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Showing posts from May, 2007

फिसड्डी से नंबर वन

आजकल हम इलाहाबाद आये हुए है अपने मायके पापा के पास। और हां आप लोग बिल्कुल भी confuse मत होइये कि हम इलाहाबाद कैसे पहुंच गए दिल्ली से एक हफ्ते के लिए हम यहाँ पापा और भैया के पास आये हुए है और ये पोस्ट हम इलाहाबाद से ही लिख रहे है । हमारे पापा भी हमारी तरह ही बहुत ज्यादा कंप्यूटर सेवी नही है इसलिये उन्होने हमारे ब्लोग को पढा ही नही था तो कल सुबह हमने उन्हें अपना ब्लोग पढ़ाया और उन्हें पढ़कर अच्छा भी लगा और ये जो टाइटिल आप ने ऊपर पढा है वो उन्ही का दिया हुआ है। तो अब इस के पीछे की कहानी भी बता देते है। दरअसल हम जब स्कूल मे पढ़ते थे तो हम पढने के सिवा हर काम करते थे वो चाहे बाटिक पेंटिंग सीखना हो या चाहे badminton खेलना हो या कुछ और कहने का मतलब पढाई से तो कोसों दूर रहते थे जिसकी वजह से सभी को लगता था कि अबकी तो ममता गयी पर हम पर हर बार भगवान् कुछ कृपा कर देते थे और हम पास भी हो जाते थे। और जब हम दसवी मे थे उस समय हमारे सिवा घर मे सभी को टेंशन था की हम पास होंगे या नही और सबसे बड़ी गड़बड़ ये थी की उन्ही दिनों हमारे मामाजी के बेटे की शादी पड़

मैं चोर हूँ.

ये कोई पिक्चर का टाइटिल नही है और ना ही अमिताभ बच्चन की पिक्चर से लिया गया है , ये तो कल रात आज तक न्यूज़ चैनल पर एक खबर दिखाई गयी थी जो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले की थी जिसमे दो दस और बारह साल के बच्चों के पेट पर मैं चोर हूँ लिखा गया और उनके कपडे उतार कर सड़कों पर घुमाया जा रहा था । पर उन बच्चों को किसी ने भी बचाने की कोशिश नही की । हां कुछ लोग और शायद रिपोर्टर्स उन बच्चों की फोटो खीचते हुए दिख रहे थे पर क्या सिर्फ फोटो खींच कर अखबार या टी . वी . पर दिखाना ही उनका मकसद होता है ? क्या वो लोग उन बच्चों को इस तरह घुमाये जाने से रोक नही सकते थे ? कोई बी . एस . पी . के कोर्पोरेटर को दिखाया गया था ताम्बे के तार चोरी करने की ये सजा उन दो बच्चों को दी गयी थी । जैसा की न्यूज़ मे दिखाया गया की पहले उन बच्चों को करंट लगाया गया और फिर उनके कपडे उतार कर उनके पेट पर मैं चोर हूँ ये लिख दिया गया और फिर उतनी तपती धूप

टेस्टिंग,टेस्टिंग

ये टेस्टिंग पोस्ट है।

रैली दे गोवा

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जैसा की सभी जानते है की गोवा एक बहुत ही अच्छी जगह है और वहां हमेशा कुछ ना कुछ होता ही रहता है। ऐसा नही है की बाक़ी जगहों पर कुछ नही होता पर जैसे जब हम दिल्ली मे थे तो दूरी की वजह से कई बार हम लोग इवेंट देखने नही जा पाते थे पर गोवा चुंकि छोटी जगह है और दूरियां ज्यादा नही है इसलिये आसानी होती है कहीं भी आने-जाने मे। अब दिल्ली मे भी विंटेज कार रैली होती थी पर हर बार जाना संभव नही होता था। शायद एक बार देखा है । रैली की शुरुआत मे पुलिस बैंड हमारे लिए तो ये पहला अनुभव था किसी भी कार रैली को देखने का । इससे पहले तो सिर्फ टी.वी.मे ही कार रैली देखी थी। पर सामने देखने का रोमांच ही कुछ और होता है। वैसे ये कार रैली november २००६ मे हुई थी जहाँ पर भारत के हर प्रांत के लोग इस कार रैली मे हिस्सा लेने आये थे।इस रैली का फ्लैग ऑफ़ गोवा के मुख्य सचिव न किया था और इसमे करीब ४०-५० गाडियां जैसे मारुति एस्टीम,मारुति जिप्सी, फोर्ड फिएस्ता , मित्सुबुशी लान्सर आदि गाडियां थी। सभी गाड़ियों अलग-अलग रंगों मे थी कोई एम . आर . एफ . के लाल रंग मे तो कोई जे . के . टायर के पीले र

