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Showing posts from August, 2007

रक्षा -बन्धन -भाई-बहन का प्यार

आज रक्षा -बन्धन या राखी है ।आज के दिन का सभी भाई और बहनों को इंतज़ार रहता है क्यूंकि ये दिन खास जो है।राखी का त्यौहार मतलब भाई-बहन का प्यार। समय वो चाहे कोई भी जमाना रहा हो राखी का महत्त्व कभी भी कम नही हुआ और ना ही होगा।पहले तो जो बहने दूर होती थी उन्हें भाई को राखी भेजने का एक ही जरिया था और वो था पोस्ट के जरिये राखी भेजना।जिसमे कई बार देर से राखी पहुंचती थी पर अब समय के साथ इन चीजों मे सुधार और बदलाव आ गया है। पिछले कुछ सालों से कोरियर और अब इन्टरनेट के जरिये राखी भेजना आसान हो गया है और सबसे बड़ी बात अब राखी समय पर पहुंच जाती है। आजकल की भागती-दौड़ती जिंदगी मे जहाँ लोगों के पास समय की कमी हो रही है पर इस राखी के दिन ऐसा बिल्कुल भी नही लगता है। हर छोटे-बडे शहर मे सुबह से शाम तक लोग रंग-बिरंगे कपड़ों मे सजे-धजे सड़कों पर नजर आते है। कहीँ कोई बहन भाई के यहां जा रही होती है तो कहीँ भाई अपनी बहन के घर जा रहे होते है राखी बंधवाने के लिए। दिल्ली मे तो कई बार ट्रैफिक जाम भी हो जाता है क्यूंकि हर किसी को पहुँचने की जल्दी होती है पर कोई भी रुकना नही चाहता है। आप ये तो नही सोच रहे की भला

ससुराल

ये ससुराल शब्द बहुत सारे संबंध अपने अन्दर समाये हुए है ठीक उसी तरह जैसे मायका शब्द अपने अन्दर संबंधों को सहेज कर रखता है।मायके मे माँ,पिता,भाई, भाभी और बहन होते है तो ससुराल मे सास,ससुर,ननद,देवर,जेठ,जेठानी होते है। और शायद इन्हीं सबसे एक भरा-पूरा घर बनता है।वो चाहे मायका हो या चाहे ससुराल हो। ससुराल नाम से ही लोगों को एक अजीब सी भावना महसूस होती है और इस भावना को और कुछ नही इसे बस मन मे चल रहे मिले-जुले भाव या शायद डर ही कहना चाहिऐ। हर लडकी जिसकी शादी होती है वो इन भावनाओं से जरुर गुजरती है कि पता नही उसके ससुराल वाले कैसे होंगे। वो वहां एडजस्ट कर पाएगी या नही। सास और ननद से उसकी निभेगी या नही और ऐसे ही तमाम सवाल मन मे उठते रहते है। और ऐसे मे शादी के समय जो रिश्तेदार आते है वो कई बार लडकी को बहुत सारी हिदायतें देते है कि बिटिया ठीक से रहना । बडों का आदर करना । कभी पलट कर जवाब मत देना वगैरा - वगैरा । पर कई बार तो कुछ लोग ससुराल के नाम पर बहुत डराते भी है कि देखों फलानी की लडकी के साथ ऐसा हो गया तो ढमाकी की लडकी के

गर्दिश मे सितारे

आज तो मुकेश का गाया हुआ गाना याद आ गया गर्दिश मे हों तारे , ना घबराना प्यारे आजकल फिल्म इंडस्ट्री की हालत कुछ ऐसी ही हो रही है जिसके तारे और सितारे दोनो ही गर्दिश मे है।इंडस्ट्री के तारे इसलिये गर्दिश मे है क्यूंकि ज्यादातर फ़िल्में फ्लॉप हो जाती है और सितारे गर्दिश मे है ये तो हम सभी जानते है मतलब जहाँ कभी संजय दत्त जेल के अन्दर जाते है तो कभी सलमान खान । खैर संजय दत्त तो फिलहाल जेल से बाहर आ गए है पर सलमान खान कितने दिन जेल मे रहेंगे ,ये कहना मुश्किल है। संजय दत्त तो तेईस दिन मे जेल से बाहर आ गए पर सलमान खान का तो फिलहाल कोई सीन नजर नही आ रहा है।बाक़ी तो ऊपर वाला जाने। सितारों के जेल जाने मे निर्माता का तो जो नुकसान होता है वो अब २-४ करोड़ नही बल्कि १००-२०० करोड़ का होता है। अब वो क्या है ना की आजकल लाखों मे तो कोई फिल्म बनती ही नही है।वो भी इतने बडे सितारों के साथ तो छोटी-मोती फिल्म बनना नामुमकिन है। मामूली से मामूली पिटे हुए निर्माता अतुल अग्निहोत्री जैसे जब २० करोड़ की फिल्म बना सकते है तो बडे निर्माताओं का क्या कहना। अब अगर संजय दत्त पर फिल्म वालों का ५०-६

