उन्होने ख़ुदकुशी क्यों की ?

जब ८२ मे हमारी शादी हुई और हम पहली बार अपने पतिदेव के साथ नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे थे तो हमे लेने मिस्टर ।ऎंड।मिसेस c आये थे । स्टेशन पर उन्होने हमारा बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया था । स्टेशन से हम लोग सीधे घर गए थे जहाँ उनकी तीन बहुत ही प्यारी बेटियों ने हमारा स्वागत किया। धीरे-धीरे उनके साथ हमारा बिल्कुल घर जैसा हो गया और उस अनजान शहर दिल्ली मे उन्होने हमे छोटी बहन की तरह अपना लिया था। ऐसा लगता था की एक मायका छोड़कर दुसरे मायके मे आ गए थे। इधर पतिदेव ऑफिस गए और उधर हम पहुच गए मिसेस c के घर और अगर हम नही गए तो वो आ जाती थी हमारे घर। पूरा-पूरा दिन हम लोग गप्प मारने मे बिता देते थे। समय कैसे बीत जाता था कुछ पता नही चलता था।

मिसेस c हम सब लोग उन्हें इसी नाम से बुलाते थे ।वो बहुत ज्यादा पढी-लिखी नही थी पर उनमे कुछ खास था कि जो भी उनसे एक बार मिल लेता था वो उन्हें भूल नही पाता था। उन्हें हर कोई जानता था चाहे वो सीनियर हो या जूनियर। मिसेस c एक बहुत ही सीधी-साधी सुलझी हुई महिला थी। अपने घर बच्चों के बिना वो ४ दिन भी नही रह पाती थी । अगर कभी उन्हें बच्चों के बिना गाँव जाना पडता तो वो परेशान हो जाती थी की बच्चे कैसे अकेले रहेंगे ,क्या खायेंगे इत्यादी।

हम लोग चार मंजिला बिल्डिंग मे रहते थे और उनका घर ground floor पर था इसलिये उन्ही के यहाँ बैठक जमा करती थी। दो-दो बजे रात तक हम सारे बैच मेट उनके यहाँ बैठते थे और मजाल है की उनके मुँह पर शिकन आ जाये उल्टे वो बहुत खुश होती थी। हम और वो दोनो बहुत मस्ती करते थे । उनकी बड़ी बेटियाँ स्कूल जाती थी और छोटी छे महीने की थी तो बस छोटी को लिया और निकल जाते थे शॉपिंग करने और पिक्चर देखने ।

करीब छे साल पहले २ अगस्त की शाम हम घर मे बच्चों के साथ पतिदेव के आने का इन्तजार कर रहे थे ।काफी देर हो गयी थी पतिदेव लौटे नही थे सो चिन्ता भी हो रही थी तभी phone की घंटी बजी तो हमने सोचा की पतिदेव का फ़ोन होगा ,कह रहे होंगे की थोड़ी देर मे पहुंचेंगे पर फ़ोन पर हम लोगों के एक बैच मेट सिंह साब बोल रहे थे। उन्होने बस इतना कहा की मिसेस c की डेथ हो गयी है। पहले तो हमे अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ इसलिये दूबारा हमने कांपती आवाज मे पूछा की क्या तो उन्होने फिर कहा की मिसेस c ने ख़ुदकुशी कर ली है। इतना सुनते ही हम बिल्कुल काँपने लगे और आंसू अपने आप आंखो से गिरने लगे । हमे कुछ समझ नही आ रहा था की क्या करें। हमारे बच्चे हमे इस हालत मे देख कर हमे समझाने लगे । फिर हमे अपने एक और बैच मेट जो की जी . के मे रहते है उनसे बात की और रात करीब साढ़े नौ बजे हम लोग निकलने ही वाले थे की पतिदेव भी आ उन्हें और जैसे ही हमने उन्हें बताया उन्हें भी यकीन नही आया । फिर हम सब उनके घर गए और वहां जो देखा वो आज तक नही भूल पाए है।

