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Showing posts from July, 2018

लगता है हर कोई बीमार है

किसी भी हॉस्पिटल में चले जाओ तो वहाँ पर मौजूद मरीज़ों भीड़ देखकर लगता है जैसे हर कोई बीमार है । पहले तो सरकारी अस्पतालों में ही बहुत ज़्यादा मरीज़ों की भीड़ होती थी फिर वो चाहे एम्स हो या जी.बी.पंत हो कोई और सरकारी अस्पताल । और तब लोग उस भीड़ से बचने के लिये लोग प्राइवेट या स्पेशलाइजड हॉस्पिटल में जाते थे । पर अब तो ना केवल सरकारी बल्कि प्राइवेट ,स्पेशलाइजड ( फ़ाइव स्टार )अस्पतालों में भी बहुत भीड़ होती है । छोटे मोटे नर्सिंग होम और डिसपेंसरी का भी कुछ ऐसा ही हाल है । आजकल के फ़ाइव स्टार हॉस्पिटल में तो देसी विदेशी हर तरह के मरीज़ भरे होते है । और इन अस्पतालों में जहाँ पहले कुछ कम भीड़ होती थी पर अब ऐसा बिलकुल नहीं है । फिर चाहे अपोलो हो या मैक्स हो या फोरटिस ही क्यूँ ना हो । और तो और कार पार्क करने की जगह भी नही मिलती है । जितनी भीड़ और लोग अस्पताल के अन्दर उतने ही बाहर भी होते है । कई बार तो इनकी कैंटीन तक में बैठने की जगह नहीं मिलती है । अब लोग भी क्या करें सुबह से दोपहर तक का समय अस्पताल में ही बीत जाता है ।हर जगह लम्बी लाइन होती है ।कई बार तो एपाइंटमेंट के बाद भी अच्छा ख़ासा ट

रिमझिम के तराने लेके आई बरसात

पुराना परन्तु कितना मीठा गीत । ग़लत तो नहीं कहा ना । एक समय था जब बारिश और सावन के मौसम पर आधारित गानों की भी हिन्दी फ़िल्मों में बहार सी होती थी जैसे ख़ुशी,ग़म ,मिलन,विरह ,छेड़छाड़, घर ,सहेलियाँ,झूला ,वग़ैरह पर खूब गाने बनते थे । पर अफ़सोस आजकल तो ऐसे गीतों का कुछ अकाल सा पड़ गया है । क्योंकि आज की दौड़ती भागती जिंदगी में ये सब कहीं खो सा रहा है । बरसात का मौसम आते ही जगह जगह पर पेड़ों की डालियों पर झूले पड़ जाते थे । अब तो विरले ही पेड़ और पेड़ पर झूले नज़र आते है । झूले पर बारिश में भीगने का भी अपना ही मजा़ था । वो गाना तो याद ही होगा -- पड़ गये झूले सवन ऋतु आई रे ,पड़ गये झूले । सावन का मौसम और बारिश के आते ही रेडियो पर बरसात के गीतों की बारिश सी हो जाती थी । वैसे आज भी एफ.एम. गोल्ड पर ऐसे गीत सुने जा सकते है । इस मौसम में हमेशा बन्दनी फ़िल्म का गीत अब के बरस भेज भइया को बाबुल सुनकर आँखों में अपने आप ही आँसू आ जाते है । तो वहीं किशोर कुमार का इक लड़की भीगी भागी सी सुनकर मुस्कराहट आ जाती है । रिमझिम के तराने लेके आई बरसात गीत को सुनकर बारिश की मीठी सी अनुभूति होती थी पर आजक