डी एडिक्शन कैंप

अपडेट : हम माफ़ी चाहते है कि हमने पोस्ट लिखते हुए year नही लिखा था । दर असल हम अंडमान मे २००३ से २००६ तक रहे थे । अंडमान मे रहते हुए भी हमे वही समस्या आयी की जब पतिदेव और बेटा स्कूल चले जाते थे तो हम क्या करें। और इसी लिए हमने वहां पता करना शुरू किया की हम किस तरह का जॉब ले सकते है क्यूंकि हम पार्ट टाइम् जॉब करना ही पसंद करते है। अब चाहे इसे हमारा आलसी पन कहिये या चाहे कुछ और। १५ अगस्त २००३ को वहां पर शाम को एल.जी अपने घर पर सबको चाय पर बुलाते है वही पर हमारी मुलाकात एक महिला से हुई जो की सोशल वर्क से जुडी थी और वही उनसे बात चीत मे पता चला की डी एडिक्शन कैंप शुरू हो रहा है और हम उसे ज्वाइन कर ले। पहले तो हमने सोचा कि हम ना करें क्यूंकि शराब पीने वालों से बात करना कोई आसान काम नही है और हमे डर भी लगता था और दुसरे अंडमान इतनी छोटी जगह है कि आपको लोग कहीं भी मिल सकते है और आपके घर तक भी आ सकते है । पर फिर ये भी ख़्याल आया कि अगर हमारी मदद से किसी का घर बन सकता है तो हमे इस challange को स्वीकार करना चाहिऐ। challange इसलिये क्यूंकि इससे पहले हमने ऐसा काम कि

उफ़ ये रीमिक्स

वैसे रीमिक्स का चलन कई साल पहले शुरू हो गया था पर आज कल तो कोई भी गाना हो चाहे नया या पुराना हर गाने का रीमिक्स सुनने और देखने को मिल जाएगा। पुराने गानों की तो ऐसी मटियामेट करते है की समझ नही आता की ऐसे रीमिक्स गाने बनाने वालों का करना चाहिऐ। एक से एक अच्छे गानों का जो बुरा हाल करते है की बस पूछिये मत। और उस पर डान्स ऐसा की जिसका कोई जवाब ही नही। आज कल तो कोई भी गाना हो डान्स एक ही स्टाइल का होता है। कई बार m.t.v.पर भी ऐसे गाने दिखाए जाते है। सबसे पहले पर्दा है पर्दा से शुरुआत हुई या शायद उससे भी पहले क्यूंकि गुलशन कुमार के ज़माने से ये चल रहा है शुरू मे तो फिर भी थोडा बहुत गाने की इज्जत की जाती थी पर अब तो भगवन बचाए। मिसाल के तौर पर हम कुछ गानों का जिक्र यहाँ करना चाहेंगे - १.एक लडकी को देखा तो ऐसा लगा। २.बदन पे सितारे लपेटे हुए। ३.हम तो मुहब्बत करेगा। और ऐसे ही अनेकों गाने जो गायकों के गाने के अंदाज से जाने जाते थे वो आज की पीढ़ी के लिए अब ऐसे बेद्गंगे डान्स की बदौलत जाने जाते है। अरे अगर डान्स विडियो बनाना ही है तो कुछ नया तो करो। आज के ये रीमिक्स गाने वाले मेहनत तो करना ही नही

ब्लोगिंग के तीन महीने

आज पूरे तीन महीने हो गए है हमे ब्लोगिंग करते हुए ,हो सकता है आप लोगों को लगे कि भाई ये भी कोई इतनी बड़ी बात है की इस पर एक पोस्ट ही लिख दी जाये। तो जनाब हमारे जैसे इन्सान के लिए तो ये बहुत ही बड़ी बात है क्यूंकि ब्लोगिंग करने से पहले हमे कंप्यूटर पर काम करना बिल्कुल भी पसंद नही था या यूं कह लीजिये की हम बिल्कुल भी कंप्यूटर सेवी नही थे। हमारे घर मे बेटे और पतिदेव तो हमेशा ही कंप्यूटर पर काम करते थे। बेटे तो जब देखो तो कंप्यूटर पर और कुछ पूछो तो एक ही जवाब की नेट पर है कभी download चल रहा है तो कभी कोई पिक्चर देख रहे है । और तो और हमे भी कहते मम्मी आप भी नेट किया करिये इससे आप कोई भी जानकारी ले सकती है कुछ भी पढ़ सकती है। १० साल पहले हमने ई.ग.न.उ। मे कंप्यूटर कोर्स भी ज्वाइन किया था पर कुछ दिन जाने के बाद छोड़ दिया क्यूंकि एक तो उसमे क्लास शनिवार और रविवार होती थी और वो दिन छुट्टी का होता था इसलिये ४-५ क्लास के बाद उसे छोड़ दिया था।और दुसरे हम बहुत देर तक कंप्यूटर पर काम नही कर पाते थे क्यूंकि आंखों पर जोर सा पड़ता था ,वैसे ये मात्र एक बहाना ही था । फिर कुछ साल बाद बेटों और प

