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Daryaganj in aerocity

Daryaganj in aerocity पढ़कर चौंकिए मत ।  दरअसल में daryaganj एक रेस्टोरेंट का नाम है जो कि एयरोसिटी में है ।  यूं तो एक दो बार हम लोगों ने वहां से खाना मंगाया है ( home delivery ) और चूंकि हम लोगों को वहां का खाना बहुत पसंद आया था तो सोचा कि इस बार अपनी शादी की वर्षगांठ के मौके पर वहीं खाना खाने जाया जाए। बस फिर क्या था पिछले हफ्ते यानी कि बाईस अक्टूबर को प्लान के मुताबिक     अपनी शादी की वर्षगांठ पर हम सपरिवार दरियागंज पहुंच गए। Aerocity का भी नाम तो बहुत सुन रक्खा था पर कभी जाने का मौका ही नही मिला था । एयरोसिटी के world mark में Daryaganj रेस्टोरेंट है ।  वैसे इसकी entry थोड़ी confusing सी लगी । जैसे ही अंदर जाते है तो थोड़ी अंधियारी सी गैलरी( मतलब बहुत dim light) पड़ती है और bar और pub दिखते है। वहां से जैसे ही थोड़ा और अंदर जाते है तो food court नज़र आता है  और वहीं daryaganj रेस्टोरेंट भी दिखाई देता है । अंदर से daryaganj को पुरानी नायाब फोटो और चीजों से सजाया हुआ है । Seating area अच्छा है । बस सर्विस थोड़ी ढीली थी ।  हम लोगों ने अपनी पसंद के statrter और ड्रिंक्स और खाना ऑर्डर क

भईया बिना राखी

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सपने में क्या कभी ऐसा ख्याल भी नहीं आया था कि राखी पर भइया हम लोगों के साथ नहीं होंगें ।   जब से होश संभाला है हमेशा भइया की कलाई पर राखी बांधते आये है । बचपन से हर राखी पर भइया हम सभी बहनों को कोई ना कोई सरप्राइज़ देते ही रहते थे । कभी राखी के दिन हम सबको राखी बाँधने के लिये इंतज़ार करवाना,  तो कभी गिफ़्ट देने में तंग करना । और हमारा हर रक्षा बंधन पर रोना (शगुनुआ के तौर पर ) । कभी गिफ्ट के लिए तो कभी रक्षा बंधन का गाना  गाते हुए । पिछले साल २०२० में कोरोना की वजह से राखी पर हम सब भाई बहन मिल नहीं पाये थे पर वीडियो कॉल के ज़रिये हम सभी ने राखी मनाई थी ।    पर  क्या पता था कि ये हम बहनों की भईया के साथ में आख़िरी राखी है । जहां पहले हर राखी हम सब बहनें अपने अपने पसंदीदा रक्षाबंधन के गाने गाते थे  भईया मेरे राखी के बंधन को निभाना बहनों ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है मेरे भईया मेरे चंदा मेरे अनमोल रत्न ये राखी बंधन है ऐसा  आज भी हम बहनें तो एक साथ इकट्ठा हुए है पर तुम हम लोगों के साथ नहीं हो ।   आज इस रक्षा बंधन के दिन तो बस यही गाना मन में बार बार आ रहा है

बधाई अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज सुबह से लगातार वहाटसऐप पर ढेरों मीम और मैसेज आ रहें है । हमें क्या आप सबको भी भर भर कर वीमेंस डे के संदेश आ रहे होंगें । कुछ तो ऐसे कि पढ़कर हँसी आ जाये तो वहीं कुछ नारी शक्ति को दर्शाने वाले तो कुछ नारी विशेष को दर्शाने वाले । वैसे कोरोना और लॉकडाउन के दौरान नारी शक्ति का हर रूप हम सबमें बख़ूबी दिखाई दिया था । ना कोई काम रूका और ना ही कोई काम कम हुआ था । बल्कि काम चौगुना हो गया था । पर मजाल है जो कोई गिला शिकवा किया हो । बल्कि उस लॉकडाउन के समय तो हम सभी की विलक्षण प्रतिभा ही उभर कर सामने आई थी । और ऐसा उभरी कि लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद भी बरकरार है । 😁 तो चलिये अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस की हम सभी को बहुत बहुत बधाई ।

