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Showing posts from January, 2021

कभी भुनी हुई मूँगफली को धोकर खाया है

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आप भी सोच रहें होंगें कि भला भुनी हुई मूँगफली को कौन धोकर खाता है । हमने खाई है। 😁 दरअसल में क़िस्सा यूँ है कि अब आजकल तो कोरोना के चलते हर सामान वो चाहे फल सब्ज़ी हो या चाहे राशन , सभी चीज़ों को या तो सैनिटाइज किया जाता है या फिर पानी से धोया जाता है । तो हुआ यूँ कि हमने कुछ फल सब्ज़ियों के साथ जाड़े का मेवा यानि भुनी हुई मूँगफली भी मँगाई थी । और सब सामान बैग में ही था । जब हमारी पार्वती ( हैल्पर ) आई और बैग देखकर उसने पूछा दीदी सब फल सब्ज़ी धोकर रखना है । तो हमने हाँ कहा । और हम कुछ काम करने कमरे में चले गये । हालाँकि बीच में उसने हमें आवाज़ लगाई कि दीदी सब कुछ धोकर रखना है । तो हमने भी कमरे से ही बोला कि हाँ सब कुछ धोकर डलिया में रख दो । हम भूल गये थे कि फल और सब्ज़ियों में मूँगफली का पैकेट भी है । बस फिर क्या था पार्वती ने पैकेट फाड़ा और उस भुनी मूँगफली को पानी से धोकर डलिया में सब के साथ रख दिया । और अपना काम करके वो घर चली गई । बाद में जब हम अपना काम ख़त्म करके आये और मूँगफली खाने के लिये पैकेट ढूँढने लगे तो हम समझ नहीं पाये कि आख़िर मूँगफली का

नाम में क्या रक्खा है

आजकल नाम बदलने का रिवाज कुंछ बढ़ता सा लग रहा है । वैसे न्यूज़ पेपर के एक कॉलम में पढ़ने को मिलता है कि फ़लाँ ने अपना नाम बदल लिया है । या फ़लाँ ने अपना सरनेम बदल लिया है । वैसे कभी कभी दसवीं में भी लोग अपना नाम बदल लेते है और कभी कभी शादी के बाद लड़कियों का नाम बदल दिया जाता था ( और शायद है )जो कि किसी का भी निजी फ़ैसला हो सकता है । समय बदला और फिर सड़कों और शहरों के नाम बदले जाने लगे । चलो भाई ये भी ठीक है । पर लो अब तो फल का नाम भी बदलना शुरू हो रहा है । सुना तो होगा ना कि ड्रैगन फ़्रूट का नाम अब बदलकर कमलम कर दिया गया है । क्योंकि ये एक चाइनीज़ फल है और नाम भी । और क्या ड्रैगन नाम वाले रेस्टोरेंट का भी नाम बदला जायेगा मसलन गोल्डन ड्रैगन को क्या अब सुनहरा कमलम कहेंगें । 😁😁 और तो और तो हम ये सोच रहें है कि अब चीनी को चीनी ही कहें या इसके नये नामकरण का इंतज़ार करें । 😝

बायोमेट्रिक्स है तो क्या फ़िकर

अब इस कोरोना के चलते सीनियर सिटिज़न को बैंक या ऑफिसों में जाकर जीवन प्रमाण सर्टिफ़िकेट देना भी ख़तरे से ख़ाली नहीं है । क्योंकि कई बार सारी एहतियात बरतने के बाद भी लोग कोरोना से संक्रमित हो जाते है । हालाँकि अब तो कोरोना से लोग कम डरते है । पर दिसम्बर तक तो डरते ही थे । अक्टूबर से हमारे यहाँ भी पतिदेव को अपना ये सर्टिफ़िकेट देने के लिये मैसेज आता रहता था कि आप अपना जीवन प्रमाण सर्टिफ़िकेट जमा करा दीजिये । और नवम्बर बीतते बीतते तो घर में अकसर ही ये बात होती कि लाइव सर्टिफ़िकेट देने के लिये बैंक जाना है । कब और कैसे जायें । पर उन दिनों कोरोना का क़हर और डर और फिर बैंक सिर्फ़ इस सर्टिफ़िकेट के लिये जाना ,कोई बहुत अच्छा डिसिजन नहीं लग रहा था । जब भी मैसेज आता तो बैंक जाने के विचार पर घर में बात होती कि सर्टिफ़िकेट देना भी ज़रूरी है । हालाँकि उस समय दिसम्बर तक डेट बढ गई थी । फिर बेटे ने सर्च किया तो पता चला कि ये सर्टिफ़िकेट ऑनलाइन भी दिया जा सकता है । और इसके लिये ये ज़रूरी नहीं है कि आप ख़ुद पर्सनली बैंक या ऑफ़िस जाकर ही ये सर्टिफ़िकेट दीजिये । और इसके लिये सरकार द्वारा ब

मकर संक्रान्ति यानि खिचड़ी

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सबसे पहले तो सभी को मकर संक्रान्ति यानि खिचड़ी की हार्दिक शुभकामनायें । 🙏 ऊपर खिचड़ी पढ़कर कहीं आप कन्फ़्यूज तो नहीं हो गये । अरे वो क्या है ना कि आज के दिन यानि मकर संक्रान्ति के दिन हम लोगों के यहाँ छिलके वाली उरद दाल की खिचड़ी और तैहरी ही बनती है । इलाहाबाद में तो आज के दिन गंगा नहाने का भी बडा महत्त्व होता है । हम लोग भी पहले खिचड़ी पर संगम नहाने जाते थे । खिचड़ी यानि मकर संक्रान्ति के लिये पहले से तैयारी शुरू हो जाती है । जब हम छोटे थे तो हमें तैयारी से तो कोई मतलब नहीं होता था पर हाँ काले तिल के लडडू , सफ़ेद तिल की और मेवे की पट्टी खाने का बडा इंतज़ार रहता था । और ये सब बनने के बाद हम लोग घूम घूमकर बस खाते ही रहते थे । 😁 इलाहाबाद में क्या हम यहाँ भी आज के दिन सबसे पहले नहाकर सिद्धा छूना और दान करना जिसमें छिलके वाली उरद दाल ,चावल , आलू,नमक, काले तिल का लडडू और पैसा और फिर सबसे पहले काले तिल का लडडू खाना । उसके बाद ही कुछ और खाना । खैर अब तो हमको ही ये सब बनाना और करना पड़ता है । पर अगर त्योहार में नहीं बनायेंगें तो भला कब बनायेंगे । 😋