एक और डरावनी पोस्ट (सांप )

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पोस्ट के इस नाम की प्रेरणा हमे ज्ञानदत्त जी से मिली है।(हमने आपकी टिपण्णी का बुरा नही माना है । इसलिये आप इसे अन्यथा मत लीजियेगा। ये तो महज एक बहाना है. वरना हम आप लोगों को अपने घर के साँपों से कैसे मिलवाते. ) और कल हमने दीपक ज ी की एक कविता पढी थी जिससे भी हमारी ये पोस्ट कुछ प्रेरित है। अब जब नाम ही ऐसा है तो पोस्ट मे भी कुछ होना चाहिऐ। तो चलिए हम आपको अपने अंडमान के घर के कुछ साँपों से मिलवाते है। पर उससे पहले हम कुछ कहना भी चाहते है। जब हम लोग अंडमान गए तो जैसा की आप सबको अब पता ही है कि वहां बहुत जंगल है तो जंगल मे कुछ जीव-जंतु भी होंगे ही।शुरू-शुरू मे जब हम लोग अंडमान गए तो साँपों के बहुत किस्से सुने और हम लोगों को वहां रहने वालों ने ने हिदायत दी कि कभी भी अलमारी मे से कपडे वगैरा बिना झाडे मत पहनना और दरवाजा हमेशा ठीक से बंद किया करना क्यूंकि अंडमान मे सांप बहुत है। क्या हुआ डर गए. अरे डरिये मत. ये मटमैले रंग का सांप कुछ नही करने वाला है ये बहुत सीधा है. कैसे गुडाई की हुई जमीन मे मजे से घूम रहे है. लोगों ने तो ये तक बताया की कई बार सांप दरवाजे पर दस्तक (नॉक )

अब कैसे बचे नोकिया से क्यूंकि अब तो .....

अभी तक तो यही खबर थी की नोकिया की बी.एल.-५सि.की जापानी बैटरी के फटने का खतरा है पर ये क्या अब तो बी.एल-४ बैटरी भी ओवर चार्जिंग से फट रही है और वो बैटरी जो हंगरी की बनी हुई है। उत्तर-प्रदेश के आजमगढ़ जिले मे ये हादसा हुआ है। जब इसे चार्ज किया जा रहा था तभी ये बैटरी फट गयी और ये भी कहा जा रहा है की इसमे दो लोग घायल भी हो गए है। अभी तक तो जनता बी.एल.-५सि से ही नही निपट आयी उसपर से ये एक और मुसीबत। ये अचानक नोकिया मे क्या हो रहा है। अब तो लोगों को फ़ोन रिचार्ज करते हुए भी डर लगेगा की क्या पता कब बैटरी मे विस्फोट हो जाये। अब ये देखना है कि नोकिया किस तरह की चेतावनी निकालेगी । चलते-चलते आल द बेस्ट !!