गरमी से राहत

गोवा से दिल्ली आने के बाद गरमी से काफी हद तक राहत मिल गयी है। कल तो यहाँ पर बारिश भी हुई जिससे मौसम और भी सुहाना हो गया है। और फिर दिल्ली तो दिल्ली है। यहाँ पर भी गरमी तो है पर कम से कम उमस नही है जो गोवा मे बहुत ज्यादा थी । इस बार दिल्ली बहुत बदली हुई लग रही है। ना तो उतना पोलुशन और ना ही बहुत ज्यादा बसों की भागम भाग।ऐसा नही है कि बसें बिल्कुल ही गायब हो गयी है पर जैसे पहले हर सेकंड पर एक बस तेजी से जाती थी और ये लगता था की अब लड़ी की तब लड़ी ।एअरपोर्ट से हमारे घर आने मे इससे पहले एक घंटा लगता था और अगर कहीँ ट्राफिक जाम मिल गया तो गए काम से। पर इस बार हम सिर्फ ४५ मिनट मे ही पहुंच गए । दिल्ली मे इतने ज्यादा फ्लाई ओवर बन जाने की वजह से भी अब समय कम लगता है वरना पहले हर रेड लाइट पर ३ मिनट तक रुकना पड़ता था जिससे बहुत समय लग जाता था। और अब अगले कुछ दिनों तक हमारा डेरा यहीं दिल्ली मे रहेगा।

उन्होने ख़ुदकुशी क्यों की ?

जब ८२ मे हमारी शादी हुई और हम पहली बार अपने पतिदेव के साथ नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे थे तो हमे लेने मिस्टर ।ऎंड।मिसेस c आये थे । स्टेशन पर उन्होने हमारा बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था । स्टेशन से हम लोग सीधे घर गए थे जहाँ उनकी तीन बहुत ही प्यारी बेटियों ने हमारा स्वागत किया। धीरे-धीरे उनके साथ हमारा बिल्कुल घर जैसा हो गया और उस अनजान शहर दिल्ली मे उन्होने हमे छोटी बहन की तरह अपना लिया था। ऐसा लगता था की एक मायका छोड़कर दुसरे मायके मे आ गए थे। इधर पतिदेव ऑफिस गए और उधर हम पहुच गए मिसेस c के घर और अगर हम नही गए तो वो आ जाती थी हमारे घर। पूरा-पूरा दिन हम लोग गप्प मारने मे बिता देते थे। समय कैसे बीत जाता था कुछ पता नही चलता था। मिसेस c हम सब लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे ।वो बहुत ज्यादा पढी-लिखी नही थी पर उनमे कुछ खास था कि जो भी उनसे एक बार मिल लेता था वो उन्हें भूल नही पाता था। उन्हें हर कोई जानता था चाहे वो सीनियर हो या जूनियर। मिसेस c एक बहुत ही सीधी-साधी सुलझी हुई महिला थी। अपने घर बच्चों के बिना वो ४ दिन भी नही रह पाती थी । अगर कभी उन्हें बच्चों के बिना गाँव जाना पडता

दास्ताने मोबाइल

ये बात उन दिनों की है जब हिंदुस्तान मे मोबाइल थोडा नया - नया सा था और बहुत महंगा भी होता था। ९६ -९७ मे मोबाइल से की गयी एक कॉल के १६ रूपये लगते थे और उस समय इनकमिंग और आउतगोइंग दोनो के लिए पैसा देना पड़ता था । उस समय हम लोग दिल्ली मे थे और हमारे बच्चे थोड़े बडे हो गए थे और हम टी।वी पर पिक्चर देख-देख उकता गए थे अरे उन दिनों हर पिक्चर मे हीरो तलवार लेकर विलन को मारने के लिए दौड़ता रहता था जिसे देख कर हम थक चुके थे। मिथुन और सनी देओल का जमाना था । तो हमने सोचा की बच्चे तो सुबह ही स्कूल चले जाते है और पतिदेव ऑफिस चले जाते है तो हम क्या करें घर मे पड़े-पड़े , इसलिये हमने एक फ्रीलान्सर के तौर पर एक कंपनी मे काम करना शुरू कर दिया ।हम भी रोज सुबह साढ़े नौ बजे जाते और दो बजे बच्चों के स्कूल से लौटने के समय तक वापस आ जाते थे। और अगर कुछ काम रह जाता था तो उसे घर ले आते थे। धीरे-धीरे हम सभी का समय अच्छे से बीत रहा था और हमारा काम भी अच्छा चल रहा था । वैसे तो आमतौर पर हम दो बजे तक आ जाते थे पर जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ होती थी तो जरा मुश्किल होती थी क्यूंकि एक डर सा रहता था कि कहीँ कु