दिल्ली और ट्रैफ़िक जाम

दिल्ली में कब कहाँ और क्यूँ ट्रैफ़िक रूक जायेगा कहना बहुत मुश्किल है । लोग कहते है कि सोमवार को और शुक्रवार को सबसे ज़्यादा ट्रैफ़िक होता है क्योंकि दोनों दिन हफ़्ते के पहले और आख़िरी दिन होते है । बारिश हो तो ट्रैफ़िक जाम लग जाता है बारिश ना हो तब भी ट्रैफ़िक जाम लग जाता है । वजह हो या ना हो ट्रैफ़िक जाम हो ही जाता है । और सिर्फ़ सुबह -शाम ही ट्रैफ़िक जाम होगा ऐसा भी नहीं है । 😙 इस बीते सोमवार हम अपनी दोस्त के साथ वसंत कुंज से होते हुये ग्रेटर कैलाश जा रहे थे तो महिपालपुर बाई पास पर बहुत ज़्यादा ट्रैफ़िक मिला था और जो रास्ता दस - पन्द्रह मिनट का था उसे पार करने में चालीस मिनट लग गये थे । हमारी दोस्त का कहना था कि सोमवार को हमेशा बहुत ट्रैफ़िक होता है । इसलिये सोमवार को जाने से बचना चाहिये । हालाँकि हम अकसर जाते रहते है । पर कल जब हम फिर से वसंत कुंज के एक हॉस्पिटल जा रहे थे तो हम बहुत ही बुरे ट्रैफ़िक जाम में फँस गये थे । वैसे कल ना तो सोमवार और ना ही शुक्रवार था ना ही कोई ऑफ़िस टाइम था । जैसे ही हम चले तो ड्राइवर को बोला कि महिपालपुर बाई पास से चलना पर वो गुरूग्राम वाले रास्ते स

यादें हमें क्यूँ अच्छी लगती है

कई बार क्या अकसर ऐसा होता है कि हम जब भी पुरानी बातें या समय याद करते है तो मन एक अजीब सी ख़ुशी से भर जाता है । और उस दौरान हम उस बीते हुये लम्हे को पुन: जी लेते है । ऐसा नहीं है कि बीते हुये समय में सब कुछ बिलकुल हमारी मनमर्ज़ी से हुआ होगा या कभी कुछ बुरा नहीं हुआ होगा पर फिर भी हमेशा पुराना समय और पुरानी बातें मन को ख़ुश कर देती है । हमें अच्छे से याद है जब हम छोटे थे तो हमारे बाबा अपने ज़माने की बातें करते थे तो हम लोगों को लगता था कि बाबूजी हमेशा पुरानी बातें ही क्यूँ करते है पर अब समझ आया कि बीते हुये दिन हमेशा दिल को ख़ुश करते है । अब ऐसा भी नही है कि वर्तमान में कुछ अच्छा नही हो रहा है पर ना जाने क्यूँ हम बार बार यादों में जाना पसंद करते है । वो शायद इसलिये क्योंकि उन यादों से हम अपने खोये हुये माँ पापा ,बचपन,स्कूल कॉलेज के मस्ती भरे दिन ,( जो शायद उस समय इतने मस्ती भरे नहीं लगते थे क्योंकि तब पढ़ाई का थोड़ा बहुत दबाव होता था ) सब को बार बार जीते है । पर हाँ कभी कभी पुरानी यादें मन को उदास और दुखी भी करती है । और आँखों को नम भी करती है । जब भी पुरानी फ़ोटो या वीडियो देखो

ग़ायब होते गीत के विषय

आज सुबह सुबह मशहूर कवि और गीतकार गोपालदास नीरज के निधन की ख़बर पढ़ी , उनकी लिखी कवितायें और गीत भला कौन भुला सकता है । पहले जब दूरदर्शन पर कवि सम्मेलन होता था तो उनकी कविता पाठ से ही कवि सम्मेलन का समापन होता था । और उनका लिखा ये गीत जो एक ज़माने में विविध भारती पर खूब बजता था । ए भाई ज़रा देख के चलो आगे ही नहीं पीछे भी दायें ही नहीं बायें भी ऊपर ही नीचे भी ए भाई ना केवल ये गीत बल्कि इनके लिखे अन्य गीत भी बहुत ही लोकप्रिय थे । हर गीत एक से बढ़कर एक और जीवन का फ़लसफ़ा समझाते हुये । देव आनन्द की फ़िल्मों के पसंदीदा गीतकार थे । कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे जैसे फूलों के रंग से ,दिल की क़लम से रंगीला रे ,तेरे रंग में यूँ रंगा है मेरा मन लिखे जो ख़त तुझे मेघा छाये आधी रात मेरा मन तेरा प्यासा अनायास ही मन में विचार आया कि अब तो ऐसे गीत और गीतकार ही नहीं रहे । आजकल की हिन्दी फ़िल्मों से बहुत सारे गीत के विषय ग़ायब से होते जा रहे है । जैसे रक्षाबंधन,होली ,दिवाली,देशभक्ति ,भाई-बहन,दोस्ती,और मॉं और पिता ,बच्चे और बचपन पर आधारित गीत तो आजकल विरले ही सुनने को मिलते है । हाँ