कसाई है हम कसाई

इस शीर्षक से ये बिल्कुल भी मत समझिए कि हम कोई बकरा या मुर्गा काटने जा रहे है। ये तो हमारे गिटार सिखाने वाले मास्साब के शब्द है जो अब इस दुनिया मे नही है।दुलाल मजुमदार नाम था उनका ।मास्साब बंगाली थे। पर उनके इन्ही शब्दों ने हमे गिटार सीखने की प्रेरणा दी थी। यूं तो वो ज्यादा ग़ुस्सा नही करते थे पर अगर उनके कई बार समझाने पर भी कोई गलत बजाता था तो उन्हें बहुत ग़ुस्सा आ जाता था और तब वो जो डांटना शुरू करते थे तो वो बिल्कुल भी कुछ नही सोचते थे की सामने बैठा हुआ शिष्य रो रहा है या दुःखी हो रहा है।कई बार तो उनके डांटने पर आंटी (मास्साब की पत्नी)भी वहां आ जाती थी और कहती थी कि इतना मत डांटा करो। बच्चे है सीख जायेंगे। और इसी तरह जब कोई अच्छा बजाता था तो वो बड़ी जोर से बाह (वाह)कहते थे और पूरी क्लास मे क्या हर ग्रुप मे उसकी तारीफ भी ख़ूब करते थे। वैसे वो छोटे -छोटे ग्रुप मे क्लास लेते थे पर तब भी उनकी तारीफ और डांट की खबर हर क्लास मे पहुंच जाती थी। ये बात तब की है जब हम नवीं क्लास मे पढते थे और हमने गिटार सीखने का मन बना लिया था।इन्ही मास्साब से हमारे भईया ने गिटार सीखा था

अब हिंदी मे लिखना कितना सुविधाजनक

आज का दिन तो बहुत ही अच्छा है. आज से हिन्दी मे काम करना अरे लिखना इतना आसान जो हो गया है. अब कहीँ आप ये तो नही सोच रहे होंगे कि जब अभी तक हिन्दी लिख ही रही थी तो अब ये कहने का क्या मतलब है कि अब हिंदी मे लिखना आसान हो गया है। तो वो इसलिये की हम आज वाली पोस्ट सीधे गूगल के indictransliteration के जरिये लिख रहे है. वैसे इससे पहले भी ट्रांसलिटरेशन के जरिये हम ब्लॉगर पर लिखते थे. पर कई बार गड़बड़ भी हो जाती थी.इसीलिये कई बार जब हम आप लोगों के ब्लॉग पढते है तो हम टिप्पणी इंग्लिश मे या तो कर देते है या कई बार नही भी करते है. क्यूंकि हमे इंग्लिश मे टिपण्णी करने मे बिल्कुल भी अच्छा नही लगता है. अब वो क्या है न की इतने दिन मे तो आप लोग जान ही गए है की हम बहुत ज्यादा तकनीकी किस्म के इंसान नही है . बस इतना जानते है कि ब्लॉगिंग कर लेते है जो हमारे लिए बहुत है. अभी दो दिन पहले ही श्रीश जी ने और जगदीश ज ी ने इस बारे मे अपने चिट्ठों पर लिखा था पर तब हम सोचते थे की अभी तो कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा . पर आज सुबह-सुबह अखबार मे ख़बर पढ़कर हम बहुत खुश हुए और सोचा की चलो देखा जाए कि अब हि

क्या रेडियो बदला है.

रेडियो से तो हम सभी का बड़ा ही पुराना नाता है । ये रेडियो ही है जो उन गांवों और पहाड़ों मे पहुँचता है जहाँ हमारे टी.वी.के कार्यक्रम नही पहुंच पाते है। और ये रेडियो ही है जो हमारे फौजी भाईयों के मनोरंजन का एकमात्र साधन होता है। कई बार तो हम ये सोचते है कि अगर पिछले दशकों मे रेडियो नही होता तो भला लोग कैसे दुनिया भर मे होने वाली घटनाओं के बारे मे जान पाते। रेडियो से तो हम सभी की ढेरों यादें जुडी होंगी।७० के दशक की लडाई के दौरान रेडियो ही तो हर तरह की सूचना देता था कि कितने बजे ब्लैक-आउट होगा और उस ब्लैक-आउट मे सभी को इसी रेडियो का सहारा रहता था। एक रेडियो ही होता था जिससे हम ना केवल समाचार और गाने सुनते थे बल्कि क्रिकेट जैसे खेल को लोकप्रिय बनाने मे भी रेडियो का बहुत बड़ा योगदान रहा है ऐसा कहा जा सकता है । क्या हम कभी भूल सकेंगे सुशील दोषी और जसदेव सिंह की कमेंट्री। सुशील जिस तरह बाल के साथ भागते हुए कमेंट्री करते थे कि सुनने वाला भी ये महसूस करता था मानो वो भी क्रिकेट के मैदान मे मौजूद हो। और कोई कैच छोड़ने पर भी ऐसे बोलते थे मानो उन्ही के हाथ