हम नही सुधरेंगे

ये बात कॉंग्रेस के लिए बिल्कुल सही बैठती है क्यूंकि उन लोगों के सिर से अभी भी राहुल का भूत नही उतरा है। उत्तर प्रदेश मे इतना बड़ा झटका खाने के बाद भी उनका हाल वही है। एक ज़माने मे उत्तर प्रदेश कॉंग्रेस और जनसंघ जो अब बी.जे.पी है का गढ़ होता था। खैर हमे उससे क्या। हाँ तो हम बात कॉंग्रेस की कर रहे थे । कल अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राहुल हिंदुस्तान का भावी प्रधान मंत्री है। ये बात तो कई बार कई कॉंग्रेस के नेता बोल चुके है। अरे भाई क्या और कोई नेता नही रह गया है अपने देश मे और खास कर कॉंग्रेस मे । ये लोग आख़िर कब तक यही राग अलापते रहेंगे । राहुल जो अभी राजनीति की ए.बी.सी सीख रहे है उन्हें देश की बागडोर सौपने की बात करना सुनकर बहुत अखरता है। ये सारे के सारे नेता बस चमचागीरी ही कर सकते है । देश और देश की जनता जाये चूल्हे मे।

mothers day

आज समूचे विश्व मे मदर्स डे मनाया जा रहा है और मनाया भी क्यों ना जाये आख़िर माँ से बढ़कर दुनिया मे ना तो कोई है और ना ही होगा। माँ की महानता हम क्या हमारे देवी-देवता भी मानते थे वो चाहे कृष्ण है या राम हो या गणेश जी हो सभी मानते है। और तो और हमारी फिल्मों मे भी माँ का स्थान हमेशा ऊंचा ही दिखाया गया है और पुरानी फिल्मों मे एक गाना हमेशा माँ पर आधारित होता था , अनेकों गाने माँ के लिए बनाए गए है जैसे- उसको नही देखा हमने कभी ,पर उसकी जरुरत क्या होगी ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी. माँ मुझे अपने आँचल मे छुपा ले गले से लगा ले की और मेरे कोई नही और ये माँ ही होती है जो अपने बच्चों को हर मुसीबत से बचाती है और बच्चों को मुसीबत से लड़ना भी सिखाती है। और हमे इस लायक बनाती है कि हम दुनिया और समाज मे रह सके। हम बच्चे चाहे जितनी गलती करे पर माँ हमेशा उन्हें माफ़ कर देती है। माँ को भगवान् ने इतना शक्तिशाली बनाया है कि अगर उसके बच्चे वो चाहे कहीँ भी हो अगर वो परेशान है तो उसे पता चल जाता है। ऐसा ही एक बार मेरे साथ भी हुआ और शायद बहुत लोगों के साथ भी ऐसा हुआ होगा । उन दिनों हम

सोनी की दुर्गेश नंदिनी

कई दिन हो गए दुर्गेश नंदिनी के बारे मे बात किये हुए इसलिये हम हाजिर है। जी हां इस सीरियल मे एक नया मोड़ या यूं कहें की पुराना मोड़ आ गया है अरे वही तीसरा शख्स सिकंदर । पहले तो अमित साद जो क्षितिज बने थे कुछ ठीक लग रहे थे पर अब कोई और इस किरदार को निभायेगा जो कुछ खास अच्छा नही लग रहा है। और दुर्गेश के लिए तो कुछ ना कहें तो ही अच्छा है। हमने पहले भी कहा था जीते है ....बहुत अच्छा चल रहा है और सबसे बड़ी बात इस सीरियल को अभी तक तो खीचने की कोशिश नही की गयी है। और एक्टिंग भी सब अच्छी कर रहें है। और कहानी काफी जल्दी -जल्दी आगे बढ़ रही है जो हम जैसे दर्शकों के लिए अच्छा है। एक माँ की अपने बच्चों को पाने की जंग इसमे दिखायी गयी है। इसी हफ्ते विरूद्व भी देखना शुरू किया ये भी काफी अच्छा है । पहले हम इसलिये नही देखते थे क्यूंकि उसमे तुलसी रानी जो है पर देखने पर लगा कि चलो कुछ नयी कहानी तो है। कम से कम सास -बहू का ड्रामा तो नही है। बस तुलसी अपनी तुलसी वाली आदतों को जरा छोड़ दे तो अच्छा होगा। क्यूंकि उनका लोगों को देखने का स्टाइल वैसा ही है। और थोडा वजन भी और घटाना चाहिऐ क्यूंकि वो विक्रम गोखल