वो लेटी हुई थी चेहरे पर शांति थी। वहां हर एक की जुबान पर एक ही सवाल था की उन्होने ऐसा क्यों किया और कैसे किया। बच्चों ने बताया की २ बजे खाना खाने के बाद सब लोग कमरे मे सोने गए तो वो भी बच्चों के साथ उनके ही कमरे मे सोने गयी उसके बाद शाम को जब उनकी बेटी उठी तो उसने उन्हें चारों ओर ढूँढा और जब पूजा के कमरे मे देखा तो दौड़कर चिल्लाते हुए बाहर भागी फिर अगल-बगल वाले आ गए और सभी सकते मे आ गए की ये क्या हुआ। उन्हों ने अपने ही दुपट्टे से फांसी लगा ली थी। उनकी एक पडोसी ने बताया की सुबह वो उनके घर आयी थी और एक बजे तक गप्प मारती रही पर उसे कहीं से भी ये अहसास नही हुआ की वो कुछ ऐसा कर लेंगी । हर एक की जुबान पर एक ही सवाल था की इतना बड़ा कदम उन्होने क्यों उठाया। और उन्होने एक suicide नोट भी छोड़ा था । सभी को ये लग रहा था की किसी ने उन्हें देखा क्यों नही जबकि पूजा वाले कमरे की खिड़की खुली हुई थी बस पर्दा पड़ा था।

हम सभी को आज तक ये समझ नही आया की ऐसा उन्होने क्यों किया क्यूंकि वो उनमे से नही थी जो हार मान ले।
उस समय उन्हें अपनी बेटियों की शादी की चिन्ता रहती थी पर आज उनकी बेटियों की शादी हो चुकी है और भगवान की दया से बेटियाँ अपने घर मे खुश है पर ये सब देखने के लिए वो नही रही।

उस दिन घुघुती जी की कविता कायर पढ़ कर मन बहुत विचलित हो गया था क्यूंकि उन्होने जो वर्णन किया था ठीक उसी तरह मिसेस c ने किया था। इसी वजह से कई दिन तक कुछ लिखने का मन भी नही किया । हम तो आज भी ये समझ नही पाते है की जिस घर और बच्चों के बिना वो रह नही पाती थी उन्हें छोड़कर जाने का उनका दिल कैसे किया। आज सब कुछ है बस मिसेस c नही है।

Comments

मानव मन जटिल है. समझ में नहीं आता. कभी तो पर्वत सी समस्याओं से जूझ लेते हैं हम और कभी एक छोटी सी बात अपना जीवन समाप्त करने का निर्णय करा लेती है. यह अनुभूत सत्य है मेरा.
अवसाद से निपटने की ट्रेनिंग सभी को मिलनी चाहिये.
आलोक said…
ऐसी ही एक घटना मेरे मित्र के साथ भी हुई थी। किसी को फ़ोन किया, उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में मैं ही करती हूँ अभी थोड़ी व्यस्त हूँ, और बाद में पता चला कि फ़ोन करने वाली महिला ने आत्महत्या कर ली।
जब मनुष्य औरों में अपने लक्ष्य को खोजता है या उनमें अपने आस्तित्व को खो देता है तो जीवन निरर्थक लगने लगता है।
Udan Tashtari said…
क्षणिक मनोवेग में बहकर इंसान को अक्सर सब कुछ निरर्थक लगने लगता है और ऐसे समय में यदि कोई मनोबल न मिले या व्यक्ति एकांत में हो, तो ऐसे कदम उठा लेता है.

पाण्डेय जी का कहना सत्य है कि अवसाद से निपटने की ट्रेनिंग सभी को मिलनी चाहिये. यह स्वयं से भी स्वयं को दी जा सकती है.

इश्वर मिसेज c की आत्मा को शान्ति दे.

यही जीवन है. सब एहसास यहीं हो जाते हैं. लोग चले जाते हैं, यादें छूट जाती हैं. उनकी साथ बिताया सुखमय समय याद करें और खुश रहें. मन दुखी करने का कोई फायदा नहीं.