बैंकों के चोंचले और ग्राहक की मुसीबत

कभी -कभी अपने ही रूपये-पैसे के लिए बैंक को इतना हिसाब देना पड़ता है कि लगता है आख़िर ये बैंक हमारी सुविधा के लिए है या परेशानी खड़े करने के लिए। आजकल तो अगर बैंक से किसी तरह की जानकारी अगर फ़ोन पर हासिल करना हो तो समझ लीजिये कि आप का कम से कम आधा घंटा तो गया और उसपर भी अगर पूरी जानकारी मिल जाये तब तो जरुर आपका दिन और समय अच्छा है। कुछ सालों पहले तक तो ऐसा नही था हर जानकारी फ़ोन पर मिल जाती थी और ऐसा बैंक दावा भी करता था। और दावा सही भी था पर आजकल ऐसा दावा ग्राहक के लिए मुसीबत बन कर आता है। ये मल्टी - नेशनल बैंक तो इसकी जीती जागती तस्वीर है। अब आप ये भी कह सकते है कि भाई मल्टी नेशनल मे खाता ही क्यों खोला जब अपने नेशनल बैंक है। तो हम ये बता दे कि एम.एन .सी.मे खाता उस समय खोला था जब ये बैंक नए-नए थे और उस समय अपने नेशनल बैंकों मे ए.टी.एम.की सुविधा नही थी और हर बार पैसा लेने और जमा करने के लिए लाइन मे खड़ा होना पड़ता था जो इन एम.एन.सी.बैंकों मे नही था । और दूसरे ए.टी.एम.मे समय की पाबंदी नही होती है कि दो बजे के बाद पैसा ही नही निकाल सकते ,जब चाहे जहाँ चाहे पैसा निकाल सकते है। हमे

हम भी बच गए बाल-बाल

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१४ अगस्त को जब नोकिया ने ये सूचना जारी की कि जिन मोबाइल फ़ोन मे bl-5c.बैटरी है उन्हें चार्ज करने पर फटने का खतरा है। तो जाहिर है नोकिया फ़ोन इस्तेमाल करने वाला हर व्यक्ति घबरा गया तो भला हम कैसे इस से बच सकते थे। टी.वी.पर शाम को ही ये खबर हर चैनल ब्रेकिंग न्यूज़ कह कर दिखा रहा था। हमने भी न्यूज़ देखी और फौरन अपने बेटे और पतिदेव को अपने-अपने मोबाइल की बैटरी चेक करने को कही। गनीमत है कि उन लोगों के नोकिया फ़ोन मे bl-5c.बैटरी नही थी। ऐसा सुनकर हम निश्चिंत हो गए की चलो बला टली। कहीँ आप ये तो नही सोच रहे कि जब कुछ हुआ ही नही तब है तब हम भी बच गए का क्या मतलब। बताते है बताते है। वो क्या है ना की हमने सबसे तो कह दिया की अपने फ़ोन की बैटरी चेक करो पर खुद अपने ही फ़ोन क ी बैटरी चेक नही की थी। असल मे हम goa का नंबर इस्तेमाल कर रहे है और हमारे सिम कार्ड मे कुछ प्रॉब्लम आ गयी थी तो हमने अपना सिम कार्ड goa भेजा हुआ था ।अब ये मत कहिये कि भाई इतने से काम के लिए कार्ड को goa क्यूँ भेजा। तो वो इसलिये कि यहां पर सब कहते है कि जहाँ का कार्ड है वहीँ से ठीक कराइये। और चूंकि इधर पिछले एक हफ्

कौन सच्चा और कौन झूठा ?