मस्ती की पाठशाला

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पाठशाला पढ़ कर घबराने की जरुरत नही है। ये तो मस्ती की पाठशाला है। हमने ये कुछ फोटो जो कल के टाइम्स ऑफ़ इंडिया मे छपी थी ,उन्हें हम यहाँ लगा रहे है। आज हमने बहुत कोशिश की कि यहाँ पर टाइम्स का लिंक लगा सके पर हम सफल नही हो पाए। इसलिये हम ऐसे ही लगा रहे है। इस फोटो को देख कर ऐसा लग रहा है मानो खिलाडी को खेलते-खेलते अचानक बाबा रामदेव याद आगये और उसने शीर्षासन करना शुरू कर दिया। धोनी बाल उछाल कर कह रहे है कि पकड़ सको तो पकड़ लो। और इन्हें देख कर लगा मानो ये कह रहे हो कि बाल आ रिया है कि जा रिया है।

मायाजाल

आज मायावती उत्तर प्रदेश मे चुनाव जीत गयी है और वो भी ऐसे-वैसे नही अकेले सबसे बड़ी पार्टी के रुप मे ब.स.प. को खड़ा कर दिया है। वो चाहे जैसी भी हो पर इस बार उसने सभी दलों की छुट्टी कर दी है क्या बी .जे.पी .क्या कॉंग्रेस और क्या स.प.सबके सब पीछे रह गए। हम कोई मायावती के बहुत बडे प्रशंशक नही है पर जिस तरह से उसने चुनाव जीता वो तारीफ़ के काबिल है। कोई सोच भी नही सकता था। अमिताभ बच्चन कहते ही रह गए की यू .पी मे है दम क्यूंकि जुर्म है कम । पर क्या कह देने भर से जुर्म कम हो जाता है। अब अगर अमिताभ कुछ कहेंगे तो राहुल कैसे पीछे रहेंगे।और राहुल ने क्या कहा ये तो हम सभी जानते है। चुनाव मे प्रचार के लिए एक नया style चला है roadshow का । कॉंग्रेस तो अब इसी roadshow के सहारे अपनी नईया पार करना चाहती थी अरे पर जब सहारा स.प को डूबने से नही बचा पाय तो फिर कोई किसी को क्या बचायेगा। जनता देखने तो जाती थी राहुल और प्रियंका गाँधी अरे नही नही वढेरा को पर उनका जलवा रायबरेली और अमेठी के अलावा कहीं चलता नही दिखता है। चाहे वो अपने बच्चों को रिक्शा की सैर कराएँ या कुछ और। इधर कई दिनों से टी.वी पर हाथियो

उफ़ ये गरमी

इस साल चुंकि हम गोवा मे है इसलिये यहाँ की गरमी का ही हाल बता सकते है। यहाँ पर कोस्तेल एरिया होने की वजह से जबर्दस्त गरमी पड़ती है। ऐसा नही है की बाक़ी सारे देश मे मौसम बड़ा ही सुहाना है पर गोवा उफ़ । आजकल तो शायद सभी जगह मौसम मे कुछ बदलाव सा आने लगा है। दिल्ली मे तो जितनी ज्यादा ठंड पड़ती है उतनी ही गरमी भी पड़ती है। अभी ३-४ दिन पहले टी.वी. मे दिखा रहे थे की दिल्ली मे अभी से पारा ४२ डिग्री पहुंच रहा है। और भोपाल के बारे मे भी बताया जा रहा था की वहां करीब १० साल बाद इतनी ज्यादा गरमी पड़ रही है। सभी जगह गरमी का ऐसा ही हाल है। पर यहाँ गोवा मे तो बुरा हाल है। अजी बुरा हाल इसलिये की इस गरमी की वजह से ना तो आप कहीँ बाहर निकल सकते है और ना ही कहीँ घूम-फिर सकते है।जो लोग इस गरमी और धूप मे घूमते है हम उनकी सहनशक्ति की दाद देते है। a.c.मे रहने से तो और भी मुसीबत है क्यूंकि अगर a.c.मे रहने के बाद धूप और गरमी मे घर से बाहर निकलते है तो बीमार भी पड़ जाते। अजी हम यूं ही नही कह रहे है भुक्तभोगी है । और गरमी मे खांसी-जुखाम हो जाये तो मुसीबत ही समझिये। और उमस इतनी कि कुछ मत पूछिये । वैसे यहाँ का तापम