टेस्ट मैच देखा क्या 😊

क्रिकेट तो हमेशा से हम हिन्दुस्तानियों के दिल और दिमाग़ में बसता है । फिर वो चाहे साठ सत्तर वाला दशक रहा हो या अस्सी नब्बे का दशक रहा हो या अभी हाल का समय रहा हो । अब पुराने ज़माने में तो सिर्फ़ टेस्ट मैच ही होते थे पर तब भी कमेण्ट्री सुनने के लिये सबके मन में पूरा जोश रहता था । और उन दिनों हर आदमी कान में रेडियो लगाये नज़र आता था । और क्रिकेट कमेंट्रटर ( सुशील दोशी ,जसवंत सिंह ) जिस तरह हर बॉल के साथ दौड़ते हुये कमेंट्री करते थे वो भी लाजवाब होता था । जिसने सुना होगा उसे याद होगा कि वो किस तरह बोलते थे कि गावस्कर ने गेंद को बाउंड्री की तरफ़ मारा और गेंद बाउंड्री की तरफ़ जा रही है खिलाड़ी गेंद को पकड़ने के लिये दौड़ रहें है और ये गेंद बाउंड्री के पार चार रन के लिये । 🤓 बचपन में हमारे बाबा जाड़े में धूप में ( तब सिर्फ़ जाड़े में ही क्रिकेट होता था ) बैठकर क्रिकेट कमेंट्री सुना करते थे । जब भी इंडिया का कोई क्रिकेट टेस्ट मैच होता था तो बाबा पूरे दिन कान में टरांजिसटर लगाकर सुनते रहते थे और जब भी कोई चौका लगता या कोई आउट होता था तो खूब ज़ोर से चिल्लाते थे ये मारा चौका या क्

हमारे वैक्सीन लगवाने का ऐतिहासिक दिन

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सीनियर सिटीजन होने का आज पहली बार मजा मिला ।😀 अब यूं तो हम पिछले साल ही सठिया गए थे पर corona के चलते सठियाने का कुछ ज्यादा लुत्फ़ नही उठा पाए थे । और हमारे सारे plan धरे के धरे रह गए थे । वैसे पिछले साल जब हम अपना सठियाने वाला जन्मदिन मनाने उदयपुर गए थे और वहां एक जगह टिकट लेने पर जब काउंटर वाले ने बेटे से पूछा की कोई सीनियर सिटीजन है तो छोटे बेटे ने कहा कि नहीं ।   तो जब उसने हम लोगों को ये बताया तो बड़ा बेटा हंसते हुए बोला कि अरे हम लोग तो यही सेलिब्रेट करने (60 yrs )आए है ।  खैर उस समय तो नही पर आज सठियाने का फायदा हुआ । अरे भाई covid की vaccine जो आज यानि पहली मार्च दो हजार इक्कीस (1.3.2021) से साठ साल के ऊपर वालों को लगनी शुरू हुई तो जैसे एक ज़माने में हम पिक्चर का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखते थे वैसे ही आज हमने vaccine का फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखा ।😁 मतलब COVISHIELD Vaccine लगवा ली । वैसे तो आप सभी जानते है कि vaccine लगवाने के लिए सबसे पहले co win की एप या वेबसाइट पर जा कर रजिस्ट्रेशन करना होता है ।  तो सुबह जब वेबसाइट पर जाकर रजिस्टर करना शुरू किया तो जब भी रजिस्टर करते तो उसमें

भूकम्प और हम 😁

कल रात में दिल्ली सहित कई जगहों पर भूकम्प आया था । और काफ़ी अच्छा ख़ासा भूकम्प था । और इसका एहसास हम लोगों को भी हुआ था । हम लोग ड्राइंग रूम में थे और मूबी पर फ़िल्म देख रहे थे कि अचानक लगा मानो किसी ने सोफ़े को हल्का सा धक्का दे दिया हो । और ऐसा महसूस होते ही हम बड़ी ज़ोर स चिल्लाये कि अरे भूकम्प । पतिदेव बोले कि क्या भूकम्प आया है । तो हमने कहा हाँ , देखो पंखा और लैम्प शेड हिल रहें है । और ऐसा कहते हुये हमने वीडियो बनाना शुरू कर दिया । 🤓 फिर हमने मेन डोर खोला पर तब एक दो मिनट के लिये लगा कि सब कुछ रूक गया है पर तभी एक बार फिर से ज़मीन हल्की सी हिलती हुई महसूस हुई तब तक बडा बेटा भी कमरे से बोलता हुआ आया कि अभी भी भूकम्प है । तो हमने हाँ कहते हुये छोटे को आवाज़ लगाई । क्यों कि वो फोन पर बात कर रहा था । और एक बार फिर से लैम्प शेड वग़ैरा हल्के हल्के से झूमने लगे थे । और हम दोबारा वीडियो बनाने लग गये । तो पतिदेव बोले क्या तुम हर समय वीडियो बनाने लगती हो । अब हम भी क्या करें । डर को भगाने के लिये कुछ तो करना होगा ना । 😳 अब आप भी कहेंगें कि भूकम्प में डर कर वीडियो बनाने