परसों यानी १४ अगस्त की रात को इंडिया टी . वी .ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट दिखाई जिसमे चैनल ने एन्काउंतर का सच दिखाया था।इस रिपोर्ट मे सितम्बर २००६ मे इलाहाबाद मे हुए एक एन्काउंतर का विडियो जिसमे एक आदमी जिसका नाम पिंटू था उसे दिखाया जा रहा था और रिपोर्टर ये बता रहा था की पिंटू हाथ ऊपर करके पुलिस के सामने सरेंडर करना चाह रहा था पर पुलिस ने बड़ी ही निर्ममता से उसे गालियाँ देते हुए मार गिराया था। करीब एक घंटे तक यही न्यूज़ दिखाई गयी कि किस तरह से पुलिस ने उस आदमी को मारा जबकि वो आदमी निहत्ता था और सरेंडर करना चाह रहा था।और कैसे डी.जी.पी.ने उस आदमी को सरेंडर करने का मौका नही दिया, जबकि वो आदमी लगातार सरेंडर की बात कह रहा था। और जब पुलिस ने गोलियाँ चलाई तो कैसे पिंटू अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागा। और फिर यही न्यूज़ १५ अगस्त की दोपहर को भी दिखाई गयी । पर कल यानी १५ अगस्त की दोपहर को स्टार न्यूज़ ने भी एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट दिखाई ये कहते हुए कि आख़िर एन्काउंतर का सच क्या है।इसमे दिखाया गया की सितम्बर २००६ मे इलाहाबाद पुलिस और पिंटू नाम के शख्स के बीच मे भिड़ंत हु

एक करोड़ का इनाम टीम इंडिया को

जी हाँ आप बिल्कुल सही समझे है हम टीम इंडिया को इंग्लॅण्ड पर इक्कीस साल बाद हासिल जीत पर दिए जाने वाले इनाम की ही बात कर रहे है।इस बार तो वाकई इंडिया ने चक दे इंडिया जैसा कमाल कर ही दिया है। और जब टीम ने मैच जीता है तो यक़ीनन वो इनाम की हकदार भी है।बी.सी.सी.आई.की तो बांछे खिल गयी है। इस जीत ने ये भी दर्शा दिया की अगर टीम इंडिया का कोई कोच नही है तब भी हल्पाते हुए (हमे तो यही शब्द याद आ रहा है) भी यानी की लुढ़कते-पुढकते भी जीत हासिल कर सकते है, तो भाई हम कोई टीम इंडिया की बुराई थोड़े ही कर रहे है। क्या कहा आपको हमारा ये लुढ़कते-पुढकते कहना बिल्कुल भी अच्छा नही लगा । तो भाई ये टीम इंडिया भी ना एक पारी मे तो ६०० रन बनाती है तो दूसरी पारी मे धड़धदा कर आउट हो जाती है।अच्छा खासा जीता हुआ मैच ड्रा हो गया वरना १-० की जगह २-० की जीत होती।इससे ये भी लगता है की शायद बिना कोच के टीम ज्यादा ही अच्छा खेल सकती है। वैसे पहले भी तो बिना कोच के ही खेलती थी। तो भला अब क्यों नही खेल सकती है। और उन सारी बातों को गलत सिद्ध करती है कि बिना कोच के टीम इंडिया का कोई भविष्य नही है। चक दे इंडिया फिल्म के बाद तो

ट्विंकल -ट्विंकल ...(विडियो देखें)

आज स्वतंत्रता दिवस की साठवीं वर्षगांठ पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!! इन दो गीतों के विडियो देखे जो आज के समय की भी हक़ीकत है। आशा करते है कि आप लोगों को ये पसंद आएगा।