यह तो आपकी शादी की २५ वीं वर्षगांठ का वर्ष चल रहा है, बहुत बधाई और शुभकामनाऐं.
ghughutibasuti said…
ममता जी, मनुष्य का मन बहुत ही जटिल है, उसे समझ पाना सरल नहीं है । किन्तु हम यत्न तो कर ही सकते हैं दूसरों को समझने का । आपको यह जानकर शायद आश्चर्य हो किन्तु आपने ही शायद उस आइ.आइ.टी के छात्र की मृत्यु पर प्रश्न करते एक लेख में उस छात्र को कायर या उसका पर्यायवादी शब्द कहा था । उसी पल मैंने कायर पर अपनी दोनों कविताएँ लिख दी थीं ।
हम सब सबके साथ खुशी तो बाँट लेते हैं किन्तु किसी को अपने मन का दुख हमें बताने के लिए एक विशेष प्रकार की एम्पेथी हमें दिखानी पड़ती है । हमें दिखाना पड़ता है कि हम उसे नाप तौल नहीं रहे, जज नहीं कर रहे, वह बोलता जाए और हम बस सुनते जाएँ । आधी समस्या तो इसी से हल हो जाती है । यदि हम सुनेंगे तो शायद कल वह हमसे समस्या सुलझाने में हमारी राय भी माँग ले । किन्तु यदि हम उसकी समस्या समझे बिना ही उसे सुझाव देने लगें या उसपर डरपोक, कायर, भावुक आदि का लेबल लगा दें तो शायद कल वह समस्या के बारे में बात भी नहीं करेगा । इन्हीं लेबलों से डरकर लोग अपनी मानसिक पीड़ा मित्रों को नहीं बताते ।
शायद श्रीमती सी भी किसीको अपने मन की बात इसीलिये नहीं बता पाईं क्योंकि उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला जिससे वे हँसी मजाक के अलावा अपने मन का दर्द भी कह पातीं । काश हम ऐसे बन पाएँ कि हमारे मित्र हममें अपने मन के घावों का मलहम पा सकें ।
घुघूती बासूती
mamta said…
ज्ञानदत जी ,आलोक जी आपने सही कहा है की मानव मन को समझना कठिन है। ज्ञानदत जी हम आपसे सहमत है की सभी को अवसाद से निपटने की ट्रेनिंग मिलनी चाहिऐ ।

समीर जी बधाई का बहुत -बहुत शुक्रिया।

घुघुती जी हम इस बात से सहमत है की हमे दूसरों की बात सुनने के लिए एम्पथी रखनी चाहिऐ । आपकी बात सही है की कोई सुनने वाला होना चाहिऐ । जहाँ तक बात मिसेस c की है तो हम और वो हर बात share करते थे और यकीन जानिए ऐसा कभी नही लगा की वो कोई ऐसा कदम उठा लेंगी। और हम अब भी यही कहेंगे की उन्होने जो किया वो हमारी नजर मे ठीक नही है। जिंदगी से हार नही माननी चाहिऐ।
जिंदगी दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज है। न जाने क्यों श्रीमती c ऐसा किया। आपके २५ वर्ष विवाह के पूरे हुये इसके लिये बधाई!
आपके अनुसार, 'उन्होने एक suicide नोट भी छोड़ा था।' उस नोट में क्या था।
हां शादी की २५ साल पूरे करने पर बधाई। आपके पुत्र IIT में पहुंचे यह भी शुभ कामना।
mamta said…
अनूप जी बधाई के लिए शुक्रिया।

उन्मुक्त जी बधाई के लिए शुक्रिया।
Anonymous said…
शायद कवि ने ठीक कहा है- तुम जो इतना मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिसको छुपा रहे हो।
Manish Kumar said…
बेहद मार्मिक घटना का उल्लेख किया आपने। किस को कौन सी चिंता खाए जा रही है ये कई बार पता नहीं लगता और अचानक ही ऐसे नतीजे सामने आ जाते हैं।

आत्महत्या पर हाल ही में "अहा जिंदगी ने एक विशेषांक निकाला था जिसमें विस्तार से ऐसे व्यक्तित्व का विश्लेषण किया गया था।

एक बार जो चला गया उसे कोई कायर कहे ना कहे क्या फर्क पड़ता है। ऐसे अवस्था से जूझ रहे व्यक्ति की पहचान और उसकी समस्याओं को संवेदनशील मन से बांटने की कोशिश ही इसका समाधान हो सकता है । पर ये भी कई बार आस पास के लोगों के लिए कितना कठिन हो जाता है वो आपके दिये हुए उदहारण से स्पष्ट है।
vishesh said…
आत्‍महत्‍या का निर्णय पलायनवाद को दर्शाता है. यह बात हर किसी को समझाई जानी चाहिए.

Popular posts from this blog

क्या चमगादड़ सिर के बाल नोच सकता है ?

जीवन का कोई मूल्य नहीं

सूर्य ग्रहण तब और आज ( अनलॉक २.० ) चौदहवाँ दिन