बारिश और लाल बिलौटी

लाल बिलौटी ( रेड लेडी बर्ड ) नाम तो सुना ही होगा और पकड़ी भी होंगीं । वैसे अब ये दिखती ही नहीं है पर पहले यानि जब हम लोग छोटे थे तब बारिश के बाद लाल बिलौटी खूब निकला करती थीं । ये बहुत ही मख़मली ,सुर्ख़ लाल रंग की और छोटी सी होती थी । जब इनको हाथ से छूते या उठाते थे तो ये अपने पंजे सिकोड़ लेती पर फिर थोड़े सेकेंड के बाद पंजे खोलती और बहुत ही धीरे धीरे चलती । जब ये अपने पंजे बंद करती तो हम लोग कुछ ऐसा कहते थे --- लाल बिलौटी पंजा खोल ,तेरी बग्घी आती होगी । 😊 और कई बार वो वाक़ई पंजे खोलकर चलने लगती । वो हमारे कहने पर नहीं पर जब हम उसे थोड़ी देर छूते नहीं थे तब वो चलती थी । ये बाद नें समझ आया । 😀 वैसे पहले हम लोग जब बारिश होती थी तो चाहे घर हो या स्कूल खूब नाव बनाते और चलाते थे । कॉपी में से धडाधड पन्ने फाड़ते और नाव बनाते । और जब कहीं नाव अटक जाती तो डंडी से उसे आगे खिसकाते । एक नाव डूब जाती तो दूसरी नाव बनाते थे । बाक़ायदा हम और हमारी दीदी में कॉमपटीशन भी होता था । और अकसर हमारी नाव डूब जाती थी क्योंकि अगर काग़ज़ की नाव ठीक से नहीं बनी हो तो डूब ही जाती है । कभी कभी घर पर बड़ी न

आज भी अंधविश्वास

क्या आज भी लोगों पर देवी देवता आते है । पर गाँवों में तो शायद अब भी मानते है । पर शहर में रहने वाले भी इसे मानते है । ऐसा कल पता चला । दरअसल हमारी कामवाली दो तीन दिन से बीमार थी और छुट्टी पर थी । उसने बुखार ,चक्कर और हाथ पैर में दर्द ही बताया था । पर कल उसकी भाभी ने बताया कि उस पर देवता आ गये है । हमारे पूछने पर कि हर साल इसी समय सिर्फ़ उस पर ही देवता क्यूँ आते है । तो वो बोली कि गाँव में ऐसा कहते है कि बरसात के समय में लोगों पर देवता आ जाते है जिसकी वजह से चक्कर आते है और लोग बीमार पड़ते है । जहाँ तक हम अपनी कामवाली को जानते है वो ऐसा नासोचती है और ना ही मानती है । और झाडफूंक की बजाय डाक्टर को दिखा कर अपना इलाज करवाती है ।

सेक्रेड गेम्स

सेक्रेड गेम्स इस नाम का शो नैटफिलकस पर आया है । जिसमें सैफ़ अली खान, नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी ,राधिका आपटे , सुरवीन चावला ,पीयूष मिश्रा जैसे कलाकार है । जिनके अभिनय की जितनी तारीफ़ करें कम है । इसमें सैफ़ अली खान ने एक सरदार के रोल में और नवाजुद्दीन एक गैंगस्टर के रोल में बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है । राधिका आपटे हमें कुछ ख़ास पसंद नहीं आई । हाँ ठीकठाक है । पर हाँ राजऋी देशपांडे ने अच्छी एक्टिंग की है । काटेकर के रोल में जितेन्द्र जोशी ने तो कमाल की एक्टिंग की है । नैटफिलकस पर इंगलिश सीरियल और शो तो हम बहुत समय से देख रहे है पर हिन्दी वाला ये पहला शो देखा है । वैसे हिन्दी में पहले भी सीरियल बने है मगर हमने देखे नहीं है पर चूँकि इस शो को अनुराग कश्यप ने बनाया है इसलिये इस शो को हमने देखा । इस शो के चार सीज़न है और हर सीज़न में आठ एपिसोड है । और हर एपिसोड एक घंटे का होता है । शो में ऊपर चेतावनी लिखी आती है कि इसमें वॉयलेंस , सेकस और अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया है । देखना ना देखना आपकी मर्ज़ी । वैसे ये अच्छा है कि चेतावनी लिखकर सब दिखा दो । नैटफिलकस में एक अच्छाई है कि चाहे अंग्रेज़ी