स्वतन्त्रता दिवस यानी आजादी

स्वतंत्रता = आजादी(फ्रीडम) दिवस = दिन स्वतंत्रता दिवस अर्थात आजादी का दिन । इन दो शब्दों के महत्त्व को हर कोई जानता है और समझता है। पर हरेक के लिए आजादी का अर्थ शायद अलग -अलग हो सकता है। पर यहां हम कोई और नही अपने देश की आजादी की ही बात कर रहे है। कल देश को आजाद हुए पूरे साठ साल हो जायेंगे। पर इन पिछले साठ सालों मे देश ने कहीं विकास किया है तो कहीं पहले की तरह ही पिछड़ा हुआ है।पिछले साठ सालों मे बहुत कुछ बदला है और आजादी का अर्थ भी अब कुछ बदलता सा लग रहा है। जब हम लोग छोटे थे तो स्वतंत्रता दिवस का मतलब होता था स्कूल मे पन्द्रह अगस्त को ध्वजारोहन ,परेड,देशभक्ति के गीत ,कई बार खेल प्रतियोगिताएं भी होती थी। और इस सब तैयारी के लिए सारा स्कूल जुटा रहता था। जहाँ देखो बस हर तरफ लोग प्रैक्टिस करते ही नजर आते थे ,पी.टी.टीचर खुले मैदान मे बच्चों को अभ्यास कराते तो music टीचर बच्चों को गाने की प्रैक्टिस कराती तो किसी और क्लास रूम मे टीचर डान्स की प्रैक्टिस कराती होती थी। कुछ बच्चे फैंसी ड्रेस की तैयारी करते थे। हर किसी को १५ अगस्त की सुबह का इन्तजार रहता और हर कोई समय से पहले ही (वो बच्चे भी जो द

दिगलीपुर मे रॉस एंड स्मिथ

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रॉस एंड स्मिथ किन्ही दो लोगों के नाम नही है बल्कि अंडमान के उत्तर के आख़िरी कोने मे बसे दिगलीपुर के दो बहुत ही छोटे खूबसूरत और नायाब से द्वीपों के नाम है । दिगलीपुर को अंडमान का आख़िरी कोना इसलिये कहा है क्यूंकि इसके आगे सड़क ख़त्म हो जाती है और दूर तक अपार समुन्द्र ही दिखता है।रॉस एंड स्मिथ के बारे मे लिखने से पहले कुछ बातें दिगलीपुर की भी बता दे। दिगलीपुर पोर्ट ब्लेयर से अगर सड़क के रास्ते जाएँ तो २९० कि.मी.की दूरी पर है। पर अगर समुन्द्र के रास्ते जाएँ तो १८० या १९० की.मी. की दूरी पर है। चाहे किसी भी रास्ते जाएँ यहां पहुँचने मे समय बहुत लगता है। सड़क के रास्ते जाने मे करीब १४-से १५ घंटे लगते है। वैसे हम तो हमेशा ही कार से गए है क्यूंकि एक तो हमे sea sickness होती है और दूसरे ड्राइविंग का यहां अपना ही मजा है ।ये रास्ता अच्छा और बुरा दोनों है। अच्छा इसलिये क्यूंकि यहां के ऊँचे-नीचे रास्ते,जंगल और जंगल मे विभिन्न प्रकार की चिड़ियों की आवाजें और चारों ओर फैली हरियाली दूर-दूर तक खाली सड़क बस बीच-बीच मे अंडमान ट्रांसपोर्ट की बसें और प्राइवेट बसें दिखती है अरे कहने का मतलब ह

महँगाई के बदलते तेवर

पहले जब हम लोग छोटे थे और जब कभी पापा मम्मी या बाबूजी को हम लोग ये कहते सुनते थे की अरे आजकल महँगाई बहुत बढ गयी है। हम लोगों के ज़माने मे तो बहुत सस्ता था । तो ये सुनकर कुछ समझ नही आता था की भला इतना भी क्या महंगा और सस्ता हो गया । तो कई बार हम लोग उनसे पूछते थे कि आख़िर आप लोगों के समय मे हर चीज इतनी सस्ती कैसे थी तो बाबूजी कहते की जैसे उस ज़माने मे देसी घी बहुत सस्ता होता था शायद एक- दो रूपये किलो तो हम लोगों को विश्वास नही होता था कि घी और वो भी देसी घी भला इतना सस्ता कैसे हो सकता है।पर अब जब हम सोचते है तो लगता है कि वाकई हमारे देखते-देखते महँगाई के तेवर कितने बदले-बदले से है आज।पहले जिन बातों पर विश्वास नही होता था अब उन पर यकीन आने लगा है कि हाँ फलां साल (अस्सी और नब्बे के दशक )मे सब चीजे कितनी सस्ती होती थी। और अब कैसे हर चीज के दाम आसमान छूने लगे है।। बाबूजी तो अक्सर कहते थे कि तुम लोग तो नकली देसी घी खा कर बडे हो रहे हो हम लोगों ने तो खालिस देसी घी ही खाया है।वैसे पहले तो घरों मे सब्जी या मीट देसी घी मे ही बनाया जाता था । आज की तरह refind oil मे नही। पर कमाल की बात

गोवा के समुद्र ( beach )कितने सुरक्षित ?

