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गणतंत्र दिवस की परेड और हम

कल सारे देश ने ६३ वां गणतंत्र दिवस मनाया । और हमने भी कल आठ साल बाद दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड देखी। अरे वहां जाकर नहीं बल्कि दूरदर्शन पर ही देखी। पर फिर भी काफी अच्छी लगी परेड। अब चूँकि पिछले आठ सालों से तो हम दिल्ली से बाहर है और जहाँ भी रहे वो चाहे अंडमान हो या गोवा या फिर अरुणाचल प्रदेश तो इन जगहों की परेड देखने हम लोग जाते थे और जब तक लौट कर आते तब तक दिल्ली की परेड भी खत्म होने वाली होती थी और हम राष्ट्रपति को बस वापिस जाते हुए देख पाते थे । :) पर इस बार चूँकि हम दिल्ली मे है तो अरसे बाद परेड देखी और वैसे भी दिल्ली की परेड की अपनी ही ख़ास बात है। अब हो सकता है की आप लोग कहें कि भई इसमें नया तो कुछ नहीं है हर साल ही ऐसी परेड होती है ।हाँ आप लोगों का कहना भी सही है तो भला परेड मे हमें क्या अच्छा लगा। अब ऐसा नहीं है कि अंडमान ,गोवा और ईटानगर मे कंटिजेंट मार्च पास्ट नहीं करते थे पर वहां मार्च पास्ट छोटा होता था और झांकियां भी कम होती थी पर हाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम उन जगहों पर दिल्ली से ज्यादा होते थे। कल जब परेड मे कंटिजेंट मार्च पास्ट करते हुए दिखाए गए तो वो काफी

गणतंत्र दिवस और ये खबर

आज सुबह जब अखबार उठाया तो सोचा भी ना था की ऐसी दर्दनाक खबर पढने को मिलेगी और जिसे पढ़कर रोंगटे खड़े हो गए। क्या होता जा रहा है हमारे इस समाज को जहाँ इस तरह का बर्ताव बेटियों के साथ किया जाता है। इंसान दिन पर दिन नीचे ही गिरता जा रहा है ।

dirty politics

यूँ तो राजनीति मे हमेशा ही सभी राजनैतिक पार्टियां एक-दूसरे के काम काज पर ,चुनाव प्रचार पर आरूप प्रत्यारोप लगाती रहती है पर इस बार तो उत्तर प्रदेश के होने वाले चुनाव मे सभी पार्टियों ने सभी सीमाएं तोड़ दी। यूँ तो चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश की सभी हाथियों की मूर्तियों को ढकने का आदेश दिया था और ये काम पूरे जोर-शोर से हो भी रहा था । पर शायद राज नेताओं को इतने से ही संतोष नहीं था। क्यूंकि उन्हें इलाहाबाद के चिल्ड्रेन पार्क जिसे सुमित्रा नंदन पन्त पार्क या जैपनीज पार्क या फिर हाथी पार्क के नाम से भी जाना जाता है वहां बच्चों के झूलने के लिए बने एक हाथी को इन नेताओं की नजर लग गयी। और इन नेताओं ने चुनाव आयोग को उस हाथी ढकने के लिए भी कहा। जो की बहुत ही शर्म की बात है। चिल्ड्रेन पार्क का ये हाथी जिसे कुछ नहीं तो काम से काम ४० साल हो गए है बने हुए । हम लोग भी अपने बचपन मे उस पार्क मे बड़े चाव से जाते थे ,और ४० साल पहले तो हाथी पार्क का कुछ ऐसा क्रेज था (शायाद अभी भी है )की जब भी हमारे घर कोई मौसी,मामा या चाचा और उनका परिवार आता तो हाथी पार्क जाना तो लाजमी था. और हम ही क्या इलाहाबाद मे रहने