जीत गए भाई जीत गए

जी हाँ हम अपनी इंडियन क्रिकेट टीम के जीतने की ही बात कर रहे है। अरे भाई हमने मैच ज्यादा तो नही देखा पर समाचार मे तो आया कि इंडिया ने बांग्लादेश की टीम को ५ विकेट से हरा दिया। चलो शास्त्री जी कि नाक कटने से बच गयी वैसे खिलाड़ियों का बस चलता तो शायद वर्ल्ड-कप का replay हो सकता था। जिस तरह से बांग्लादेश की टीम ने २५० रन बनाए और जैसे इंडियन टीम ने गिरते-पड़ते जीत हासिल की तो उसके लिए टीम बधाई की पात्र है। खैर इस बार तो वीरू भाई ने भी कुछ ३० रन बना लिए और गम्भीर ने भी कुछ रन बनाए पर इतने नही की टीम आसानी से जीत जाये। वो तो धोनी अपने पुराने अंदाज मे आ गए वरना कुछ भी हो सकता था क्यूंकि ओवर ही ख़त्म हो रहे थे। बस एक ही ओवर तो बचा था। चलिये कम से कम जीत की शुरुआत तो हुई ,अब देखना है कि बाक़ी के दो मैच भी क्या ये लोग जीतेंगे। जीतना तो चाहिऐ और हम उम्मीद भी करते है। अब भाई आप लोग ये मत कह दीजियेगा कि मैच भी मत देखो।

ताम्ब्री सुर्ला

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ताम्ब्री सुर्ला १३ वी शताब्दी मे बना शिव जी का मंदिर गोवा मे स्थित है । ये जगह पंजिम से करीब ६०-६५ किलोमीटर दूर है। वैसे वहां ज्यादा पर्यटक नही जाते है। जी.टी.डी. सी की tourist बसें हफ्ते मे तीन दिन जाती है। पर चुंकि लोग सिर्फ ३-४ दिन को आते है और beach ही घूमते रह जाते है और ये तो सभी जानते है की गोवा अपने beaches के लिए ज्यादा मशहूर है। इन जगहों मे जाने मे पूरा एक दिन निकल जाता है। प र बस वाले तो ताम्ब्री सुर्ला के साथ-साथ ३-४ और जगहें भी दिखा देते है। ताम्ब्री सुर्ला का रास्ता ओल्ड गोवा से होकर जाता है और ये कर्नाटक बॉर्डर पर है। रास्ते मे बोदला फॉरेस्ट भी पड़ता है जहाँ वन-विभाग का गेस्ट हाउस है और जहाँ आप अगर किस्मत अच्छी हो तो कुछ जानवर भी देख सकते है ।मंदिर तक का रास्ता यूं तो अच्छा है पर बरसात के दिनों मे रास्ते मे फिसलन सी हो जाती है इसलिये जरा संभल कर चलना पड़ता है पर और दूसरे मौसम मे ऐसी कोई समस्या नही आती है। ये मंदिर चारों ओर से पहाड़ों से घिरा है और यहाँ की हरियाली देखते ही बनती है। मंदिर मे हर समय पुजारी नही होता है क्यूंकि वो भी कहीँ दूर किसी गांव से आता है। इ

संगीत के युद्घ और योद्धा

आज कल हर चैनल चाहे वो ज़ि हो चाहे सोनी हो और चाहे स्टार प्लस हो सभी चैनल उस एक आवाज को ढूँढ रहे है जो हिंदुस्तान की आवाज बन सके। हालांकि नाम अलग -अलग है। ज़ि पर संगीत का प्रथम विश्व युद्घ सा,रे,गा,मा,पा , २००७ है तो सोनी पर इंडियन आइडल है तो भला स्टार कैसे पीछे रहता उनके कार्यक्रम का नाम वॉइस ऑफ़ इंडिया है। इन तीनों कार्यक्रम के जज भी हिंदी फिल्मों जाने-माने संगीतकार लोग है जो भाग लेने आये हुए लोगों की धज्जियां उड़ाने मे जरा भी संकोच नही करते है। अभी तो सिर्फ सोनी और ज़ि पर ही शुरू हुआ है स्टार वाला तो शायद १८ से शुरू होगा। सोनी पर अन्नू मलिक तो ऐसे लोगों की बेइज्जती करते है की क्या कहा जाये। और उदित नारायण तो बिल्कुल बेपेंदी का लोटा जैसे है,अरे हम यूं ही थोड़े ही कह रहे है। आप लोगों को तो पता ही है कि हम टी.वी देखते है तो पिछले हफ्ते हमने भी इंडियन आइडल देखा। एक असम कि सीढ़ी-साधी लडकी ने काफी अच्छा और सुर मे गाना गाया पर अन्नू मलिक जी को पसंद नही आया हालांकि जावेद अख़्तर और अलीशा को उसका गाना पसंद आया था पर चुंकि अन्नू मलिक नही चाहते थे कि वो लडकी आगे बढ़े इसलिये जैसे ही उदि

