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Showing posts from November, 2018

प्रदूषण और हम लोग

यूँ तो ये ही कहा जाता है कि दिल्ली में बहुत प्रदूषण है पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ दिल्ली में ही प्रदूषण है । क्या दिल्ली क्या लखनऊ क्या कोलकाता हर शहर में ही प्रदूषण बहुत ज़्यादा है । पहले तो हम बस टी.वी. पर ही प्रदूषण का स्तर देखते थे जिसमें दिल्ली, नोएडा और गुरूग्राम का ही प्रदूषण स्तर दिखाते थे । पहले तो पी. एम. लेवल क्या होता है ज़्यादा पता ही नहीं था । पर अभी हाल में जब से प्रदूषण की ऐप फोन पर लगाई है तब पता चला कि ना केवल दिल्ली बल्कि भारत के कई राज्य प्रदूषण की चपेट में है । पूरे जाड़े दिल्ली और आसपास के इलाक़ों का यही हाल रहता है । पहले तो कोहरा छाया करता था पर अब तो कोहरे की जगह स्मॉग ने ले ली है । कोहरा तो फिर भी छँट जाता था पर ये स्मॉग छँटता है तब भी ख़तरनाक ही रहता है । आजकल तो ये हाल हो गया है कि ना सुबह और ना ही शाम का समय वॉक के लिये ठीक समझा जा रहा है क्योंकि प्रदूषण इस समय सबसे ज़्यादा होता है । और हर कोई यही सलाह भी देता है कि प्रदूषण में वॉक नहीं करनी चाहिये । अभी दो दिन पहले अखबार में ख़बर छपी थी कि पिछले साल प्रदूषण की वजह से बहुत लोग बीमार हो गये थे । अब भला ऐ

बचपन के दिन भी क्या दिन थे

जी हाँ बचपन के दिन भी क्या दिन थे । वैसे जब हम छोटे थे तो हमेशा जल्दी से बडे होने की चाह थी और अब जब हम बडे ही नहीं काफ़ी बडे हो गये है तो बचपन के दिन याद करते है । वो सब छोटी छोटी चीज़ें या काम करके अब जितनी ख़ुशी होती है वो शायद बचपन में उतनी ही अखरती भी थी । वैसे एक बात बताना चाहेंगें कि जब से हम लोगों का स्कूल का वहाटसऐप ग्रुप बना है तब से ये सब शैतानियाँ हम लोगों को करने में बड़ा मजा आता है । अभी बीते शनिवार को हमारे स्कूल के वहाटसऐप ग्रुप पर एक सहेली ने अपनी पुरानी फ़ोटो शेयर की जिसमें उसने दो चुटिया बनाई हुई थी बस उसकी फ़ोटो देखकर सबने सोचा कि क्यूँ ना एक बार फिर से वो दो चोटी का समय फिर से जिया जाये क्योंकि अब हम सब दो चोटी बनाना छोड़ चुके है । 😜 अरे भाई कुछ तो बाल कम और पतले हो गये है , कुछ बाल छोटे रखने लगे है और अब तो ज़्यादातर या तो बाल खुले रखते है या एक पानी टेल बना लेते है । 😛 तो ये तय हुआ कि चूँकि अगले दिन रविवार है तो सब लोग दो चोटी बनाकर अपनी अपनी फ़ोटो लगायेंगें । बस फिर क्या था पूरे स्कूल ग्रुप की लड़कियों ने दो चोटी बना बना कर फ़ोटो लगाना शुरू की । एक स

ग्रीस यात्रा विवरण ( ऐक्रोपोलिस )