आम तौर पर गोवा अपने सुन्दर beaches के लिए जाना जाता है । गोवा मे इतने ज्यादा बीच है कि जिसका कोई हिसाब ही नही है।पर कुछ बीच जैसे कलेंग्गुत , कोल्वा , मीरामार , बागा , अन्जुना , वेगातोर तो हमेशा पर्यटकों या गोवा के रहने वालों से हमेशा भरे रहते है तो कुछ जैसे आरम्बोल , मोर्जिम , बोग्मोलो , पालोलिम और अनेकों ऐसे बीच भी है जहाँ लोग कम जाते है पर विदेशी पर्यटक आम तौर पर कम भीड़-भाड़ वाले बीच पर ज्यादा जाते है । यूं तो जब भी कोई समुद्र किनारे जाता है तो उसका मन पानी मे जाने का हो ही जाता है । कुछ तो इसलिये कि भाई अगर समुद्र मे नहाया ही नही तो फिर ऐसी जगह आने का क्या फायदा और दूसरे कई बार लोग शर्मा शर्मी मे भी पानी मे जाते है कि कहीँ वहां मौजूद लोग उन्हें डरपोंक ना समझ ले। पर कुछ लोग जैसे कि जवान बच्चे और लड़के-लडकियां तो पानी मे ना जाएँ ऐसा भला कैसे हो सकता है। ठीक भी है आख़िर समुन्द्र हर जगह तो है नही। पर कई बार यही समुन्द्र कितना जानलेवा हो सकता है इसका किसी को भी अंदाजा नही होता है। सारी दुनिया मे गोवा के बीच फ़्रेंडली बीच के तौर पर जाने जाते है और ये भी माना जाता है कि वह

एक पोस्ट दोस्तो के नाम

आज ही सुबह जब हम अनुगूंज के लिए अपनी पोस्ट लीजिये हम भी हाजिर है लिख रहे थे तभी फ़ोन की घंटी की घन घना कर बजी।फ़ोन उठाया तो हमारी दोस्त मिसेज दास ने बड़ी ही गर्मजोशी से हैप्पी फ्रेंडशिप डे की शुभकामनायें दी ।अभी फ़ोन रख कर फिर लिखना शुरू ही कर रहे थे कि शीला जी का फ़ोन आ गया और उनसे भी ख़ूब बातें हुई (और इसी चक्कर मे पोस्ट आधे शीर्षक के साथ ही पोस्ट हो गयी।) तो बहुत सारी पुरानी बातें याद आ गयी । वे बातें जब हम दिल्ली मे काम करते थे । और जिस ऑफिस मे हम काम करते थे वहीं मिसेज दास और शीला जी हमसे कई साल पहले से काम कर रही थी। और उन दोनो मे दोस्ती भी बहुत अच्छी थी। यहां हम एक बात और बता दे हमारी मिसेज दास और शीला जी दोनो यूं तो हमसे उम्र मे बड़ी है पर हम तीनो के बीच उम्र कभी भी आड़े नही आयी। वो कहते है ना की दोस्ती मे उम्र नही दिल देखे जाते है । शुरू मे थोडा समय लगा हम तीनो को एक-दूसरे को समझने मे पर जब दोस्ती हो गयी तब तो हम तीनो अपने ऑफिस मे गंगा (मिसेज दास)यमुना(शीला जी)और सरस्वती (हम)के नाम से मशहूर हो गए थे।चलिये आपको इन नामों का राज भी बता देते है वो क्य

