रिमझिम के तराने लेके आई बरसात

पुराना परन्तु कितना मीठा गीत । ग़लत तो नहीं कहा ना ।

एक समय था जब बारिश और सावन के मौसम पर आधारित गानों की भी हिन्दी फ़िल्मों में बहार सी होती थी जैसे ख़ुशी,ग़म ,मिलन,विरह ,छेड़छाड़, घर ,सहेलियाँ,झूला ,वग़ैरह पर खूब गाने बनते थे । पर अफ़सोस आजकल तो ऐसे गीतों का कुछ अकाल सा पड़ गया है । क्योंकि आज की दौड़ती भागती जिंदगी में ये सब कहीं खो सा रहा है ।

बरसात का मौसम आते ही जगह जगह पर पेड़ों की डालियों पर झूले पड़ जाते थे । अब तो विरले ही पेड़ और पेड़ पर झूले नज़र आते है । झूले पर बारिश में भीगने का भी अपना ही मजा़ था । वो गाना तो याद ही होगा -- पड़ गये झूले सवन ऋतु आई रे ,पड़ गये झूले ।

सावन का मौसम और बारिश के आते ही रेडियो पर बरसात के गीतों की बारिश सी हो जाती थी । वैसे आज भी एफ.एम. गोल्ड पर ऐसे गीत सुने जा सकते है । इस मौसम में हमेशा बन्दनी फ़िल्म का गीत अब के बरस भेज भइया को बाबुल सुनकर आँखों में अपने आप ही आँसू आ जाते है । तो वहीं किशोर कुमार का इक लड़की भीगी भागी सी सुनकर मुस्कराहट आ जाती है ।

रिमझिम के तराने लेके आई बरसात गीत को सुनकर बारिश की मीठी सी अनुभूति होती थी पर आजकल के समय में ये गाना कुछ बेमानी सा हो गया है । क्योंकि आजकल तो जहाँ ज़रा तेज़ मूसलाधार बारिश हुई नहीं कि सड़कों पर पानी भर जाता है । और तो और अब तो फ़्लाई ओवरों पर भी पानी भर जाता है । ट्रैफ़िक का हाल बेहाल ,जहाँ जाओ बस गाड़ियाँ ही गाड़ियाँ खड़ी नज़र आती है । कहीं कोई मकान गिर जाता है तो कहीं सड़क धँस जाती है । जहाँ पहले बारिश के आने पर ख़ुशी होती थी वहीं अब थोड़ा डर लगता है ।

पहले जहाँ झमाझम बारिश होती तो स्कूलों में रेनी डे हो जाता ,और अगर स्कूल पहुँच जाते तो क्लास में पढ़ाई कम अंताकक्षरी ज़्यादा खेलते । कई बार कार लेकर बारिश के मज़े लेने के लिये निकल पड़ते थे पर अब तो ऐसा सोचा ही नहीं जा सकता है क्योंकि घर से निकलते ही कहाँ ट्रैफ़िक जाम में या सड़क पर भरे पानी में फँस जायेंगे ये पता नहीं होता है ।

पर हाँ बारिश में एक चीज़ जो नहीं बदली है वो है चाय और पकौड़े । जब भी बारिश होती है तो इनके बिना बारिश का मजा़ अधूरा सा लगता है । क्यूँ सही कह रहे है ना । 😀

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