जिम बनाम गप्प खाना

अंडमान मे रहते हुए घूमते -फिरते मस्ती मे दिन निकल रहे थे और हमारी सेहत भी काफी अच्छी- खासी हो रही थी। morning walk जरा मुश्किल होता था क्यूंकि एक तो वहां सूरज बहुत तेज होता है और दूसरा हमे सुबह की नींद बड़ी प्यारी है । यूं तो लोग कहते है और हम जानते भी है कि सुबह सुबह टहलना सेहत के लिया अच्छा होता है पर क्या करें आदत से मजबूर है।फिर पता चला की वहां एक जिम है ,वहां जाने पर पता चला की उन दिनों वहां कोई भी महिला जिम मे नही आती है। इसलिये हमने चाहकर भी जिम जाने का इरादा छोड दिया था। पोर्ट ब्लैयेर मे दावतें ख़ूब खाते थे। ऐसे ही एक दिन वहां के उप राज्यपाल के यहाँ दावत मे कुछ नए लोगों से मुलाकात हुई और जिसमे तीन-चार महिलाओं से उतनी थोड़ी ही देर मे काफी अच्छी दोस्ती हो गयी। और हम सभी अपनी बढती सेहत और घर मे रहते-रहते बोर सी हो रही थी। इसलिये हम सबने सोचा कि जब पोर्ट ब्लैयेर मे जिम है तो उसका फायदा भी उठाना चाहिऐ । बस फिर क्या था वहीँ खाना खाते-खाते तय हुआ कि कल से जिम शुरू। घर लौटते ही हमने घर मे घोषणा कर दी कि कल से हम जिम जायेंगे और वापस shape मे आकर दिखायेंगे। अगले दिन हम चारों तय समय पर ज

माँ

ये एक ऐसा शब्द है जिसकी महत्ता ना तो कभी कोई आंक सका है और ना ही कभी कोई आंक सकता है। इस शब्द मे जितना प्यार है उतना प्यार शायद ही किसी और शब्द मे होगा। माँ जो अपने बच्चों को प्यार और दुलार से बड़ा करती है। अपनी परवाह ना करते हुए बच्चों की खुशियों के लिए हमेशा प्रयत्न और प्रार्थना करती है और जिसके लिए अपने बच्चों की ख़ुशी से बढकर दुनिया मे और कोई चीज नही है। जब् हम छोटे थे और हमारी माँ हम को कुछ भी कहती थी तो कई बार हम उनसे उलझ पड़ते थे कि आप तो हमको यूँही कहती रहती है कई बार माँ कहती थी कि जब तुम माँ बनोगी तब समझोगी और ये सुनकर तो हम और भी नाराज हो जाते थे। हम लोग कभी भी माँ को पलट कर जवाब नही देते थे हाँ कई बार बहस जरूर हो जाती थी। हमारी दीदियों की शादी के बाद तो माँ हमारी सबसे अच्छी दोस्त बन गयी थी और बाद मे कुछ सालों के लिए हमारे पापा दिल्ली आ गए थे जिसकी वजह से हमारी और माँ की आपस मे ख़ूब छनती थी। हम दोनो बहुत चाय पीते थे पापा अक्सर कहते थे की तुम लोगों को बस चाय पीने का बहाना चाहिऐ । घर मे है तो चाय चाहिऐ बाहर से घूम कर आये है तो चाय चाहिऐ , बोर हो रहे है तो भी चाय चाहि

मौत के गड्ढे या .....