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ऐक्रोपोलिस ग्रीस की सबसे मशहूर जगह है एक तो ऐतिहासिक और दूसरे ऐथेंस की पहचान की वजह से । ऐक्रोपोलिस पच्चीस सौ साल से पुराने क़िले के अवशेष है । और ये भी कह सकते है कि अगर ऐथेंस में ऐक्रोपोलिस नहीं देखा तो कुछ नहीं देखा । इसकी एक और विशेषता है कि चूँकि ये एक पहाड़ी पर बना है तो तकरीबन ऐथेंस की हर गली और सड़क से दिखाई देता है । ऐक्रोपोलिस के भवनों के संरक्षण के लिये १९७५ से कार्य हो रहा है । और अभी भी चल रहा है । ताकि उन्हें उनके मूलरूप में फिर से निर्मित किया जा सके । और इसके लिये टैटेनियम का इस्तेमाल किया जा रहा है जो कि प्रकृति की मार को झेल सकने में समर्थ होता है । खैर हम लोग ऐक्रोपोलिस देखने पहुँचे जिसका बीस यूरो का टिकट था । चूँकि ऐक्रोपोलिस पहाड़ की चोटी पर बना है और इसकी ऊँचाई तकरीबन डेढ़ सौ मीटर है तो ज़ाहिर सी बात है कि चढाई भी थी । और ऐतिहासिक फ़ील या अनुभव के लिये उसका रास्ता थोड़ा पथरीला सा था । तो हम लोगों ने भी ऐक्रोपोलिस के लिये चलना शुरू किया । वैसे चढ़ने का रास्ता ज़रूर पथरीला था पर उतरने का रास्ता पक्का और बढ़िया था । बीच बीच में कुछ सीढ़ियाँ भी पड़ती थी और

ग्रीस यात्रा विवरण ( ऐथेंस )

इस साल अक्तूबर में हम दस दिन के लिये ग्रीस घूमने गये थे । यूँ तो हमें इस यात्रा का विवरण पहले ही लिखना था पर कुछ थकान और फिर दीपावली के कारण लिख नहीं पाये थे । ग्रीस घूमने जाने का प्रोग्राम यूँ ही नहीं बन गया था । दरअसल ऐमैजोन स्टिक से टी.वी. पर जब भी कुछ ना देख रहे हों तो दुनिया के बहुत सारे शहरों की फ़ोटो डिसप्ले होती रहती है और उसी में ग्रीस की विंडमिल वग़ैरा दिखती थी तो बस तय हुआ कि अबकी बार ग्रीस ही चला जाये । 😋 पन्द्रह अक्तूबर को हम लोगों ने सुबह पाँच बजे की पलाइट से एथेंस ( ग्रीस ) के लिये अपनी यात्रा शुरू की । चूँकि डायरेक्ट पलाइट नहीं है ऐथेंस के लिये तो हम लोग आबू धाबी होते हुये दोपहर तीन बजे वहाँ के टाइम से ऐथेंस पहुँचे । हम चले तो अपने इंडियन समय से पर पहुँचे यूरोपियन टाइम से । एयरपोर्ट से बाहर निकल कर टैक्सी से अपने होटल पाइथागोरियन पहुँचे और चूँकि पलाइट लम्बी थी और हम पलाइट में ज़्यादा सोते नहीं है बल्कि पलाइट मैप देखते रहते है तो इस वजह से थोड़े थक से गये थे । इसलिये चाय वग़ैरा पीकर पहले थोड़ा आराम करके सोचा गया कि शाम को ऐथेंस शहर को घूमकर देखा जाये । ऐथेंस की

आई दीपावली

दीपावली या दिवाली का त्योहार मतलब रोशनी ,पटाखे , मिठाई और धूम कर सफ़ाई अभियान यानी अलमारियों से लेकर परदे तक ,घरों की रंग रोगन , घर का एक एक कोना साफ़ किया जाता है लक्ष्मी जी के आगमन के लिये । अब ऐसा भी नहीं है कि लोग दिवाली के अलावा अपने घर और अलमारियाँ वग़ैरा साफ़ नहीं करते है । पर दिवाली की सफ़ाई कुछ ख़ास ही होती है । यूँ तो दशहरे के बाद से ही दिवाली का इंतज़ार शुरू हो जाता है । दिवाली का त्योहार धनतेरस , छोटी दिवाली ,दिवाली, गोवर्धन पूजा या परिवा और भाई दूज या क़लम दावत की पूजा से ख़त्म होता है । उत्तर भारत में भगवान राम के वनवास से वापस आने की ख़ुशी में दिवाली मनाई जाती है तो वहीं दक्षिण भारत और गोवा में कृष्ण की पूजा करते है । वहाँ नरकासुर वध की ख़ुशी में दिवाली मनाई जाती है । गोवा में तो खूब बडे बडे नरकासुर के पुतले बनाये जाते थे और उन्हें जलाया जाता है बिलकुल रावन दहन की तरह । धनतेरस के दिन ख़रीदारी करना तो अनिवार्य सा होता है । स्टील के बर्तन पीतल के बर्तन और सोना ख़रीदने वालों की तो जैसे बाज़ार में बाढ़ सी आ जाती है । धनतेरस की रात में पूजा भी की जाती है ताकि घर में धन-ध