टैक्नॉलजी का ऐसा कमाल

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कल हमारे भइया ने इलाहाबाद की एक फोटो शेयर की जिसे देखकर हम आश्चर्य में आ गये । कि अरे क्या ऐसा भी हो सकता है । ये जो फोटो है , ये उस जगह की है जहाँ दो दिन पहले तक मंदिर हुआ करता था पर अब वहाँ मंदिर नहीं है । ऐसा सुना है कि वहाँ से मंदिर को कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया है क्योंकि वहाँ पर फ़्लाई ओवर बनना है । कुछ नहीं तो कम से कम पचास साल से ज़्यादा पुराना मंदिर तो रहा ही होगा । वो हम इसलिये कह रहें हैं क्यों कि जब हम नौ -दस साल के रहे होगें तब से इस मंदिर को देख रहें है । हमने हमेशा से इस पीपल के पेड़ की छांव में मंदिर देखा है और आते जाते भगवान के आगे नतमस्तक भी होते थे । और कैसे रातों रात में मंदिर को वहाँ से कहीं और शिफ़्ट कर दिया गया ये तो टैक्नॉलजी का ही कमाल होगा क्यों कि ना केवल पूरा का पूरा मंदिर बलकि वहाँ जो भी चारों ओर बनी दीवार ग्रिल वग़ैरा का मलबा रहा होगा वो भी पूरी तरह से साफ़ । आश्चर्य है कि वहां ना कोई गड्ढा ना ही उबड़ खाबड़ जमीन । और अब आलम ये है कि इस जगह को देखकर तो कहा ही नहीं जा सकता है कि वहाँ कभी मंदिर भी था ।

क्या कहता है ये विज्ञापन

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परसों पश्चिम विहार से लौटते हुए हमने एक बैटरी रिक्शा के पीछे ये विज्ञापन देखा और फोटो ले ली । और रास्ते भर हम इस विज्ञापन में लिखे हुए संदेश के बारे में सोचते रहे । और ये हमारी समझ से परे था । क्यूंकि अगर किसी का सोना गिरवी रक्खा  है तो वो कौन सा सोना बेचकर गिरवी रक्खा हुआ सोना छुड़ाएगा । और अगर किसी के पास इतना सोना है तो भला वो सोना गिरवी क्यूं रक्खेगा । हम थोड़ा कंफ्यूज हो गए है ।🙄 आप लोगों का क्या सोचना है इस विज्ञापन के बारे में ।

कभी भुनी हुई मूँगफली को धोकर खाया है

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आप भी सोच रहें होंगें कि भला भुनी हुई मूँगफली को कौन धोकर खाता है । हमने खाई है। 😁 दरअसल में क़िस्सा यूँ है कि अब आजकल तो कोरोना के चलते हर सामान वो चाहे फल सब्ज़ी हो या चाहे राशन , सभी चीज़ों को या तो सैनिटाइज किया जाता है या फिर पानी से धोया जाता है । तो हुआ यूँ कि हमने कुछ फल सब्ज़ियों के साथ जाड़े का मेवा यानि भुनी हुई मूँगफली भी मँगाई थी । और सब सामान बैग में ही था । जब हमारी पार्वती ( हैल्पर ) आई और बैग देखकर उसने पूछा दीदी सब फल सब्ज़ी धोकर रखना है । तो हमने हाँ कहा । और हम कुछ काम करने कमरे में चले गये । हालाँकि बीच में उसने हमें आवाज़ लगाई कि दीदी सब कुछ धोकर रखना है । तो हमने भी कमरे से ही बोला कि हाँ सब कुछ धोकर डलिया में रख दो । हम भूल गये थे कि फल और सब्ज़ियों में मूँगफली का पैकेट भी है । बस फिर क्या था पार्वती ने पैकेट फाड़ा और उस भुनी मूँगफली को पानी से धोकर डलिया में सब के साथ रख दिया । और अपना काम करके वो घर चली गई । बाद में जब हम अपना काम ख़त्म करके आये और मूँगफली खाने के लिये पैकेट ढूँढने लगे तो हम समझ नहीं पाये कि आख़िर मूँगफली का