इत्र

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आजकल लोग इत्र कम और परफ़्यूम और डियो जैसी चीज़ों का प्रयोग करते है । और वो भी ना केवल देशी बल्कि विदेशी ब्रांड के । वैसे कन्नौज का इत्र बहुत मशहूर है । अगर कार से कन्नौज से गुज़र रहे होते है तो इत्र की ख़ुशबू चारों तरफ़ फैली होती है । अगर आप सो भी रहे हो तो इत्र की ख़ुशबू से पता चल जाता है कि कन्नौज आ गया है क्योंकि वहाँ घर घर में इत्र बनाने का काम होता है । वैसे हम भी परफ़्यूम और डियो से अछूते नहीं है । पर अभी हाल में हमने इत्र ख़रीदा और यक़ीन मानिये इसकी ख़ुशबू और दाम दोनों ही बहुत बढ़िया । पहले तो लोग इत्र का ही इस्तेमाल किया करते थे । हमारे बाबा इत्र की छोटी सी बोतल रखते थे और जब भी कहीं जाते थे तो उसे अपने हाथ की कलाई पर लगाते थे । इत्र लगाने का यही तरीक़ा होता है । खैर हमने अभी हाल ही में इत्र ख़रीदा है । दरअसल एक दिन हम लोग दिल्ली एम्पोरियम गये थे तो वहीं की एक सेल्स गर्ल नें हमें इत्र ट्राई करने को कहा पहले तो हमने मना कर दिया कि हम ये लगाते ही नहीं है पर उसके ज़्यादा ज़ोर देने पर हमने अम्बर नाम के इत्र को ट्राई किया । उसने हमारी कलाई पर रोल ऑन लगाया और हमें ये काफ़ी पसं

मीठी यादें ज़ीरो की

आज सुबह जैसे ही फेसबुक खोला तो उसमें सात साल पुरानी फ़ोटो दिखी जिसे हमनें शेयर किया । कई बार हम लोग फ़ोटो को लगा कर भूल जाते है पर फेसबुक कभी एक साल पुरानी तो कभी दो साल पुरानी और कभी सात साल पुरानी कोई फ़ोटो को अचानक दिखा देता है और हम लोग वापिस उन्हीं लम्हों में पहुँच जाते है । आज की फ़ोटो देखकर जीरो जो कि अरूनाचल प्रदेश का एक डिस्ट्रिकट है उसकी याद ताज़ा हो आई ,जब हम लोग ज़ीरो गये थे इनके दृी फ़ेस्टिवल को देखने । वैसे यहाँ पर दूसरी ट्राईब भी रहती है पर मुख्य ट्राइब अपातानी है । ज़ीरो इटानगर से लगभग १६० कि. मी. की दूरी पर है । और तब चार घंटे का समय लगता था , एक तो पहाड़ी रास्ता दूसरा जगह जगह सड़क बनती रहती थी । वैसे हो सकता है अब रास्ते पहले से अच्छे हो गये होगें । यूँ तो अरूनाचल प्रदेश में सभी औरतें बड़ी ख़ूबसूरत होती है और अपातानी औरतें भी बहुत सुंदर होती है । पर जो वहाँ की वृद्ध औरतें है उनके चेहरे पर टैटू बना हुआ देखा जा सकता है माथे पर एक लम्बी सी लकीर और ठुड्डी पर चार या पाँच छोटी छोटी लकीरें । और नाक के दोनों तरफ़ में बड़ी ,काली सी लकड़ी की बाली सी पहनती है । और ये टैटू

