहन चलाएंगे तो वो सिर्फ़ कार ही। :)
Comments
वैसे यही प्रार्थना करते हैं कि कार चलाना आप् जल्द ही सीख लें.
दीपक भारतदीप
पर आना चाहिये - जरूर।
जो मजा उसमे है वो कहीं नही.. हाँ मगर कम से कम ६०-८० की गति तो होनी ही चाहिए.. :D
हम सभी बाईकिंग के ज्यादा दीवाने हैं ।
मुझे बाईक दीजिये और प्रायोजक ।
बस फिर तो हम चले मुसाफिर बनके दुनिया की सैर करने ।