नाम में क्या रक्खा है

आजकल नाम बदलने का रिवाज कुंछ बढ़ता सा लग रहा है । वैसे न्यूज़ पेपर के एक कॉलम में पढ़ने को मिलता है कि फ़लाँ ने अपना नाम बदल लिया है । या फ़लाँ ने अपना सरनेम बदल लिया है । वैसे कभी कभी दसवीं में भी लोग अपना नाम बदल लेते है और कभी कभी शादी के बाद लड़कियों का नाम बदल दिया जाता था ( और शायद है )जो कि किसी का भी निजी फ़ैसला हो सकता है । समय बदला और फिर सड़कों और शहरों के नाम बदले जाने लगे । चलो भाई ये भी ठीक है । पर लो अब तो फल का नाम भी बदलना शुरू हो रहा है । सुना तो होगा ना कि ड्रैगन फ़्रूट का नाम अब बदलकर कमलम कर दिया गया है । क्योंकि ये एक चाइनीज़ फल है और नाम भी । और क्या ड्रैगन नाम वाले रेस्टोरेंट का भी नाम बदला जायेगा मसलन गोल्डन ड्रैगन को क्या अब सुनहरा कमलम कहेंगें । 😁😁 और तो और तो हम ये सोच रहें है कि अब चीनी को चीनी ही कहें या इसके नये नामकरण का इंतज़ार करें । 😝

बायोमेट्रिक्स है तो क्या फ़िकर

अब इस कोरोना के चलते सीनियर सिटिज़न को बैंक या ऑफिसों में जाकर जीवन प्रमाण सर्टिफ़िकेट देना भी ख़तरे से ख़ाली नहीं है । क्योंकि कई बार सारी एहतियात बरतने के बाद भी लोग कोरोना से संक्रमित हो जाते है । हालाँकि अब तो कोरोना से लोग कम डरते है । पर दिसम्बर तक तो डरते ही थे । अक्टूबर से हमारे यहाँ भी पतिदेव को अपना ये सर्टिफ़िकेट देने के लिये मैसेज आता रहता था कि आप अपना जीवन प्रमाण सर्टिफ़िकेट जमा करा दीजिये । और नवम्बर बीतते बीतते तो घर में अकसर ही ये बात होती कि लाइव सर्टिफ़िकेट देने के लिये बैंक जाना है । कब और कैसे जायें । पर उन दिनों कोरोना का क़हर और डर और फिर बैंक सिर्फ़ इस सर्टिफ़िकेट के लिये जाना ,कोई बहुत अच्छा डिसिजन नहीं लग रहा था । जब भी मैसेज आता तो बैंक जाने के विचार पर घर में बात होती कि सर्टिफ़िकेट देना भी ज़रूरी है । हालाँकि उस समय दिसम्बर तक डेट बढ गई थी । फिर बेटे ने सर्च किया तो पता चला कि ये सर्टिफ़िकेट ऑनलाइन भी दिया जा सकता है । और इसके लिये ये ज़रूरी नहीं है कि आप ख़ुद पर्सनली बैंक या ऑफ़िस जाकर ही ये सर्टिफ़िकेट दीजिये । और इसके लिये सरकार द्वारा ब

मकर संक्रान्ति यानि खिचड़ी

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सबसे पहले तो सभी को मकर संक्रान्ति यानि खिचड़ी की हार्दिक शुभकामनायें । 🙏 ऊपर खिचड़ी पढ़कर कहीं आप कन्फ़्यूज तो नहीं हो गये । अरे वो क्या है ना कि आज के दिन यानि मकर संक्रान्ति के दिन हम लोगों के यहाँ छिलके वाली उरद दाल की खिचड़ी और तैहरी ही बनती है । इलाहाबाद में तो आज के दिन गंगा नहाने का भी बडा महत्त्व होता है । हम लोग भी पहले खिचड़ी पर संगम नहाने जाते थे । खिचड़ी यानि मकर संक्रान्ति के लिये पहले से तैयारी शुरू हो जाती है । जब हम छोटे थे तो हमें तैयारी से तो कोई मतलब नहीं होता था पर हाँ काले तिल के लडडू , सफ़ेद तिल की और मेवे की पट्टी खाने का बडा इंतज़ार रहता था । और ये सब बनने के बाद हम लोग घूम घूमकर बस खाते ही रहते थे । 😁 इलाहाबाद में क्या हम यहाँ भी आज के दिन सबसे पहले नहाकर सिद्धा छूना और दान करना जिसमें छिलके वाली उरद दाल ,चावल , आलू,नमक, काले तिल का लडडू और पैसा और फिर सबसे पहले काले तिल का लडडू खाना । उसके बाद ही कुछ और खाना । खैर अब तो हमको ही ये सब बनाना और करना पड़ता है । पर अगर त्योहार में नहीं बनायेंगें तो भला कब बनायेंगे । 😋