वज़न घटाना कितना मुश्किल 😋

ना केवल अपने देश में बल्कि दुनिया भर में लोग वज़न बढ़ने से परेशान रहते है । और हों भी क्यूँ ना । वज़न ज़्यादा होना किसी के लिये भी अच्छा नहीं होता है फिर वो चाहे पुरूष हो या स्त्री । और तो और मोटापे से कितनी सारी समस्यायें जुड़ी होती है । तो भला कोई क्यूँ मोटा होना चाहेगा । अब वज़न कोई एक दिन में तो बढ़ता नहीं है पर काफ़ी समय तक तो हम लोग इस बढ़ते हुये वज़न और मोटापे को अनदेखा करते रहते है । और जब जागते है तब तक बड़ी देर हो चुकी रहती है मतलब वज़न इतना बढ गया होता है कि घटाना मुश्किल । वैसे वज़न घटाने में भले महीने या साल लग जायें पर बढनें में ज़रा भी समय नहीं लगता है । रोज़ सुबह उठकर सबसे पहले वेईंग मशीन पर वज़न देखना दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है । और अगर पाँच सौ ग्राम भी कम आता है तो मन ख़ुशी से झूम उठता है। ये हमारा अनुभव है । कल सुबह की ही बात है हम वेईंग मशीन पर अपना वज़न देखने के लिये खड़े हुये और एक किलो जी हाँ पूरा एक किलो कम आया तो हम ख़ुशी से फूले ना समाये । पर आज सुबह जब हमनें वज़न लिया तो डेढ़ किलो बढ़ गया । 😩 क्या क्या नहीं करते है इस बढ़े हुये वज़न को कम करने के

कैंसर एक ख़ौफ़

यूँ तो कोई भी बीमारी छोटी नहीं होती है पर कैंसर इस शब्द को सुनते ही शरीर में एक सिहरन सी महसूस होती है । और पिछले कई दशकों से इस बीमारी से लोग प्रभावित होते रहे है । ये एक ऐसी बीमारी है जो चुपके चुपके शरीर में आ जाती है और भनक भी नहीं लगती है । कई बार तो जल्दी पकड़ में आ जाती है पर कभी कभी बहुत देर में इसका पता चलता है । जब आनन्द और मिली फ़िल्मे देखीं थी तो ऐसा लगा नहीं था कि कुछ सालों के बाद ये बीमारी भी इतनी ज़्यादा फैल जायेगी । जब भी हम लोग सुनते है कि किसी को कैंसर हुआ है तो भले हम उसे जानते हों या ना जानते हो मन में एक टीस सी ज़रूर उठती है । हाल ही में इरफ़ान खान और सोनाली बिन्द्रे इस बीमारी से लड़ रहे है ,पता चला तो बहुत दुख हुआ और ख़राब लगा । और ये सोचने पर मजबूर हुये कि ये बीमारी कभी भी किसी को भी अपने चंगुल में ले सकती है । और इस से सिर्फ़ लड़ कर ही जीता जा सकता है । और इसके लिये भगवान ही हिम्मत देता है । हमने अपनी एक दोस्त को इस कैंसर से जूझते, लड़ते और इससे जीतते देखा है ।

संजू एक फ़िल्म

हमने संजू देखी और इसमें कोई दो राय नहीं है कि रनबीर कपूर ने बहुत ही अच्छी एक्टिंग की है । जिस तरह से संजय दत्त के स्टाइल में हाथ ढीले छोड़कर चलना ,सिर को थोड़ा हिलाकर डायलॉग बोलना और कैसे यंग संजय दत्त के लिये वज़न कम करना और बाद में बड़ा परिपक्व दिखने के लिये वज़न बढ़ाना । रनबीर कपूर की जितनी तारीफ़ की जाय उतनी कम है । कहानी तो सभी को संजय दत्त की मालूम है कि एक समय में वो ड्रग्स एडिकट था और कैसे टाडा में गन रखने के लिये उस पर केस चला और सज़ा हुई । और इस दौरान उसकी जिंदगी में क्या क्या घटित हुआ ये तो हम सभी पढ़ते और जानते रहे है । इस फ़िल्म से संजय दत्त को एक तरह से भटका हुआ दिखाया है । ठीक है बहुत बार माँ बाप ग़लत भी हो सकते है पर उसका मतलब ये नहीं होता है कि आप गलत रास्ते पर चल दें । और उस ग़लती का परिणाम ना केवल वो बल्कि उसके माँ बाप को भी झेलना पड़ता है । ड्रग्स के बारे में तो कहा ही जाता है कि इसको मज़े या दुख दर्द को भुलाने के लिये लेना तो आसान है पर इसके चंगुल से निकलना बहुत मुश्किल है । और इसको बख़ूबी फ़िल्म में दिखाया गया है । अपनी हिफ़ाज़त के लिये गन रखना सोचें तो ठी