लीजिये हम भी हाजिर है अपनी अनुगूंज के साथ

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अगर हिंदुस्तान अमेरिका हो जाये तो क्या होगा वही होगा जो मंजूर खुदा होगा । हम तो लिखने की थे सोच रहे पर शब्द नही थे मिल रहे क्यूंकि अगर हिंदुस्तान अमेरिका होगा तब तो निश्चित ही बंटाधार होगा। हर रोज देखते थे कोई ना कोई लिख रहा है फिर भला हम क्यूँ ना लिखे इसी उधेड़बुन मे निकल गए ये चार दिन फिर सोचा कि जब ओखली मे सिर दिया तो मूसल से क्या डरना तो आज हमने भी है लिखने की ठानी अब रही बात पांच बातों की तो चलिये इसी बहाने हम भी कह देते है अपने मन की कि अगर हिंदुस्तान अमेरिका बन जाये तो कैसा होगा। पहला हर तरफ ऊँची-ऊँची इमारतें होंगी दूसरा तब शायद कोई गरीब नही होगा तीसरा कपड़ों का खर्चा कम हो जाएगा चौथा रिश्तों का मशीनीकरण होगा पांचवां ब्लॉगिंग का अस्तित्त्व बना रहेगा तो कहिये कैसा लगा हमारा अमरीकी भारत

पानी रे पानी

आखिर कार दिल्ली वालों को उमस भरी गरमी से छुटकारा मिल ही गया। कल दोपहर से दिल्ली मे जो काले बादल छाए तो इस बार बरस भी गए वरना इससे पहले तो दिल्ली का हाल बिल्कुल लगान फिल्म के जैसा ही हो गया था बस बादल आते थे और बिना बरसे ही चले जाते थे। और लोग बस बादल को देखते ही रह जाते। हाँ इक्का दुक्का बार बारिश हुई भी है। अब दिल्ली क्या पूरे देश की ही ऐसी हालत है कि बारिश हो तो मुसीबत और ना हो तो भी मुसीबत। जब तक बारिश नही होती है हर एक की जुबान पर बारिश बारिश रहता है और लोगों को ये कहते सुना जा सकता है उफ़ कितनी गरमी है पता नही कब बरसात शुरू होगी वगैरा-वगैरा. और जरा बारिश हुई नही कि हरेक की जुबान पर सरकार और प्रशासन का नाम शुरू हो जाता है। कोई भी प्रदेश हो चाहे महाराष्ट्र हो या चाहे उत्तर प्रदेश या बिहार हो या राजस्थान या गुजरात ही क्यों ना हो हर जगह बारिश होते ही पानी-पानी ही सुनाई पड़ने लगता है। बारिश के साथ बाढ़ का बिल्कुल चोली-दामन का साथ है। और ये साथ आज से नही हमेशा से रहा है। हमे याद है जब हम लोग इलाहाबाद मे रहते थे तो हर दूसरे साल बारिश के बाद बाढ़ आ जाती थी और पूरा दारागंज,बघाडा,

कैमरे पर पिटाई

अब अस्सी का दशक तो है नही कि हर किसी को न्यूज़ के लिए सिर्फ दूरदर्शन का ही सहारा हो। जब इतने सारे न्यूज़ चैनल हो जिसमे देसी और विदेशी चैनल हो तो भला न्यूज़ की कमी क्यों होगी। हर चैनल बिल्कुल ही एक्सक्लूसिव न्यूज़ दिखाता है। और अगर देश मे कोई बड़ी घटना हो जाये तो जाहिर सी बात है कि उस घटना को सारे न्यूज़ चैनल दिखायेंगे । यहां तक तो ठीक पर फिर हर न्यूज़ चैनल ये कहता नजर आने लगता है कि ये खबर सबसे पहले उसी का चैनल दिखा रहा है। आजकल न्यूज़ मे एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है कि अगर किसी को किसी की वो चाहे आदमी हो या औरत पिटाई करनी होती है तो वो पूरे दल बल मतलब मीडिया वालों को साथ लेकर पहुँचते है।और मीडिया का भी ये हल है की हर जगह चली जाती है। मीडिया का काम सच को सच की तरह दिखाने का होना चाहिऐ ना की सच को तोड़-मरोड़ कर दिखाना। शायद आप लोगों को याद हो कुछ दिन पहले इन्दौर मे लोगों ने एक चोर को पकडा था और उसे पेड़ से बांधकर पीटा जा रहा था। ठीक है चोर है तो पिटाई तो होगी ही पर जिस तरह कैमरा के सामने आते ही लोग लात-घूँसे चलाने लगते थे वो क्या सही है। ऐसे ही एक बार एक औरत की पिटाई भी दिखाई थी जिसमे प