पिछले ६-७ महीनों मे कई बच्चे गहरे गड्ढों मे गिर चुके है। जो किस्मत वाले थे उन्हें बचा लिया गया था पर कुछ बच्चों को नही बचाया जा सका। करीब ६-७ महीने पहले सबसे पहले प्रिन्स नाम के एक ३-४ साल के छोटे बच्चे के गड्ढे मे गिरने की खबर सभी न्यूज़ चैनलों पर दिखायी गयी थी । प्रिन्स नाम का ये बच्चा जहाँ बोरेवेल के लिए गड्ढा खोदा जा रहा था वही खेल रहा था और अचानक ही वो ५० फ़ीट गहरे गड्ढे मे गिर गया था। फिर शुरू हुआ उसे बचाने का काम।उस गड्ढे के बराबर मे एक और गड्ढा खोदा गया । प्रिन्स को गड्ढे से बहार निकलने के लिए सेना की मदद भी ली गयी और करीब ५० घंटे बाद उसे सही सलामत बाहर निकला गया। कुछ नेता लोग भी वहां पहुंच गए थे ,जैसे ही सेना के जवान प्रिन्स को बाहर लेकर आये उनमे जैसे होड़ सी लग गयी प्रिन्स को गोद मे उठाने की। हर आदमी उसे गोद मे उठाना चाहता था पर इस सबमे लोग प्रिन्स की माँ को ही भूल गए थे। आख़िर मे माँ की गोद मे प्रिन्स को दिया गया था। इस घटना के बाद तो जैसे बच्चों का गड्ढे मे गिरना आम बात सी हो गयी । हर १०-१५ दिन मे कोई ना कोई बच्चा गहरे गड्ढे मे गिर जाता है । अभी हाल ही मे रायचूर मे एक बच

कितने डे ......

कितने डे शीर्षक हमने इसलिये दिया है क्यूंकि कल आज तक चैनल पर इंटरनेशनल डान्स डे दिखाया जा रहा था जो इससे पहले हमने कभी नही सुना था। इसी लिए हमने एक पोस्ट ही इस पर लिख दी है। हमने डे कोई क्रम मे नही लिखे है। पहले तो independence डे और republic डे और childrens डे ही होता था और हाँ birth डे भी होता था जो आज भी होता है। क्या देश क्या विदेश सभी जगह womens डे मनाया जाता है। पर धीरे-धीरे mothers डे शुरू हुआ अच्छा भी है क्यूंकि इस दिन माँ को बच्चे बधाई देते है उनके माँ होने की। उसके बाद fathers डे सुनाई दिया ,ये भी ठीक है क्यूंकि अगर माँ बधाई की पात्र है तो पिता भी बधाई के हकदार है। फिर friendsship डे शुरू हुआ ,ठीक भी है क्यूंकि दुनिया मे दोस्ती से बढकर कोई चीज नही है। जैसा की हम सभी जानते है कि आज labour डे है पर क्या सही मायने मे हम labour डे मनाते है। आज कल तो slap डे , chocolate डे , rose डे भी मनाया जाता है। aids awareness डे और disability डे मनाया जाता है जो की सामजिक दृष्टि से बहुत अच्छा है। डे की बात हो और वैलेंटाइन डे की बात ना हो भला ऐसा कैसा हो सकता है। आप लोग सोच रहे होंगे क

हट बे

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अरे -अरे गलत मत समझिये ,ये तो अंडमान के एक द्वीप का नाम है । ये अंडमान से करीब आठ घंटे की दूरी पर है । वहां जाने के लिए स्पीड बोट और शिप से जा सकते है। स्पीड बोट तो रोज सुबह साढे छे बजे जाती है ,वैसे तो बडे शिप जो निकोबार जाते है वो भी कई बार हट बे से होते हुए जाते है ।अगर sea sickness नही महसूस होती है तो बोट की यात्रा का आप भरपूर मजा उठा सकते है।कहते है की रास्ते मे dolphin भी दिखती है पर हमे कभी नही दिखी थी। अन्यथा हैलिकॉप्टर से भी वहां जाया जा सकता है । हैलिकॉप्टर से आधे घंटे मे पहुंच जाते है। हट बे भी अंडमान का एक छोट ा सा ही द्वीप है ये द्वीप सीधी सड़क जैसा है और सड़क के साथ-साथ समुन्द्र । यहाँ का butler beach गोल्डन sand beach है मतलब वहां की बालू का रंग सुनहरा सा है। beach तो हर जगह की तरह ये भी बहुत अच्छा है पर यहाँ के beach पर कभी-कभी मगरमच्छ भी आ जाते है। इसलिये वहां थो डा सचेत रहना चाहिऐ। हट बे मे एक कुदरती झरना भी है बिल्कुल जंगल के अन्दर पर है खूबसूरत। हम तो वहां सुनामी के पहले ही गए थे क्यूंकि सुनामी के बाद तो हमे समुद्री यात्रा करने मे डर लगने