पानी पानी दिल्ली

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मानसून ने जून के आख़िरी हफ़्ते से ना केवल दिल्ली बल्कि क़रीब क़रीब पूरे देश में दस्तक दी है । हालाँकि अभी पूरी तरह से खूब बारिश नहीं हो रही है (मतलब लगातार दो -तीन दिन तक बारिश होती रहना ) पर फिर भी बादल छाये रहते है । कई बार इन बादलों और हल्की फुलकी बारिश से राहत की बजाय उमस सी हो जाती है । परसों दिल्ली में बस एक डेढ़ घंटे खूब धुँआधार बारिश हुई थी और जिसका नतीजा जगह जगह सड़कों पर पानी का भर जाना । हर साल यही हालत होती है । और ये हालात धीरे धीरे बद से बदतर ही होते जा रहे है । परसों जब हम शॉपिंग के बाद मॉल से बाहर निकले तो पता चला कि बाहर तो धुँआधार बारिश हो रही है । पर ग़नीमत ये थी कि इतनी बारिश में भी हमें ऊबर कैब मिल गई थी । और जब हम लोग वसंत कुंज से निकले तो हर थोड़ी दूर पर सड़कों पर पानी भरा हुआ था । महिपालपुर पुर की क्रासिंग पर भी काफ़ी पानी भरा हुआ था । और लोगों को ये समझ नहीं आ रहा था कि उस गंदे पानी से भरी सड़क को कैसे पार करें । पर उस बारिश के पानी से भरी सड़क को क्रास करने के अलावा कोई और चारा भी तो नहीं था । बारिश का पानी हो तो भी ठीक पर नालियों और सीवर का पानी और दुन

सेल ही सेल की बहार

आजकल तो हर बाज़ार और दुकान में सेल का बोर्ड दिखाई दे रहा है । वैसे भी जुलाई और फ़रवरी के महीनों में सेल लगती ही थी या दिवाली के समय सेल लगती थी । पर आजकल तो तो हर तीज त्योहार पर सेल लगना लाज़मी है । ऑनलाइन शॉपिंग में तो हमेशा ही सेल लगी रहती है चाहे मिनतरा हो या अमेजॉन हो या जबॉंग हो,फिलपकारट हो , हर तरफ़ सेल ही सेल । वैसे ऑनलाइन में तो किसी ना किसी रूप में सारे साल सेल लगी रहती है । कल हम वसंत कुंज मॉल गये थे वहाँ तो हर शॉप पर सेल का बड़ा सा बोर्ड लगा है । ज़्यादातर जगह अपटू ५०% छूट तो कहीं कहीं ७०% तक की छूट के बोर्ड लगे हुये है । और हर शॉप पर खूब भीड़ फिर वो चाहे ओनली हो या एच एंड एम हो या लाइफ़स्टाइल हो या ज़ारा हो या कोई और हो । ना केवल कपड़े , जूते, पर्स पर बल्कि इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर भी ज़बरदस्त सेल लगती है । और अब तो ज्वैलरी में भी जैसे तनिष्क ,कल्यान ज्वैलरस भी कुछ ना कुछ ऑफ़र देते रहते है । सेल के दौरान दोपहर में मतलब दो-तीन बजे तक तो थोड़ी कम भीड़ भांड होती है पर जैसे जैसे शाम होने लगती है वैसे वैसे लोगों का मेला सा लग जाता है । दोपहर के समय तो कपड़े देखना और ट्राई